मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
निगाह में उदासियां छुपा हुआ अज़ाब था
डरावनी सी रात थी बड़ा अजीब ख्वाब था
दिखी नहीं कली कहीं ख़ुशी से कोई झूमती
लबों लबों कराह और आँख आँख आब था
चमन में छा रही थीं बेशुमार बदहवासियां
न टेसुओं पे नूर था न सुर्खरू गुलाब था
मिला न साथ दे सका जो चाहिए मिला नहीं
थी चार दिन की ज़िंदगानी दर्द बेहिसाब था
फ़ुज़ूल थे सवाल और चीखना फ़ुज़ूल…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2019 at 12:30pm — 8 Comments
तूफ़ान जलजलों से नहीं आसमाँ-से हम
फ़ितरत से हैं ज़रूर कुछ अब्र-ए-रवाँ से हम
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कितना लिए है बोझ ज़मीँ इस जहान का
मुमकिन है क्या कभी कि बनें धरती माँ-से हम
**
दिल तोड़ के वो कह रहे हैं सब्र कीजिए
सब्र-ओ-क़रार लाएँ तो लाएँ कहाँ से हम
**
ये तय नहीं कि प्यार की हासिल हों मंज़िलें
इतना है तय कि जाएँगे अब अपनी जाँ से हम
**
कुछ इस तरह से उनकी हुईं मेहरबानियाँ
खाते…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 8, 2019 at 10:30pm — 6 Comments
रिक्तता :.....
बहुत धीरे धीरे जलती है
अग्नि चूल्हे की
पहले धुआँ
फिर अग्नि का चरम
फिर ढलान का धुआँ
फिर अंत
फिर नहीं जलती
कभी बुझकर
राख से अग्नि
साकार
शून्य हो जाता है
शून्य अदृश्य हो जाता है
बस रह जाती है
रिक्तता
जो कभी पूर्ण थी
धुआँ होने से पहले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 9:26pm — 8 Comments
छंद मुक्त कविता : रावण दहन
मैं रूप बदल कर बैठा हूँ ।
स्वरूप बदल कर बैठा हूँ ।
मैं आज का रावण हूँ मितरों,
जन के मन में छुप बैठा हूँ ।।
मुझको जितना भी जलाओगे ।
हर घर में उतना पाओगे ।
गर मरना भी चाहूँ मितरों,
तुम राम कहाँ से लाओगे ।।
कन्या को देवी सा मान दिया ।
नारी को माँ का सम्मान दिया ।
इन बातों का नही अर्थ मितरों,
जब गर्भ में कन्या का प्राण लिया ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 8, 2019 at 3:28pm — 6 Comments
विजयदशमी पर कुछ दोहे :
राम शरों ने पाप को, किया धरा से दूर।
दम्भी रावण का हुआ, दम्भ अंत में चूर।1।
हाथ जोड़ वंदन करें , कहाँ राम हैं आप।
प्रतिपल बढ़ते जा रहे ,हर सत्या पर पाप।2।
छद्म वेश में घूमते, जगह जगह लंकेश।
नारी को वो छल रहे, धर कर मुनि का वेश।3।
राम नाम के दीप से, हो पापों का अंत।
मन से रावण दूर हो ,उपजे मन में कंत।4।
जीवन में लंकेश सा, जो भी करता काम।
ऐसे पापी को कभी , क्षमा न करते…
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 11:48am — 12 Comments
"ख़ामोश!" एक बलात्कार पीड़िता और सरेआम उसकी हत्या करने वाले युवकों के बाद बारी-बारी से माइक पर उसने मशहूर नेताओं-अभिनेताओं और पुलिसकर्मियों की मिमिक्री करते हुए कहा, "कितने आदमी थे!"
"साहब, ती..ई...तीन थे!"
"वे तीन थे ... और ये सब तीस-चालीस...ऐं! लानत है... तुम लोगों की ख़ामोशी पर!"
"साला... एक मच्छर इस देश के आदमी को हिजड़ा बना देता है!"
"साहब... मच्छर! .. मच्छर बोले तो... पैसा, डर, पुलिस, नेता, क़ानून या स्वार्थ!..है न!"
