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December 2019 Blog Posts (53)

नववर्ष की शुभकामनाएं (मत्तगयंद छंद)

स्वागत हेतु सजी धरती उर में बहु सौख्य-समृद्धि पसारे

राग विराग हुआ सुर सज्जित हर्षित अम्बर चाँद सितारे

भव्य करो अभिनन्दन वन्दन लेकर चन्दन अक्षत प्यारे

स्नेह लिए नव अंकुर का अब द्वार खड़ा नव वर्ष तुम्हारे।।1

नूतन भाव विचार पले जड़ चेतन में निरखे छवि प्यारी

एक नया दिन जीवन का यह, हो जग स्वप्निल मंगलकारी

ओज अनन्त बसे सबके हिय राह नई निरखें नर नारी

दैविक दैहिक कष्ट न हो वरदान सुमंगल दें त्रिपुरारी।।2

प्यार दुलार करें सबसे नित, दुश्मन को हम…

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Added by नाथ सोनांचली on December 31, 2019 at 6:00pm — 12 Comments

नव वर्ष के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

सँस्कार की  नींव  हो, उन्नति  का प्रासाद

मन की ही बंदिश रहे, मन से हों आजाद।१।



लगे न बीते साल  सा, तन मन कोई घाव

राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।२।



धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान

शक्तिहीन अन्याय  हो, न्याय बने बलवान।३।



घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल

और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।४।



मदिरा में ना डूब कर, भजन करें भर रात

नये साल  की  दोस्तों, ऐसे  हो  शुरुआत।५।



स्नेह संयम विश्वास का,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2019 at 6:12am — 16 Comments

बड़ा दिन हो मुबारक

ईसा का जन्मदिन है जहां भर को मुबारक

मग़रिब के बिरादर ये बड़ा दिन हो मुबारक

क्रिसमस के है जश्नों में बहुत शाद ज़माना

सड़कें हैं ढकी बर्फ़ से और गर्म मकां हैं

इशरत का है आराम का सामान मुहइया

चीजों से लबालब लदे बाज़ार-ओ-दुकां हैं

हासिद तो नहीं हैं तेरी ख़ुश-क़ीस्मती से हम

सोचा है कभी दौलतें आईं ये कहाँ से

तुम लूट के जो ले गए सोने की थी चिड़िया

तहज़ीब-ओ-अदब तुमने मिटा डाले जहाँ से

क़ाबिज़ थे हुक़ूमत थी जहाँ पर भी तुम्हारी…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on December 30, 2019 at 12:30pm — 10 Comments

जांच की रिपोर्ट

लड़की को डायरिया थी।आज उसे इस तीसरे नामी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।रिपोर्ट की फाइलें साथ थीं।घरवाले परेशान थे,पर हॉस्पिटल तो जैसे देवालय हो।सब लोग बड़े आराम से अपनी अपनी ड्यूटी में लगे थे।डॉक्टर आया।सुना था कि बड़ा डॉक्टर है।उसने सरसरी निगाह से कुछ ताजा रिपोर्टें देखी।फिर दवाएं लिखने लगा।तीमारदारों में से एक ने यूरिन कल्चर की रिपोर्ट की तरफ इंगित करना चाहा,पर डॉक्टर ने कोई तवज्जो नहीं दी।दवाएं लिख दी।इलाज शुरू हुआ।लड़की की तबीयत बिगड़ती ही गई।पेट फूलता जा रहा था।फिर रात को घरवालों ने…

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Added by Manan Kumar singh on December 29, 2019 at 12:42pm — 2 Comments

तरही ग़ज़ल

जब अँधेरा ये मिटाने को सितारा निकला l

चाँद पीछे न रहा बन के हमारा निकला



उसने जब तक न सुनाई थी कहानी हमको

कौन हमको ये बताता वो सहारा निकला



हम तो निकले थे ज़माने को दिखाने उल्फ़त

पर हकीक़त में वही प्यार तुम्हारा निकला



सोच कर बात सुनाई है मगर फिर भी क्यूँ,

राहरौ और ग़लत उनका इशारा निकला



इस यकीं से ही उमीदों को जगाया हम ने

“तुझ से ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला”



