चलो
जिन्दगी को
ज़रा करीब से देखें
दर्द को ज़रा
महसूस करके देखें
क्या खबर
कोई लम्हा
अपना सा मिल जाए कहीं
चलो
उस लम्हे को
जरा जी कर देखें//
जिन चेहरों पे हंसी
बाद मुद्दत के आई है
जिन आँखों में
अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है
जिस आंगन में
धूप अब भी
सहमी सहमी आती है
उस आंगन के
प्यासे रिश्तों से
जरा रूबरू होकर देखें
चलो!
जिन्दगी को
जरा जी कर देखें//
हमारे अहसास
किसी…
Added by Sushil Sarna on July 9, 2017 at 4:30pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 9, 2017 at 10:50am — 5 Comments
Added by Barkha Shukla on July 9, 2017 at 9:09am — 12 Comments
Added by Hariom Shrivastava on July 8, 2017 at 11:46pm — 7 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on July 8, 2017 at 11:27pm — 9 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on July 8, 2017 at 11:27pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 8, 2017 at 8:00pm — 4 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं मलबा कहीं पत्थर कहीं मकड़ी के हैं जाले
कहानी गाँव की कहते घरों के आज ये ताले
किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव घर आँगन
यहाँ दिन रात रिसते हैं दिलों में गम के ये छाले
भटकते शह्र में फिरते मिले दो वक्त की रोटी
सिसकते गाँव के चूल्हे तड़पते दीप के आले*
कहाँ संगीत झरनों के परिंदों की कहाँ चहकन
निकलते अब पहाड़ों के सुरों से दर्द के नाले
लुटा…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 8, 2017 at 6:30pm — 13 Comments
१२२ १ २२ १२२ १२
समंदर मिलेगा नदी तो बनो
मिलेगा खुदा आदमी तो बनो
अँधेरा मिटेगा अभी के अभी
जलो तुम जरा रौशनी तो बनो
तुम्हें भी मिलेगी ख़ुशी एक दिन
कभी तुम किसी की ख़ुशी तो बनो
करो गर मुहब्बत तो ऐसे करो
किसी की कभी जिंदगी तो बनो
जो भी चाहिए दूसरों से तुम्हें
खुदा के लिए तुम वही तो बनो
नीरज कुमार नीर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Neeraj Neer on July 8, 2017 at 3:34pm — 5 Comments
तिरंगे की लाज के लिए ....
न
मैं अब तुम्हें
मुड़ के न देखूँगा
अपने बढ़े कदम
विछोह के डर से
न रोकूंगा
जानता हूँ
कितना मुशिकल है
अपनी प्रीत को
दूर जाते हुए देखना
कतरा कतरा
अपने प्यार को
बिखरते हुए देखना
अपने सपनों को
अनजानी भोर की
बलि चढ़ते हुए देखना
पंखुड़ी की जगह
ओस को शूलों पर
सोते देखना
कितनी आँखों से तुम
अपने बहते दर्द को छुपाओगी
न
सब कुछ जानते हुए भी
मैं न…
Added by Sushil Sarna on July 8, 2017 at 2:30pm — 8 Comments
कर्तव्य प्रथम इस जीवन का है ,
मात -पिता की सेवा करना।
आशीर्वाद उन्हीं का लेकर ,
जीवन पथ पर आगे बढ़ना।।
कर्तव्य दूसरा जगती पर है ,
मानवता की रक्षा करना।
दया धर्म का भाव सदा ही ,
अपने से छोटों पर रखना।।
कर्तव्य तीसरा यही हमारा ,
देश धर्म के लिये ही जीना।
बलिदानों के पथ पर बढ़कर ,
मातृ -भूमि की सेवा करना।।
"मौलिक व अप्रकाशित "
Added by chouthmal jain on July 7, 2017 at 10:11pm — 3 Comments
1222 1222 122
वो दहशत गर्द है या मुस्तफ़ा है
क्या तुमने फैसला ये कर लिया है ?
अजब मासूम है क़ातिल हमारा
वो ख़ूँ बारी से अब दहशत ज़दा है
तमाशाई के सच को कौन जाने ?
वो सच में मर रहा है, या अदा है
वो सारी ख़ूबियाँ पत्थर की रख कर
किया है मुश्तहर... वो.. आइना है
कज़ा से बस कज़ा की बात होगी
हमारा बस यही इक फैसला है
बहुत दूरी नहीं है, पर चला जो
कभी मस्ज़िद से मन्दिर... हाँफता…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 7, 2017 at 10:10pm — 18 Comments
1. यारियां ...
एक ही पल में कितनी दूरियां हो जाती हैं
हर नफ़स अश्कों से यारियां हो जाती हैं
धड़कनें ख़ामोश ज़िस्म बेज़ान हो जाता है
गिरफ़्त में हालात के खुद्दारियां हो जाती हैं
....................................................
2. रूठे ...
न जाने कितने शबाबों की शराब अभी बाकी है
न जाने कितने जख्मों का हिसाब अभी बाकी है
कैसे चले जाएँ भला हम उठ के अभी मैखाने से
बेवज़ह रूठे हर सवाल का जवाब अभी…
Added by Sushil Sarna on July 7, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
उसने मिलते ही कहा..
उस उम्र से ये उम्र की उम्र हो गई
जाने कहाँ कब कैसे वो उम्र खो गई
मीठे लम्हों से जो निखरी थी
खट्टे लफ्ज़ो से जो बिख़री थी
जहाँ मैं तुं नहीं सिर्फ हम थे
वहाँ हम नहीं सँभल पायें
चलो फिर कही ढुंढते है
जिस…
Added by संजय गुंदलावकर on July 7, 2017 at 10:30am — 5 Comments
Added by नाथ सोनांचली on July 6, 2017 at 10:39pm — 24 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 6, 2017 at 7:30pm — 17 Comments
“ कब से इंतज़ार कर रहा हूँ तेरा I एक राज़ की बात बतानी है I’’ राधा के बाहर आते ही अब्दुल ड्राईवर झट उसके पास आ गया I
“जल्दी बता, बहुत काम पड़ा है I” झटके का कपड़ा कमर में खोंसती राधा बोली I
“ कल तू बता रही थी ना कि मेमसाब आजकल बदली बदली हैं, बहुत मीठा बोलती हैं , टूट फूट में चिल्लाती भी नहीं हैं I’’
“ हाँ तो ?’’
“दोनों कड़वे करेलों की दरियादिली का राज़ आज खुल गया है I’’ अब्दुल का अंदाज़ भेद भरा था I
“दोनों मतलब ?’’
“ साहब भी आजकल मीठे हो रहे हैं I…
ContinueAdded by pratibha pande on July 6, 2017 at 6:00pm — 9 Comments
Added by Ajay Kumar Sharma on July 5, 2017 at 11:57pm — 6 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 5, 2017 at 4:51pm — 4 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 5, 2017 at 8:48am — 16 Comments
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