For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

आख़िर नुक़सान हमारा है

है करता कौन समाज ध्वस्त?

किसने माहौल बिगाड़ा है?

किसकी काली करतूतों से

यह देश धधकता सारा है?



चिल्लाते जो जनतन्त्र-तन्त्र

"जन" को ही बढ़कर मारा है

बरगला "अशिक्षित" लोगों को

शिक्षा से किया किनारा है



है अकरणीय कर्मों के वश

अब शहर सुलगता सारा है

विद्यालय की पवित्र धरण

बनती जा रही अखाड़ा है



विद्वेष भरें अपनों में ही

जनता की दौलत नष्ट करें

लेते बापू का नाम मगर, 

हिंसा का बजे नगाड़ा है



वह नहीं…

Continue

Added by Usha Awasthi on February 26, 2020 at 8:30am — 2 Comments

मेरे ज़रूरी काम / अतुकांत कविता / चंद्रेश कुमार छतलानी

जिस रास्ते जाना नहीं

हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं

उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है

वही कोई और करे - मूर्ख है - कह देता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

 

मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर

कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 25, 2020 at 12:40pm — 2 Comments

जानता हूँ मैं (ग़ज़ल)

221 2121 1221 212

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

.

तेरे फ़रेब-ओ-मक्र सभी जानता हूँ मैं

'शाहिद' हूँ ज़िन्दगी तुझे पहचानता हूँ मैं

काफ़िर न जानिए है ये कुछ अस्र-ए-बद-दुआ

शह्र-ए-बुतां की धूल जो अब छानता हूँ मैं

जी भर के ज़िन्दगी न जिया ख़ुद से है गिला

जीने की रोज़ सुब्ह यूँ तो ठानता हूँ मैं

इक़बाल-ए-जुर्म मेरा मुसव्विर भी तो करे

ख़ुद की तो ख़ामियाँ सभी गर्दानता हूँ…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 25, 2020 at 1:00am — 5 Comments

तरही ग़ज़ल

 शख्स उसको भी तो दीवाना समझ बैठे थे हम l

जो था अच्छा उस को बेचारा समझ बैठे थे हम l



अब न जीतेगा ज़माना भी हमेशा की तरह,

जिस तरह का था उसे वैसा समझ बैठे थे हम l



गीत गाया था बहारों पर सुनाया था कहाँ,

जब ख़िज़ाँ को भी अगर अपना समझ बैठे थे हम l



फूल ये बिखरा तो खुशबू सा शजर बनता मिला,

"इस ज़मीन ओ आसमां को क्या समझ बैठे थे हम l"



ये जहाँ बदला मगर ये जिंदगानी क्यूँ नहीं,

झूठ दुनिया जिस कहे सच्चा समझ बैठे थे हम…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on February 25, 2020 at 12:00am — 1 Comment

जीवन्तता

जीवन्तता

माँ

कहाँ हो तुम ?

अभी भी थपकियों में तुम्हारी

मैं मुँह दुबका सकता हूँ क्या

तुम्हारा चेहरा सलवटों भरा

मन शाँत स्वच्छ निर्मल

पथरीले…

Continue

Added by vijay nikore on February 24, 2020 at 5:30am — 4 Comments

तरही गजल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122 / 2122 / 2122 /  212

**

उनका वादा राम का  वादा  समझ बैठे थे हम

हर सियासतदान को सच्चा समझ बैठे थे हम।१।

**

कह रहे थे सब  यहाँ  जम्हूरियत है इसलिए

देश में हर फैसला अपना समझ बैठे थे हम।२।

**

गढ़ गये पुरखे हमारे  बीच  मजहब नाम की

क्यों उसी दीवार को रस्ता समझ बैठे थे हम।३।

**

आस्तीनों  में  छिपे  विषधर  लगे  फुफकारने

यूँ जिन्हें जाँ से अधिक प्यारा समझ बैठे थे हम।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 22, 2020 at 8:28am — 9 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : भीड़ (गणेश जी बाग़ी)

मारो रे स्साले को, जब हम लोगो का पर्व होता है तभी ये सूअर बिजली काट देता है, दूसरों के पर्व पर तो बिजली नही काटता !

संबंधित बिजली कर्मी जब तक कुछ कहता, तब तक भीड़ से कुछ उत्साहित युवा उस कर्मचारी को पीट चुके थे । बेचारा कर्मचारी गिड़गिड़ाते हुए बस इतना ही कह पाया...

"बड़े साहब के आदेश से बिजली कटी है ।"

"चलो रे....आज उ बड़े साहब को भी देख लेते हैं, बड़ा आया आदेश देने वाला"

भीड़ बड़े साहब के चेम्बर की तरफ बढ़ गयी ।

"क्यों जी, आज हम लोगो का पर्व का दिन है, जुलूस…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 21, 2020 at 2:00pm — 2 Comments

प्यार का प्रपात

प्यार का प्रपात

प्यार में समर्पण

समर्पण में प्यार

समर्पण ही प्यार

नाता शब्दों का शब्दों से मौन छायाओं में 

आँखों और बाहों का हो महत्व विशाल

बह जाए उस उच्च समर्पण में पल भर…

Continue

Added by vijay nikore on February 21, 2020 at 3:30am — 4 Comments

"मै" इक  समंदर में तब्दील हो जाता हूँ

एक 
--------
रात 
होते ही 
"मै" इक  समंदर में तब्दील हो जाता हूँ 
और मेरे सीने के
ठीक ऊपर 
इक चाँद उग आता…
Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 20, 2020 at 5:30pm — 1 Comment

तू ही नहीं मैं भी तो हूँ (ग़ज़ल)

रमल मुसम्मन महज़ूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2

सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

दौड़ता जाता है ख़ामोशी से बिन पूछे सुने

वक़्त से दहशत-ज़दा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

ज़िन्दगी है लम्हा लम्हा जंग अपने-आप से

अपने अंदर कर्बला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

दिल के अंदर गूंजती हैं चीख़ती ख़ामोशियाँ

एक साज़-ए-बे-सदा तू ही नहीं मैं भी…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 20, 2020 at 12:44am — 7 Comments

झूठी बातें कह कर दिनभर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



झूठी बातें कह कर दिनभर जब झूठे इठलाते हैं

हम सच के झण्डावरदारी क्यों इतना शर्माते हैं।१।

***

अफवाहों के जंगल यारो सभ्य नगर तक फैल गये

क्या होगा अब विश्वासों  का  सोच सभी घबराते हैं।२।

***

कैसे सूरज चाँद सितारे  अब तक चुनते आये हम

बात उजाले की कर के  जो  नित्य  अँधेरा लाते हैं।३।

***

नित्य हादसे  होते  हैं  या  उन में  साजिश होती है

छोटा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:00am — 8 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

2122   2122   2122   22

जनाब क़तील शिफ़ाई साहब की एक ग़ज़ल 'अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको' जिसे जगजीत सिंह साहब ने गाया है उसी ग़ज़ल को गुनगुनाते हुए ये ग़ज़ल हुई है बहर थोड़ी परिवर्तित हुई है

तमाम दोस्तों को सादर समर्पित

स्वीकारें

कुछ हसीं फूलों से जीवन को सजा ले अब तो,

खुद को गुमनामी के पतझड़ से बचा ले अब तो.

मेरे जख्मों पे बड़ी तेरी इनायत होगी,

संग हाथों में कोई तू भी उठा ले अब तो.

अपनी गुल्लक को दिखा माँ को…

Continue

Added by मनोज अहसास on February 16, 2020 at 10:00pm — 4 Comments

ये कैसी बहार है (ग़ज़ल)

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

2 2 1 / 2 1 2 1 / 1 2 2 1 / 2 1 2

फूलों के सीने चाक हैं बुलबुल फ़रार है

सब दाग़ जल उठे हैं ये कैसी बहार है

कैसी बहार शहर में क्या मौसम-ए-ख़िज़ाँ

कारें इमारतें हैं दिलों में ग़ुबार है

कुछ बस नहीं बशर का क़ज़ा पर हयात पर

लेकिन ग़ुरूर ये है कि ख़ुद-इख़्तियार है

हाकिम है ख़ूब ख़्वाब-फ़रोशों पे मेहरबां

भाता नहीं उसे जो हक़ीक़त-निगार है

क्या ख़ूब है…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 16, 2020 at 7:41pm — 4 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : मैं भी लिखूंगा एक कविता (गणेश बाग़ी)

अतुकांत कविता : मैं भी लिखूंगा एक कविता

मैं भी लिखूंगा

एक कविता

चार पांच सालों बाद..

जब मेरे हाथों द्वारा लगाया हुआ

पलास का पौधा

बन जायेगा पेड़

उसपर लगेंगे

बसंती फूल

आयेंगी रंग बिरंगी तितलियाँ

चिड़िया बनायेंगी घोंसला...

मैं भी लिखूंगा

एक कविता

चार पांच सालों बाद..

जब मेरे घर आयेगी

नन्ही सी गुड़िया

जायेगी स्कूल

मेरी उँगली पकड़

और पढ़ेगी

क ल आ म .. कलम

गायेगी…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2020 at 11:30pm — 3 Comments

जायदाद के हकदार

अम्मा का जाना

जैसे पर्दों का हट जाना

एक- एक कर सारे के सारे तार- तार हो गए

जिगर के सब टुकड़े जायदाद के हकदार हो गए


छोटे छोटे पुर्जे तक बांटे गए

सारे कागज़ पत्र तक छांटे गए

जिगर के टुकड़े थे वो सारी जायदाद के हकदार हो गए
 
कुछ…
Continue

Added by amita tiwari on February 15, 2020 at 7:30pm — 5 Comments

टीन एजर बेटे के मेसेज - मम्मी के लिए

एक

-----

मुझे,

मालूम है आप

मेरी लापरवाहियां और बेतरतीबी की लिए

ऊपर ऊपर डांटते हुए भी

अंदर अंदर खुशी से और मेरे लिए प्रेम से भरपूर रहती हो

मेरे बिखरे हुए कपड़ों व किताबों को सहेजना अच्छा लगता है

पर यहाँ हॉस्टल में आ कर अब मुझे अपने कपडे खुद तह कर के रखना सीख लिया है

वहां तो आप सुबह ब्रश में टूथ पेस्ट भी आप लगा के देती थी

टोस्ट में मक्खन भी लगा के हाथ में पकड़ा देती थी

और प्यार भरी झिड़की से जल्दी से खाने की हिदायत देती थी

पर…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 15, 2020 at 5:30pm — No Comments

गुज़ारिश

गुज़ारिश

मुहब्बत में मज़हब न हो

मज़हब में हो मुहब्बत

मुहब्बत ही हो सभी का मज़हब

तो सोचो, हाँ, सोचो तो ज़रा

कैसी होगी यह कायनात

कैसी होगी यह ज़मीन

खुश होगा कितना…

Continue

Added by vijay nikore on February 15, 2020 at 4:00pm — 4 Comments

प्रेम पत्र - लघुकथा -

प्रेम पत्र - लघुकथा -

आज वीरेंद्र पिता की मृत्योपरांत तेरहवीं  की औपचारिकतायें संपन्न करने के पश्चात पिताजी के कमरे की अलमारी से पिता के पुराने दस्तावेज निकाल कर कुछ काम के कागजात छाँट रहा था।

तभी उसकी नज़र एक गुलाबी कपड़े की पोटली पर पड़ी।उसने उत्सुकता वश उसे खोल लिया।वह अचंभित हो गया।वह जिस पिता को एक आदर्श और सदाचारी पिता समझता था उनकी चरित्र हीनता का एक दूसरा ही चेहरा आज उसके सामने था।उस पोटली में पिता के नाम लिखे प्रेम पत्र और एक सुंदर सी महिला के साथ तस्वीरें…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on February 15, 2020 at 11:30am — 6 Comments

डूब गया कल सूरज

डूब गया कल सूरज

कल ही तो था जो आई थी तुम

बारिश के मौसम की पहली सुगन्ध बनी

प्यार की नई सुबह बन कर आई थी तुम

मेरे आँगन में नई कली-सी मुस्कराई थी तुम

याद है मुझको वसन्त रजनी में

कल…

Continue

Added by vijay nikore on February 15, 2020 at 6:30am — 4 Comments

वैलेनटाइन डे

कितना क़ायदा, कितना सलीका

ले आये हैं हम दुनिया में

दिन हैं मुक़र्रर सब कामों के

माँ और बाप को

उस्तादों को, और वतन को

यादों में लाने के लिए और

कितनी इज़्ज़त कितनी अक़ीदत

उनके लिए है दिल में हमारे

सबको बतलाने के लिए

और इक दिन है इश्क़ के नाम भी

वैलेनटाइन डे कहते हैं जिसको

जब भी आता है ये दिन तो

एक अजब एहसास सा दिल में भर जाता है

सोचता हूँ कि एक ही दिन क्यों रक्खा गया है

इश्क़, मुहब्बत, प्यार के नाम

प्यार भी…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 14, 2020 at 5:20pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जा रहे हो छोड़ कर जो मेरा क्या रह जाएगा  बिन तुम्हारे ये मेरा घर मक़बरा रह जाएगा …"
30 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। गजल गलत थ्रेड में पोस्ट…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 हंस उड़ने पर भला तन बोल क्या रह जाएगाआदमी के बाद उस का बस कहा रह जाएगा।१।*दोष…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। दोष होना तो…"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  2122 2122 2122…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
12 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service