जिंदगी हमने उधारी न गुज़ारी…

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Added by मोहन बेगोवाल on December 29, 2019 at 8:30am — 1 Comment

ठूंठ - लघुकथा -

ठूंठ - लघुकथा -

राम दयाल अपनी घर वाली की जिद के आगे झुक गया। हालांकि उसकी दलील इतनी मजबूत तो नहीं थी लेकिन वह घर में किसी प्रकार की क्लेश नहीं चाहता था। उसकी घर वाली का मानना था कि उसके सासु और ससुर की वजह से उसके बेटे की शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था।

अतः वह चाहती थी कि सासु ससुर जी को वृद्धाश्रम भेज दो।

आज मजबूरन राम दयाल उन दोनों को वृद्धाश्रम छोड़ कर घर वापस जा रहा था।लेकिन उसका मन इस कृत्य के लिये उसे धिक्कार रहा था।

वृद्धाश्रम से बाहर जैसे ही वह मुख्य सड़क…

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Added by TEJ VEER SINGH on December 28, 2019 at 1:37pm — 8 Comments

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...

स्मृति घरौंदों में तेरा मैं

कालजयी श्रृंगार करूँ

अभिलाष यही है अंतिम पल तक

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ



श्वास सिंधु के अंतिम छोर तक

देना मेरा साथ प्रिय

उर -अरमानों के क्रंदन का

कैसे मैं परिहार करूँ

अभिलाष यही है अंतिम पल तक

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ



मेरी पावन अनुरक्ति का

करना मत तिरस्कार प्रिय

दृग शरों के घावों का मैं

कैसे क्या उपचार करूँ

अभिलाष यही…

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Added by Sushil Sarna on December 27, 2019 at 6:30pm — 6 Comments

दंगाइयो से मेरी विनती

क्या तुम्हारा जमीर ना जागता

क्यों घायल किसी को करते हो

पुलिस वाले भी अपने भाई-बंधु

पत्थर उनको क्यूँ मारते हो ||

 

विरोध करना, विरोध करो तुम

संविधान अधिकार ये देता है

उपद्रव ना मचाने की

हिदायत भी संविधान हमारा देता है ||



उपद्रव का ना मार्ग चुनो

शांति से विरोध करो

पुलिस करती रखवाली हमारी

उस पर बेवजह ना वार करो ||



दिन रात करती हमारी…

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Added by PHOOL SINGH on December 26, 2019 at 3:21pm — 4 Comments

गीत: तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये!

जब पीड़ा आसुओं को मात दे,

और संभाले ना संभले मन।

जब यादें मेरी दिल पर दस्तक दें,

और बेचैन हो ये अंतर्मन।

तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये,

मैं आऊँगी भाव बनकर ज़रूर।

जब मेरी कमी तुमको खले,

और खोजे अक्श मेरा तुम्हारा मन।

जब बोझिल हो रातें काटे ना कटे,

और नींद से आँख-मिचौली खेले नयन।

तब तुम कोई सपना सजाना प्रिये,

मैं आऊँगी तुमसे मिलने ज़रूर।

जब पतझड़ में झड़ते हो पत्ते पुरातन,

और लहरों को देख विचलित हो मन।…

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Added by Dr. Geeta Chaudhary on December 26, 2019 at 2:00pm — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ग़ज़ल - पत्थरों से रही शिकायत कब ? // --सौरभ

२१२२ १२१२ २२/११२

 

अब दिखेगी भला कभी हममें..

आपसी वो हया जो थी हममें ?

 

हममें जो ढूँढते रहे थे कमी

कह रहे, ’ढूँढ मत कमी हममें’ !

