२१२२ २१२२ २१२२ २१२
दिल मेरा ख़ाली नहीं ज्यों कस्रते आज़ार से
है फुगाँ मजबूर अपनी फ़ितरते इसरार से //१
लाख समझाऊँ तेरी तब-ए-सितम को प्यार से
तू मुकर जाता है अपने वादा-ए-इक़रार से //२
वस्ल की तश्नालबी बढ़ जाती है दीदार से
कम नहीं फिर दिल ये चाहे सुहबते बिस्यार से //३
आ गए जब तंग हम हर वक़्त की गुफ़्तार से
सीख ली हमने ज़ुबाने ख़ामुशी…
Added by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 3:51am — 8 Comments
2122 2122 2122 212
आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है
है सभी में दाग दुनिया को बताता कौन है
काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल
आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है
आंधियाँ तूफान लाते है तबाही हर जगह
दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है
देश में शोषण किसानों का हुआ अब तक बहुत
दाल रोटी दो समय उनको दिलाता कौन है
बात मेठानी सुनो सबकी सदा तुम ध्यान से
भय हमारी जिन्दगी से अब भगाता कौन है
( मौलिक…
ContinueAdded by Dayaram Methani on December 12, 2018 at 10:00pm — 8 Comments
1212,1122,1212,22/112
तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से।
हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से।
चराग़ ही के तले क्यों अंधेरा होता है,
ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से।
वो सूखती हुई बेलों को सींचकर देखें,
ख़ुदा मिला है किसे घंटियाँ बजाने से।…
Added by Balram Dhakar on December 12, 2018 at 9:55pm — 14 Comments
'दूरदृष्टि'
"बच्चा ऑपरेशन से ही होगा, और कोई ऑप्शन नहीं है। यही कहा था न आपने! क्या सिर्फ कुछ ज्यादा रुपयों के चक्कर में?" उसकी आवाज में झलकता आवेश सहज ही महसूस हो रहा था। बीती रात ही डॉ. कामना ने नर्सिंग होम में भर्ती हुई कावेरी को उसकी नाजुक हालत के देखते ऑपरेशन की सलाह दी थी। लेकिन किसी आपात स्थिति के चलते उसे ख़ुद अपना चार्ज डॉ.अनु को देकर जाना पड़ा था। और अनु के चार्ज में बिना ऑपरेशन के ही सामान्य डिलीवरी का होना ही उसके आवेश में आने की के लिये पर्याप्त था। "देखिये, ये कोई बड़ी बात…
ContinueAdded by VIRENDER VEER MEHTA on December 12, 2018 at 9:29pm — 4 Comments
1212 1122 1212 22
हर एक शख्स को मतलब है बस ख़ज़ाने से ।
गिला करूँ मैं कहाँ तक यहां ज़माने से ।।
कलेजा अम्नो सुकूँ का निकाल लेंगे वो ।।
उन्हें है वक्त कहाँ बस्तियां जलाने से ।।
न पूछ हमसे अभी जिंदगी के अफसाने ।
कटी है उम्र यहां सिसकियां दबाने से ।।
मैं अपने दर्द को बेशक़ छुपा के…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 12, 2018 at 9:08pm — 4 Comments
‘बाबू जी, ग्यारह महीने हो गए, मगर अब तक मुझे पेंशन, बीमा, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण कुछ भी नहीं मिला I
‘मिलेगा कैसे अभी स्वीकृत ही कहाँ हुआ ?’
‘पर काहे नहीं हुआ ? हमने तो रिटायर होने के छः माह पहले ही सारे प्रपत्र भर कर दे दिए थे I’
‘ज्यादा भोले मत बनो, तुमने भी साठ साल की उम्र तक नौकरी की है I तुम्हें नहीं पता सरकारी काम–काज कैसे होता है ?’
‘पता है बाबू जी, इसीलिये मैंने आपको पैसे पहले ही दे दिए थे I ‘
‘हां, तो तुम्हे फंड तो मिल गया न…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2018 at 8:55pm — 7 Comments
देर तक ....
तुन्द हवाएँ
करती रही खिलवाड़
हर पात से
हर शाख से
देर तक
रोती रही
बेबस चिड़िया
टूटे अण्डों के पास
देर तक
हो गई शान्त
हवाएँ
प्रकृति से
अपना खिलवाड़ करके
हो गया शान्त
रुदन
चिड़िया का
कुछ न समझ सकी
खेल विधाता का
सृजन से पूर्व संहार
क्या यही है
संसार
बस देखती रही
बिखरे तिनके
टूटे अंडे
स्वप्न के अवशेष
देर तक
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 12, 2018 at 7:30pm — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
जह्र बनके काम करती है दवाई देख ली
अच्छे अच्छों की भी हमने रहनुमाई देख ली //१
पीठ पीछे मर्तबा ए बे अदाई देख ली
तेरी भी मेहमाँ नवाज़ी हमने, भाई देख ली //२
आरज़ी थी दो दिनों की जाँ फ़िज़ाई देख ली
इश्क़ की ताबे जुनूने इब्तिदाई देख ली //३
दिन को सोना और शब की रत-जगाई देख ली
मय की जो भी कैफ़ियत थी इंतिहाई देख ली…
Added by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 6:38pm — 2 Comments
2122 1122 1122 22/ 112
बज़्मे अग्यार में नासूरे नज़र होने तक
क्यों रुलाता है मुझे दीदा-ए-तर होने तक //१
कितने मुत्ज़ाद हैं आमाल उसके कौलों से
टुकड़े करता है मेरा लख़्ते जिगर होने तक //२
गिर के आमाल की मिट्टी में ये जाना मैंने
तुख़्म को रोज़ ही मरना है शज़र होने तक //३
मौत का ज़ीस्त में मतलब है अबस हो जाना
ज़िंदा हूँ हालते…
Added by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 2:30pm — 13 Comments
छलकते देख कर आँसू ग़मों की प्यास बढ़ जाये
कभी ऐसा भी मौसम हो चुभन की आस बढ़ जाये।१।
लगे ठोकर किसी को भी न चाहे घाव खुद को हो
मगर देखें तो दिल में दर्द का अहसास बढ़ जाये।२।
भला कब चाहते हैं ये जिन्हें हम शूल कहते हैं
मिटे पतझड़ चमन का साथ ही मधुमास बढ़ जाये।३।
लगाई नफरतों ने है यहाँ हर सिम्त ही बंदिश
घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये।४।
रखो ये ज्ञान भी यारो जो चाहत घुड़सवारी की
नहीं घोड़ा सँभलता है अगर जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2018 at 12:36pm — 6 Comments
फिर ज़िंदगी से अपनी पहचान हो न जाए
साँसों का आना जाना आसान हो न जाए
अपनी शनावरी पे इतरा न ऐ शनावर
शोहरत का ये समुंदर दालान हो न जाए
इस बार भी मैं दफ़्तर ताख़ीर से गया तो
डर है कि नौकरी का नुक़सान हो न जाए
मज़लूम पे सितम के तुम ती मत चलाओ
अशकों से रेज़ा रेज़ा चट्टान हो न जाए
अपना समझ के जिस की देहलीज़ चढ़ रहा हूँ
यारों कहीं वो हम से अंजान हो न जाए
"सुरख़ाब"उड़ न जाएें यादों के ये कबूतर
दिल का…
ContinueAdded by Surkhab Bashar on December 12, 2018 at 11:00am — 1 Comment
1222 1222 1222
सुकूँ वो उम्र भर पाया नहीं करतें।
बड़ों की बात जो माना नहीं करतें।।
बुजुर्गों की नसीहत ये पुरानी है।
बिना सोचे कभी बोला नहीं करतें।।
सफल होते हमेशा लोग वो ही जो।
किसी की बात सुन बहका नहीं करतें।।
जिन्हें आदत हमेशा जीतने की हो।
वो मैदां छोड़ कर भागा नहीं करतें।।
हमेशा से रहा इक ही उसूल अपना।
किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by surender insan on December 11, 2018 at 4:30pm — 14 Comments
अवाक् रह गया, देख जाम को
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा
जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ
ऐसा उपाय कोई खोज रहा ||
बस स्टैंड और प्लेटफॉर्म पर
जीवन, लोगों का बीत रहा
देश के सारे एयरपोर्ट पर
ना, दिन रात का भेद रहा
भगदड़ सी इस जिंदगी में
जैसे, इंसान खो सा गया
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा
आश्चर्य से सब देख रहा ||
बस भीड़ से भरी पड़ी
रेलें भी सारी लधी पड़ी
मोटरबाइक की झड़ी लगी
और कार रोड़ पर पार्क…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 4:00pm — 3 Comments
ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)
(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)
प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l
यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l
बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में
शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l
यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी
रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l
उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी
धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l
रह पाता है कोई सदा कब दुनिया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on December 11, 2018 at 11:22am — 9 Comments
प्रेमी बोला , ' आओ प्यार की कुछ बातें करें .'
' हाँ यह हुई न बात . चलो करो .' प्रेमिका ने सहमति से सिर हिलाया .
' तो फिर रूठो .' प्रेमी ने कहा
" बात तो प्यार की हुई है , रूठने को क्यों कहा . " प्रेमिका इठलाई .
" रूठोगी नहीं तो तो प्यार की बातें करके तुम्हें मनाऊंगा कैसे . " प्रेमी ने समस्या रखी .
' पर रूठना तो तो मुझे आता नहीं है .' प्रेमिका इतराई
" तुम दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाओ . मैं जब बुलाऊँ तो मेरी तरफ देखना मत . "
" ये क्या बात…
ContinueAdded by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on December 10, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
दिखे हरसूँ अँधेरा है
कहाँ जाने सवेरा है
नहीं दिखता कहीं रस्ता
कुहासा है घनेरा है
हुनर सीखें नए कैसे
गुरु बिन आज चेरा है
चुराता जा रहा साँसें
समय है या लुटेरा है
बनाता है जो इंसा को
ये जीवन वो ठठेरा है
नहीं शिकवा है साँपों से
डसे जाता सपेरा है
नहीं घर रास है मुझको
दिलों में ही बसेरा है
तेरा क्या और क्या मेरा
चले माया का फेरा…
ContinueAdded by अजय गुप्ता 'अजेय on December 10, 2018 at 7:30pm — 5 Comments
हार हार का टूट चुका जब
तुमसे ही आश बाँधी है
मैं नहीं तो तुम सही
समर्थ जीवन की ठानी है||
मजबूर नहीं मगरूर नहीं मैं
मोह माया में चूर नहीं मैं
साथ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 10, 2018 at 4:30pm — 1 Comment
रंगहीन ख़ुतूत ...
तन्हाई
रात की दहलीज़ पर
देर तक रुकी रही
चाँद
दस्तक देता रहा
मन
उलझा रहा
किसका दामन थामूँ
अर्श के माहताब का
पलकों के ख्वाब का
या ज़ह्न के सैलाब का
सवाल
गर्म लावे से
उबलते रहे
जवाब
तन्हाई में
सुबकते रहे
मैं ज़ीना-ज़ीना
ज़ह्न के सन्नाटों में
उतरती रही
अपनी ही साये में
बिखरती रही
बस रहे गए हाथ में
अर्थहीन अलफ़ाज़ के
रंगहीन ख़ुतूत…
Added by Sushil Sarna on December 10, 2018 at 2:00pm — 8 Comments
व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*
सबके अपने-अपने मठ हैं
दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,
और कहीं पर वे तिरसठ हैं
*फेसबुक
रंग निराले, ढंग अनोखे,
ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on December 9, 2018 at 9:30pm — 6 Comments
कुंठा - लघुकथा -
आदरणीय मामाजी,
आपने मेरे लिये जो किया वह मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। आपने अपना भविष्य दॉव पर लगा दिया| आपकी बी ई की पढ़ाई छूट गयी। वह घटना मेरे जीवन की भयंकर भूल थी।जिसके अपराध बोध से आज तक ग्रसित हूँ।
उस समय मैं केवल सात साल का था अतःइतना डर गया था कि सच नहीं बोल सका।
इतने साल बाद आज मैं आपको सच बताने का साहस जुटा पाया हूँ|
दिवाली की उस रात खाने के बाद आप जब पान खाने जाने लगे तो मैं भी जिद करके आपके साथ चल दिया था।
आपने पान वाले को…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 8, 2018 at 7:28pm — 6 Comments
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