मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहुत आसान है धन के नशे में चूर हो जाना,
बड़ा मुश्किल है दिल का प्यार से भरपूर हो जाना.
अगर वो चाहता कुछ और होना तो न था मुश्किल,
मगर मजनूँ को भाया इश्क में मशहूर हो जाना.
भले दो गज जमीं थी गॉंव में अपने मगर खुश…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2020 at 5:59pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं
अपनी सांसों से मेरी फिर गुफ़्तगू होती नहीं
गर तड़प होती न मेरे दिल में तुझको पाने की
मेरी आँखों में, मेरे ख्वाबों में तू होती नहीं
उम्र गुज़री है यहाँ तक के सफ़र में, दोस्तो!
पर ये वो मंज़िल है, जिसकी जुस्तजू होती नहीं
ये जहाँ गिनता है बस कुर्बानियों की दास्ताँ
जाँ लुटाये बिन मुहब्बत सुर्ख-रू होती नहीं
दोस्तों के दिल मुनव्वर जो नहीं होते 'शकूर'
रौशनी भी…
Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2020 at 1:09pm — 9 Comments
भारतवर्ष के इतिहास में पृथ्वीराज चौहान को अपने समय का सबसे बड़ा योद्धा माना जाता है| जिसकी वीरता के किस्से उस समय पूरे भारत में गूंज रहे थे| पृथ्वीराज चौहान अजमेर राज्य का स्वामी बना तो उसके चाचा पृथ्वीराज को चौहान राज्य का वास्तविक अधिकारी नहीं मानते थे। इसी कारण पृथ्वीराज के चाचा अपरगांग्य ने पृथ्वीराज के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तो पृथ्वीराज ने अपने चाचा को परास्त कर उसकी हत्या कर दी। इस पर पृथ्वीराज के दूसरे चाचा व अपरगांग्य के छोटे भाई नागार्जुन ने…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on July 13, 2020 at 12:09pm — 4 Comments
बह्रे मुजतस मुसम्मन मख्बून महज़ूफ मक़्तूअ'
1212 / 1122 / 1212 / 22
क़रार-ए-मेहर-ओ-वफ़ा भी नहीं रहा अब तो
महब्बतों में मज़ा भी नहीं रहा अब तो [1]
जहाँ से मुझको गिला भी नहीं रहा अब तो
मलाल इसके सिवा भी नहीं रहा अब तो [2]
ख़बर जहान की तुम पूछते हो क्या यारो
मुझे कुछ अपना पता भी नहीं रहा अब तो [3]
जिसे सँभाल के रक्खा था इक निशानी सा
मेरा वो ज़ख़्म हरा भी नहीं रहा अब तो [4]
है बेवफ़ाई में उसकी ग़ज़ब की…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on July 13, 2020 at 12:00am — 8 Comments
काश कहीं से मिल जाती इक जादू की हाथ घड़ी
मैं दस साल घटा लेता तू होती दस साल बड़ी
माथे से होंठों तक का सफर न मैं तय कर पाया
रस्ता ऊबड़-खाबड़ था ऊपर से थी नाक बड़ी
प्यार मुहब्बत की बातें सारी भूल चुका था मैं
किस मनहूस घड़ी में…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2020 at 11:29pm — 1 Comment
रोज़ सितम वो ढाते देखो हम बेबस बेचारों पर
कोई अंकुश नहीं लगाता इन सरमाया दारों पर।
मजदूरों का जीवन देखो कितना मुश्किल होता है
बिस्तर पास नहीं जब होता सो जाते अख़बारों पर।
भूक ग़रीबी ज्यों की त्यों क्यों तख़्त नशीं कुछ तो बोलो
दोष मढ़ोगे कब तक आख़िर पिछली ही सरकारों पर।
वक़्त नहीं है पास किसी के सबको अपनी आज पड़ी
दौर पुराना ख़्वाब लगे जब भीड़ जुटे चौबारों पर।
बच्चे झुककर बात करेंगे घर के सारे लोगों से
आईने जब लग जाएँगे घर…
Added by नाथ सोनांचली on July 12, 2020 at 12:59pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments
रोटी का जुगाड़
कोरोना काल में
आषाढ़ मास में
कदचित बहुत कठिन रहा
आसान जेठ में भी नहीं था.
पर, प्रयास में नए- नए मुल्ला
अजान उत्साह से पढ रहे थे...
दारु मृत संजीवनी सुरा बन गयी थी
सरकार के लिए भी,
कोरोना पैशैन्ट्स के लिए भी
और, पीने वालों का जोश तो देखने लायक था,
सबकी चाँदी थी...!
आषाढ़ तो बर्बादी रही..
इधर मानसून की बारिश
उधर मज़दूरो की भुखमरी
और, बेरोज़गारी.....
सच, मानो कलेजा मुुँह
को आ गय़ा...!…
Added by Chetan Prakash on July 11, 2020 at 1:00pm — No Comments
था सब आँखों में मर्यादा का पानी याद है हमको
पुराने गाँव की अब भी कहानी याद है हमको।
भले खपरैल छप्पर बाँस का घर था हमारा पर
वहीं पर थी सुखों की राजधानी याद है हमको
वो भूके रहके ख़ुद महमान को खाना खिलाते थे
ग़रीबों के घरों की मेज़बानी याद है हमको
हमारे गाँव की बैठक में क़िस्सा गो सुनाता था
वही हामिद के चिमटे की कहानी याद है हमको
सलोना और मनभावन शरारत से भरा बचपन
अभी तक मस्त अल्हड़ ज़िंदगानी याद है…
Added by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
(221 2121 1221 212)
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा
आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो
वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने
हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो
जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो
अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ
किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो
बाज़ार में तो…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 11, 2020 at 7:30am — 8 Comments
जीवित रहने के लिए जीव,
रहता है जिस पर निर्भर।
आटे से बनती है जो और
गोल गोल जिसकी सूरत।।
सही पहचाने नाम है उसका,
कहते हैं सब रोटी।
मम्मी के हाथों की रोटी,
बड़े स्वाद की होती।।
भूखे को मिल जाए जो रोटी,
तो त्रप्ति उसको होती।
आत्मनिर्भर बनने के लिए,
कमानी पड़ती है रोजी रोटी।।
भूल ना जाना तुम ये बात,
जब भी पकाओ तुम रोटी।
सबसे पहले गाय की रोटी,
और अंत में कुत्ते की रोटी।।
मानव की मूल…
ContinueAdded by Neeta Tayal on July 11, 2020 at 6:36am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२
लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में
आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।
**
सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी
ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।
**
सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ
ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।
**
रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।
**
चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई
चलना मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2020 at 6:45am — 13 Comments
नेह बदरिया नीर नदी बन
आंखों आंखों स्वप्न सधे हैं
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
नख बन भाव कुरेदें बातें
यादें मोहक धूमिल छवि की
टूट रहे पतवार हृदय के
तूफानी लय है सांसों की
पर्वत से तटबंध दिलों पर
सकुचाते उदगार बंधें हैं।
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
मुनरी कंगन छागल बिछुए
सबकी सबसे रार हुई है
गजरे की अनबन बालों से
अबकी पहली बार हुई है
आतुर है श्रृंगार…
ContinueAdded by Neelam Dixit on July 9, 2020 at 11:26pm — 2 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
इस जिग़र में प्यास बाकी है बुझाने की कहो,
झूमती काली घटा से छत पे आने की कहो.
है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा खूबसूरत,
गीत सावन के सुहाने आज गाने की कहो.
देखना गर चाहते हो इस जहाँ को ख़ुशनुमा, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 9, 2020 at 8:44pm — 8 Comments
2122 2122 2122
अपनी रानाई पे तू मग़रूर है क्या ।
बेवफ़ाई के लिए मज़बूर है क्या ।।
कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।
तू बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या ।।
दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।
वो ज़रा सी उम्र में मशहूर है क्या ।।
तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।
शह्र का तेरे नया दस्तूर है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2020 at 3:00pm — 3 Comments
सत्य सुनावै मनई कोउ
भरि साँसैं जमुहाईं
झूठि जहाँ पर चलि रहा
हुइ चैतन मुसुकाहिं
बहुतै मजा मिलै जहाँ
चुगली खावैं लोग
नमक, खटाई, मिरचि जब
चटकि , तबहिं मन मोद
का कलजुग ना दिखावै
सत्पथ धरहि जो पाँव
तपति मरूथल रेत जसि
दीखै कहूँ न छाँव
मौनी अब तौ साधिहौं
वाहै मा आनन्द
ई सांसारिक जालि मा
उरझै कवनेउ मंद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 8, 2020 at 6:28pm — 3 Comments
रात दिन तुमको पुकारा,
किन्तु तुम अब तक न आए !
चित्र मेरी कल्पना के,
मूर्तियों में ढल न पाए !
चिर प्रतीक्षित आस के संग, प्यार अपना बाँट लूँगी ।
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी !!
प्रेम तुमसे ही तुम्हारा,
किस तरह आखिर छिपाऊँ ?
और कह भी दूँ, कहो यह,
रीत फिर कैसे निभाऊं ?
गूँजते हो धड़कनों की,
थाप पर अनुनाद बन कर !
मौन मन की सिहरनों में,
घुल चुके आह्लाद बन कर…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 8, 2020 at 4:30pm — 6 Comments
बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
2122 / 2122 / 2122 / 212
जिस तरफ़ देखूँ है तन्हाई किसे आवाज़ दूँ
हर मसर्रत दिल की गहनाई किसे आवाज़ दूँ
ना-उमीदी दिल पे है छाई किसे आवाज़ दूँ
दौर-ए-ग़म से रूह घबराई किसे आवाज़ दूँ
बंद है हर दर यहाँ तो हर गली वीरान है
ज़िन्दगी मुझको कहाँ लाई किसे आवाज़ दूँ
कोई भी ऐसा नहीं जो दर्द-ओ-ग़म समझे मेरा
हर तरफ़…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on July 8, 2020 at 2:01pm — 7 Comments
सखी री, जे कोरोना लै गयौ,
सावन की बहार।
ना उमंग के बादल घुमड़ें,
ना उत्साह की फुहार।।
अब के सावन ऐसे लागै,
बिन शक्कर की चाय।
ना बागों में झूले पड़ रहे,
ना सेल कौ परचम लहराऐ।।
तीज त्यौहार अबके सावन के,
सब फीके फीके लागैं।
सखी री, अब तोसे मिलने कूं,
जियौ मेरौ तरसो जावै।।
भाई बहन राखी त्यौहार अब,
पहले जैसौ कैसे मनावें?
हरियाली तीज पर सखियां अब,
गीत मल्हार भी कैसे गावें?
अपने कान्हा के दर्शन कूं,
मेरौ…
Added by Neeta Tayal on July 8, 2020 at 10:00am — 3 Comments
ग़ज़ल (1222 1222 1222 1222 )
.
मुहब्बत कीजिए यारो सदा दिलदार की सूरत
भरोसा कीजिए मज़बूत इक दीवार की सूरत
**
रहें कुछ राज़ अपनी ज़िंदगी के राज़ ही बेहतर
नहीं अच्छा कि हो ये ज़िंदगी अख़बार की सूरत
**
ख़ुशी के चंद पल ही ज़िंदगी में दोस्त मिलते हैं
मगर आते हैं ग़म अक्सर सबा-रफ़्तार की सूरत
**
भले पैदा हुए हैं आप मुफ़लिस कीजिए कोशिश
न समझें आप ख़ुद को…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 7, 2020 at 6:30pm — 5 Comments
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