 

साथिया, हम हुए सदा ही निसार

पर मुहब्बत तुम्हें दिखी हममें ?

 

पूछते हो अभी पता हमसे

क्या दिखा बेपता कभी हममें ?

 

पत्थरों से रही शिकायत कब ?

डर हथेली ही भर रही हममें !

 

चीख भरने लगे कलंदर ही..

मत कहो, है बराबरी हममें !

 

नूर ’सौरभ’…

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Added by Saurabh Pandey on December 25, 2019 at 11:30pm — 8 Comments

ऐ मेरे दोस्त मोहब्बत को बचाए रखना   - सलीम 'रज़ा' रीवा

ऐ मेरे दोस्त मोहब्बत को बचाए रखना  

दिल में ईमान की शम्अ' को जलाए  रखना

-  

इस नए साल में खुशियों का चमन खिल जाए

सबको मनचाही  मुरादों का सिला मिल जाए

इस नए साल में खुशियों की हो बारिश घर घर

इस नए साल को ख़ुश रंग बनाए रखना

-

जान पुरखों ने लुटाई है वतन की ख़ातिर

गोलियाँ सीने में खाई है वतन की ख़ातिर

सारे धर्मों से ही ताक़त  है वतन  की मेरे

सारे धर्मों की मोहब्बत को बनाए रखना

-  

ज़ात के नाम पे दंगों को…

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Added by SALIM RAZA REWA on December 24, 2019 at 7:00pm — 2 Comments

एक भिखारिन की वेदना

जाने कैसी विडम्बना जीवन की

जो इस दशा आ गिरी

ना कोई हमदर्द अपना

ना ही मेरा साथी कोई, ना किसी ने वेदना सुनी ||  

 

आते-जाते सब देखते

मिलता ना अब तक बिरला कोई

मेरी सुने कभी अपनी सुनाये

आत्मीयता से मिले कभी ||

 

ना क्षुधा मुझे किसी के धन की

ना लोभ भी मन में कोई

कहीं पड़ा मिल जाता पाथेय

उससे अपना पेट भरी ||

 

आमूल तक मै टूट चुकी

महि मुझको कोष रही

व्रजपात…

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Added by PHOOL SINGH on December 24, 2019 at 12:56pm — 1 Comment

३ क्षणिकाएँ ....

३ क्षणिकाएँ ....


बाहर
प्रचंड तूफ़ान
संघर्ष का
अंतस में
शब्दहीन
गहरा सागर
स्पर्श का

अनुबंध
खंडित  हुए 
बाहुबंध
मंडित हुए
मौन सभी
दंडित हुए

प्रश्न
विकराल थे
उत्तरों के जाल थे
गोताखोर
विलग न कर सका
आभास को
यथार्थ से
अंत तक

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 23, 2019 at 7:30pm — 6 Comments

सच सच बोलो आओगी ना

सच सच बोलो आओगी ना

जब सूरज पूरब से पश्चिम

तक चल चल कर थक जाएगा

और जहाँ धरती अम्बर से

मिलती है उस तक जाएगा

चारो ओर सुनहला मौसम

और सुनहली लाली होगी

और लौटते पंछी होंगें

खेत-खेत हरियाली होगी 

 

दिन भर के सब थके थके से

अपने घर को जाते होंगे

कभी झूम कर कभी मन्द से

पवन बाग लहराते होंगे 

 

तुम भी उसी बाग के पीछे

आकर उसी आम के नीचे

झूम-झूम कर मेरे ऊपर

तुम खुद को लहराओगी ना

सच सच बोलो…

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Added by आशीष यादव on December 22, 2019 at 10:30pm — 4 Comments

प्रदिप्ति

ज़िंदगी में रह गया है अपनी तो बस अब यही

प्रदीप्ति में तुम रहो रहोगे,तिरगी में हम सही

 

किसको किससे प्यार कितना, क्या करोगे जानकर

उसका मुझसे कुछ है ज्यादा, औऱ मेरा कम सही

 

आ चलें मंदिर में,औऱ सौगंध खा कर ये कहें

साथ गर टूटेगा अगर तो, हम नहीं या तुम नहीं

 

पी रहे हो रात दिन, होकर मगन क्या सोचकर

बादा है जान लो तुम,आब-ए ये जमजम…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 20, 2019 at 12:00pm — 1 Comment

फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा है


फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा है।
तेरी यादों में गोते खा रहा हूँ
हवा हौले से छूकर जा रही है।
तेरी खुशबू में भीगा जा रहा हूँ।


लिपट कर चाँदनी मुझसे तुम्हारे
बदन का खुशनुमा एह्सास देती
कभी तन्हा अगर महसूस होता
ढलक कर गोद में एक आस देती


नहीं हो तुम मगर ये सब तुम्हारे
यहाँ होने का एक जरिया बने हैं
समा पाऊँ तेरी गहराइयों में
हवा खुशबू फ़लक दरिया बने हैं। 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by आशीष यादव on December 20, 2019 at 10:13am — 2 Comments

तुमने उसकी याद दिला दी

जाने अनजाने में कितनी

जिसे सोचते रातें काटीं

लम्हों-लम्हों में किश्तों में

जिनको अपनी साँसें बाटीं

कभी अचानक कभी चाहकर

जिसे ख़यालों में लाता था

और महकती मुस्कानों पर

सौ-सौ बार लुटा जाता था 

उसकी बोली बोल हृदय में

तुमने जैसे आग लगा दी

तुमने उसकी याद दिला दी



अँधियारी रजनी में खिलकर

चम-चम करने लगते तारे

इक चंदा के आ जाने से

फ़ीके पड़ने लगते सारे

शीतल शांत सजीवन नभ में

रजत चाँदनी फैलाता था

तम-गम में भी…

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Added by आशीष यादव on December 20, 2019 at 10:00am — 4 Comments

अहसास ...

अहसास ...

देर तक
देते रहे
दस्तक
दिल के दरवाज़े पर
वो अहसास
जो तुम
अपनी आँखों से
छोड़ गए थे
मेरी आँखों में
जाते वक्त

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 19, 2019 at 7:30pm — 4 Comments

मोहे पिया मिलन की आस-

झूम के बरख़ा बरसी है ऐसे

जैसे दिन आया हो कोई ख़ास

मेरा तन भी भीगा मन भी भीगा

जगी अब पिया मिलन क़ी आस

 

पवन वेग से जल क़ी बूंदे कुछ

पूरब से पश्चिम तक हैं जाती

और पिया के सन्देशों को मेरे

अन्तर्मन की तह तक पहुँचाती

 

इससे पहले रुक जाए बरख़ा

तुम जल्दी घर आ जाओ ना

तप्त ह्रदय की ज्वाला की तुम

अपने नेह से प्यास बुझाओ ना

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

- प्रदीप…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 19, 2019 at 4:41pm — 2 Comments

फिर क्रोध में राम

अभी जरा मैं धनुष सजा लूं  फिर आता हूँ  

विष से थोड़े विशिख बुझा लूं फिर आता हूँ I

 

सोने की लंका बनती है तो  बन जाने दो

रावण का डंका घहराता है  घहराने  दो

धर्म शास्त्र खंडित होते हैं  मत घबराओ  

छा रहा यज्ञ का धूम मलिन तो  छाने दो

 

लेकिन हो रहा सतीत्व हरण यदि नारी का

लूटा  जाता है सर्वस्व किसी  सुकुमारी का

तो अग्निबाण  मेरा अणु-बम सा फूटेगा

मैं प्रत्यंचा खींच धनुष की अब आता हूँ I

 

 

राक्षस था…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2019 at 8:30pm — 9 Comments

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