राह में पड़ी चट्टान ,
चढ़कर पार करूँ,या
इसे हटाकर नयी राह,
नया दस्तूर बना दूँ,
दोनी ही विकल्प,
खड़े सामने .......
...........................................
भविष्य की चिंता छोड़ ,
इतिहास बनाने हम .....
चले वर्तमान का ..
दामन थामने...
और जब चट्टान
हटा दी राह से ,
इतिहास पीछे खड़ा ,
सराह रहा था ..और
भविष्य सामने खड़ा
मुस्कुरा रहा था......!!!!!
रचनाकार -सतीश अग्निहोत्री
Added by Satish Agnihotri on September 24, 2012 at 10:30pm — 11 Comments
दिल्ली का तुम हाल तो देखो
सरकार की,
जनता को दी
सौगात तो देखो
एक ओर है बढ़ी मंहगाई
उस पर फिर भ्रष्टाचार
की मार तो देखो
बिजली ने जो हल्ला बोला
छीन गया सबका
मुहँ निवाला
हो गया फिर डीजल,
पेट्रोल भी महँगा
सबके घर का
बजट बिगाड़ा,
केरोसीन फ्री जो
दिल्ली किया है
महँगा फिर
एल पी जी किया है
जोर का झटका
होले दिया है
सारी जनता को
बेहाल किया है
ऐसा तौहफा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 24, 2012 at 5:37pm — 3 Comments
"मन"
सुबह सुबह
चिड़ियों का कलरव
झरने का कलकल
ठंडी हवाओं के झोंके लयबद्ध तान
कोयल की कूक
मुर्गे की बांग
ये सब संगीत है या शोर
प्रकृति का
ये सब मन की दशा पे निर्भर है
कभी ये सब संगीत लगता है
पटरी पे दौड़ती
सरपट लोहपथगामिनी का
चीखता निनाद भी
और कभी इक सुई का गिरना भी
कर्कश स्वर सा
शोर सा
मन स्वाभविक वृत्तियों में जकड़ा हुआ है
किन्तु है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2012 at 1:59pm — 10 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 24, 2012 at 11:30am — 24 Comments
Added by ajay sharma on September 23, 2012 at 10:30pm — 9 Comments
एक प्रयास 'मत्त सवैया' यानी 'राधेश्यामी छंद' का......
सरकार नहीं यह चेत रही, महँगाई जान जलाती है |
रोटी भी मुश्किल होय रही, दिन रात रुलाई आती है | |
हर पक्ष - विपक्ष नहीं अपना, सब अपना काम बनाते हैं |
हैं दुश्मन…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 23, 2012 at 10:05pm — 10 Comments
Added by Pushyamitra Upadhyay on September 23, 2012 at 9:53pm — 6 Comments
निश्चेष्ट धरा को
अपनी गोद में उठाए
समुद्र हाहाकार कर उठा
थरथराते होंठो से
अस्फुट से शब्द लहराए
अ...ब...और ...स...हा... न...हीं जा...ता..
वि...धा....ता!!
अशांत समुद्र ज्वार को
सम्भाल नहीं पा रहा था
फिर भी धरा को समझा रहा था
आओ सो जाते हैं
सब कुछ भूल जाते हैं
आदि से लेकर अंत तक
कहाँ रह पाए मर्यादित
मनुज की तृष्णा और लालसा से
सदैव रहे आच्छादित
आज जबकि काल की जिह्वा
लपलपा रही…
ContinueAdded by Gul Sarika Thakur on September 23, 2012 at 9:37pm — 5 Comments
न आइन्दा साथ जाए और न हाल साथ जाए
मैं जहां कहीं भी जाऊं तेरा ख्याल साथ जाए
न मग्रिबको देखता हूँ न मश्रिकको चाहता हूँ
न जनूब मेरी ज़मीं हो, न शिमाल साथ जाए
जो मज़ा है हमको तेरी फ़ुर्कत की सोजिशों में
वो मज़ा कहाँ मयस्सर जो विसाल साथ जाए
ये दुआ है मेरे दिल से कोई बद्दुआ न निकले
न कैदेहस्ती अजल हो कि मआल साथ जाए
चलो इल्तेफात टूटी और गिले भी ख़त्म सारे
न जवाब कोई बाकी और न सवाल साथजाए…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 23, 2012 at 4:36pm — 4 Comments
उम्र कब तलक गिराबांरेनफस को उठाती है
कमरेकी हवा भी अब खिड़कियों से जाती है
माहोसाल गुज़रे दिलके अंधेरों में रहते रहते
तारीकियोंसे भी अब कोई रौशनीसी आती है
तेरी चाहत हो गई बेजा किसी शगलकी तरह
सिगरेटकी आदत सी अब खुद को जलाती है
मुझमें भी हैं हसरतें इक आम इंसाँ की तरह
माना कि मैं एक बेमाया दिया हूँ पे बाती है
एक उज़लतअंगेज शाम तेरे गेसू में आ बसी
एक अल्साई सुबह तेरी आँखोंमें मुस्कुराती है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 23, 2012 at 11:07am — 13 Comments
Added by Abhinav Arun on September 23, 2012 at 9:30am — 18 Comments
मोड़ राहो में नए अब जोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
चल रही यू ज़िन्दगी ज्यों पानी में लहरें हो उठी,
खुद को समझ अब एक लहर किनारे मोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
जो हैं समझते कुछ नहीं मैं वो बड़े नादान हैं,
नादानियो में एक समझ बस जोड़ देता हूँ ,
ना दिखे सूरत तुम्हारी लाख महंगा है तो…
Added by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 12:00am — 5 Comments
जहाँ से यथार्थ की दहलीज
खत्म होती है
वहाँ से हसरतों का
सजा धजा बागीचा
शुरु होता है
जब भी कदम बढ़ाया
दहलीज फुफकार उठती है…
ContinueAdded by Gul Sarika Thakur on September 22, 2012 at 11:00pm — 11 Comments
माँ होती तो ऐसा होता माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता…
Added by ajay sharma on September 22, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
निज लक्ष्य से ना हटें कभी
अटूट निश्चय पे डटें सभी
ना सत्य वचन से फिरें कभी
ना निज मूल्यों से गिरें कभी
जो गर्दन नीची कर दे
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
दूजों के दुःख अपनाएँ हम
अक्षत पुष्प बरसायें हम
नेह का निर्झर बहायें हम
जग के संताप मिटायें हम
भगवन ऐसा अवसर दे
मुझे तलाश है उस…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 22, 2012 at 8:30pm — 23 Comments
निकिता की शादी हो रही थी| सभी बेहद खुश थे| सारा इंतजाम राजसी था| होता भी क्यों न? निकिता और उसका होनेवाला पति, दोनों ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ऊँचे ओहदों पर थे और अच्छे घरों से आते थे| वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान भाई के द्वारा की जानेवाली रस्मों की बारी आई| अब भाई की रस्में करे कौन? निकिता का इकलौता भाई, जो इंजीनियरिंग का छात्र था, परीक्षाएँ पड़ जाने के कारण अपनी दीदी की शादी में आ ही नहीं पाया था| लेकिन इससे कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि राज्य के नामी उद्योगपति आर.के सिंहानिया का बेटा और…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 22, 2012 at 6:44pm — 18 Comments
मान जाओ न
मचल उठता है
ये ह्रदय
जब आती है
दूर कहीं से कोयल की
कूक सी मीठी
सदा
पीपल के पत्तों की तरह …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2012 at 11:30am — 3 Comments
1.गुरु ज्ञान बाँटते रहे, ले सके वही लेत,
भभूत समझे तो लगे, वर्ना वह तो रेत |
2.अमल करे तबही बढे, गुरु सबके हीसाथ,
करम सेही भाग्य बढे, भाग्य उसीके हाथ |
3. नेता भाषण में कहें,जाति का नहीं भेद,
जो फोटू दिखलाय दो, तुरत करेंगे खेद |
4. भेद गरीब अमीर का , नहीं करे करतार,
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 22, 2012 at 11:00am — 14 Comments
काले किले का वो काला कलाल
भोलू के भाले में अटका वो बाल |
मामा के मोहल्ले का माल-पुआ
गुल्लू की गाली का गुलाब जामुन
पुणे के पानी को पीने को जाना
पान चबाकर वो पाना ले आना
गन को दिखाकर वो गाना तो गाना
गुनगुना के वो धुन…
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on September 21, 2012 at 11:30pm — 12 Comments
अभी कुछ देर पहले ही वो लौटा था,
घर पर आया तो कल की फिक्र में था,
बच्चे दिन से इंतज़ार में थे उसके घर आने के,
पर वो उनसे बात भी न कर सका,
वो कल की जल्दी में था,
उसने कल की तैयारी भी कर ली थी रात ही से,
जैसे वक्त बिलकुल भी नहीं हो पास उसके,
कल उसको सुबह ज़रा जल्दी निकालना था,
किसी से मुलाक़ात थी, कारोबार के सिलसिले में,
वक्त और जगह भी मुकर्रर थे मुलाक़ात के लिए,
सुबह के लिए कुछ कपड़े भी निकले उसने,
अपने कागजों को पढ़ा और…
Added by पियूष कुमार पंत on September 21, 2012 at 10:00pm — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |