212 212 212 212, 212 212 212 212
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जब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी /
लब तुम्हारी महब्बत में खो…
Added by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 9:00am — 21 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 6:30pm — 23 Comments
काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है
इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |
सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी
अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |
खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ
चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |
लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और
सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 7:30am — 8 Comments
बंद दरवाज़ा देखकर
लौटी है दुआ
आँख खुली तो जाना ख़्वाब और सच है क्या
धीमे-धीमे दहक रहे है
आँखों में गुजरे प्यार वाले पल
राख हो कर भी सपने
गर्म है
बुझे आँच की तरह
बर्फ में जमे अहसास
मानो धुव में ठहरे
दिन –रात की तरह
चुपी ओढे बैठी मैं
चेहरे पर सजाए मुस्कुराहट
प्यार का…
ContinueAdded by Rinki Raut on November 13, 2017 at 10:42pm — 4 Comments
३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...
मन चाहे करती रहूँ , दर्पण में शृंगार।
जब से अधरों को मिला, अधरों का उपहार।1।
अब सावन बैरी लगे, बैरी सब संसार।
जब से कोई रख गया, अधरों पे अंगार।2।
नैंनों की होने लगी , नैनों से ही रार।
नैन द्वन्द में नैन ही, गए नैन से हार।3।
जीत न चाहूँ प्रीत में , मैं बस चाहूँ हार।
'दे दे मेरी देह को', स्पर्शों का शृंगार।4।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:00pm — 14 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on November 13, 2017 at 5:51pm — 12 Comments
दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए
जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए
अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए
आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए
घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए
जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना
खुद ही…
Added by Alok Rawat on November 13, 2017 at 2:30pm — 17 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2017 at 11:41am — 13 Comments
2122 1122 1122 22
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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा
भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा
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जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना…
Added by SALIM RAZA REWA on November 13, 2017 at 11:00am — 24 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 13, 2017 at 10:57am — 15 Comments
Added by रामबली गुप्ता on November 13, 2017 at 8:07am — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 13, 2017 at 12:00am — 9 Comments
२१२२ २१२२ २१२
थोड़े थोड़े में गुजारा हो गया
मुश्तभर किस्सा हमारा हो गया
कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र
ख़्वाब अपना इक सितारा हो गया
चाँद की चाहत कभी हमने न की
एक जुगनू ही सहारा हो गया
छटपटाती देख बेघर सीपियाँ
दिल समन्दर का किनारा हो गया
बेवफा इस जिन्दगी ने फिर ठगा
इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया
बातों बातों हार बैठे दिल को हम
बेखुदी में बस ख़सारा हो…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 12, 2017 at 8:29pm — 22 Comments
Added by Samar kabeer on November 12, 2017 at 3:06pm — 29 Comments
Added by SALIM RAZA REWA on November 12, 2017 at 10:00am — 28 Comments
Added by Sushil Kumar Verma on November 12, 2017 at 9:33am — 7 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 12, 2017 at 7:43am — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on November 11, 2017 at 11:17pm — 12 Comments
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 11, 2017 at 10:50pm — 4 Comments
पीला माहताब ...
ठहरो न !
बस
इक लम्हा
रुक जाओ
मेरे शानों पे
जरा झुक जाओ
मेरे अहसासों की गठरी को
जरा खोलकर देखो
जज्बातों के ज़जीरों पे
हम दोनों की सांसें
किस क़दर
इक दूसरे में समाई हैं
मेरे नाज़ार जिस्म के
हर मोड़ पर
तुम्हारी पोरों के लम्स
मुझे
तुम्हारे और करीब ले आते हैं
थमती साँसों में भी
मैं तुम्हारी नज़रों की नमी से
नम हुई जाती हूँ
देखो
वो अर्श के माहताब को
हिज़्र…
Added by Sushil Sarna on November 11, 2017 at 8:33pm — 10 Comments
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