1212--- 1122---1212---22 |
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अगर नहीं था यकीं क्यों हलफ उठा आया |
ज़रा सी बात पे फिर आज मुँह फुला आया |
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पहाड़ कौन सा टूटा, जो तेरी बातों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 10, 2015 at 9:30am — 26 Comments
एक मुसाफ़िर नगर नगर में देखो घूमता, है बंजारा।
हर बस्ती की सरहद को बस छूके लौटता, है बंजारा।।
रमें कहाँ पर बसे कहाँ पर स्थिर खुद को करे कहाँ पर।
डेरा अपना कहाँ जमाये ठौर ढूँढता, है बंजारा।।
प्यासा प्यासा बादल बरखा को दर दर बस ढूँढ़ रहा है।
पानी पानी अपने जीवन का रस खोजता, है बंजारा।।
सोच रहा है अपना नसीबा अपने करम से कहाँ बिगाड़ा।
रफ़ के पन्नों जैसी पुस्तक खुद ही बाँचता, है बंजारा।।
किस पर क्रोध करेगा…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 10, 2015 at 5:15am — 7 Comments
जलते तो है सभी
पर जलने का भी होता है
एक ढंग, एक कायदा,
एक सलीका
जब मै किसी दिए को
किसी निर्जन में
जलते देखता हूँ निर्वात
तब समझ पात़ा हूँ
कि क्या होता है
तिल–तिल कर जलना,
टिम-टिम करना
घुट-घुट मरना
और तब मुझे याद आती है
मुझे मेरी माँ
जीवनदायिनी माँ
सब को संवारती
खुद को मिटाती माँ !
(अप्रकाशित व् मौलिक )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2015 at 8:30pm — 15 Comments
जात पात पंथ काज
विषमतायें हजार
भाषा बोली हैं अलग
हम सब एक हैं ।
वीर भोग्या वसुंधरा
किसान सींचे स्वेद से
लहलहाती बालियां
हम सब एक हैं ।
मची क्यूँ है मारकाट
खामोश क्यूँ हवा हुई
चिराग दिलों के बुझे
हम क्यूँ ना एक हैं ।
आतंकवाद दूर हो
मनु मनु में प्रेम हो
अनेकता में एकता
लगे सब एक हैं ।।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Pankaj Joshi on September 9, 2015 at 6:10pm — 3 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
इंसाँ दुत्कारे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
पर पत्थर पूजे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
शब्दों से नारी की पूजा होती है लेकिन उस पर
ज़ुल्म सभी ढाये जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
नफ़रत फैलाने वाले बन जाते हैं नेता, मंत्री
पर प्रेमी मारे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
दिन भर मेहनत करने वाले मुश्किल से खाना पाते
ढोंगी सब खाये जाते हैं धर्मान्धों की नगरी…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 5:50pm — 18 Comments
Added by मनोज अहसास on September 9, 2015 at 4:00pm — 7 Comments
छलछलाई आँखों से
मुस्कराई आँखों से
विदा दी देहरी ने
चल पड़ी मैं......
छलछलाई आँखों से
मुस्कराई आँखों से
स्वागत किया देहरी ने
हंस पड़ी मैं.........
रंगोली सजाने लगी
वंदनवार लगाने लगी
सज गयी देहरी
रम गयी मैं........
प्रीत ने बहका दिया
मीत ने महका दिया
लहरा गया आँचल
संवर गयी मैं........
ममता ने निखार दिया
आँचल भी संवार…
Added by Abha Chandra on September 9, 2015 at 4:00pm — 14 Comments
भूमिजा सुता जनक
चली आज पति संग
त्याग राज वेश सभी
वन को विदाई है ।
वन भयंकर पशु
जंगली आदम खोर
हड्डियों के ढेर देख
सीते घबराई है ।
प्रभु राम सीते मन
पढ़ मन मुस्कियायें
माया रचने की घडी
कैसी अब आई है ।
देह धारण मनुष्य
मिलता बड़े भाग्य से
माया तेरे कंधे बड़ी
जिम्मेदारी आई है ।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Pankaj Joshi on September 9, 2015 at 1:30pm — 5 Comments
Added by Chhaya Shukla on September 9, 2015 at 10:30am — 10 Comments
221—2121—1221-212 |
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हमको तो खुल्द से भी मुहब्बत नहीं रही |
या यूं कहें कि पाक अकीदत नहीं रही |
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जाते कहाँ हरेक तरफ यार ही… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 9:30am — 18 Comments
रोबोट घंटों लगातार काम करता है
और कुछ ही समय में फिर से रीचार्ज हो जाता है
कारखाने से कबाड़खाने तक
रोबोट कहीं नियम नहीं तोड़ता
रोबोट चुपचाप सुनता है उच्चाधिकारियों की सारी बातें
और इजाज़त मिलने पर ही बोलता है
रोबोट बिना किसी विरोध के उन सारी बातों में यकीन कर लेता है
जो उसकी मेमोरी में भरी जाती हैं
रोबोट अपने मालिकों के लिए ढेर सारा पैसा कमाता है
और बदले में उसे सिर्फ़…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 8, 2015 at 6:36pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 8, 2015 at 6:30pm — 16 Comments
Added by दिनेश कुमार on September 8, 2015 at 4:38pm — 18 Comments
टूटे सपने … (लघुकथा)
"राधिका ! आओ बेटी , अविनाश जाने की जल्दी कर रहा है। " माँ ने राधिका को आवाज़ लगाते हुई कहा।
''अभी आयी माँ, बस दो मिनट में आती हूँ। '' राधिका ने आईने के सामने बैठे बैठे ही जवाब दिया। आज अविनाश कितने समय के बाद विदेश से आया है। आज मैं उसे अपने मन की बात कह ही डालूंगी ,राधिका मन ही मन बुदबुदाई। जल्दी से आँखों में काजल की धार बना वो ड्राईंग रूम में आई।
''हाय अविनाश कैसे हो ? विदेश में कभी हमारी याद भी आती थी या गोरी मेमों में ग़ुम रहते थे। ''
''अरे नहीं…
Added by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 2:30pm — 6 Comments
कैसी तेरी यह दशा
माँ भारती हुई आज
दुश्मनों का रचा कैसा
ये प्रपञ्च खेल है ।
शेर की मांद भीतर
हाथ देने को तैय्यार
किसने अपने प्राणों
का मोह दिया ठेल है ।
देश के लाल बहुत
सदा हुए हैं तत्पर
करने प्राण उत्सर्ग
उत्सव खेल हैं ।
शत्रु मुण्डमाल आज
हाथों में खडग लिये
माँ भवानी को चढ़ाने
जन गण मेल हैं ।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Pankaj Joshi on September 8, 2015 at 1:25pm — 2 Comments
पति को आॅफिस के लिये विदा करके ,सुबह की भाग - दौड़ निपटा पढने को अखबार उठाया , कि दरवाजे की डोर बेल बज उठी ।
"इस वक्त कौन हो सकता है !" सोचते हुए दरवाजा खोला। उसे मानों साँप सूँघ गया । पल भर के लिये जैसे पूरी धरती ही हिल गई थी । सामने प्रतीक खड़ा था ।
"यहाँ कैसे ?" खुद को संयत करते हुए बस इतने ही शब्द उसके काँपते हुए होठों पर आकर ठहरे थे ।
"बनारस से हैदराबाद तुमको ढूंढते हुए बामुश्किल पहुँचा हूँ ।" वह बेतरतीब सा हो रहा था । सजीला सा प्रतीक जैसे कहीं खो गया था ।
"आओ…
Added by kanta roy on September 8, 2015 at 10:30am — 2 Comments
मेरे शानों पे .....
साँझ होते ही मेरे तसव्वुर में
तेरी बेपनाह यादें
अपने हाथों में तूलिका लिए
मेरी ख़ल्वत के कैनवास पर
तैरती शून्यता में
अपना रंग भरने आ जाती हैं
रक्स करती
तेरी यादों के पाँव में
घुंघरू बाँध
अपने अस्तित्व का
अहसास करा जाती हैं
मेरी रूह की तिश्नगी को
अपनी दूरी से
और बढ़ा जाती हैं
मेरे अश्क
मेरी पलकों की दहलीज़ पे
चहलकदमी करने लगते हैं
न जाने कब
सियाह…
Added by Sushil Sarna on September 7, 2015 at 10:22pm — 16 Comments
1212--- 1122---1212---22 |
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जरा खंरोच जो आई लगे सदा करने |
कलम जो धड़ से है, जाएँ कहाँ दवा करने |
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उसे भरम है अदालत से फैसला… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 7, 2015 at 9:30pm — 36 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 7, 2015 at 8:26pm — 5 Comments
1)
लगी कहन माँ देवकी….सुनलो तारनहार
सफल कोख मेरी करो…..मानूँगी उपकार
मानूँगी उपकार ……. रहूँ ममता में भूली
हृदय भरें उद्गार…...भावना जाये झूली
स्वारथ हो ये जन्म...जाऊँ बन तेरी सगी
हे करुणा के धाम,लगन मनसा ये लगी॥
***************************************
2)
कारा गृह में अवतरित......दीनबंधु भगवान
मातु-पिता हर्षित हुए, लख शिशु की मुस्कान
लख शिशु की मुस्कान, व्यथा बिसरी तत्क्षण…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on September 7, 2015 at 8:00pm — 10 Comments
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