थम सी गई जिन्दगी सबकी,
थोड़ी सी हलचल हो जाए।
बोर हो गए इतने दिन से ,
क्यूं ना कुछ मस्ती हो जाए।।
ख्वाहिश है मेरी बस,
पहले की तरह सब कुछ हो जाए।
बहुत हो गए घर में बंद,
थोड़ा सैर सपाटा हो जाए।।
याद रहेंगे ये पल भी,
कैसे एक दूजे से दूर रहे।
कहने को तो बहुत पास थे ,
फिर भी दीदार को तरस रहे।।
ऑनलाईन तो मात्र एक जरिया था,
जीवन में खुशियां लाने का।
ऑनलाईन की इस दुनियां से,
अब तो जीवन ऑफलाइन…
Added by Neeta Tayal on September 15, 2020 at 10:30pm — 5 Comments
वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया
तो क्या उस ने तेरी यादों वाला कमरा देख लिया?
.
वैसे उस इक पल में भी हम अपनों ही की भीड़ में थे
जिस पल दिल के आईने में ख़ुद को तन्हा देख लिया.
.
उस के जैसा दिल तो फिर से मिलता हम को और कहाँ
सो हमने इक राह निकाली, मिलता जुलता देख लिया.
.
मैख़ाने में एक शराबी अश्क मिलाकर पीता है
यादों की आँधी ने शायद उसे अकेला देख लिया.
.
महशर पर हम उठ आए उस की महफ़िल से ये कहकर
तेरी दुनिया तुझे मुबारक़!…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 14, 2020 at 5:30pm — 15 Comments
Added by Sushil Sarna on September 14, 2020 at 2:00pm — 8 Comments
दिन भर का उत्साह है, पन्द्रह दिन का प्यार
हिंदी हित कुछ झूठ-सच, कुछ भावुक उद्गार ..
सरकारी है घोषणा, सजे-धजे हैं मंच
'हिंदी भाषा राष्ट्र की', दिन भर यही प्रपंच
'हिंदी-हिंदी' कर सभी, बजा रहे निज गाल
हम भकुआए देखते.. 'हिंदी-दिवस' उबाल
माँ-बोली को जानिए ज्यों माता का प्यार
फिर हिंदी की बाँह धर.. सीखें जग-व्यवहार !
***
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Saurabh Pandey on September 14, 2020 at 10:11am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहने को जिसमें यार हैं अच्छाइयाँ बहुत
पर उसके साथ रहती हैं बरबादियाँ बहुत।१।
**
सजती हैं जिसके नाम से चौपाल हर तरफ
सुनते हैं उस को भाती हैं तन्हाइयाँ बहुत।२।
**
कैसे कहें कि गाँव को दीपक है मिल गया
उससे ही लम्बी रात की परछाइयाँ बहुत।३।
**
पाँवों तले समाज को करके बहुत यहाँ
चढ़ता गया है आदमी ऊँचाइयाँ बहुत।४।
**
बैठी हैं घर किये वहाँ अब तो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2020 at 7:30am — 4 Comments
सुबह-सुबह
सूरज को देखा
बहुत ही सुंदर
फूलों को देखा
बहुत ही प्यारे
रंग बिरंगी तितलियों को देखा
हृदय हुआ प्रफुल्लित…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2020 at 1:30pm — 7 Comments
हिंदी हमारी मातृभाषा, हिंदी जीवन का आधार ।
हिंदी की महिमा को गाते,करते हम इसका प्रचार ।।
हिंदी के बिना जीवन सूना,हिंदी देती सबको ज्ञान ।
मन के भाव प्रकट हों सारे, पूरे करती ये अरमान ।
मातृभाषा की महिमा देखो, सुनकर होता है अभिमान ।
कोर्ट कचहरी दफ्तर सारे, बाबू कलेक्टर चौकीदार ।
हिंदी की महिमा........................................... ।
माँस से नाखून दूर ना जाएँ, कौए चलें ना हंस की चाल ।
हिंदी के सब रंग में रंग लो, अपनी…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 13, 2020 at 11:30am — 3 Comments
Added by Neeta Tayal on September 12, 2020 at 11:02pm — 5 Comments
2122 1122 1122 22
***
यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,
आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।
याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,
आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।
ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,
ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।
दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,
फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।
जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,
फिर…
Added by Harash Mahajan on September 12, 2020 at 6:00pm — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
जिनके धन्धे दोहन वाले कब धरती का दुख समझे
सुन्दर तन औ' मन के काले कब धरती का दुख समझे।१।
**
जिसने समझा थाती धरा को वो घावों को भरता नित
केवल शोर मचाने वाले कब धरती का दुख समझे।२।
**
ताल, तलैया, झरने, नदिया इस के दुख में सूखे नित
और नदी सा बनते नाले कब धरती का दुख समझे।३।
**
पेड़ कटे तो बादल रूठा और हवाएँ सब झपटीं
ये सड़कों के बढ़ते जाले कब धरती का दुख समझे।४।
**
नित्य सितारों से गलबहियाँ उनकी तो हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2020 at 5:58am — 6 Comments
122 122 122 12
जहाँ की नज़र में वो शैतान हैं
समझते हैं हम वो भी इंसान हैं
न हिंदू न यारो मुसलमान हैं
यहाँ सबसे पहले हम इंसान हैं
खु़दा कितने हैं ,कितने भगवान हैं
यही सोचकर लोग हैरान हैं
नहीं उनको हमसे महब्बत अगर
हमारे लिये क्योंं परेशान हैं
रिहा कर मुझे या तू क़ैदी बना
तेरे हैं क़फ़स तेरे ज़िंदान हैं
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by सालिक गणवीर on September 11, 2020 at 5:30pm — 11 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२
ज़िंदगी अच्छी तरह अब कट रही है,
आजकल खुद से हमारी पट रही है.
लूट कर वो ले गई है दिल हमारा,
झूलती रुखसार पर जो लट रही है.
हाल पूछा जो हमारा आज उसने, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
अकेलेपन को भी हमने किया चौपाल के जैसा
बचा लेगा दुखों में ये हमें फिर ढाल के जैसा।१।
**
भले ही दुश्मनी कितनी मगर आशीष हम देते
कभी दुश्मन न देखे बीसवें इस साल के जैसा।२।
**
इसी से है जगतभर में हरापन जो भी दिखता है
हमारे मन का सागर ये न सूखे ताल के जैसा।३।
**
सितारे अपने भी जगमग न कमतर चाँद से होते
अगर ये भाग्य भी होता चमकते भाल के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
2122 1122 1122 22(112)
जाने क्यूँ आज है औरत की ये औरत दुश्मन,
पास दौलत है तो उसकी है ये दौलत दुश्मन ।
दोस्त इस दौर के दुश्मन से भी बदतर क्यूँ हैं,
देख होती है मुहब्बत की हकीकत दुश्मन ।
माँग लो जितनी ख़ुदा से भी ये ख़ुशियाँ लेकिन,
हँसते-हँसते भी हो जाती है ये जन्नत दुश्मन ।
मैं बदल सकता था हाथों की लकीरों को मगर,
यूँ न होती वो अगर मेरी मसर्रत दुश्मन ।
ऐसे इंसानों की बस्ती से रहो दूर जहॉं,
'हर्ष' हो…
Added by Harash Mahajan on September 8, 2020 at 11:00pm — 11 Comments
"सुनो !! आज दो लीटर दूध और लेकर आना , बाबूजी का श्राद्ध करना है," ममता ने अपने पति रोहन से कहा ।
"ठीक है, ले आऊंगा," ये कहकर रोहन दूध लेने चला गया।
"चलो सोनू बेटा जल्दी करो! आज पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराना है ;फटाफट नहा कर आओ! क्योंकि श्राद्ध तुम्हारे हाथ से होगा,"ये कहते हुए वो रसोई में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में व्यस्त हो गई।
"मम्मा ये श्राद्ध हम क्यों कर रहे हैं ?" सोनू ने पूँछा।
"ये करने से तुम्हारे दादू हमें आशीर्वाद देंगे," हमारे घर में सम्पन्नता…
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on September 8, 2020 at 12:00pm — 5 Comments
"हिन्दी बोलने में ना सकुचेंगे"
हिन्दी मातृभाषा है मेरी,
फिर क्यूं बोलने में शरमाऊं।
पट पट पट पट अंग्रेजी बोलना,
क्यूं ही मैं हरदम चाहूँ।।
हिन्दी बोलूं तो गंवार लगूं,
जो अंग्रेजी बोलूं तो शान।
क्यूं हम हिन्दी होकर भी,
नहीं करते हिन्दी का सम्मान।।
विदेशी भारत आकर भी,
इंग्लिश में ही बातें करता।
फिर भारतीय विदेश में जाकर ,
क्यूं हिन्दी बोलने में है कतराता ।।
गीता का उपदेश भी कृष्ण ने ,
हिन्दी में ही सुनाया है।…
Added by Neeta Tayal on September 8, 2020 at 10:00am — 4 Comments
बिना दिल के ......
लहरों से टकराती
हवाओं से उलझती कश्ती को
आख़िरकार
किनारा मिल ही गया
मगर
अभी तो उसे जीना था
वो समंदर
ज़िंदा थीं जिसमें
उसकी बेशुमार ख्वाहिशें
उसके साथ जीने की
लगता था
उसके बिना
रेतीले किनारों पर
मेरा बदन मृत सा पड़ा जी रहा था
इस आस में
कि मेरा समंदर
मुझे नहीं छोड़ेगा
इन रेतीले किनारों में
दफन होने के लिए
वो जानता है
बिना दिल के भी
कहीं ज़िस्म…
Added by Sushil Sarna on September 7, 2020 at 7:30pm — 8 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
है जिनके हाथों में सत्ता.
उनका हर दिन बढ़ता भत्ता.
छोड़ दिया जिसको डाली ने,
इधर-उधर उड़ता वह पत्ता.
कीमत भारी होनी ही थी,
था पुस्तक पर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 7, 2020 at 3:30pm — 12 Comments
221 2121 1221 212
क्या जाने किस जनम का सिला दे गया मुझे
था बेगुनाह फिर भी सज़ा दे गया मुझे
कैसे यक़ीन कीजिए ग़ैरों की बात का
समझा था जिसको अपना दगा दे गया मुझे
लम्बी हो उम्र मेरी दुआ मांँगता रहा
मरने की मुफ़्त में जो दवा दे गया मुझे
उसके इशारों को मैं समझ ही नहीं सका
गूंँगा था आदमी जो सदा दे गया मुझे
ग़ज़लें पुरानी ले गया आया था ख़्वाब में
इनके इवज में घाव नया दे गया मुझे
भीगा था जिस्म…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on September 6, 2020 at 10:00pm — 18 Comments
एक गजल तेरे होठों पर लिख सकता था
इसकी टपक रही लाली पर बिक सकता था
किंतु सामने जब शहीद की पीर पुकारे
जान वतन पर देने वाला वीर पुकारे
जिसने भाई, लाल, कंत कुर्बान किये हों
सूख चुकी उनकी आँखों का नीर पुकारे
कैसे उन क़ातिल मुस्कानों पर बिकता
कैसे कोमल नाजुक होठों पर लिखता
एक गजल तेरी आँखों पर लिख सकता था
चंचल चितवन सी कमान पर बिक सकता था
पर कौरव-पांडव दल आँखें मींच रहा हो
चीर दुःशासन द्रुपद-सुता की…
Added by आशीष यादव on September 6, 2020 at 8:30pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |