"""गिरधर ओ मेरे श्याम तुमसे कायनात है
ये सब है तेरा ही करम तुमसे हयात है""""
खुश्बू से तेरी जब कभी मैं रू-ब-रू हुआ
दामन-ए-हिरस-ओ-हबस बे आबरू हुआ
किस्से मैं तेरे सुन रहा हूँ एहतिराम से
पाना है तुझे अब मेरी तू जुस्तजू हुआ
रहमत की नज़र हर्फों में कैसे बयाँ करूँ
आँखों को भिगो कर हमेशा बावजू हुआ
जादू सा तेरा ये करम मैं किस तरह कहूँ
ख्वाबों में दिखा जो वही तो हू-ब-हू…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
डॉलर के कॉलर खड़े,रूपया है कमजोर.
Added by AVINASH S BAGDE on June 4, 2012 at 7:30pm — 10 Comments
तीक्ष्ण और पवित्र बुद्धि
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 4, 2012 at 7:16pm — 7 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 12:30pm — 23 Comments
इन नैनों की खिड़की से, देखा इक योवन आला |
पग पग चल कर आई है , जैसे कोई सुरबाला ||
पुष्पलता सम तन तेरा, मुख चंदा सा उजियाला |
माथा सूरज सा दमके, आँखें लगती मधुशाला ||
निर्झर चाहत का जल हो, तुम हो अमृत सी हाला |
पीकर मन नहिं भरता है, फिर भर लेता हूँ प्याला ||
झूमूं गलियों गलियों में, जपता हूँ तेरी माला |
कोई पागल कहता है , कोई कहता मतवाला ||
सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2012 at 12:30pm — 6 Comments
अग्नि प्रज्वलित हुई धरा पर
परिवर्तन एक गढ़ने को
चला काफिला जनतंत्री का
अब नव चिंतन करने को
नकली रूपया नकली वस्तु
खेल हो रहा ठगने को
महंगाई है खून चूसती
बढ़ रही पिसाचिन मरने को…
Added by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 11:30am — 17 Comments
यह कविता मेरे पापा की लिखी हुई है और मै इसे उनकी सहमती से पोस्ट कर रही हूँ |
Added by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 11:14am — 14 Comments
मेरा अंतर्विरोध ,
लिबलिबी उत्तेजित ट्रिगर दबी पिस्तौल है !
जब भी जमने लगता है प्रशस्तर ,
अहसासात की रूमानियत और इंसानियत पर,
तत्क्षण वँही ठोक देता है धांय-धांय,
ढेर कर देता है सारा व्रफुरपन मेरा अंतर्विरोध !
बदन के कुएं में जब भरने लगता है झूठ
सारी काली कमाई गंदे खून की चूस लेता है मेरा अंतर्विरोध !
भर देता है जाकर कान आईने के मेरा अंतर्विरोध ,
फिर घुसकर आईने में तडातड झापट रसीद करता है चेहरे पर ,
जैसे मल्लयुद्ध कोई,यूँ धोबी पछाड़ लगा पटक…
Added by chandan rai on June 4, 2012 at 10:26am — 18 Comments
हे अभी.
आपकी बहुत याद आ रही है दिल बार-बार सोच रहा है क्या करूँ .आपके बारे में तरह -तरह के ख्याल दिल में आ रहे है ! सोचता हूँ की येसा कैसे हो सकता है की जो इंसान एक दुसरे के देखे बगैर उसे कभी चैन नहीं पड़ता था,बगैर बाते किये खाने का एक निवाला नहीं लेता था आज ओ इस तरह भूला कैसे दिया ,आखिर उसका दिल भी तो भगवान् ने ही बनाया होगा !
हे अभी.
जो बीत गया ओ कल और जो आज चल रहा है ऐ तो आप अपनी ख़ुशी के खातिर अपनी सुख सुबिधाओ के लिए आप जी रहे हो ! आप ने अपने प्यार और वफा को तो आप अपने पैरो…
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on June 4, 2012 at 10:25am — 1 Comment
सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
नहीं मिलने मिलाने के उलाहने
प्रतियोगिता की अंधी दौड़
एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र
सांसे जब तक टूटती हैं
उस क्षण को
ग्लानी से भरता है मन
और छोड़ देता है तन को
बची रह जाती है
उसकी कुछ यादें
अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष
और फिर से शुरू हो…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:46pm — 26 Comments
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
क्या हम सचमुच हैं
तेरे ही कठपुतले
तू जैसा चाहेगी
वैसा ही पाठ सिखाएगी
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
कभी कुछ खोया था
कंही कुछ छुट गया था
कभी छन् से कुछ टूट गया था
भीतर जख्मो के कई गुच्छे हैं
गुच्छो के कई सिरे भी हैं
पर उनके जड़ो का क्या
तेरा ही दिया खाद्य औ पानी था
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
कंही कुछ मर रहा है
कंही कुछ पल रहा…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:29pm — 11 Comments
मौज कोई सागर के किनारों से मिली
साँसे अपनी दिल के इशारों से मिली
सोंधी सी महक बारिश का इल्म देती है
गुलशन की खबर ऐसे बहारों से मिली
आंधी ने नोच डाले हैं दरख्तों से पत्ते
जुदाई की भनक आती बयारों से मिली
चाँद खुश है रोशन करेगा बज्मे- जानाँ
आस नभ में चमकते सितारों से मिली
हरेक लब उसे अकेले में गुनगुनायेंगे
ऐसी कोई नज्म संगीतकारों से मिली
पंहुच गई है परदेश में निशा की डोली
खबर भोर में आते…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 3, 2012 at 9:03pm — 27 Comments
तुझको साया कहता हूँ , खुद भी तेरे जैसा हूँ
सागर हूँ गहरा लेकिन, लहरें कहती तन्हा हूँ
मुझसे क्यूँ शरमाते हो, मैं तो बस आईना हूँ
कहलो गंदा जितना तुम, मैं बस अच्छा सुनता हूँ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 8:30pm — 6 Comments
पाने को कुछ सीख, ग़ज़ल की कक्षा में
हम भी हुए शरीक़, ग़ज़ल की कक्षा में
पकड़ ही लेंगे तिलकराजजी चूकों को
बड़ी हों या बारीक, ग़ज़ल की कक्षा में
भूल-भुलैया भूलों की जब देखेंगे
कर देंगे वे ठीक, ग़ज़ल की कक्षा में
ढूंढ रहे थे कहाँ कहाँ हम रहबर को
मिले यहाँ नज़दीक, ग़ज़ल की कक्षा में
"अलबेला" ने त्याग दिया टेढ़ा रस्ता
चलेंगे सीधी लीक, ग़ज़ल की कक्षा में …
Added by Albela Khatri on June 3, 2012 at 8:30pm — 30 Comments
प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) दीर्घ, बत्तीसवां (३२ वाँ ) लघु
शारदा कृपा कर दो मुझको नादान जान
भरो खाली झोली माता ज्ञान का दो वरदान
मैं तेरा ध्यान कर के छंद की रचना करूँ
देश देश गायें सब भारत की बढे शान
छंद मेरे पढ़ें जो भी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 7:00pm — 11 Comments
निश्चित ही पानी अनमोल है। यह बात पहले मुझे कागजों में ही अच्छी लगती थी, अब समझ भी आ रहा है। गर्मी में पानी, सोने से भी महंगा हो गया है, बाजार में दुकान पर जाने से ‘सोना’ मिल भी जाएगा, मगर ‘पानी’ कहीं गुम हो गया है। मेरे लिए तो फिलहाल सोने से भी ज्यादा कीमत, पानी की है, क्योंकि पानी को ढूंढने निकलता हूं तो दिन खप जाता है और वह गाना याद आता है...पानी रे पानी...तेरा रंग कैसा...। पानी के बिना वैसे तो जिंदगी ही अधूरी है और ऐसा लग भी रहा है, क्योंकि पानी ने जिंदगी से दूरी जो बना ली है। सुबह से…
ContinueAdded by rajkumar sahu on June 3, 2012 at 1:38pm — 8 Comments
ग़ज़ल या गीत गा के सुर मिलाने में मजा आए
बने जब धुन जुदा सी तो सुनाने में मजा आए
न सोना हो सका मुमकिन न जगने में सुकूँ पाया
जगे खुद यार को भी यूँ जगाने में मजा आए
गजब है इश्क ये मौला समझना है बहुत मुश्किल
बिछड़ के यार से खुद को रुलाने में मजा आए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 12:30pm — 6 Comments
बे-अदब आबाद होते जा रहे हैं
इल्म है बरबाद होते जा रहे हैं
देख कर गम इस जमाने का कहें क्या
सब दिले-नाशाद होते जा रहे हैं
गम हमारे देख अपनों को न गम हो
इसलिए हम शाद होते जा रहे हैं
चोर ही जाबित यहाँ पग पग लुटेरे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 9:30am — 8 Comments
कैद न करो मुझे पिंजरों में
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on June 2, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
इश्क में बरबाद होते जा रहे हैं
अन सुनी फ़रियाद होते जा रहे हैं
प्यार का हमको सलीका क्यूँ न आया
क्यूँ दिले-नाशाद होते जा रहे हैं
जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 12:00pm — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |