बस इतना मेरा जीवन
मैं बच्चों में बच्चे मुझमें
बस इतना मेरा जीवन
वो ही मेरा सोना-चाँदी
उनसे मेरा तन-मन-धन
आने वाले कल की सूरत
जिनकी रेखा खींच रहा
कल पक के धन्य-धान करेंगी
मैं वो फसलें सींच रहा
मैं बच्चों में बच्चे मुझमें
बस इतना मेरा जीवन
सुबह मिल अभिवादन करते
मन हो जाता बहुत प्रसन्न
होड़ लगाए बढ़-चढ़ आते
सर बजा दें टन-टन-टन |
मैं बच्चों में बच्चे मुझमें
बस इतना मेरा…
ContinueAdded by somesh kumar on November 30, 2014 at 11:50pm — 7 Comments
हम याद तुम्ही को करते थे,
छुप छुप के आहें भरते थे,
मदहोश हुआ जब देख लिया
सपनों में अब तक मरते थे.
रूमानी चेहरा, सुर्ख अधर,
शरमाई आँखे, झुकी नजर,
पल भर में हुए सचेत मगर,
संकोच सदा हम करते थे.
कलियाँ खिलकर अब फूल हुई,
अब कहो कि मुझसे भूल हुई,
कंटिया चुभकर अब शूल हुई,
हम इसी लिए तो डरते थे.
अब होंगे हम ना कभी जुदा,
बंधन बाँधा है स्वयं खुदा,
हम रहें प्रफुल्लित युग्म सदा,
नित आश इसी की करते…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on November 30, 2014 at 8:58pm — 22 Comments
२११२ २१२२ १२२१ २२१२ २२
लोग हुनरमंद कितने किसी को गुमाँ तक नहीं होता
आग लगाते वो कुछ इस तरह जो धुआँ तक नहीं होता
जह्र फैलाते हुए उम्र गुजरी भले बाद में उनकी
मैय्यत उठाने कोई यारों का कारवाँ तक नहीं होता
आज यहाँ की बदल गई आबो हवा देखिये कितनी
वृद्ध की माफ़िक झुका वो शजर जो जवाँ तक नहीं होता
मूक हैं लाचार हैं जानवर हैं यही जिंदगी इनकी
ढो रहे हैं बोझ पर दर्द इनका बयाँ तक नहीं होता
ख़्वाब सजाते…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 30, 2014 at 7:05pm — 23 Comments
ग़ज़ल के 4 अशआर
सन्नाटों पर खूब सितम बरपाती है
मेरे भीतर तन्हाई चिल्लाती है
संकल्पों के मन्त्र मैं जब भी जपता हूँ
मंज़िल मेरे और निकट आ जाती है
पूरी क्षमता से जब काम नहीं करता
मेरी किस्मत भी मुझ पर झल्लाती है
हर पल तुझ को याद किया करता हूँ मैं
याद विरह के दंशों को सहलाती है
मौलिक व अप्रकाशित ....
Added by Ajay Agyat on November 30, 2014 at 5:23pm — 9 Comments
बुद्ध हो गये क्या?
शुद्ध हो गये क्या?
मज़ाक मज़ाक में!
क्रुद्ध हो गये क्या?
उसको देख देख!
मुग्ध हो गये क्या?
सफेदी दिखी है!
दुग्ध हो गये क्या?
अपनों के पथ में!
रुद्ध हो गये क्या?
**************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on November 30, 2014 at 5:00pm — 12 Comments
पत्नी या प्रेमिका
चांद जैसी नहीं
सचमुच चाँद होती है
कभी लगती हेम जैसी
कभी देवि कालिका
कभी अंधकार
कभी मानस मरालिका
अंतस में अमिय-घट
स्वर्गंगा पनघट
राका एक छली नट
अभ्र बीच नाचे तू
चपला का शुभ्र पट
स्वयं में मगन इतना
शीतल तू आह कितना
सताये न अगन
चातक भी बैठा चुप
सहेजे निज लगन
सोलह कला चाँद में
अहो ! षोडश शृंगार में
अरे—रे---…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2014 at 3:00pm — 6 Comments
दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य
रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।
सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1
चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।
जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2
अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।
माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 30, 2014 at 12:00pm — No Comments
सहेजना
बिखराव में समझ आता है
सहेजे का मोल
मनचाही चीज़ जब
आसानी से नहीं मिलती तो
याद आती है माँ/पत्नी//बहन
सुबह-सुबह खाना पकाती
सेकेण्ड-सुई से रेस लगाती
हर पुकार पे प्रकट हो जाती
मुराद पूर्ण कर फिर जाती
कितना आसान बना देती है
ज़िन्दगी को,माँ/पत्नी/बहन
सहेजना एक कौशल है
पर रोज़-रोज़ एक जैसे
को सहेजना बिना आपा खोये
समर्पण है प्यार है त्याग है
औरतें रोज़ इन्हें सहेजती हैं
और एक…
ContinueAdded by somesh kumar on November 30, 2014 at 9:33am — 9 Comments
2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122
रात की काली सियाही जिंदगी में छा गई तो आप ही बतलाइये हम क्या करेंगे
चार दिन की चांदनी जब आदमी को भा गई तो आप ही समझाइये हम क्या करेंगे
जन्नतों के ख्वाब सारे टूटकर बिखरे हुए है, बस फ़रिश्ते रो रहे इस बेबसी को
दो जहाँ के सब उजालें तीरगी जो खा गई तो आप ही फरमाइये हम क्या करेंगे…
Added by मिथिलेश वामनकर on November 29, 2014 at 10:30pm — 21 Comments
जीवन जीने का चाव
जहां उग जाता है
कविता कहने का भाव
वहाँ से आता है
अनुभव के बाजारों से
जो लेकर आता हूँ
उसे ही कविता बना के
जीवन में, मैं गाता हूँ
सुख-दुःख हों जीवन के
चाहे हों उत्थान-पतन
सब कविता की कड़ियों में
छिपा लेता हूँ , करके जतन
जीवन में रहते हैं मेरे नव-रंग
कविता जब तुम होती हो संग-संग !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on November 29, 2014 at 9:00pm — 10 Comments
212 212 212 2122
जब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी
तेरे चेहरे पे मेरी निगाहें रहेंगी
कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना
बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी
चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना
मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी
हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे
इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी
अक्ल के शहर में आ गया एक पागल
कब तलक बेगुनाह को सजायें रहेंगी
आजकल बिक रही दौलतों से बहारें
बस अमीरें के घर में फिजायें…
Added by umesh katara on November 29, 2014 at 10:30am — 8 Comments
२२ २२ २२ २२
फेलुन - फेलुन - फेलुन - फेलुन
तनहा तनहा ही रहना है !
दर्द सभी अपने सहना है !!
रहता वो अपने मैं गुमसुम !
शांत नदी जैसे बहना है !!
उसको साथ मिला अपनों का !
अब उसको क्या कुछ कहना है
वो है नेता का साला तो !
क्या अब उसको भी सहना है !!
घर से जाते तुमने देखा !
कहिये उसने क्या पहना है !!
लड़का उसका बिगड़ा है तो !
घर फिर तो इसका ढहना है !!
"मौलिक और अप्रकाशित…
ContinueAdded by Alok Mittal on November 28, 2014 at 4:30pm — 13 Comments
मुझे जो कहना है कहूँगा
तुम चाहे जो सजा दो
छड़ी मार या तड़ी पार
फिर भी कहूँगा बारम्बार.
क्यों सपने दिखाते हो?
अपनी बातों में उलझाते हो
देश अब कराह रहा है
फिर भी तुम्हे सराह रहा है .
सपनों के साकार होने का
वख्त शायद आ गया है
अच्छे दिन कब आएंगे?
हर जेहन में आ गया है.
जिस उंगली ने वोट किया
वो अब उठने लगी है,
शायद तुन्हारी इक्षाशक्ति
तुमसे रूठने लगी है.
