गली में खेलती वो लड़की
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गली में खेलती वो लड़की
कई आँखों के केंद्र में है |
कुछ आँखों के लिए वो सरसरी भर है
कुछ दूरबीन लगाए बैठी हैं
देखती रहती हैं
उसकी हर छोटी-बड़ी चपलता
कुछ आँखों के लिए वो किरकिरी है
लगातार बदलती हवा का
दुष्परिणाम
इतनी बड़ी लड़की का गली में खेलना..
मतलब, उसे गलत दिशा में धकेलना है !
अच्छा नहीं होता
लड़कियों को इतनी छूट का मिलना
इसीकारण, उसकी माँ उसे देती रहती है नसीहतों के घूँट…
Added by somesh kumar on October 27, 2014 at 11:30am — 10 Comments
Added by vijay nikore on October 26, 2014 at 8:00pm — 10 Comments
2122 1122 22
खुद से यूँ आप वफ़ा कर चलिये
गाह सच को न छुपा कर चलिये
मैं इबादत में करूँ सजदे आप
दैर पर शीश नवा कर चलिये
दिल में भर जाये सड़न ही न कहीं
नफ़रतें दिल से हटा कर चलिये
चलिये महका के ज़माने भर को
प्यार का फूल खिला कर चलिये
कीजिये अम्न की कोशिश यों भी
हक़ में इंसाँ के दुआ कर चलिये
क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब
आप भी नज़रें झुका कर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2014 at 8:00pm — 26 Comments
" त्योहारों के मौसम में इनकी बिक्री बहुत बढ़ गयी है " मुस्कुराते दुकानदारों की बातचीत सुनते हुए उसने देखा, फुटपाथ पर बिछे हुए तमाम देवी देवताओं के चित्र इसकी गवाही दे रहे थे |
" भगवान हर जगह होते हैं , उन्हें खोजने की जरुरत नहीं " , मंदिर में सुना ये प्रवचन उसे याद आ गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on October 26, 2014 at 1:00am — 10 Comments
"यार एक कप चाय मिल जाती तो मजा आ जाता I"
पतिदेव का हुक्म सुन घर की साफ़ सफाई करके थकी हारी पत्नी रसोईघर की तरफ मुड़ गयी.
साहब सोफे पर बैठ कर टीवी ऑन कर मजे से चैनल बदलते हुए कह रहे थे:
"आज तो यार बहुत थक गए, दीपावली पर बाज़ार जाना, उफ्फ्फ्फ़ ...."
पति की हां में हां मिलाते हुए पत्नी चाय देकर वापिस मुड़ गई और अपने काम में लग गयी !
"मौलिक व अप्रकाशित"…
ContinueAdded by Alok Mittal on October 25, 2014 at 11:30pm — 17 Comments
दावत जोरदार रही , सब ने छक के खाया, खाना था ही इतना बढ़िया , तिस पर बिठा कर पत्तल पर प्रेम से परोस-परोस कर खिलाया गया था। अब कहाँ होतीं हैं ऐसी दावतें। देर रात तक नौकरों ने सारे पत्तल इकठ्ठा करके पास तिराहे के कोने पर, जहां लोग कूड़ा फेंकते थे , फेंक दिये। लोग रात देर तक टहल टहल कर बतियाते रहे , दावत की तारीफ करते रहे। सब कुछ अच्छा था पर किसी एक-दो को अच्छा नहीं लगा। किसी ने सुबह-सुबह इधर-उधर दो एक फोन कर दिये । साढ़े दस तक एक बाबू साहब एक डायरी लेकर आ गए। उन्हें बुलवाया , कहा , अच्छी दावत…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on October 25, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
माध्यमिक बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जंचाई चरम पर थी । मास्साब दनादन काॅपी जांचने में मशगूल थे। एकाएक ! एक काॅपी के दो पन्ने ही चेक कर पाये थे ,कि काॅपी में चिपका सौ का नोट, रोल नम्बर ,विद्यार्थी का नाम और एक टिप्पणी :
"कृपया नम्बर बढा दीजिये।"
अड़ोसी पड़ोसी मास्टर मास्टरनियों ने एक दूसरे को कनखियों से देखा । जैसे मन ही मन कह रहे हो ;
"हाय! ये काॅपी मेरे बंडल में क्यों न निकली ?"
बीस पच्चीस काॅपियों के बाद फिर एक काॅपी में पाँच सौ का नोट और कुछ वैसी ही मिलती…
Added by Dr.sandhya tiwari on October 25, 2014 at 2:00pm — 3 Comments
क्षणिकाएँ
1.
