Added by Dr. Vijai Shanker on July 8, 2014 at 8:33pm — 7 Comments
2122- 2122- 2122- 212
नक्श भी कोई नहीं औ' रास्ता कोई नहीं
है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं
भीड़ चेहरे सिर्फ़ कहने के लिये मौजूद हैं
घूम के देखा मगर मुझको मिला कोई नहीं
आशनाई बस ज़रूरत की है रिश्ते नाम के
इनका अब जज़्बात से ही वास्ता कोई नहीं
नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का
आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं
सिर्फ़ बातों से बहल जायें यहाँ कुछ लोग तो
सच सुने कोई नहीं सच देखता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 4:34pm — 25 Comments
प्रीत पहेली ....
मन तन है
या तन मन है
ये जान सका न कोई
भाव की गठरी
बाँध के अखियाँ
कभी हंसी कभी रोई
प्रीत पहेली
अब तक अनबुझ
हल निकला न कोई
बैरी हो गया
नैनों का सावन
भेद छुपा न कोई
सीप स्नेह में लिपटा मोती
बस चाहे इतना ही
सज जाऊं
उस तन पे जाकर
जिसकी छवि हृदय में सोई
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 8, 2014 at 12:30pm — 10 Comments
वह दोस्तों के साथ मूवी देखकर और लंच करके लौटी थीं | घर में घुसते ही माँ ने कहा:
"अरे शर्मा अंकल आए हैं, ड्राइंग रूम में जा के नमस्ते तो कर ले |"
"ठीक है माँ, मिल लेती हूँ जा के , जरा दुपट्टा तो डाल लूँ |"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by विनय कुमार on July 8, 2014 at 12:00am — 15 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
तुम्हारे पाँव से कुचले हुए गुंचे दुहाई दें
फ़सुर्दा घास की आहें हमें अक्सर सुनाई दें
तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार दिखता है
हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें
तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है मजे से तोड़ते कलियाँ
झुकी उस डाल में हमको कई चीखें सुनाई दें
न कोई दर्द होता है लहू को देख कर तुमको
तुम्हें आती हँसी जब सिसकियाँ भर- भर दुहाई दें
कहाँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 7, 2014 at 10:00pm — 36 Comments
उदास मां को एक बेटा हंसा के निकला है
अंधेरे घर में वो दीपक जला के निकला है,
पानी गर्म था इसलिए ये खयाल आया,
इस समंदर से तो सूरज नहा के निकला है,
.
जमीं पर दिन के उजाले में उसको देखा था
रात में देखा तो चांद आसमां से निकला है,
वहां पर आज तक सोना कभी नहीं निकला
जहां खोदा गया पानी वहां से निकला है,
उनको देखा तो कायनात मुझसे पूछ उठी
अतुल इतना हसीं 'मौसम' कहां से निकला है।।
- मौलिक व…
ContinueAdded by atul kushwah on July 7, 2014 at 6:30pm — 5 Comments
बह्र : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,
सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,
जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,
तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,
पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,
झड़ी नैनों…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:00pm — 17 Comments
क्यों हर कोई परेशां है
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है
अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है
किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है
क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है
दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती…
Added by Madan Mohan saxena on July 7, 2014 at 4:55pm — 5 Comments
दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:00pm — 22 Comments
२१२२, ११ २२, ११२२, २२/ ११२
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आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,
अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना.
.
ये सफ़र ज़ीस्त का था, साथ चली रुसवाई,
देखना बाक़ी रहा...राह का मंज़िल होना.
.
इक सफ़र चलता रहा उसके फ़ना होने तक,
एक हसरत थी लहर की, कभी साहिल होना.
.
जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम,
रोज़ महसूस किया, याद का...महफ़िल होना.
.
बोझ नाक़ाम सी हसरत का उठाकर देखो,
कितना आसान है आसान का मुश्किल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 2:00pm — 21 Comments
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे ……
वक्त तेरे दामन . को मोतियों से भरूँ
इक बार बीते लम्हों से मिला दे मुझे
थक गया हूँ बहुत ..बिछुड़ के जिससे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
पंथ के शूलों से हैं रक्त रंजित ये पाँव
नहीं दूर तलक कोई ममता का गाँव
अश्रु अपनी हथेली पे ले लेती थी जो
उस आँचल की छाँव में छुपा दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
मेरी अकथ व्यथा को पढ़ लेती थी…
Added by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं
कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं
ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की
ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं
ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये
मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं
ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना
बहुत जल्दी ही ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं
खुदी में दम…
ContinueAdded by sanju shabdita on July 6, 2014 at 9:26pm — 30 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२
अभी सुहाग कि मेहंदी हटीं न हाथों से
जहर उगलने लगे हैं बशर तो बातों से
जो घूमते थे सदा तान सीना जंगल में
वो शेर टूटे हैं जंगल में अपनी मातों से
हयात रो के गुजारी तमाम जनता नें
कहाँ ये लात के हैं भूत मनते बातों से ?
