Added by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:00am — 38 Comments
जैसे को तैसा
आज करवाचौथ के दिन मैं अपनी बीवी से बोला – “प्रिये...
तुम मेरी किडनी के समान हो,
किंतु शादी के बाद के इन 5 वर्षों में
तुम्हारी हालत बिल्कुल
हमारी सरकार जैसी हो गई है,…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 22, 2013 at 7:35am — 22 Comments
क्या कहूँ ...............
आहत मन की व्यथा
कैसे सुनाऊँ.................
मन की व्याकुलता
अश्रु और व्याकुलता
साथी है परस्पर
आकुल होकर आँख भी
जब छलक जाती है
गरम अश्रुओं का लावा
कपोलों को झुलसा जाता है
न जाने कब कैसे ...................
पीर आँखों की राह
चल पड़ती है बिना कुछ कहे
आकुल मन बस यूं ही
तकता रह जाता है
भाव विहीन होकर भी
भाव पूर्ण बन जाता है जब
जिह्वा सुन्न हो…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 2:23pm — 34 Comments
Added by mohinichordia on October 21, 2013 at 7:15am — 18 Comments
1212 1122 1212 22 .... अंतिम रुक्न ११२ भी पढ़ा गया है ..
.
नज़र, नज़र से मिला, सब्र आज़माते रहे,
मेरे रक़ीब मुझे देख, तिलमिलाते रहे.
.
घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,
मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे.
.
गुनाह, जुर्म, सज़ा, माफ़ आपकी कर दी,
ये कह दिया तो बड़ी देर सकपकाते रहे.
.
खफ़ा खफ़ा से रहे बज़्म में सभी मुझसे,
वो पीठ पीछे मेरे शेर गुनगुनाते रहे.
.
मिला हमें न सुकूँ दफ्न कब्र में होकर,
किसी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 20, 2013 at 10:30pm — 26 Comments
बह्र: 212 212 212 212
__________________________
प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई
देख कर पीर पलकें दुखी हो गई
तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया
आंख बहने लगी औ नदी हो गई
संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई
प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई
शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई
कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक…
Added by शकील समर on October 20, 2013 at 5:30pm — 15 Comments
जानता हूँ जगत मुझसे दूर होगा
पर तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ।
कठिन होगी यात्रा, राहें कँटीली,
व्यंजनायें मिलेंगी चुभती नुकीली,
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,
प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ।
स्वप्न देखूँ कब रहा अधिकार मेरा
रीतियों में था बँधा संसार मेरा,
आज मन जब खोलना पर चाहता है
गगन को उड़ना नहीं स्वीकार मेरा,
भर चुके अपनी उड़ानें अभी सब…
ContinueAdded by Manoshi Chatterjee on October 20, 2013 at 11:19am — 17 Comments
कैसा ये जीवन हुआ, दिन प्रति बढ़े विकार
लोभ, मोह, मद, दंभ भी, नित लेते आकार
नित लेते आकार, स्वार्थ के सर्प अनूठे
बाँट रहे संदेह, नेह के बंधन झूठे
मन में फैली रेह, भाव है ठूंठों जैसा
संवेदन अब शून्य, मूल्य संस्कृति का कैसा
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:30pm — 23 Comments
दीवाली -(चोका)
आई दीवाली
जगमगायें दीप
सबके द्वारे
माटी से सुरचित
दीप सुन्दर
रुई की बनी बाती
स्नेह पूरित
तब मिल जलती
बाती सुन्दर
दे अपनी उजास
हरे उदासी
उल्लास भर देती
घर बाहर
सागरसुता आये
स्वर्ण कलश …
Added by Jyotirmai Pant on October 19, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
शाम सी ना सवेरे जैसी है |
रोशनी भी अँधेरे जैसी है |
क्या बताऊ तुम्हें पता घर का,
पूरी बस्ती ही डेरे जैसी है |
वक्त गुजरा तो फ़िर नहीं लौटा,
इसकी फ़ितरत भी तेरे जैसी है |
उस मुसब्बर की कोई भी मूरत,
तेरे जैसी ना मेरे जैसी है |
हर ख़ुशी जिंदगी के आंगन में,
चार दिन के बसेरे जैसी है |
डौली दुल्हन की जो उठाने चले,
सबकी नीयत लुटेरे जैसी है |
डा. विनोद…
ContinueAdded by डॉ विनोद लवानिया on October 19, 2013 at 4:30pm — 20 Comments
जीवन क्या है ? तुहिन सूक्ष्म कण
क्यों ना तुझ पर करूँ समर्पण....
दूर्वादल के क्षणिक पाहुने
संग लिये आती है ऊषा
प्राची के आँचल में रश्मि
बिखरा देती है मंजूषा
बीन-बीन ले जातीं किरणें
तुहिन बिंदु सम जीवन के क्षण......
ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......
उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ…
Added by अरुण कुमार निगम on October 19, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
मेरे अपने उधारी दे के ऋण को छोड़ देते हैं
मगर फिर नास्ते का दाम उसमें जोड़ देते हैं
चलाते योजना अक्सर वो अपने जेब भरने को
सियासी हैं बड़े नदियों का रुख भी मोड़ देते हैं
जो हैं कमजोर दुनिया में करें वो ज्ञान की बातें
बहादुर हैं जो हाँ करवाने सर ही फोड़ देते हैं
करे हैं जोंक सी यारी लिपट के यार मतलब से
निकल जाता है जब मतलब वो यारी तोड़ देते हैं
हवाएं जब करें साजिश चटक जाते हैं तब फानूश
तमस से जंग…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 3:30pm — 10 Comments
१२२२ १२२२
बड़ी बातें मियां छोड़ों
हमारा दिल न यूं तोड़ों
न हिन्दू है न वो मुस्लिम
वो हिंदी है उसे जोड़ो
छलकती हैं जहाँ आँखें
मुझे रिन्दों वहां छोड़ों
लगें दिलकश जो शाखों पे
हसीं गुल वो नहीं तोड़ों
मिलेगी वक़्त पर कुर्सी
मियाँ कुर्सी को मत दौड़ों
लुटी कलियाँ चमन की हैं
दरिंदों को नहीं छोड़ों
बचा कुर्सी वतन बेंचा
शरारत ये जरा…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
बह्र: 2122 1122 1122 22
________________________________
जिंदगी और न अब कोई पहेली होगी
फिर से हाथों में मेरे तेरी हथेली होगी
प्यार में ताने सुनाने लगी दुनिया अब तो
क्या पता था मुझे नाम उसके हवेली होगी
कान किसने भरे उसके वो खफा है…
Added by शकील समर on October 19, 2013 at 1:10pm — 13 Comments
Added by DEEPAK PANDEY on October 19, 2013 at 12:46pm — 12 Comments
छा रहा है गगन में कुछ कुछ उजाला
बढ़ रही है पूर्व दिशि की लालिमा
जगमगाते तारे भी फीके पड़े हैं
घट रही है यामिनी की कालिमा
चन्द्रमा निस्तेज होकर जा छुपा है
मंद पड़ती श्वेत किरणों को समेटे
चाहता है पश्चिमी दिव्यांगना के
पास जाकर गोद में कुछ काल लेटे
हाथ थामे दिग्वधू का आ रहे हैं
तिमिर के बैरी प्रभु श्री अंशुमाली
मंद वायु भी लगी है मुस्कुराने
छिप गयी है कही जाकर रात काली
हिमगिरी…
ContinueAdded by Praveen Verma 'ViswaS' on October 19, 2013 at 12:20pm — 13 Comments
बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१
.
चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२
.
भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !!
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
.
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी…
Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 12:19pm — 38 Comments
अलग सबसे तबीयत है करें क्या
कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१
दुआ में मांगते हैं मौत मेरी
सितमगर की शरारत है करें क्या /२
न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब
मदारी को शिकायत है करें क्या /३
ये आदत छोड़िये जी शाइरी की
मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४
तमाशा देख लो उस नामवर का
लिबासों की इबादत है करें क्या /५
हमें दिल में सनम ने रख लिया है
न मरने की इजाजत है करें क्या /६
अरे अब आसमां मत बांट देना
ज़मीं ने की…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 12:00pm — 19 Comments
काँटे हैं किस के पास में किस पे गुलाब है।
जनता के पास आज भी सबका हिसाब है।
.
पढ़कर के जिस किताब को बच्चे बहक गये ,
बोलो र्इमान वालो वो कैसी किताब है।
.
लालो गुहर नही है मेरे पास में मगर ,
जो कुछ भी मेरे पास है वो लाजबाब है।
.
बैठे है करके बंद वो दरवाजे खिड़कियाँ ,
ये सोचकर कि अपना मुकददर खराब है।
.
ये सच है हाथ पाँव में अब जान ही नही ,
जिन्दा लहू में अब भी मेरे इन्कलाब है।
.
अंगार को बुझाइये पानी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 19, 2013 at 11:30am — 8 Comments
जवान होते ही हैं
शहीद होने के लिए
और नेता
वह तो शासक है
सोना उनका हक है
जवान जब गोली खा रहा होता है
नेता पार्टी कर रहे होते हैं
जवानों की चिता को
मुखाग्नि भी
राजनीति का अवसर देती है
उन्हें,
शहीदों की
माओं के चाक सीने पर भी
नमक छिड़कने से भी
बाज नही आते
विलाप, क्रंदन भी
अवसर हैं वोट की तिजारत के।
नेताओं
देश शर्मसार है तुम पर।
मीना पाठक
…
Added by Meena Pathak on October 19, 2013 at 8:00am — 29 Comments
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