थम गई
गर्जन मेघों की
दामिनी भी
शरमा गयी
सावन की पहली बूँद
उनकी ज़ुल्फ़ों से टकरा गयी
............................................
2.
साया जवानी का
अंजाम देख
घबरा गया
वर्तमान की
टूटी लाठी से
भूतकाल टकरा गया
..............................................
3.
किसकी जुदाई का दंश
पाषाण को रुला गया
लहरों पे झील की
आसमाँ का चाँद
बस तन्हा
रह गया…
Added by Sushil Sarna on October 25, 2014 at 2:00pm — 13 Comments
२१२२ १२१२ २२
इससे बढ़कर कोई अनर्गल क्या ?
पूछिये निर्झरों से - "अविरल क्या ?"
घुल रहा है वजूद तिल-तिल कर
हो रहा है हमें ये अव्वल क्या ?
गीत ग़ज़लें रुबाइयाँ.. मेरी ?
बस तुम्हें पढ़ रहा हूँ, कौशल क्या ?
अब उठो.. चढ़ गया है दिन कितना..
टाट लगने लगा है मखमल क्या !
मित्रता है अगर सरोवर से
छोड़िये सोचते हैं बादल क्या !
अब नये-से-नये ठिकाने हैं..
राजधानी चलें !.. ये चंबल क्या ?
चुप न…
Added by Saurabh Pandey on October 25, 2014 at 12:00pm — 40 Comments
एक दीप तुम द्वार पर, रख आये हो आज ।
अंतस अंधेरा भरा, समझ न आया काज ।।
आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।।
पग पग पीडि़त लोग हैं, निर्धन अरू धनवान ।
पीड़ा मन की छोभ है, मानव का परिधान ।।
काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही नादान ।।
मन के हारे हार है, मन से तू मत हार ।
काया मन की दास है, करे नही प्रतिकार ।।
बात ज्ञान की है बड़ी, कैसे दे अंजाम ।
काया अति सुकुमार…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 24, 2014 at 9:35pm — 8 Comments
मस्जिद के स्पीकर से उठने वाले शोर से वो परेशान थे |सुबह सोते वक्त ,दोपहर में रामायण पढ़ते समय या फ़ोन पे गम्भीर हिंदूवादी चर्चा करते हुए उनके कामों में वो स्पीकर से उठने वाली आवज़ उनके कामों को बाधित कर देती |रिटायर्मेंट की पूंजी से यही एक आशियाना लिया था एक महीने पहले पर अब बेटा-बहू और वे स्वयं उलझन में थे कैसे बाहर निकले |कई बार मन हुआ कि अपने मत के संगठनों में शिकायत कर प्रशासनिक दबाब बनाएँ पर हाल के दिल दहला देने वाले दंगों की यादों ने उनकी हिम्मत छीन ली |इतना पैसा तो था नहीं कि कहीं और…
ContinueAdded by somesh kumar on October 24, 2014 at 4:00pm — 10 Comments
चमकती, फैलती, दीपावली की रोशनी देखो
जो फैलाई है तुमने इक नजर वो गन्दगी देखो
हमेशा दूसरों में तो निकाली हैं कमी लाखों, ...
पता चल जाएगा सच, जब कभी अपनी कमी देखो
खुशी अपनी जताने के तरीके तो हजारों हैं,
किसी की मुस्कुराती आँखों के पीछे नमी देखो
मसीहा ही समझता है हमारे दर्द के सच को
वो सबके दर्द लेकर खुश हुआ, उसकी खुशी देखो
वो कुदरत की तबाही, बेघरों के दर्द जाने है,
फरिश्ता ही मना सकता है यूँ दीपावली देखो।
^^^^^^^^^सूबे सिंह सुजान…
Added by सूबे सिंह सुजान on October 23, 2014 at 10:47pm — No Comments
आओ मिलकर दीप जलायें
अंधकार को दूर भगायें
जगमग जगमग हर घर करना
अन्धकार है सबका हरना
अम्बर से धरती पर तारे
साथ चाँद को नीचे लायें
अंतर्मन का तमस हरेंगे
कलुषित मन में प्रेम भरेंगे
द्वेष,बुराई और वासना
मिलकर सारे दूर हटायें
उत्सव है यह दीवाली का
सुख समृद्धि और खुशहाली का
भेदभाव आपस के भूलें
मन में शांति दीप जलायें
दीपों की पंक्तियाँ जगाई
धरती अपनी है चमकाई
सद्ज्ञान के दीप…
Added by Sarita Bhatia on October 23, 2014 at 10:29pm — 4 Comments
कर दिया आम मिरे इश्क़ का चर्चा देखो
देखो ज़ालिम कि मुहब्बत का तरीक़ा देखो
याद करना कि मिरे दर्द कि शिद्दत क्या थी
खुद को ज़र्रों में कभी तुम जो बिखरता देखो
खूं तमन्ना का मुसलसल यहाँ बहता है अब
मेरी आँखों में है इक दर्द का दरिया देखो
यूँ सुना है कि वो नादिम है जफ़ा पे अपनी
उसके चेहरे पे जफाओं का पसीना देखो
अपने हाथों से सजाके में करूँगा रुखसत
कर लिया है मेने पत्थर का कलेजा देखो
ये हिना सुर्ख ज़रा…
ContinueAdded by Ayub Khan "BismiL" on October 23, 2014 at 3:00pm — 7 Comments
एक पल की देरी किये बिना वो तेज़ क़दमों से बड़े-बड़े डग भरती हुई लक्ष्मी मंदिर में पूजा करने चली गयी| रास्ते में एक छोटी सी जिंदा बच्ची कचरे के डिब्बे में जो देख ली थी - शायद सात-आठ दिन पहले ही जन्मी थी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 22, 2014 at 11:56pm — No Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 22, 2014 at 6:54pm — 8 Comments
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए जलाएं।
भारत को तमलीन जगत में,
ज्योतिर्मय पुनः बनायें।।
आओ मिल कर करें सभी प्रण,
भारत के हित हों अर्पण।
अपने जीवन के कुछ क्षण,
भारत को स्वच्छ बनायें।।
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए जलाएं।।
आओ मिल कर लड़ें एक रण,
अपने भीतर का रावण।
कभी स्वांस नहीं ले पाये,
हम भ्रष्टाचार मिटायें।।
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए…
ContinueAdded by Aditya Kumar on October 22, 2014 at 1:48pm — 3 Comments
उल्टा सीधा बोल रही है दुनिया मेरे बारे में,
अखबारों ने छापा क्या कुछ, पढना मेरे बारे में.
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इस दुनिया में मिल न सकेंगे अगली बार मिलेंगे हम,
अर्श को जो भी अर्ज़ी भेजो, लिखना मेरे बारे में.
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उनकी ज़ात से वाक़िफ़ हूँ, वो बाज़ नहीं आने वाले,
सर पर लेकर घूम रहे हैं फ़ित्ना मेरे बारे में.
.
अपने दिल में एक दीया तुम मेरे नाम जला रखना,
आँधी जाने सोच रही है क्या क्या मेरे बारे में.
.
मज्लिस से बाहर कर बैठे, उनकी जान में जाँ…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
पुष्य नक्षत्र की शुभ बेला में, श्री लक्ष्मी का अवतार हुआ
महक फैलाती आई कमला, तो गुरु नक्षत्र भी धन्य हुआ|
दाता भी है रिद्धि सिद्दी के, सुख सम्रद्धि जो लेकर आये
माँ शारदे भी संग बैठी, ज्ञान पिपासू प्यास बुझायें |
बरकत करती धन वैभव की, जो धन धान्य से घर भरदें
दीपो का त्यौहार मनाते, आँगन माँड़ रँगोली सज दे |
घर लक्ष्मी प्रसन्न जब रहती, तब लक्ष्मी का वरदान मिले
बिन गणपति और ज्ञानेश्वरी, फिर उल्लू ही साक्षात् मिले…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2014 at 12:00pm — No Comments
ये दिये क्या भाव हैं अम्मा ?" गाडी में बैठी सभ्रांत महिला ने दीपक बेचने वाली बुढ़िया से पूछा I
"50 रुपये के 100 हैं बिटिया I" बुढ़िया ने उत्तर दिया I
"हे भगवान् ! इतने महेंगे ? अम्मा तुम तो लूट रही हो I"
"एक बात का जवाब दो बेटी, ये महंगाई क्या सिर्फ अमीरों के लिए ही है, हम गरीबों के लिए नहीं ?"
मौलिक एवं अप्रकाशित
आलोक मित्तल
मथुरा
Added by Alok Mittal on October 22, 2014 at 12:00pm — 9 Comments
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