"कोई…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2019 at 8:30am — 4 Comments
जैसे ही छोटू के रोने की आवाज मालती के कानों में पड़ी, वह उठकर भागी. दूसरे कमरे के उसके बिस्तर पर लेटे छोटू की नींद खुल गयी थी, शायद उसने नैप्पी भी गीला कर दिया था.
"अले ले, जग गया मेरा राजा बेटा, भुक्खू लगी है क्या?, मालती ने उसे उठाकर प्यार करना शुरू किया और उसे लाड़ करती हुई ड्राइंग रूम में आ गयी.
ड्राइंग रूम में एक कोने में वह बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था, मालती और छोटू के मिले जुले स्वर से उसकी तन्द्रा भंग हुई. उसके चेहरे पर भी उनको देखकर मुस्कराहट आ गयी. वह उठकर छोटू को लेने ही जा रहा…
Added by विनय कुमार on October 7, 2019 at 6:42pm — 8 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
सुख उसका दुख उसका है तो फिर काहे का रोना है
दौलत उसकी शोहरत उसकी क्या पाना क्या खोना है //
चाँद-सितारे उससे रोशन फूल में उससे खुशबू है
ज़र्रे-ज़र्रे में वो शामिल वो चांदी वो सोना है //
खुशिओं के वो मोती भर दे या ग़म की बरसात करे
उसकी हुकूमत है हर सू वो जो चाहे सो होना है //
सारी दुनिया का वो मालिक हर शय उसके क़ब्ज़े में
उसके आगे सब कुछ फीका क्या जादू क्या टोना है…
Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:30pm — 10 Comments
दादाजी का वोट - लघुकथा -
विवेक विलायत से इंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा गोल्ड मैडल सहित पास करके लौटा था। उसके पास कई विदेशी और भारतीय कम्पनियों के ऑफर थे।
आज परिवार के सभी सदस्य इसी मुद्दे पर अंतिम फैसला करने के लिये बड़े हॉल में एकत्रित हुए थे। सभी की रॉय भिन्न भिन्न थी। लंबी बहस चली लेकिन कोई अंतिम हल नहीं निकला।
तब दादाजी ने सुझाव दिया कि सब अपनी अपनी सलाह लिख कर पर्ची डालें। सभी पर्चियों को खोल कर बहुमत से फैसला होगा।वह सबको मान्य होगा।सभी इससे सहमत हो गये।
सभी की…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 5, 2019 at 1:32pm — 10 Comments
मैंने केसर-केसर मन से रची रंगोली,
मैंने रेशम-रेशम बंधनवार सजाए,
कुछ महके कुछ मीठे से पकवान बना लूँ-
तुम आओ तो उत्सव जैसा तुम्हे मना लूँ...
कंगूरों तक रुकी धूप से कर मनुहारें
हर कोना घर-आँगन का मैं रौशन कर लूँ,
माँग हवाओं से लाऊँ खुशबू के झौंके
सावन की आकुलता इन आँखों में भर लूँ,
नम कर लूँ मैं दिल का रूठा-रूठा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 5, 2019 at 1:10am — 5 Comments
आपने कभी आत्मा की आवाज सुनी है ?’‘- बाबा ने पूछा I
‘कौन आत्मा ? ‘
‘वही जो हर मनुष्य के अंतर में रहती है I ‘
‘बाबा मैं नेता हूँ , मुझे आत्मा-अंतरात्मा से क्या ?
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 4, 2019 at 11:47am — 8 Comments
" वो लोग भी कमाल के होते हैं, जो कमाल की बाते करते हैं ।",उनकी मीटिंग खत्म होने के बाद पास बैठे आदमी ने कहा
"पर इन लोगों ने कभी चुप शांत रहने वाले लोगों के बारे भी सोचा है, वो भी कुछ दायरे संभाल रखें हैं ।" , उसने ख़ुद से पूछा
चुप व शांत रहने वालों की भी उन्हें प्रवाह करनी चाहिए, जब वे लोग आपस में बातें कर रहे होते हैं ।
"पर उनके लिए ये जानना भी ज़रूरी है कि इनकी सोच के दायरे से बड़ा भी कोई किसी का दायरा हो सकता है ।"
वहाँ बैठे आदमी ने फिर पूछ ही लिया, " भाई साहिब, आप जो…
Added by मोहन बेगोवाल on October 3, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
उठाओ नजर रहगुज़र देख लो ।
यहाँ जिन्दगी का सफ़र देख लो ।
नियम कायदे तो बने हैं कई
मगर भंग हैं सब जिधर देख लो ।
न भय है न चिंता न है शर्म ही
बना है बशर जानवर देख लो ।
कहीं लूट है तो कहीं क़त्ल है
किसी भी नगर की ख़बर देख लो ।
गले मिल रहे दोस्त खंजर लिए
बदलते समय का असर देख लो ।
करें फ़िक्र उनकी जो हैं नापसंद
सियासत का है ये हुनर देख लो ।
बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2019 at 10:00pm — 7 Comments
अपना भारत.... (लघु रचना)
हार गई
लाठी से
बन्दूक
आख़िर
जीत गई
बापू की अहिंसा
हिंसा से
मुक्ति दिलाई
गुलामी की
बेड़ियों से
तिरंगे को मिला
अपना आसमान
अपना सम्मान
अपना भारत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 2, 2019 at 9:52pm — 4 Comments
समसामयिक दोहे-
अर्थशास्त्र का ज्ञान ही, सब देशों का मूल.
कभी बढाता शक्ति यह, कभी हिला दे चूल.१
राजनीति परमार्थ को, लिया स्वार्थ में ढाल.
खुद सुख सुविधा भोगते, सौंप दुःख जंजाल.२
राजनीति के शास्त्र में, कूटनीति के मन्त्र.
दलदल कीचड़ वासना, फलते पाप कुतंत्र.३
जीवन में संवेदना, बहुत काम की चीज.
कभी विफल होती नहीं, मिलें श्रेष्ठ या नीच.४
द्वेष भावना में किये, गए…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2019 at 8:00pm — 6 Comments
122 122 122 12
चलो भी जला के दिखा दें दिये
चले जा रहे वे अँधेरा किये।1
बहुत दिन गये चोट खाते हुए
रहेंगे कहाँ तक कहो मुँह सिये।2
किये जा रहे मौज मस्ती बड़ी
भुलाते हमें,जो हमारे हिये।3
चले पाँव नंगे, मिलीं कुर्सियाँ
लगा आजकल हैं नशा वे पिये।4
उड़ीं जो पतंगें, हुईं बेवफा
पिटे लोग लगता है' अपने किये।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 2, 2019 at 7:28am — 3 Comments
रात-अँधेरे सारी रात
टटोलते कोई एक शब्द
स्वयं में स्माविष्ट कर ले
जो तुम्हारे आने का उल्लास
चले जाने का विषाद
कभी बूँद-बूँद में लुप्त होती
खिलखिलाती रंग-बिरंगी हँसी
और प्यारी हिचकियाँ तुम्हारी
आँसू ढुलकाती, मेरी ओर ताकती
दीप-माला-सी तुम्हारी आँखें
कि मोहनिद्रा में जैसे
मेरे ओठों पर तुम
अपने शब्दों को खोज रही हो
यह प्रासंगकि नहीं है क्या
कि मैं रात-अँधेरे सारी रात
टटोल रहा…
ContinueAdded by vijay nikore on October 1, 2019 at 3:30pm — 8 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 1, 2019 at 1:00pm — 4 Comments
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
ये वक़्त के फ़साने सब पैतरे हैं छल के
तुम भी बिखर न जाना यूँ मेरे साथ चल के
उस डायरी में तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा
कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के
ये याद भी नही है शोला थ याकि शबनम
हालाँकि उस बला ने देखा तो था मचल के
अब क्या तुम्हें बताएं किस बात का गुमां है
कल रात चाँद मेरी छत पे गया टहल के
किस बात से…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 1, 2019 at 12:00pm — 8 Comments
बड़े दिल का तो वो कद में बड़ा होने से पहले था
जमीं से राब्ता उसका ख़ुदा होने से पहले था
करें मत फ़िक्र अब मेरी सभी एहबाब घर जाएँ
मुझे एहसास-ए-तन्हाई नशा होने से पहले था
हुनर आया तपिश सहकर हजारों चोट खाकर ही
फ़कत माटी का लोंदा वो घड़ा होने से पहले था
बुरी सुहबत ने ही उसको मियाँ ऎसा बनाया है़
वगरना नेक बच्चा वो बुरा होने से पहले था
मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले…
Added by rajesh kumari on October 1, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
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