Added by S.S Dipu on August 11, 2015 at 5:58pm — 3 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2015 at 5:34pm — 6 Comments
लघुकथा - टूटे फ़ूटे लोग –
"महाराज, यह मेरा त्यागपत्र है, कृपया स्वीकार कर लीजिये"!
" चित्रगुप्त जी, यह कैसी अनहोनी कर रहे हो!आपके बिना यह कार्य कौन देखेगा!हमारे पास दूसरा कोई अनुभवी व्यक्ति भी नहीं है"!
"महाराज, अब यह काम करना मेरी सामर्थ्य का नहीं है"!
"चित्रगुप्त जी,विस्तार से समझाइये ,आखिर मामला क्या है"!
"महाराज,पृथ्वी लोक से, विशेषकर भारतीय उप महाद्वीप से जो मृत लोग आ रहे हैं, उनके शरीर विकृत अवस्था में आ रहे हैं!कुछ शरीर बिना चेहरे के भी आते हैं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 11, 2015 at 5:00pm — 4 Comments
बहर - 212 212 212 212
लहरें पतवार के संग किलकती रहीं
मन के पाँवों में पायल सी बजती रहीं
पालकी बैठ सपने गए साथ में
रास्ते भर उमंगें लरजती रहीं
शोखियों की सहेली बनीं चूडि़याँ
लाजवन्ती निगाहें बरजती रहीं
सपनों में रातरानी ने घर कर लिया
कल्पनायें दुल्हन बन के सजती रहीं
देह भर में खिलीं क्यारियाँ-क्यारियाँ
चाहतें ओढ़ घूंघट मचलती रहीं
तितलियों सी निगाहें उड़ीं दूर तक…
Added by Sulabh Agnihotri on August 11, 2015 at 3:00pm — 10 Comments
भेड़िए जैसे झपटते बच्चे
गिद्ध जैसे ताकते हुए
कुत्तों की मानिंद
खाना छीनते हुए बच्चे
एक कूड़े के ढेर पर
मैंने देखे थे वो
भेड़िये ,गिद्ध और
कुत्ते जैसे बच्चे
इंसान का शेर या हाथी
जैसा होना सुहाता है
किन्तु भूख जब उसे भेड़िया,
गिद्ध या कुत्ता बना देती है
और जब शिकार बचपन हो
तो आँखें शर्म से झुक जाती हैं
तब इस असमान बंटवारे पर
लज्जा आती है ,घृणा होती है
किसी ने तो खाना
बस फैंक…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on August 11, 2015 at 12:07pm — 11 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 11, 2015 at 9:30am — 4 Comments
Added by Samar kabeer on August 10, 2015 at 11:15pm — 15 Comments
1222—1222—1222—1222 |
|
घरौंदें, आस में अक्सर यही जुमलें सुनाते हैं |
‘परिन्दें, शाम होती है तो घर को लौट आते हैं’ |
|
वों तपते जेठ सा तन्हां हमेशा छोड़ जाते… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 9:00pm — 28 Comments
Added by S.S Dipu on August 10, 2015 at 8:47pm — 6 Comments
मील के पत्थर....
पत्थर पर तो हर मौसम
बेअसर हुआ करता है
दर्द होता है उसको
जिसका सफ़र हुआ करता है
सिर्फ दूरियां ही बताता है
निर्मोही मील का पत्थर
इस बेमुरव्वत पे कहाँ
अश्कों का असर हुआ करता है
हर मोड़ पे मुहब्बत को
मंजिल करीब लगती है
हर मील के पत्थर पे
इक फरेब हुआ करता है
कहकहे लगता है
दिल-ऐ-नादाँ की नादानी पर
हर अधूरे अरमान की
ये तकदीर हुआ करता है
कितनी सिसकियों से
ये रूबरू होता है मगर
पत्थर तो पत्थर है…
Added by Sushil Sarna on August 10, 2015 at 8:26pm — 12 Comments
रंग गहरा हो गया है शाम का ।
घर चलो अब वक्त है आराम का ।।
आज उनको याद मेरी आ गई ।
कल तलक मैं था नहीं कुछ काम का ।।
घर चलो दहलीज़ होगी मुन्तजि़र ।
फि़क्र में गुज़रे न वक्फा़ शाम का ।।
खो न जाना इन नज़ारों में कहीं ।
ये फुसूं है चर्खे नीली फ़ाम का ।।
जब पड़ा था काम उनको याद था ।
अब पडा़ हूं जब नहीं कुछ काम का ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Ravi Shukla on August 10, 2015 at 6:00pm — 9 Comments
ख्वाब!
क्या है ये?
एक पल में राजा बना देता है
और दूसरे ही पल ..............
ज्योतिषियों के लिए तो दूर दृष्टी है
और अनाडि़यों के लिए...
फ्री का सनिमा
मेहनतकश के लिए उसकी मंजिल
हमारे और आपके लिए ..........
कभी खुद भी सोच लिया करो!
ख्वाब के रंग कई रुपो में बिखरे हैं
बच्चे, बूढे, जवान
सभी अलग-अलग रुपो में
इसका दीदार करते हैं
कोई परियों के साथ खेलता है तो
किसी को अपना भविष्य नजर आता है
और किसी को उसके परिश्रम का परिणाम
ख्वाब की…
Added by Pawan Kumar on August 10, 2015 at 5:13pm — 6 Comments
बहर - 22 12122 22 12122
जब-जब किसी परिंदे ने पंख फड़फड़ाए
वो बदहवास होकर ख़ंजर निकाल लाए
दुनियाँ की चाल चलनी जिस रोज़ से शुरू की
अपनी निगाह से हम गिर के फिर उठ न पाये
वो जानते हैं उनका भगवान जानता है
कानून से भले ही सब जुर्म बख्शवाये
रोज़े खतम न हों तो, क्या चाँद का निकलना
हम ईद मान लेंगे जब चाँद मुस्कुराये
मंजि़ल थी क़ामयाबी, ऊँचा महल अटारी
ईमान बेच आये, ईंटें ख़रीद लाये
हर फूल के…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on August 10, 2015 at 3:18pm — 12 Comments
क्या काफिया,रदीफ़ क्या,अशआर उसके आगे,
क्या शेर,क्या मक्ता,गज़ल बेकार उसके आगे l
क्या आसमान,जुगनू,क्या चांद,क्या सितारे,
मुमकिन भला है किसका दीदार उसके आगे l
क्या गुल,कि क्या गुलिस्तां,कि क्या भला शबनम,
पतझड़ लगी है मुझको बहार उसके आगे l
ये तो अच्छा है कि वो पर्दे में रहती है,
वरना चांद भी हो जाये शर्मशार उसके आगे l
जब भीनिगाहें शोख ले गुजरी वो गलियों से,
सारा मुहल्ला पड़ गया बीमार उसके आगे l
हम भी इसी हालात के…
Added by Er Anand Sagar Pandey on August 10, 2015 at 11:00am — 18 Comments
दोनों लगभग एक ही साथ चित्रगुप्त के समक्ष पहुंचे क्योकिं आश्रम में हृदयघात से जब बाबा दुनिया से सिधारे तो अगाध श्रद्धा रखने वाले भूपेश भाई ने भी सदमे में तत्काल प्राण त्याग दिए.
चित्रगुप्त ने बाबा को स्वर्ग में भेज दिया और भूपेश भाई को नर्क जाने का आदेश दिया.
सुनकर भूपेश भाई सन्न रह गए, लेकिन बाबा के आश्वासन की याद आते ही खुद को सँभालते हुए बोले-
“मुझे नरक क्यों भगवन?”
“क्योकि तुमने कोई पुण्य कार्य नहीं किया वत्स!”
“नहीं भगवन!....जीवन भर आश्रम में दान किया,…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 9:00am — 10 Comments
Added by मनोज अहसास on August 9, 2015 at 10:39pm — 12 Comments
Added by shree suneel on August 9, 2015 at 5:46pm — 10 Comments
"बधाई कर्नल कपूर i बेटे ने नाम रौशन कर दिया " कमांडेंट साहब ने गर्म जोशी से कर्नल से हाथ मिलाते हुए कहा
"थैंक्यू सर "
आकाश देख रहा था अपने पिता को जो गर्व से फूले फिर रहे थे अपने ऑफिसर्स दोस्तों के बीच और सबकी बधाइयाँ ले रहे थे
उसके काव्य संकलन को राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला था ,हफ्ते भर से टीवी ,अखबारों में उसी के चर्चे थे
वो सोचने लगा .. ,' उसके जैसा नाकारा बेटा जो आर्मी में नहीं गया , जिसने हिंदी साहित्य विषय चुना और…
ContinueAdded by pratibha pande on August 9, 2015 at 1:30pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 9, 2015 at 12:03pm — 7 Comments
बहर - 212 212 212 212
काफिया - अनी, रदीफ - डाल दी
धुंध यादों पे भरसक घनी डाल दी
बन्द कमरे में वो अलगनी डाल दी
चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी
नाम अनचाहे पर्याय भय का बना
हादसों ने अजब रोशनी डाल दी
उम्र के मशवरे चल पड़े स्वप्न भी
ला के आंखों में हीरक कनी डाल दी
वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी
श्याम का नाम तूने लिया क्या…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on August 9, 2015 at 11:30am — 8 Comments
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