Added by Manan Kumar singh on May 11, 2016 at 8:04pm — No Comments
Added by Tanuja Upreti on May 11, 2016 at 11:30am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2016 at 10:30pm — 3 Comments
Added by amita tiwari on May 10, 2016 at 7:30pm — 3 Comments
ज़िंदगी के फ्रेम में ....
यादें
आज पर भारी
बीते कल की बातें
वर्तमान को अतीत करती
कुछ गहरी कुछ हल्की
धुंधलके में खोई
वो बिछुड़ी मुलाकातें
हाँ ! यही तो हैं यादें
ये भीड़ में तन्हाई का
अहसास कराती हैं
आँखों से अश्कों की
बरसात कराती हैं
सफर की हर चुभन
याद दिलाती हैं
जब भी आती हैं
ये ज़ख़्म कुरेद जाती हैं
अहसासों के शानों पर
ये कहकहे लगाती हैं
ज़हन की तारीकियों में
ये अपना घर बनाती हैं…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 3:54pm — 4 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 2 2 1
फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन मफऊलात
कट गए जंगल सभी कैसे रहे विवरों में नाग
इसलिए सब भाग कर अब आ गए नगरों में नाग
चारपाई पर नहीं चढ़ते थे जो पहले कभी
अब वही बेख़ौफ़ होकर घूमते शहरों में नाग
अब बचाकर जान देखो भागता है आदमी
फन उठाये मिल रहे हैं हर कही डगरों में नाग
हो सके तो बाज आओ प्यार से इनके बचो
कौन जाने दंश…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 10, 2016 at 1:00pm — 3 Comments
गुमशुदा हूँ मैं
तलाश जारी है
अनवरत 'स्व ' की
अपना ‘वजूद’
है क्या ?
आये खेले ..
कोई घर घरौंदा बनाए..
लात मार दें हम उनके
वे हमारे घरों को....
रिश्ते नाते उल्का से लुप्त
विनाश ईर्ष्या विध्वंस बस
'मैं ' ने जकड़ रखा है मुझे
झुकने नहीं देता रावण सा
एक 'ओंकार' सच सुन्दर
मैं ही हूँ - लगता है
और सब अनुयायी
'चिराग' से डर लगता है
अंधकार समाहित है
मन में ! तन - मन दुर्बल…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 10, 2016 at 12:30pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2016 at 10:00am — 4 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2016 at 9:44am — 4 Comments
१२२२/१२२२/१२२
ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है,
किसी की याद दिल में चुभ रही है.
.
मसीहा को मसीहाई चढ़ी है,
मसीहा को हमारी क्या पड़ी है.
.
कहीं पर अश्क मिट्टी हो रहे हैं
कहीं प्यासी तड़पती ज़िन्दगी है.
.
कई जुगनू चमक उट्ठे हैं
लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है.
.
मेरी नज़रें जमी हैं आसमां पर,
न जानें क्यूँ वहाँ भी ख़लबली है.
.
रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,
समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है.
.
गुनाहों में गिनीं जाएगी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2016 at 8:23am — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on May 9, 2016 at 5:30pm — 5 Comments
यह कौन है वहां उस छोर पर
जो देख रहा बादलों के कोर से
बैठ गया है जो वहां सालों से
न वो कोई ज़मीन पर रहता है
न ही आसमान को कोई हिस्सा है
दिखता है वो बहुत करीब मगर
जाने किस जहां में बस्ता है
दूर है वो पर करीब ही दिखता है
जब पूछते है पता उसका
कुछ मुस्कुराकर वो यह कहता है
बांवरा मन यह तेरा क्यों मुझको
इस बेचैनी से क्यों मुझको तू देखता है
क्षितिज हूँ मैं ,
आसमान का नहीं ,ज़मीन का भी नहीं
यह मेरा जहां है जहाँ तू मुझको…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 9, 2016 at 3:30pm — 5 Comments
Added by saalim sheikh on May 8, 2016 at 11:41pm — 5 Comments
पुण्य-तिथि
(२७ वर्ष उपरान्त भी लगता है ... माँ अभी गई हैं, अभी लौट आएँगी)
माँ ...
रा्तों में उलझे ख्यालों के भंवर में, या
रंगीले रहस्यमय रेखाचित्रों की ओट में
कभी चुप-सी चाँदनी की किरणों में
श्रद्धा के द्वार पर धुली आकृतिओं में
सरल निडर असीम आत्मीय आकृति
माँ की खिलखिलाती मुसकाती छवि
समृतिओं के दरख़तों की सुकुमार छायाएँ
स्नेह की धूप का उष्मापूरित चुम्बन
मेरे कंधे पर तुम्हारा स्नेहिल हाथ…
Added by vijay nikore on May 8, 2016 at 1:30pm — 31 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 8, 2016 at 7:30am — 6 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 8, 2016 at 7:00am — 5 Comments
बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२
इस दिल की लालसा पर एक बार तो अमल हो
बरसात आँसुओं की और प्यार की फ़सल हो
नाले की गंदगी है समुदाय की ज़रूरत
बहती हुई नदी में पर साफ शुद्ध जल हो
देवों के शीश पर चढ़ ये हो गया है पागल
ऐसा करो प्रभो कुछ फिर कीच का कमल हो
गर्मी की दोपहर को पूनम की रात लिखना
गर है यही ग़ज़ल तो मुझसे न अब ग़ज़ल हो
सरलीकरण में फँसकर विकृत हैं सत्य सारे
हारेगा झूठ ख़ुद ही यदि सच न अब सरल…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 7, 2016 at 9:16pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on May 7, 2016 at 7:30pm — 4 Comments
अरकान - 2122 2122 2122 212
दिल लगाकर दिल चुराना कोई सीखे आपसे|
तौर ये सदियों पुराना कोई सीखे आपसे|
कल सुबह नज़रें मिली औ शाम को ही गुफ्तगू,
रात को सपनों में आना कोई सीखे आपसे|
आपकी मख्मूर आँखें गोया मय के जाम हैं,
ये अदाएँ कातिलाना कोई सीखे आपसे|
सैंकड़ो उल्फ़त में अबतक बन गए हैं आशना,
इश्क में पागल बनाना कोई सीखे आपसे|
पीठ पीछे प्यार का इकरार करते हैं मगर,
सामने…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 7, 2016 at 4:00pm — 2 Comments
22-22-22-22-22-22-22-2
सच को लिख कर तुम दुनिया में होने का इज़हार करो
झूठी बातेँ सारी छोड़ो दिल को ना लाचार करो
गर जीवन में मुश्किल आए हिम्मत को मत हारो तुम
शिकवे छोड़ो मन में ठानो फिर ख़ुद को औज़ार करो
कितने अच्छे वो दिन लगते जब हम छोटे बच्चे थे
मम्मी पापा कहते फिरते मत दिन को बेकार करो
नफरत जग में जिसने बांटी देखो उसका हाल बुरा
तोड़ो सारी तुम दीवारें मिल के सबसे प्यार करो
मिट्टी पानी आग हवा केवल जरिया…
ContinueAdded by munish tanha on May 7, 2016 at 11:30am — 2 Comments
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