2122 2122 212
दूध में खट्टा गिरा लगता तो है
काम साज़िश से हुआ,लगता तो है
था हमेशा दर्द जीवन में, मगर
दे कोई अपना, बुरा, लगता तो है
बज़्म में सबको ही खुश करने की ज़िद
आदमी वो सरफिरा, लगता तो है
सच न हो, पर गुफ़्तगू हो बन्द जब,
बढ़ गया कुछ फासिला, लगता तो है
गर मुख़ालिफ हो कोई जुम्ला, मेरे
दोस्त अब दुश्मन हुआ, लगता तो है
ज़िन्दगी की फ़िक्र जो करता न था
मौत से वह भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 8:30am — 23 Comments
Added by नाथ सोनांचली on August 7, 2017 at 7:30am — 6 Comments
तुमसे मिलने की उदात्त प्रत्याशा ...
प्रेरणा के प्रहर थे
स्वत: मुस्कराने लगे
तुम्हारे आने का मौसम ही होगा
वरना वीरान हवाओं में
ध्वनित-प्रतिध्वनित न होते
यूँ वह गीत-आलाप सुरीले पुराने
उस अमुक अरुणोदय से पहले ही एक संग
हर फूल, कली, हर पत्ते का झूम-झूम गाना
हाथ-में-हाथ पकड़ खेलना, तुम्हें गुनगुनाना
और नवजात-सी उत्सुक पक्षिणियों का
सांवले पंख फैला
चोंच-मार खेलना, चहचहाना…
ContinueAdded by vijay nikore on August 6, 2017 at 7:57pm — 9 Comments
2122 1212 22/112
अब यहाँ पर विगत हुआ जाये
या, जहाँ से विरत हुआ जाये
खूब दीवार बन जिये यारो
चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये
कोई खोले तो बस खला पाये
प्याज़ की सी परत हुआ जाये
ताब रख कर भी सर उठाने की
क्यों भला दंड वत हुआ जाये
आग, पानी , हवा की ले फित्रत
हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये
खूबी ए आइना बचाने को
क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 6:00pm — 24 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 6, 2017 at 12:40pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 12:30pm — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 11:00am — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on August 6, 2017 at 12:17am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 6, 2017 at 12:00am — 14 Comments
Added by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 9:30pm — 21 Comments
(इस वर्ष आ रही ४५ वीं वर्षगाँठ के लिए
जीवन-संगिनी प्रिय नीरा जी को सप्रेम समर्पित)
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हो विश्वव्यापी सूर्य
या हों व्योम की तारिकाएँ
गहन आत्मीयता की उष्मा प्रज्ज्वलित
तुम्हारा स्वर्णिम सुगंधित साथ
काल्पनिक शून्य में भी हो मानो
तुम यहीं-कहीं आस-पास ...
सम्मोहित
शनै:-शनै: सहला देती हूँ तुम्हारा हाथ
संकुलित कटे-छंटे शब्द हमारे
मन्द्र मौन में रीत जाते
और कुछ और…
ContinueAdded by vijay nikore on August 5, 2017 at 4:00pm — 14 Comments
शर्मीले लब ……….
ये मोहब्बत भी
अज़ब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने
और समझाने में
हो जाती हैं
सांसें चोरी
खबर नहीं होती
नींद नहीं आती बरसों
उनके इक बार मुस्कुराने में
डूबे रहते हैं पहरों
इक दूजे के ख़्यालों में
गुज़र जाती शब्
इक दूजे से बतियाने में
राहे मोहब्बत में
जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं
दो ज़िस्म
इक जान हो जाते हैं
मैं और तुम के अहसास
कहीं फ़ना हो जाते हैं
मख़मली लम्हे…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:39pm — 8 Comments
घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”
“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on August 4, 2017 at 11:43pm — 3 Comments
Added by दिनेश कुमार on August 4, 2017 at 10:21pm — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2017 at 7:53pm — 3 Comments
डुगडुगी बजती रही.......
1.
गरजे घन घनघोर
प्रलय चहुँ ओर
तृण बहे
तन बहे
करके
सब को अशांत
फिर
वृष्टि का तांडव
हो गया
शांत
2
बुझ गयी
कुछ क्षण जल कर
माचिस की तीली सी
जंग लड़ती
साँसों से
असहाय काया
अस्थि कलश में
सिमट गयी
मुट्ठी भर राख में
साँसों की
माया
3
तालियों के शोर
चिलचिलाती धूप
करतब दिखाती बच्ची
रस्सी से गिर पड़ी
साँसों से संघर्ष…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2017 at 5:26pm — 4 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2017 at 4:30pm — 14 Comments
घर के बाहर खुले आंगन में चेहरा लटका कर बैठे देख उसकी माँ ने उसके पास जाकर उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, "परेशान मत हो, अगली बार बेटा ही होगा।"
"नहीं माँ, अब बस। दो बच्चे हो गए हैं, तीसरा होने पर इन दोनों बच्चियों की परवरिश भी अच्छी तरह नहीं कर पाऊंगा।" वहीँ पालने में सो रही अपनी नवजात बेटी को देखते हुए उसने उत्तर दिया।
माँ के पीछे-पीछे तब तक आज ही हस्पताल से लौटी अंदर आराम कर रही उसकी पत्नी को तरह-तरह के निर्देश देकर कुछ और महिलायें भी बाहर आ गयीं थीं। उनमें से…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 4, 2017 at 12:27pm — 5 Comments
यूँ तो सावन जाने को है, फिर भी ...
आया सावन मास सखी री
हरी हो गई घास सखी री
हरी चूड़ियाँ बिंदी साड़ी
हाथों में मेहँदी रंग गाढ़ी
झूले हो गए खास सखी री
गहराई है आस सखी री
श्वेत श्याम बादल उड़ आते
प्रियतम का संदेशा लाते
भरें कुलाँचे साँस सखी री
आया सावन मास सखी री
रंग गेरुआ घर घर डोले
जिसको देखो बम बम भोले
मन में है उल्लास सखी री
सुंदर वर की आस सखी री
ज्यों ज्यों सावन बीता जाए
मन उछाह से भर भर जाए
रक्षा…
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 4, 2017 at 12:00pm — 4 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 4, 2017 at 8:13am — 12 Comments
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