Added by Mohammed Arif on August 15, 2017 at 12:02am — 9 Comments
Added by Arpana Sharma on August 15, 2017 at 12:00am — 3 Comments
एक बाँसुरी, एक ही धुन से, स्नेह सुधा बरसाते हैं,
सूरदास, मीरा – रसखान, रहीम को एक बनाते हैं।
ले लकुटी संग ग्वाल बाल के, नंद की गाय चराते हैं,
त्रस्त प्रजा को क्रूर कंस से, राजा मुक्त कराते हैं।
हैं प्रेरक श्रीकृष्ण नीति, गीता और प्रेम सिखाते हैं,
सुधि जन निर्मल मन से सादर, सहज प्रेरणा पाते हैं।
.
किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 14, 2017 at 7:00pm — 3 Comments
Added by मंजूषा 'मन' on August 14, 2017 at 6:28pm — 16 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on August 14, 2017 at 12:46pm — 8 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 14, 2017 at 11:35am — 5 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई मूक निवेदन
अपनी…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:17pm — 12 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:00pm — 2 Comments
Added by Ajay Kumar Sharma on August 13, 2017 at 10:29am — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 13, 2017 at 9:29am — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2017 at 11:30am — 6 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2017 at 10:34am — 9 Comments
ज़िंदगी...
ज़िंदगी का
हासिल
है
मौत
क्या
मौत का
हासिल
है
ज़िंदगी ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 11, 2017 at 8:39pm — 6 Comments
दिन की गर्मी के बाद रात आती है शीतल,
जैसे आता हरित देश बीते जब मरुथल।
समय चक्र ही दुःख की घड़ी बिता सुख लाता,
मृत्यु न होती तो क्या प्राणी जीवन पाता?
सूर्य ज्वलित ना होता तो क्या वसुधा होती?
चन्द्रकिरण से क्या अमृत की वर्षा होती?
लक्ष्य कठिन, दुर्गम्य राह, निश्चय से बनता है सरल।
सूखी रेत, कठोर प्रस्तरों के नीचे ही होता है जल।।
- किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 11, 2017 at 5:37pm — 4 Comments
अस्सी वर्षीय बाबू केदार नाथ ने अपने कानों में सुनने वाली मशीन लगाकर मफ़लर लपेट लिया| आईने में खुद को देखकर आश्वस्त हुए| मशीन पूरी तरह मफ़लर के नीचे छिप गया था| अब उन्होने पुराना टेप रिकार्डर निकाला और प्रिय गाना बजा दिया|
बरेली के बाज़ार में झुमका गिरा रे-कमरे में आशा भोसले की नखरीली आवाज़ गूंज उठी|
बाबू केदारनाथ के होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कान खेल गई|
अजी सुनते हो! उनके कानो से एक तेज कटार सी आवाज टकराई|
अपने बाउजी को…
Added by Gul Sarika Thakur on August 11, 2017 at 11:47am — 6 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 11, 2017 at 1:00am — 8 Comments
कैसे कहूँ अब तुझसे कुछ कहा भी नहीं जाता,
तनहा ज़िंदगी में अब यूँ रहा भी नहीं जाता
चले थे जिस मोड़ तलक इस सफ़र में हम ,
रास्ता उस सफ़र का भुलाया भी नहीं जाता
उठता हैं मेरे दिल में तिरी यादों का तूफ़ाँ भी,
हादसा था जैसे ये भुलाया भी नहीं जाता
सुख गये यूँ अश्क़ भी यादों से तिरी,
ग़मों को लिये अब तो रोया भी नहीं जाता
तुम रहो कहीं भी मगर ये सच है ,
वजूद तिरा दिल से फिर मिटाया भी नहीं जाता
वो शख़्स जिसने मुझे अपना माना…
Added by santosh khirwadkar on August 10, 2017 at 8:30pm — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 10, 2017 at 9:30am — 20 Comments
2122 1212 112/22
गर अँधेरा है तेरी महफिल में
हसरत ए रोशनी तो रख दिल में
खुद से बेहतर वो कैसे समझेगा ?
सारे झूठे हैं चश्म ए बातिल में
क़त्ल करने की ख़्वाहिशों के सिवा
और क्या ढूँढते हो क़ातिल में
बेबसी, दर्द और कुछ तड़पन
क्या ये काफी नहीं था बिस्मिल में ?
फ़िक्र क्या ? बाहरी जिया न मिले
रोशनी है अगर तेरे दिल में
कोई तो कोशिश ए नजात भी हो
अश्क़ बारी के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 10, 2017 at 8:30am — 30 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 9, 2017 at 11:39pm — 4 Comments
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