अविश्वास !
प्रश्नचिन्ह !
उपेक्षा ! तिरस्कार !
के अनथक सिलसिले में घुटता..
बारूद भरी बन्दूक की
दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..
पारा फाँकने की कसमसाहट में
ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..
निशदिन जलता..
अग्निपरीक्षा में,
पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !
इसमें झुलस
बची है केवल राख !
....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !
और राख की नीँव पर
कतरा-कतरा ढहता
राख के घरौंदे…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 12, 2013 at 4:00pm — 25 Comments
टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 12, 2013 at 2:00pm — 5 Comments
(1)
कन्या होती भाग्य से,रखना इसका मान
कन्या घर में आ रही, ले गौरी वरदान |
ले गौरी वरदान, आँगन कुटी मह्कावे,
घर आँगन चमकाय,कुसुम कलियाँ खिलजावे
शिक्षा का हो भान, बनावे शिक्षित सुकन्या
रखती मन में धैर्य,कष्ट सहती है कन्या
.
(2)
जन्मे बेटी भाग्य से, घर को दे मुस्कान
पालन -पौषन साथ ही, पावे शिक्षा ज्ञान |
पावे शिक्षा ज्ञान, समाज बने संस्कारी
नारी का हो मान, करे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 12, 2013 at 11:30am — 15 Comments
कुछ इस तरह से, मेरी ज़िन्दगी का पल गुज़रे ।
ह्रदय की पीर, मेरे आंसुओं में ढल गुज़रे ।।
तुझे मै देख के लिक्खूं , या सोच के लिक्खूं ।
कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे ।।
यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।
वो तेरा दर की जहाँ हम बिछड़ गए थे कभी ।
हो के हर रोज़ उसी दर से, ये पागल गुज़रे ।।
वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था ।
ये एक दिन, की तेरे गम…
Added by Anil Chauhan '' Veer" on September 12, 2013 at 11:00am — 6 Comments
Added by Ravi Prakash on September 12, 2013 at 8:30am — 21 Comments
काम कैसे कठिन भला, हो करने की चाह ।
मंजिल छुना दूर कहां, चल पड़े उसी राह ।।
चल पड़े उसी राह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, मनवा जो अब न माने ।।
जीवन में कुछ न कुछ कर, जो करना हो नाम ।
कहत ‘रमेश‘ साथी सुन, जग में पहले काम ।।
......................................
मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)
Added by रमेश कुमार चौहान on September 11, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
2122 1212 22
कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है
जख़्म लेकिन, कही हरा भी है
जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर
प्यार से दिल मेरा भरा भी है
ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा
थक के हारा,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 10:00pm — 35 Comments
यादें
भूली बिसरी यादें ,
कुछ मिट गयी कुछ है अमिट,
एक पल मिल जाये तो संजो लूँ इन्हें ,
कुछ खुबसूरत
कुछ दर्द छेडती,
लबो पे मुस्कान सजाती यादें ,
जख्मो को उघाडती यादें ,
मन के किसी कोने में बसी यादें ,
जिंदगी का इम्तिहान बनी यादें ,
एक पल मिल जाए तो संजो लूँ इन्हें ,
कुछ में उभरता उसका अक्स ,
कुछ कोहरे सी छाई होशोहवास पे ,
खुद में खुशियाँ अपार लिए ,
कुछ गमो का एक संसार लिए ,
धुंधली सी…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 11, 2013 at 8:08pm — 5 Comments
(आज से करीब ३१ साल पहले)
किसी उदास दिन, किसी खामोश शाम, और किसी नीरव रात सा ये सफ़र मुझे बेचैन कर गया. रेल सरपट भागी जा रही थी और नज़ारे, खेत और खलिहान पीछे. दोपहर की वीरानगी में स्त्री-पुरुषों के साथ बच्चों को खेतों पे काम करते देख मन अजीब पीड़ा से भरता जा रहा था. गाड़ी भागती जा रही थी मगर बंजर दिखते खेत और पठारी एवं असमतल भूमि का कहीं अंत नहीं दिख रहा था. बैल हल का जुआ कंधे पे थामे, किसान अरउआ हाथ में पकड़े, औरतें और बालाएं हाथ में हंसिया लिए झुकी कमर, खामोशी, और निस्तब्धता…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 11, 2013 at 4:51pm — 6 Comments
१२२२ १२१२ १२१२ ११२
उठी जो पलकें तीर दिल के आर-पार हुआ
झुकी जो पलकें फिर से दिल पे कोइ वार हुआ
फकत जिसको मैं मानता रहा बड़ी धड़कन
नजर में जग की हादसा यही तो प्यार हुआ
गुलों को छू लें आरजू जवां हुई दिल में
लगा न हाथ था अभी वो तार –तार हुआ
हसीनों की गली में था बड़ा हँसी मौसम
मगर जो हुस्न को छुआ तो हुस्न खार हुआ
किया जो हमने झुक सलाम हुस्न शरमाया
नजर जो फेरी हमने हुस्न…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 11, 2013 at 9:00am — 14 Comments
मै आदमी हूँ
सम्बेदंशील हूँ
मुझे कई आदमी
कहलाए जाने वालों
ने छला है I
छाछ फूककर
पीता हूँ हर-बार
क्यों की मेरा मुह
दिखावे के गर्म दूध से जला है I I
कल्पनाओ का समंदर
मेरे मन में भी है
कुछ पाने की चाह में
जीवन की राह में तुमसे मिला है I I I
मुझे रोकना नहीं
टोकना नहीं तुम
बढने दो मेरे पैर
ये हमारी दुश्मनी बदल कर
दोस्ती का सिलशिला है I I I I
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप कुमार तिवारी…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 11, 2013 at 12:59am — 12 Comments
!!! पाठशाला बेमुरव्वत !!!
लोग मन को जांचते हैं,
भांप कर फिर काटते हैं।।
जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।
धूप में बरसात में भी,
छांव-छतरी झांकते हैं।
दोस्तों से दुश्मनी जब,
रास्ते ही डांटते हैं।
छोड़ते हैं दर्द विषधर
बालिका को साधते हैं।
आज गरिमा मर चुकी जब,
गीत - कविता भांपते हैं।
जिंदगी में शोर बढ़ता
रिश्ते सारे सालते हैं।
पाठशाला…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 10, 2013 at 10:22pm — 20 Comments
आशिक के दिल की ख्वाहिशो अरमान हैं आँखें ।
कुछ दिन से ये लगता है, परेशान हैं आँखें ॥
Added by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 10:10pm — 12 Comments
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ
महलों को जोर शोर से खलती हैं चींटियाँ
मौका मिले तो लाँघ ये जाएँ पहाड़ भी
तीखी ढलान पे न फिसलती हैं चींटियाँ
रक्खी खुले में यदि कहीं थोड़ी मिठास हो
तब तो न उस मकान से टलती हैं चींटियाँ
पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला
अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ
शायद कहीं मिठास है मुझमें बची हुई
अक्सर मेरे बदन पे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 10, 2013 at 8:47pm — 29 Comments
एक बार फिर
इकट्ठा हो रही वही ताकतें
एक बार फिर
सज रहे वैसे ही मंच
एक बार फिर
जुट रही भीड़
कुछ पा जाने की आस में
भूखे-नंगों की
एक बार फिर
सुनाई दे रहीं,
वही ध्वंसात्मक धुनें
एक बार फिर
गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप
एक बार फिर
थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव
एक बार फिर
उठ रही लपटें
धुए से काला हो…
ContinueAdded by anwar suhail on September 10, 2013 at 8:34pm — 10 Comments
एक पुरानी रचना को कुछ गेय बनाने का प्रयास किया है। देखें, कितना सफल रहा।
इन नयनों में आज प्रभू
आकर यूं तुम बस जाओ
जो कुछ भी देखूं मैं तो
एक तुम ही नजर आओ
धरती-नभ दूर क्षितिज में
ज्यों आलिंगन करते हैं
मैं नदिया बन जाऊं तो
तुम भी सागर बन जाओ
वह सूरत दिखती उसको
जैसी मन में सोच रही
सब तुमको ईश्वर समझें
मेरे प्रियतम बन जाओ
देर भई अब तो कान्हा
मत इतना तुम…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 10, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
गरूर से उठा ये सर मैं झुकाऊ कैसे ?
अपनी यादों से उसके साए मिटाऊं कैसे ?
गुजरा है जिंदगी का हर पल उसी के पहलूँ में !
उसकी साँसों की महक को मैं भुलाऊं कैसे ?
शिकवा रहा है उसको मेरे न मनाने का यारो ,
मालुम नही ये फन मुझे उसको ये बताऊँ कैसे ?
बड़ा बेगैरत होकर निकला हूँ उसके कूंचे से मैं ,
फिर उससे मिलने उसी दर पे मैं जाऊं कैसे ?
दिलके अरमानो की किश्ती तो तूफ़ान में बह गयी ,
अब टूटी पतवार को साहिल पे लाऊं कैसे ?
दिल तडपता है…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 10, 2013 at 5:09pm — 5 Comments
दिल की धड़कन को कुछ तो आराम हो जाए,
मेरे दिल की वादियों में तेरी जिंदगी की शाम हो जाए,
न हो हासिल कुछ भी अगर इस मोहब्बत में मुझे ,
तो खुदा करे की तू मेरे नाम से बदनाम हो जाए!
वक़्त भर ही देगा वो जख्म जो मिले है मुझे तेरी चाहत में ,
बर्बाद ही हो गया हूँ मैं तेरी झूठी मोहब्बत में ,
इससे ज्यादा और मिलना भी क्या था इस उल्फत में ,
सजदे किये थे मैंने तेरे लिए खुदा की इबादत में ,
वक़्त की आँधियों में तू कहीं गुमनाम हो जाए…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 10, 2013 at 4:00pm — 7 Comments
मन के उपजे कुछ हाइकू आपके समक्ष --
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड है खाली ।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै का से कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली…
ContinueAdded by shashi purwar on September 10, 2013 at 1:30pm — 16 Comments
वन नन्दन था वय षोडश कंचन देह लिए चलती वह बाला
शुचि स्वर्ण समान लगे शुभ केश व चन्द्र प्रभा सम वर्ण निराला
नृप एक वहीं फिरता मृगया हित यौवन देख हुआ मतवाला
वह नेत्र मनोहर मादक थे मदमस्त हुआ न गया मधुशाला
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 10, 2013 at 1:00pm — 25 Comments
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2023
2022
2021
2020
2019
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