सुना है आज वो संसद है इक मंदिर सी
सुना था पहले जो चलती थी घूंसे लातों से
गले न मिलते हैं अब लोग इस सियासत में
कहीं न छीन ले कुर्सी ही कोई घातों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2014 at 7:56pm — 8 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२
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जाल सहरा पे डाले गए
यूँ समंदर खँगाले गए
रेत में धर पकड़ सीपियाँ
मीन सारी बचा ले गए
जो जमीं ले गए हैं वही
सूर्य, बादल, हवा ले गए
सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ
वक्त पर जो झुका ले गए
मैं चला जब तो चलता गया
फूट कर खुद ही छाले गए
जानवर बन गए क्या हुआ
धर्म अपना बचा ले गए
खुद को मालिक समझते थे वो
अंत में जो निकाले…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2014 at 2:00pm — 24 Comments
मैंने हिटलर को नहीं देखा
तुम्हें देखा है
तुम भी विस्तारवादी हो
अपनी सत्ता बचाए रखना चाहते हो
किसी भी कीमत पर
तुम बहुत अच्छे आदमी हो
नहीं, शायद थे
यह ‘है’ और ‘थे’ बहुत कष्ट देता है मुझे
अक्सर समझ नहीं पाता
कब ‘है’, ‘थे’ में बदल दिया जाना चाहिए
तुम अच्छे से कब कमतर हो गए
पता नहीं चला
एक दिन सुबह
पेड़ से आम टूटकर नीचे गिरे थे
तुम्हें अच्छा नहीं लगा
पतझड़ में…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 6, 2014 at 1:30pm — 46 Comments
2122 2122 2
कुछ परायी कुछ हमारी सी
ज़िन्दगी क्यूँ है उधारी सी
अश्क़ों की नदियाँ थमीं तो हैं
सिसकियाँ अब तक हैं जारी सी
लोग कहते हैं कि जी ली, पर
ज़िन्दगी लगती गुजारी सी
बदलियों के सामने क्यों धूप
हो रही है इक भिखारी सी
आसमाँ रोया बहुत था कल
आज सूरत है निखारी सी
हर तरफ़ घायल हुआ हूँ मै
बात शायद थी दुधारी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 6, 2014 at 12:04pm — 28 Comments
"तड़ाक !"
थप्पड़ बड़े जोर का था और साहब की उतनी ही तीखी आवाज़
"खाने में फिर बाल , दिखाई नहीं देता तुमको "|
बाई भी सहम गयी और सोचने लगी कि कल तो मेमसाब कह रहीं थीं कि कैसा मर्द है तुम्हारा, तुमको पी कर पीटता है , और साहब ने तो आज पी भी नहीं है |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by विनय कुमार on July 6, 2014 at 11:30am — 11 Comments
हैप्पी इंडिपेंडेंस डे , आज़ादी की वर्षगांठ मुबारक | आतिशबाजियां छुड़ाते और एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए लोग चिल्ला रहे थे और एक दूसरे को इंडिपेंडेंस डे की शुभकामना भी दे रहे थे |
और सामने की मिठाई की दुकान पर छोटू दौड़ दौड़ कर लोगों को पानी दे रहा था और टेबल साफ़ कर रहा था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by विनय कुमार on July 6, 2014 at 12:30am — 14 Comments
हवा का शौक जब पर कुतरना हो गया है
तभी से इंकलाबी परिन्दा हो गया है
वो मेरी रहगुजर का उजाला हो गया है
उसे है जब भी देखा सवेरा हो गया है
तुम्हारे बिन गुजारा हमारा हो गया है
हमें जीनें का पक्का इरादा हो गया है
यहाँ बस्ती जली थी औ' ये अख़बार चुप था
तिरा आना ख़बर में धमाका हो गया है
शराफ़त,सच व ईमां हो सीरत आदमी की
मियाँ किस वहम में हो तुम्हें क्या हो गया है
ये मौसम संगदिल है या सूरज की…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on July 5, 2014 at 11:00pm — 17 Comments
गीतिका छन्द......पीपल का वृक्ष
सत्य संकल्पों सहित इक बीज बोया था कभी।
ब्रह्म का अवतार हितकर पूजते पीपल सभी।।
चंचला हैं पत्र निश्छल शक्ति शाखा भॉंपते।
छॉंव शीतल भाव भर कर शांति-सुख नित बॉंटते।।1
देव का उपकार पीपल दु:ख दारूण काटता।
सूर्य-शनि से मुक्त करके दीप लौ को साधता।।
वासना दूषित मन: को सत्य का परिणाम दे।
भूत-प्रेतों को शरण रख मुक्ति आठो याम दे।।2
कामना फलती सदा यदि साधना सत्कार हो।
धैर्य-साहस-चेतना गुण शोध का आधार…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2014 at 8:30pm — 14 Comments
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