Added by Manan Kumar singh on October 10, 2017 at 7:30pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 10, 2017 at 6:38pm — 4 Comments
स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" के हिन्दी अनुवाद से प्रेरित
सब को धीरे धीरे मरना पड़ता है
-----------------------------------------
सब को धीरे धीरे मरना पड़ता है
आप चाहे तुच्छ हों या हों आप महान
आप चाहे पत्थर हों, पेड़ हों
पशु हों, आदमी हों, या कोई साहिबे जहान
आप चाहे बुलंद हों या जोशे नातवान
सब को धीरे धीरे मरना पड़ता है
आप चाहे विनीत हों या कोई दहकता…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 10, 2017 at 3:00pm — 10 Comments
Added by Rahila on October 10, 2017 at 2:29pm — 8 Comments
"कल की फोटो देखी मैंने, बहुत सुंदर दिख रही थीं आप", उसने ऑफिस में अपनी कलीग से कहा|
"अरे कल वो व्रत था ना, उसमें तो सजना बनता था", मुस्कुराते हुए वह बोली|
"अच्छा, तो आप भी यह सब मानती हैं, मुझे लगा कि आप आजाद ख्याल की हैं", उसके लहजे में व्यंग्य था या सहानुभूति, वह समझ नहीं पायी|
"ऐसी बात नहीं है, मैं तो बस परंपरा निभाने के लिए ऐसा कर लेती हूँ| वैसे इसी बहाने थोड़ी शॉपिंग भी हो जाती है, पति से गिफ्ट भी मिल जाता है", थोड़ी सफाई सी देती हुए वह बोली|
"मतलब परंपरा की आड़ में सब कुछ…
Added by विनय कुमार on October 10, 2017 at 11:46am — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 5:33am — 8 Comments
ग़ज़ल २२१ २१२१ १२२१ २१२
------------------------------------
लूटा जो तूने है मेरा, अरमान ही तो है
उजड़ा नहीं है घर मेरा, वीरान ही तो है
वादा खिलाफ़ी शोखी ए खूबाँ की है अदा
आएगा कल वो क़स्द ये इम्कान ही तो है
सीखेगा दिल के क़ायदे अपने हिसाब से
वो शोख़ संगदिल ज़रा नादान ही तो है
नज़रे करम कि हुब्ब के कुछ वलवले…
Added by राज़ नवादवी on October 9, 2017 at 11:31pm — 14 Comments
"हाय मम्मी, कैसी है, तबियत ठीक है ना तुम्हारी और दवा रोज ले रही हो ना", रोज के यही सवाल होते थे सिम्मी के और उसका रोज का जवाब।
"अब वीडियो काल किया है तो देख ही रही है मुझे, मैं एकदम ठीक हूँ। अच्छा अभी कितना बज रहा है वहाँ पर", उसने अपनी दीवाल घड़ी को देखते हुए पूछा।
"रोज तो बताती हूँ, बस साढ़े तीन घंटे आगे चलती है घड़ी यहाँ, अभी शाम के सिर्फ सात ही बजे हैं"।
"मुझे याद नहीं रहता, हमेशा उलझ जाती हूँ कि हमारी घड़ी आगे है या तुम्हारी। और मेहमान आए कि नहीं अभी, छोटू कैसा है", उसने भी…
Added by विनय कुमार on October 9, 2017 at 5:54pm — 12 Comments
Added by SALIM RAZA REWA on October 9, 2017 at 3:30pm — 13 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 9, 2017 at 1:00pm — 11 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है
ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?
नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन
अगर पहन लिया’ वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |
हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले
नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |
किया करार बहुत आम से चुनावों में
वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?
हो’ वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी
उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 9, 2017 at 8:30am — 8 Comments
Added by दिनेश कुमार on October 9, 2017 at 6:18am — 20 Comments
Added by shashi bansal goyal on October 8, 2017 at 10:39pm — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 8, 2017 at 10:37pm — 4 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 8, 2017 at 7:00pm — 18 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
फिर जगी आस तो चाह भी खिल उठी
मन पुलकने लगा नगमगी खिल उठी
दीप-लड़ियाँ चमकने लगीं, सुर सधे..
ये धरा क्या सजी, ज़िन्दग़ी खिल उठी
लौट आया शरद जान कर रात को
गुदगुदी-सी हुई, झुरझुरी खिल उठी
उनकी यादों पगी आँखें झुकती गयीं
किन्तु आँखो में उमगी नमी खिल उठी
है मुआ ढीठ भी.. बेतकल्लुफ़ पवन..
सोचती-सोचती ओढ़नी खिल उठी
चाहे आँखों लगी.. आग तो आग है..
है मगर प्यार की, हर घड़ी खिल…
Added by Saurabh Pandey on October 8, 2017 at 1:00pm — 56 Comments
Added by TEJ VEER SINGH on October 8, 2017 at 12:02pm — 10 Comments
बिन पायल के,
साज बिना ये,
बाज रहा संगीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
राग बसंती, तान-तराने
सुमधुर गायन सकल घराने।
ये सोच रहा अनजाने,
मेरे ही मनमीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
सांझ-सबेरे प्रियतम मेरे
तरसाओ न चित-चोर चितेरे।
नयना बरसे अश्रु मेरे,
बिन प्रियतम ये प्रीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
मधुबन की ये संगत सारी
बिन पायल सब बाजी हारी।
अब कौन कहे मतवारी,
हारकर ये जीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
"मौलिक व…
ContinueAdded by BS Gauniya on October 8, 2017 at 8:15am — 6 Comments
Added by Mohammed Arif on October 7, 2017 at 11:30pm — 7 Comments
बहर-ए-रमल मुसम्मिन मक्सूर व मह्जूफ़
2122 2122 2122 2121
किसके चेह्रे पर लिखा है कौन दुश्मन यार कौन
क्या पता है आड में गुल की छुपा है ख़ार कौन
हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन
मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन
मर गया है मुफ़्लिसी में भूख से देखो अनाथ
सब ही खाते थे तरस लेकिन उठाता भार कौन
पेट भरने के लिए…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 7, 2017 at 9:30pm — 15 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |