Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2012 at 7:00pm — 13 Comments
महाभुजंगप्रयात सवैया :-
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नहीं रास आईं वफ़ायॆं किसीकॊ, अनॆकॊं चलॆ हैं उसी राह राही !!
किनारॆ खड़ॆ दॆखतॆ हैं तमाशा,हमारी वफ़ा का सिला यॆ तबाही !!
पुकारा कई बार था नाम लॆकॆ,खुदाकी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 4, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
"आज के अखबार में प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम निकला है" जैसे ही हौस्टल में यह बात देवारती को पता चली, बेतहाशा दौड़ पड़ी लाईब्रेरी की ओर, अखबार उठा सारे रोलनंबर देखे, हर पंक्ति ऊपर से नीचे, दाएं से बाएँ, एक बार, दो बार, बार बार, पर उसका तो रोल नंबर ही नहीं था. उसके पैरों तले तो जैसे ज़मीन ही खिसक गयी. अपनी आखों पर यकीन नहीं हुआ, बुझे मन से भारी क़दमों से बाजार जा कर फिर से अखबार खरीदा, एक एक रोल नंबर पेन से काटा, कहीं उलट पलट जगह न छप गया हो. एक घंटा बीत गया, पर नहीं मिला उसका नंबर,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 4, 2012 at 12:30pm — 15 Comments
थकी हुयी शतरंज का, मैं पिटा हुआ इक दांव हो गया
Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
पेट के कहने में फिर हम आ गए
पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए
माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी
छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------
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ऑफिस का रिक्शा पापा का और मदिर वो घंटा - घंटी
अम्मा की हर बात रटी थी हमको बरसों पंक्ति पंक्ति …
Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 9:30pm — 1 Comment
काम से तो रोज घूमे काम बिन भी घूम बन्दे |
नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे ||
बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -
कुछ करो या ना करो हर ठाँव को ले चूम बन्दे ।|
बेवफा है जिंदगी इसको नहीं ज्यादा पढो अब -
दर्शनों में आजकल मचती रही यह धूम बन्दे ।|
दे उड़ा…
ContinueAdded by रविकर on December 3, 2012 at 8:54pm — 2 Comments
चारो ओर, खड़े है सैनिक
युद्ध में जीत दिलाने को
शोक करुणा से, अभिभूत है अर्जुन
देख, रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारों को
खड़े हुए है अब कृष्णा
उसे शोक से मुक्त कराने को
देहान्तरं की प्रक्रिया कैसी
संक्षेप में ये समझाने को
अजर अमर है जीवात्मा
स्मरण रखना इस ज्ञान को
खड़ा हो जा धनुष उठा
अपना धर्म निभाने को
मरे हुओ को मार डालना
जग में नाम कराने को
अपने पराये से मुहँ मोड़ लो
पाप पुण्य की चिंता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 3, 2012 at 5:42pm — 3 Comments
उस बस में जगह की वैसी ही किल्लत थी, जैसी मुंबई में पानी की है ! पर ये किल्लत मेरे पहुँचने के बाद हुई, इसलिए मुझे सीट मिल गई थी, और मै बैठा था ! अगला स्टॉपेज आया, यहाँ पर्याप्त लोग उतर गए, कुछ चढ़े भी, पर उतरने की मात्रा ज्यादा थी ! इसलिए अब बस में कुछ हल्कापन था ! बस में चढ़ने वालों में एक लड़की भी थी, जोकि मेरे पास आकर बोली, “थोड़ी जगह मिलेगी?” मै अपनी जगह से जरा सा खिसककर उसको जगह दिया ! उस लड़की के तत्काल बाद, याकि उसके पीछे ही एक लड़का भी बस में चढ़ा, उस लड़के के विषय में मुझे अजीब बात ये लगी…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 11:00am — 13 Comments
तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,
हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।
हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,
कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।
गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,
अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।
मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,
हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।
बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,
के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।
कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,
कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं…
Added by इमरान खान on December 2, 2012 at 10:30pm — 19 Comments
21 2221 2221 2221 2
यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|
आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।
कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -
थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।
आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।
वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते
कौन किसकी इन्तजारी कर…
Added by रविकर on December 2, 2012 at 9:24pm — 15 Comments
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सीप में मोती.
पिय प्रेम हृदय.
जागृत ज्योति.
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दुख के शूल.
गुलदस्ता जीवन.
प्रेम के फूल.
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प्रेम शरण.
तिमिर में किरण.
गुरु चरण.
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अभिन्न मित्र.
सुरम्य लय ताल.
बंध पवित्र.
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है ज़रुरत.
अनकहा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 8:27pm — 24 Comments
पिकहा बाबा ----प्रेस वार्ता
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 2, 2012 at 5:58pm — 6 Comments
तीन दुर्मिल सवैया छंद :-
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(1)
चित चॊर चकॊर मरॊर दई, झकझॊर दई पँसुरी पँसुरी,
कस माखनचॊर गही बहियां, चटकाइ दई अँगुरी अँगुरी,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 2, 2012 at 1:30pm — 14 Comments
Added by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 1:26pm — 14 Comments
ओ. बी. ओ. के सभी गुरुजनों, मित्रों एवं पाठकों को मेरा विन्रम प्रणाम. आज ओ. बी. ओ. पर काफी दिनों के बाद मेरा आना हुआ है. और ऐसा महसूस हो रहा है कि एक भूला-भटका राही अपने खुशहाल घर वापस आ गया, जहाँ बड़ों का आशीष है, स्नेह है, सहयोग है और कदम- 2 पर साथ है. हाइकु लिखने की पहली कोशिश है मालुम नहीं ठीक है या गलत, आशा करता हूँ कि आप सब मार्गदर्शन अवश्य करेंगे.
सादर
अरुन शर्मा
पराया धन
बढ़ाता परेशानी
मन में चिंता
बुरी नज़र
जलाती तिल…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 11:30am — 12 Comments
रवि किरणों को कंटक सम चुभता
नोच डाला गिद्धों ने जो गिरी का बदन
करते हैं दोहन उसकी भुजाओं का
कैसे दिखाए नदी शिव को अपना वदन
जब चाहा संहार किया काटी ग्रीवा
आज चुपचाप बिलखते हैं अरण्य सघन
मासूम गंगा की छीन ली पावनता
बहाते गन्दगी धुलते मैले कुचैले वसन
शून्य धरा शून्य अम्बर बचा क्या
प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन
क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को
कुछ तो बचा लो ,सुनो क्या कहे …
ContinueAdded by rajesh kumari on December 2, 2012 at 10:34am — 10 Comments
जो हमें बरसों से हरदम चीट ही करते रहे
मसअले दर मसअले वो ट्वीट ही करते रहे
खर्च करने के लिए इमदाद में आई रकम
पंचतारा होटलों में मीट ही करते रहे
जो हमें समझा किये कीड़े मकोडों की तरह
हम खुदा की तरह उनको…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 2, 2012 at 8:50am — 9 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on December 1, 2012 at 10:58pm — 8 Comments
बहर : २१२ २१२ २१२ २१२
बरगदों से जियादा घना कौन है
किंतु इनके तले उग सका कौन है
मीन का तड़फड़ाना सभी देखते
झील का काँपना देखता कौन है
घर के बदले मिले खूबसूरत मकाँ
छोड़ता फिर जहाँ में भला कौन है
लाख हारा हूँ तब दिल की बेगम मिली
आओ देखूँ के अब हारता कौन है
प्रश्न इतना हसीं हो अगर सामने
तो फिर उत्तर में नो कर सका कौन है
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 1, 2012 at 8:30pm — 13 Comments
Added by लतीफ़ ख़ान on December 1, 2012 at 6:28pm — 13 Comments
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