कुछ करो न चमत्कार
जिसे जनता करे स्वीकार
फिर होगी…
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 27, 2014 at 9:30pm — 22 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 27, 2014 at 8:55pm — 15 Comments
अच्छा नहीं होता गुस्सा
पर हो जाता है
मन में गुस्सा
जब कभी
मन माफिक नहीं होता
कोई भी काम
नहीं मानते
अपने ही कोई बात
फिर क्या करें ?
हो जाएँ मौन ?
फिर समझ पायेगा कौन?
आप सहमत हैं या असहमत
क्योंकि
लोग तो यही कहेंगे
मौनं स्वीकृति लक्षणं
मन में रखने से कोई बात
हो जाता नहीं तनाव ?
तनाव और गुस्सा
दोनों है हानिकारक
तनाव खुद का करता नुक्सान
गुस्सा खुद के…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on November 27, 2014 at 10:20am — 18 Comments
दो मित्र थे, |शेरबहादुर और श्रवणकुमार | नाम के अनुसार शेरबहादुर बहुत वीर और निर्भीक थे ,अन्धविश्वास से अछूते ,बिना विश्लेषण किसी घटना पर यकीन नहीं करते |दुसरे शब्दों में पुरे जासूस थे |बाल की खाल निकालना और अपनी और दूसरों की फजीहत करना उनका शगल था |श्रवणकुमार नाम के अनुसार सुनने की विशेष योग्यता रखते थे |एक तरह से पत्रकार थे ,मजाल है गाँव की कोई कानाफूसी उनके कानों से गुजरे बिना आगे बढ़ जाए |तीन में तेरह जोड़ना उनकी आदत थी इसलिए नारदमुनि का उपनाम उन्हें मिला हुआ था |पक्के अन्धविश्वासी और डरपोक…
ContinueAdded by somesh kumar on November 27, 2014 at 10:00am — 7 Comments
आज विधानसभा में मामला बहुत गर्म हो गया था। नेता विपक्ष के तो कपड़े तक फाड़ दिए। उनको धक्का-मुक्की में दो-चार थप्पड़-लात भी जड़ दिए गए।
"नेता जी, कल हमें आपका समर्थन चाहिए।"- मंत्री जी का फोन आया।
"कैसा समर्थन! हम कोई समर्थन-वमर्थन नहीं देंगें। कपड़े फाड़ने तक तो ठीक था लेकिन हमारी पिटाई भी हुई है।"- नेता जी ने नाराज होते हुए कहा।
"आपकी नाराजगी जायज है लेकिन कल अगर आपका समर्थन ना मिला तो हम सब की तनख्वाह ना बढ़ पाएगी।"
"अच्छा, पैसों की बात है! तो ठीक है हम मान जाते हैं…
Added by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:30am — 19 Comments
Added by Neeraj Nishchal on November 27, 2014 at 3:06am — 26 Comments
जैसे तुमने
तिनका तिनका जोड़ कर
धीरे-धीरे, बनाया अपना घोंसला
वैसे ही
तुमको देख-देख कर
बढ़ता रहा, मेरा भी हौसला
तुम एक- एक दाना चुग कर लायीं
अपने बच्चों को भोजन कराया
मैंने भी, वेसे ही खेतों में फसल लगायीं
दिन रात श्रम कर अन्न उगाया
धीरे धीरे रेत,बजरी ,सीमेंट ले आया
एक- एक ईंट जोड़कर
अपने सपनों का महल बनाया
जिस तरह तुमने अपने बच्चों को
उनके पैरों पर खड़ा किया
उड़ना सिखाया , उड़ा दिया, विदा किया…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 10:30pm — 28 Comments
अच्छा लगता है
पुरखों को याद करना ,
उनकीं कथाएं , उनकीं उब्लब्धियाँ ,
सुनना और बयान करना ॥
एक गौरवपूर्ण अतीत और
उसकी सुनहरी स्मृतियाँ ॥
और , सुन्दर सपने देखना ,
फिर कोई भगीरथ आएगा
गंगा क्या , इस बार स्वर्ग ही
धरती पर उतार लाएगा ॥
अभी से दलाल या ठेकेदार
ढूँढ लो , उसके संपर्क में रहो,
स्वर्ग का टिकट वही न दिलाएगा ॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2014 at 10:30pm — 16 Comments
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