बहुत दिनों की खोजबीन के बाद परा -वैज्ञानिक उस औरत में घुसने वाले भूत पर सिर्फ इतना निष्कर्ष निकाल पाये , कि जिस रात इसका पति इसे बेहिसाब मारता है ,अगली सुबह इस औरत में वो भूत आता है !
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 12, 2014 at 3:00pm — 6 Comments
हुस्न को दर्पण का ...
प्रीत को समर्पण का ..
विरह को क्रंदन का ....
इंतज़ार रहता है//
भोर को अभिनन्दन का ...
बाहों को बंधन का ...
भाल को चन्दन का ...
इंतज़ार रहता है//
धड़कन को चाहत का ...
यौवन को आहट का ...
घायल को राहत का ...
इंतज़ार रहता है//.
तिमिर को प्रात का ...
वृद्ध को साथ का...
चाँद को रात का ...
इंतज़ार रहता है//
आस को विशवास का…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 12, 2014 at 2:53pm — 6 Comments
"बाबू जी, दीये ले लो, बहुत सस्ते हैं, इतना बड़ा त्यौहार है ! "
आठ साल की फटी हुई फ्रॉक ने एक रेशम के कुर्ते को पीछे से खींचते हुए पूछा !
"अच्छा, बड़ा त्यौहार है ! पता भी है क्यों मनाते हैं बड़ा त्यौहार ?"
" हाँ, भगवान रामचन्दर ने बहुत सारे दीये ख़रीदे थे !"
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 12, 2014 at 2:39pm — 11 Comments
नौ महीने तक सींच रक्त से, जिसको कोख में पाला,
आज उसी बेटे ने माँ को, अपने घर से निकाला।
जर्जर होती देह लिए, माँ ने बेटे को निहारा,
मानो उसके जीने का अब, छूट रहा हो सहारा॥
भूल गया गीली रातें, जब रोता था चिल्लाता था,
हाथ पैर निष्क्रिय थे तेरे, पड़े-पड़े झल्लाता था।
तब त्याग नींद! तेरी जगह लेट, सूखे में तुझे सुलाती थी,
अपने सीने से लिपटा, बाँहों में तुझे झुलाती थी॥
भूल गया वो सूखे दिन, जब गर्मी से घबराता था,
सन्नाटे की चादर ओढ़े,…
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 12, 2014 at 2:33pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2014 at 12:32pm — 5 Comments
१-कहा था मैंने
क़र्ज़ न ले उससे
मुफलिशी बेशर्म है
कपडे उतार लेती है
२-वो फिर से चला ढूँढने
दो रोटी
बजबजाते कूड़े के ढेर में
३-नदी के किनारे वाला पेड़
आज प्यास से मर गया
४-मैं मोम था
शायद इसीलिए
धूप में बैठा गयीं मुझे
५-मैं तुमसे हाँथ जरूर मिलाऊंगा
मेरा कद मुकम्मल हो जाने दो
६-मुझे पाने की अजीब हवस है उन्हें
रेत में गिरा आँसू हूँ
फिर भी ढूँढ़ रही हैं
७-तुझे भी…
Added by ram shiromani pathak on October 12, 2014 at 11:59am — 6 Comments
अहसास
मधुप की ट्रेन खुल चुकी था। छुट्टियों के बाद वह वापस नौकरी पर जा रहा था। माधवी से मोबाइल पर बात होते –होते रह गयी, माधवी का गला जैसे रुँध गया हो। कुछ देर की चुप्पी के बाद वह ‘ठीक है ....’ ही कह पायी थी।मधुप भी अतीत की स्मृतियों में खोने लगे, ‘कितना खयाल रखती है माधवी उसका तथा परिवार के सभी लोगों का ? वह तो छोटी –छोटी बातों पर भी चिढ़ जाता है। तब माधवी कितने शांत लहजे में कहती है कि भला ऐसा क्या हो जाता है उन्हें कभी –कभी? बच्चों की तकलीफ जरा भी बर्दाश्त नहीं आपको।…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 10:30am — 2 Comments
तलाश एक कथा की
तलाश,
फिर-फिर तलाश,
हर पल,हर पहर,
तलाशा है तुझे,
इस उम्मीद के साथ कि
तू मिल जायेगी मुझे,
कभी-न-कभी,कहीं-न-कहीं।
सब कुछ तो साथ लिए चलता रहा,
भाव,अभिव्यक्ति,
कामना तेरे मिल जाने की,
उमंगें हसरतें खिल जाने की,
शब्दों के जिंदा रहने के,
दूरस्थता-बोध सहने के,
अहसास अभी जिंदा हैं,
रहेंगे भी तबतक शायद
जबतक तू अवतरित न हो
शब्दों का बन…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 10:30am — No Comments
1212 1122 1212 112/22
सफर ये राहगुज़र और ये मुकाम नया
हयात देती है अक्सर मुझे यूँ काम नया
अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है
यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया (दाम=जाल)
न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं
करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया
ये ज़िन्दगी हो फ़ना रोज़ और रोज़ शुरू
ग़ुरूबे शम्स हो तो चाँद निकले शाम नया
बहुत हुये गमे दौराँ की…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 12, 2014 at 10:22am — 12 Comments
आज मौसम ....बड़ा आशिकाना है
शब्द के मोतियों से उन्हें सजाना है
हर्फ़ में ही सही तस्वीर बनाई बहुत
कहीं और जिनका अब ठिकाना है
जिसकी खातिर यहाँ रातें बिताई बहुत
उनका इधर से यूँ रोज आना जाना है
ख्वाब में डाल पर झूले झूलेंगे हम
घर मेरे सावन का यूँ आना जाना है
स्वप्न में आकर फ़िर से लुभाओ प्रिय
जहाँ न मेरा न तेरा कोई बहाना है
कैसे कह दूँ उन्हें प्यार करता नहीं
पहले दीदार…
ContinueAdded by anand murthy on October 11, 2014 at 11:58pm — 3 Comments
कर्मठ
जैसे ही पता चलता है कि नेताजी स्कूल प्रांगण में आ चुके हैं |कर्मवीर जी सक्रिय हो जाते हैं और दिनेश से माईक लेकर स्वागत कि घोषणा करते हैं |फिर कार्यक्रम के समापन तक सभी जगह सभी के साथ कर्मठ कर्मवीर जी कैमरे में कैद हो जाते हैं |मंच से कुछ दूर कुर्सी पर बैठा दिनेश अपनी निष्क्रियता पर गहरी सांस लेता है और कर्मठ कैमरे और कर्मठ कर्मवीर जी के चेहरे पर बार-बार आ रहे फ़्लैश को देखता रहता है |
C-@-सोमेश कुमार
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on October 11, 2014 at 7:00pm — 7 Comments
ऐ चाँद !
पूजा तुझे वर्षों
हल्दी,कुमकुम,
अक्षत,रोली,पुष्प,
धूप दीप, नैवेद्य,
करती रही अर्पण
आस ये कि तू
अभिसिंचित करेगा
अपनी शीतल रश्मियों से
प्रेम की अनुभूतियों से
दूर कर देगा मेरे
प्रणय की प्रत्येक विसंगतियों से
पर यह क्या किया .....
सब कुछ बदल दिया !
तू उगलता रहा
अपनी चाँदनी में अदृश्य अंगारे
सुलगती रही जीवन की लहरें
झुलसा- झुलसा तन-मन
अंतरमन का हाहाकार लिए
अब तू ही बता
तुझे कैसे पूजूँ अब…
Added by Meena Pathak on October 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
Added by Sushil Sarna on October 11, 2014 at 12:26pm — 9 Comments
मातृभक्ति गुंजित स्वर तेरे, सिंहनाद सा करते हैं,,
तेरा साहस शौर्य देख, तेरे भय से शत्रु मरते हैं ।
वेग तेरी आशा का भारी, है आंधी तूफानों पर,,
तेज तेरे चेहरे का भारी, बिजली की मुस्कानों पर ।
शक्ति का अंबार छिपा है, तेरे दृढ़ संकल्पों में,,
जीवन का हर गीत लिखा है, तूने प्रेम के पन्नों में ।
संबल तेरा पाकर ही, निर्बल ने है लड़ना सीखा,,
देख अडिग विश्वास तेरा, पाषाणों ने अड़ना सीखा ।
धीर हो तुम! गंभीर हो…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 11, 2014 at 11:30am — No Comments
देखा असूल मैंने अजब सर जमीन पर
जो ठोकरें लगाते रहे उम्र भर मुझे
शैतानियत ने किस कदर चोला बदल लिया
वे ही जनाजे में मेरी कन्धा लगा रहे I
चप्पल न थी नसीब छाले पाँव में पड़े
मै जिन्दगी में यूँ ही दर्दमंद हो चला
अल्लाह तूने मौत दी तेरे बड़े करम
इक बार आठ पाँव की सवारी तो मिली I
मैंने हयात में न कभी हार थी मानी
हर वक्त …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 6:00pm — 14 Comments
तुम मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न लो,
बस यूँ ख़ामोश रह कर मेरी जान न लो ।
लोग कोसेंगे तुम्हें, तुमसे करेंगे दिल्लगी,
तुम अपने माथे पर, मेरी उजड़ी हुई पहचान न लो ।
बस्तियां खाली पड़ीं, कई लोग देंगे आसरा,
इक रात बसने के लिए, मेरे दिल का सूना मकान न लो ।
बेजुबां बेदम सा होकर, मैं पड़ा तेरी राह में,
मुँह फेर कर गुजरो मगर, मेरी आँखों की जुबान न लो ।
मैं बड़ा नाजुक हूँ, दिल पर बोझ भारी है बहुत ,
न गिरूँ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 10, 2014 at 11:30am — No Comments
2122 1122 1122 22
तेरे कूंचे से यूं खामोश निकलकर मैंने
तेरे दीदार किये रूप बदलकर मैंने
इक हिमालय की तरह तुमसे मिला था लेकिन
पाँव अब चूम लिए तेरे पिघलकर मैंने
भौरों कलियों कि कभी बात न मुझसे करना
उम्र अब तक तो है काटी यूं बहलकर मैंने
आजमाया है हुनर आज किसी बच्चे का
उनसे दिल मांग लिया उनका मचलकर मैंने
दिल की चाहत तो है इजहारे मुहब्बत करना
बात पर तुझसे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 9, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
धरती से नीले अम्बर तक
बिना किसी व्यवधान
इठलाती तितली सी चंचल
भरती रहे उड़ान
ना कोई सीमा ना कोई बंद
हो कितनी स्वछन्द
ऐ कविता!
कभी करुण रस से आप्लावित
भीगे आखर से बोझिल
कभी डूब शिंगार झील में
आती नख- शिख तक झिलमिल
कभी गरल तू विरह का पीती
कभी नेह मकरंद
हो कितनी स्वछन्द
ऐ कविता!
कभी परों पर लगा बसंती
रंग अबीर गुलाबी लाल
कहीं बिठाती दीये…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 9, 2014 at 12:50pm — 16 Comments
"वाह वाह !! क्या लिखते हैं साहब, एक बार किताब छपने तो दीजिये, देखिये कैसे लोग हाथो हाथ उठा लेते हैं I"
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 9, 2014 at 11:00am — 25 Comments
बचें दृष्टि से दृष्टिदोष फैला हुआ है चहुँ दिश।
निकट या दूर दृष्टि सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।
दृष्टि लगे या दृष्टि पड़े जब डिढ्या बने विषैली।
तड़ित सदृश झकझोरे मन जब दृष्टि बने पहेली।
गिद्धदृष्टि से आहत जन-जन वक्र दृष्टि से जनपथ।
जन प्रतिनिधि, सत्ताधीशों के कर्म अनीति से लथपथ।
रखें दृष्टिगत हो जन-जाग्रति, जन-निनाद, जन-क्रांति।…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 9, 2014 at 9:16am — 3 Comments
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