For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

May 2017 Blog Posts (117)

ग़ज़ल नूर की- नुमायाँ है तू अपनी गुफ़्तार में,

122/122/122/12 

.

नुमायाँ है तू अपनी गुफ़्तार में,

सफ़ाई न दे हम को बेकार में.

.

फ़क़त एक मिसरे में गीता सुनो

है संसार मुझ में, मैं संसार में.

.

ये तामीर-ए-क़ुदरत भी कुछ कम नहीं

हिफ़ाज़त से रक्खा है गुल, ख़ार में.

.

कहानी को अंजाम होने तो दो

सभी लौट आयेंगे किरदार में.

.

ऐ ज़िल्ल-ए-ईलाही!! ये इन्साफ़ हो,

कि चुनवा दो शैख़ू को दीवार में.

.

तू शिद्दत से माथा पटक कर तो देख

कोई दर निकल…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2017 at 9:30am — 22 Comments

दमकते फिर रहे हैं झुग्गियों में (ग़ज़ल) - ज़हीर क़ुरेशी

1222-1222-122

 

वो ये भी कह रही है सिसकियों में,

बहुत जल बह चुका है नद्दियों में !

 

युवा फूलों पे मँडराने को लेकर,

मची है होड़ क्वाँरी तितलियों में.

 

धुँए को चीरकर घुसने लगी है,

चिता की आग गीली लकड़ियों में.

 

नदी के साथ मीठी मछलियाँ भी,

पहुँच जाती हैं खारी मछलियों में !

 

कई महलों में रहने योग्य हीरे,

दमकते फिर रहे हैं झुग्गियों में.

 

ये ‘एस.एम.एस.’ करने वाली…

Continue

Added by जहीर कुरैशी on May 12, 2017 at 7:22pm — 7 Comments

मैंने गलत को गलत कहा

ना कोई सगा रहा,

जिस दिन से होकर बेधड़क

मैंने गलत को गलत कहा!



तोहमतें लगने लगी,

धमकियां मिलने लगी,

हां मेरे किरदार पर भी

ऊंगलियां उठने लगी,

कातिलों के सामने भी

सिर नहीं मेरा झुका!

मैंने गलत को गलत कहा!



चापलूसों से घिरे

झाड़ पर वो चढ़ गये,

इतना गुरूर था उन्हें

कि वो खुदा ही बन गये,

झूठी तारीफें न सुन

हो गये मुझसे ख़फा!

मैंने गलत को गलत कहा!



मेरी सब बेबाकियों की

दी गई ज़ालिम सज़ा,

फांसी… Continue

Added by shikha kaushik on May 12, 2017 at 5:40pm — 15 Comments

तरही ग़ज़ल (कुछ नही है हाथ मे बस फ़लसफ़ा रोशन करें)

बह्र 2122 2122 2122 212



ज़िन्दगी की राह मुश्किल हौसला रोशन करें

हर गली हर रास्ते पर हम दिया रोशन करें ||



ऐ ख़ुदा बर्कत की ख़ातिर भेज दे महमाँ कोई

अपने दस्तर ख़्वान पर हम ये दुआ रोशन करें ||



हुस्न वाले भी निखर जायेंगे मोती की तरह

गर नुमाइश छोड़ कर शर्म-ओ-हया रोशन करें ||



दूसरों से पूछना क्या हर कमी दिख जाएगी

आप अपने दिल का बस ये आइना रोशन करें ||



हैं यहाँ तनहाइयाँ और वक़्त की मजबूरियाँ

कुछ नही है हाथ मे बस फ़लसफ़ा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 12:00pm — 24 Comments

शिक्षा सबके लिए ( लघुकथा)

" तुम मुझे रोज़ लेने आ जाती हो , मेरे बाबा मुझे डाँटते है । उनको लगता है मैं आलसी हूँ , स्कूल नहीं जाना चाहती । " शीला ने अपनी सहेली मीना से कहा ।



" हाहा हाहा , सही तो कहते है तुम्हारे बाबा , पढ़ाई चोर तो तुम हो ही , जब देखो तुम्हारी कॉपियां अधूरी रहती है ...।" मीना ने हंसकर कहा



" धत्त , कोई नहीं झूठी मेरी कॉपियां तो पूरी होती है , वो तो ....... वो तो ........."अपनी माँ की तरफ़ देखकर शीला चुप हो गयी ।



मीना यह बात जानती थी कि शीला की माँ को शीला का स्कूल जाना पसंद… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 12, 2017 at 11:38am — 14 Comments

सार छंद ( 16 ,12 )

छन्न पकैया छन्न पकैया , ऐसे मेरे नाना
रोज़ सवेरे पानी देते , औ देते थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , खुश होते थे नाना
उड़ते हुए परिंदे आते , सब चुगने थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया ,था उनका ये कहना
आपनी तरह परिंदों का भी, खयाल रखना बहना

छन्न पाकैया छन्न पकैया,सबको ये समझाना
पशु पक्षी पेडों पौधों से, प्यार सदा जतलाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , जीना चाहें मरना
नाना सदा यही कहते थे ,प्रेम सभी से करना ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 11, 2017 at 1:30pm — 13 Comments

नूर की हिंदी ग़ज़ल-बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?

२१२२, २१२२,२१२ 
.
बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
.

सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
.

राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
.

देख कर इक कोमलांगी के अधर,   
कल्पना लेने लगी आकार क्या? 
.

आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.  

.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 9:24am — 25 Comments

ग्रीष्म के दोहे

सूरज शोले छोड़ता ,पशु भी ढूँढे छाँव ।
दर खिड़की सब बंद है ,सन्नाटे में गाँव ।।

भीषण गरमी पड़ रही,पशु -मानव हैरान ।
भू जल भी घटने लगा, साँसत में है जान ।।

पारा बढ़ता जा रहा, सूख रहे तालाब ।
देखो गाँव महानगर , हालत हुई खराब ।।

पत्ते झुलसे पेड़ पर ,नीम बबूल उदास ।
पशु किसान सबको लगी, पानी की अब आस ।।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on May 11, 2017 at 8:30am — 14 Comments

गजल( बेखुदी में यार मेरे....)

2122   2122  2122  212

बेखुदी में यार मेरे याद आना छोड़ दो

मुस्कुराने की अदा है कातिलाना, छोड़ दो।1

 

सूखती-सी जो नदी उम्मीद की, बहती रही

कान में पुरवाइयों-सी गुनगुनाना छोड़ दो।2

 

ख्वाहिशों के दौर में थमती नहीं है जिंदगी 

उँगलियों पर अब जरा मुझको नचाना छोड़ दो।3

 

चाँद ढलता जा रहा फिर है पड़ी सूनी गली

बेबसी में अब कभी मुझको बुलाना छोड़ दो।4

राह अपनी मैं चलूँ तुमको मुबारक रास्ते

अनकही बातें बता रिश्ते…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 9:11pm — 10 Comments

दोहे

जीवन हमको बुद्ध का , देता है सन्देश |

रक्षा करना जीव की , दूर रहेगा क्लेश ||1||

भोग विलास व नारियां, बदल न पाई चाल |

योग बना था संत का, छोड़ दिया जंजाल ||2||

मन वीणा के तार को, कसना तनिक सहेज |

ढीले से हो बेसुरा , अधिक कसे निस्तेज ||3||

बंधन माया मोह का , जकड़े रहता पाँव |

जिस जिसने छोड़ा इसे , बसे ईश के गाँव ||4||

धन्य भूमि है देश की, जन्मे संत महान |

ज्ञान दीप से जगत का,हरे सकल अज्ञान ||5||

.…

Continue

Added by Chhaya Shukla on May 10, 2017 at 2:00pm — 9 Comments

बंद दरवाज़े (लघुकथा )

“आंटी जी, अगर उस दिन आप ने मेरे सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं मैं कहाँ होती”

“कीमत तो वो मेरी पहले ही लगा चुके थे,उस रोज़ तो बस पैसे देने ही आए थे ”।

“मुझ को तो कुछ पता ही नहीं चलने दिया था”  ऋतू ये कहती जा रही थी।

“ये तो भला हो, मेरे साथ डांस पार्टी में काम करने वाली सुनीता का,

 "उस बता दिया मुझको  कि  मालिक तो मेरे पैसे ले रहा  हैं, कल तुम किसी और डांस पार्टी में काम करोगी "

  "तब मुझे आप के पास तो आना ही था, आंटी जी" 

 “घर से तो अमली ने  पहले ही…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 10, 2017 at 12:30pm — 8 Comments

अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,--ग़ज़ल

2212/2212/2212



अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,



काँटो से मैं खुद को सजाया करता हूँ।







इन मन्दिरों में मस्जिदों में जाना क्या,



कुछ भूखे बच्चों को खिलाया करता हूँ।







रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,



गम को मियाँ हँस कर छुपाया करता हूँ।







मुझसे भी मिलने गाँव तुम आया करो,



मै सब को आईना दिखाया करता हूँ।







मै प्यार मे जीता करूं ! चाहत नही,



मै प्यार मे… Continue

Added by Hemant kumar on May 10, 2017 at 11:47am — 8 Comments

उड़ती हुई पतंग

एक नवगीत

 

गायब हैं नकली रंगों में,

होली के हुडदंग.

नजर न आती आसमान में,

उड़ती हुई पतंग.

 

पड़ी ठण्ड जब रहे सिकुड़ते,

मिली न छत सबको,

मई जून में खूब तपाया,

सूरज ने…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 9:31am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा करिये ( गिरिराज भंडारी )

( दूसरे शेर के ऐब ए तनाफुर को कृपया स्वीकार करें )

2122  1212   22/112

ज़ह’नियत यूँ न बरहना करिये

अपने जामे में ही रहा करिये

 

आब ठंडक ही दे हमें हरदम     

आग, गर्मी ही दे दुआ करिये

 

बेवफा हो गये हैं जो साबित    

उनसे क्या खा के अब वफ़ा करिये

 

जुगनुओं की चमक चुरायी है  

शम्स ख़ुद को न अब कहा करिये

 

सिर्फ बीमार कह के चुप न रहें

इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:00am — 12 Comments

"तरही ग़ज़ल , जनाब रवि शुक्ल साहिब की नज़्र"

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन



पहले अपनी रूह का ये मक़बरा रोशन करें

और इसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें



गर मयस्सर घी नहीं है,तेल का रोशन करें

मन्दिर-ओ-मस्जिद में जाएँ इक दिया रोशन करें



ये हमारी ज़िम्मेदारी है, हमारा फ़र्ज़ भी

नाम अपने बाप दादा का सदा रोशन करें



नफरतों के इन अँधेरों को मिटाने के लिये

हम चराग़ उल्फ़त के यारो जा ब जा रोशन करें



याद कर के नज़्म 'हाली'की,ज़ईफ़ा की तरह

झुटपुटे के वक़्त मिट्टी का दिया रोशन… Continue

Added by Samar kabeer on May 9, 2017 at 11:30pm — 26 Comments

चाँद तारे बना टाँकती रह गई

212  212 
झाँकती रह गई |
ताकती रह गई |


चाँद तारे बना
टाँकती रह गई |


अंत है कब कहाँ
आँकती रह गई |


चाशनी हाथ ले 
बाँटती रह गई |


साँच को आँच थी
हाँकती रह गई |


रेत में जब फँसी
हाँफती रह गई |


प्यास कैसे बुझे
बाँचती रह गई |
(मौलिक अप्रकाशित)

 

 

Added by Chhaya Shukla on May 9, 2017 at 9:30pm — 12 Comments

हिन्दी ग़ज़ल...जब सूर्य चले अस्ताचल को

22 22 22 22
जब सूर्य चले अस्ताचल को
गहराय तिमिर घेरे तल को

इक दीप जलाओ अंतस में
जगमग कर दो भूमण्डल को

आवाज बनो तुम गूंगों की
तूफान बना दो हलचल को

जब चलना है, तो साथ चलें
पग से नापें नभ जल थल को

दुःख दुनिया का पी लेंगें 'ब्रज'
रक्खो तैयार हलाहल को
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 9, 2017 at 7:00pm — 17 Comments

स्मृति पृष्ठ ...

स्मृति पृष्ठ ...

रजनी के

श्यामल कपोलों पर

मेघों की बूंदों ने

व्यथित यादों के

पृष्ठों पर जैसे

सान्तवना का

आभासीय श्रृंगार कर डाला

दृग कलशों से

सजल वेदना

प्रीत की

पराकाष्ठा को

चेहरे की लकीरों में

शोभित करती रही

प्राण और देह में

जीवन संघर्ष चलता रहा

किसी को विस्मरण करने के

सभी उपचार

रेत की भित्ति से

ढह गए

थके नयन

आशा क्षणों की

गहन कंदराओं में…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 3:59pm — 13 Comments

तरही गजल : फूल जंगल में खिले किन के लिये

2122 2122 212

कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए

वो हमे भी ले गए पिन के लिए



चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे

आप अब भी रो रहे जिन के लिए



शेर को आता है बस करना शिकार

फूल जंगल में खिले किन के लिए



गुठलियों के दाम भी वो ले गया

उसने शीरीं आम जब गिन के लिये



आ गई अब ब्रेड में बीमारियाँ

जी रहे थे क्या इसी दिन के लिए



आये थे जापान से कल लौट कर

फिर उड़े वो रूस बर्लिन के लिए



पास पप्पू एक दिन हो…

Continue

Added by Ravi Shukla on May 9, 2017 at 11:46am — 27 Comments

कोई रिश्ता निभाया जा रहा है

मापनी -१२२२ १२२२ १२२

कोई रिश्ता निभाया जा रहा है

मुझे फिर से बुलाया जा रहा है

 

भले ही खिड़कियाँ हैं बंद घर की,

मगर परदा उठाया जा रहा है

 

पड़ीं हैं नींव में चुपचाप ईंटे,

भले बोझा बढाया जा रहा…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 10:00am — 19 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service