Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 7, 2017 at 6:21pm — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 7, 2017 at 5:25pm — 15 Comments
प्रतीक्षातुर पलों में, नींदों में
आर-पार जाती पारदर्शी सोच में
परस्पर आत्मीय पहचान
हम दोनों के ओंठ मुस्करा देते
हवा में आगामी प्रातों की ओस-सुगन्ध
हमारी बातों में कहीं "न" नहीं थी
कभी कोई इनकार नहीं था, पुकार थी बस
धधकते हुए सूरज में प्रखर तेज था तब
उस प्रदीप्त धूप की छाती में
कुछ भसम करने की चाह नहीं थी
मैदानों को चीरती हवाओं में
थी रोम-रोम में उमंग
सूरज की उजाड़ किरणों में अब
अपने…
ContinueAdded by vijay nikore on August 7, 2017 at 4:31pm — 4 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
झील सी गहरी नीली आँखें
हैं कितनी सकुचीली आँखें
खो देता हूँ सारी सुध बुध
उसकी देख नशीली आँखें
यादों के सावन में भीगीं
हो गईं कितनी गीली आँखें
मोम बना दें पत्थर को…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 7, 2017 at 4:30pm — 32 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 7, 2017 at 10:42am — 5 Comments
2122 2122 212
दूध में खट्टा गिरा लगता तो है
काम साज़िश से हुआ,लगता तो है
था हमेशा दर्द जीवन में, मगर
दे कोई अपना, बुरा, लगता तो है
बज़्म में सबको ही खुश करने की ज़िद
आदमी वो सरफिरा, लगता तो है
सच न हो, पर गुफ़्तगू हो बन्द जब,
बढ़ गया कुछ फासिला, लगता तो है
गर मुख़ालिफ हो कोई जुम्ला, मेरे
दोस्त अब दुश्मन हुआ, लगता तो है
ज़िन्दगी की फ़िक्र जो करता न था
मौत से वह भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 8:30am — 23 Comments
Added by नाथ सोनांचली on August 7, 2017 at 7:30am — 6 Comments
तुमसे मिलने की उदात्त प्रत्याशा ...
प्रेरणा के प्रहर थे
स्वत: मुस्कराने लगे
तुम्हारे आने का मौसम ही होगा
वरना वीरान हवाओं में
ध्वनित-प्रतिध्वनित न होते
यूँ वह गीत-आलाप सुरीले पुराने
उस अमुक अरुणोदय से पहले ही एक संग
हर फूल, कली, हर पत्ते का झूम-झूम गाना
हाथ-में-हाथ पकड़ खेलना, तुम्हें गुनगुनाना
और नवजात-सी उत्सुक पक्षिणियों का
सांवले पंख फैला
चोंच-मार खेलना, चहचहाना…
ContinueAdded by vijay nikore on August 6, 2017 at 7:57pm — 9 Comments
2122 1212 22/112
अब यहाँ पर विगत हुआ जाये
या, जहाँ से विरत हुआ जाये
खूब दीवार बन जिये यारो
चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये
कोई खोले तो बस खला पाये
प्याज़ की सी परत हुआ जाये
ताब रख कर भी सर उठाने की
क्यों भला दंड वत हुआ जाये
आग, पानी , हवा की ले फित्रत
हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये
खूबी ए आइना बचाने को
क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 6:00pm — 24 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 6, 2017 at 12:40pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 12:30pm — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 11:00am — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on August 6, 2017 at 12:17am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 6, 2017 at 12:00am — 14 Comments
Added by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 9:30pm — 21 Comments
(इस वर्ष आ रही ४५ वीं वर्षगाँठ के लिए
जीवन-संगिनी प्रिय नीरा जी को सप्रेम समर्पित)
------
हो विश्वव्यापी सूर्य
या हों व्योम की तारिकाएँ
गहन आत्मीयता की उष्मा प्रज्ज्वलित
तुम्हारा स्वर्णिम सुगंधित साथ
काल्पनिक शून्य में भी हो मानो
तुम यहीं-कहीं आस-पास ...
सम्मोहित
शनै:-शनै: सहला देती हूँ तुम्हारा हाथ
संकुलित कटे-छंटे शब्द हमारे
मन्द्र मौन में रीत जाते
और कुछ और…
ContinueAdded by vijay nikore on August 5, 2017 at 4:00pm — 14 Comments
शर्मीले लब ……….
ये मोहब्बत भी
अज़ब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने
और समझाने में
हो जाती हैं
सांसें चोरी
खबर नहीं होती
नींद नहीं आती बरसों
उनके इक बार मुस्कुराने में
डूबे रहते हैं पहरों
इक दूजे के ख़्यालों में
गुज़र जाती शब्
इक दूजे से बतियाने में
राहे मोहब्बत में
जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं
दो ज़िस्म
इक जान हो जाते हैं
मैं और तुम के अहसास
कहीं फ़ना हो जाते हैं
मख़मली लम्हे…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:39pm — 8 Comments
घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”
“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on August 4, 2017 at 11:43pm — 3 Comments
Added by दिनेश कुमार on August 4, 2017 at 10:21pm — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2017 at 7:53pm — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |