2122 2122 212
तू न मेरा हो सका तो क्या हुआ ।
हो गया है फिर जुदा तो क्या हुआ ।।
हम सफ़र था जिंदगी का वो मिरे ।
बस यहीं तक चल सका तो क्या हुआ।।
मैकदों की वो फ़िजा भी खो गई ।
वक्त पर वो चल दिया तो क्या हुआ ।।
फिर यकीं का खून कर के वह गयी ।
दर्द दिल का कह लिया तो क्या हुआ।।
सुर्ख लब पे रात भर जो हुस्न था ।
तिश्नगी में बह गया तो क्या हुआ ।।
डर गया इंसान अपनी मौत से ।
खो गया वो हौसला तो क्या हुआ ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 24, 2016 at 10:30pm — 6 Comments
गाँव में था
एक भवानी का चौतरा
कच्ची माटी का बना
जिसके पार्श्व में लहराता था ताल
जिसके किनारे था एक देवी विग्रह
छोटा सा
चबूतरे को फोड़कर बीच से
निकला था कभी एक वट वृक्ष
जो विशाल था अब इतना
कि आच्छादित करता था
पूरे चबूतरे को
साथ ही देवी विग्रह को भी
अपने प्रशस्त पत्तों की
घनीभूत छाया से
और लटकते थे
इसकी शाखाओं से अरुणिम फल
फूटते थे
शत-शत प्राप-जड़…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 24, 2016 at 2:47pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2016 at 6:47am — 15 Comments
1222 1222 1222 1222
****
निगाहों से बुला लीजे शरारत और हो जाए ।
जो धड़कन में बसा लीजे इनायत और हो जाए।।
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कलाई की अदा देखी कई पैगाम देती है ।
जरा कंगन बजा दीजे कयामत और हो जाए।।
.
ये परवानों की महफ़िल है गिरा दीजे ज़रा चिलमन।
कहीं ऐसा न हो हमदम अदावत और हो जाए।।
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दिलों को चैन हम देंगे जफ़ा से तौबा करने दो।
वफ़ा की राह में चाहे बगावत और हो जाए।।
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मेरे ख़त में तड़पती…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on December 22, 2016 at 9:30pm — 8 Comments
अक्षय गीत ....
मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
मैं पग पग आगे बढ़ता हूँ
कुछ भी कहने से डरता हूँ
पीर हृदय की कह न सकूं
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ
शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
अतृप्त तृषा है. घूंघट में
अधरों की हाला प्यासी है
स्वप्न नीड़ पर नयनों के…
Added by Sushil Sarna on December 22, 2016 at 6:00pm — 19 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 22, 2016 at 2:30pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
अदा के साथ ऐ ज़ालिम, ज़माने छूट जाते हैं ।
मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।।
तजुर्बा है बहुत हर उम्र की उन दास्तानों में ।
तेरीे ज़द्दो ज़ेहद में कुछ फ़साने छूट जाते हैं ।।
बहुत चुनचुन के रंज़ोगम को जो लिखता रहाअपना।
सनम से इंतक़ामों में निशाने छूट जाते हैं ।।
रक़ीबों से मुसीबत का कहर बरपा हुआ तब से ।
हरम में घुंघरुओं से कुछ तराने छूट जाते हैं ।।
वो कुर्बानी है बेटी की जरा ज़ज़्बात से पूछो…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 22, 2016 at 10:30am — 1 Comment
आज एक सौदा ही कर लें
बोली बॉस एक दिन
सुनकर यह चकित हुई मैं
देखती रही उनको एकटक
देख मुझको भांप गयी वो
मुझे लगा कांप गयी वो
पर नहीं , नहीं हुआ कोई असर
बोलीं न छोडूंगी कोई कसर
अब मैं हुई और परेशान
शैतान आया था बनकर मेहमान
रुकी कुछ पल फिर हंस कर बोलीं
अपने ईमान की पोल खोली
सुनो मेरा तुम करो एक काम
न करना इस बात को आम
मेरे पास काला धन पड़ा है
मोदी जी ने सर पर हथौड़ा मारा है
औरतो के खाते में ढाई लाख़ फ्री है
यह रकम…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2016 at 8:30am — 6 Comments
"आखिर क्यों नहीं कर लेती उससे शादी, जब साथ साथ रहती हो तो दिक्कत क्या है", उसने घर से निकलते हुए बेटी को टोका| बेटी ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर आगे जाने लगी|
"अभी तुमको नहीं समझ में आ रहा है, कुछ साल बाद समझोगी| आखिर कुछ तो सोचो भविष्य के लिए", उसने फिर से समझाने की कोशिश की|
अबकी बार बेटी पलटी और वापस कमरे में आ गयी| उसके पास आकर उसने माँ का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से बोली "तुम्हें क्या दिक्कत है माँ, हम लोग खुश हैं और जब तक सब ठीक है, साथ रहेंगे"|
"लेकिन कोई बंधन तो…
Added by विनय कुमार on December 21, 2016 at 9:33pm — 14 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22
दिल के जख्मों को चलो ऐसे सम्हाला जाए
इसकी आहों से कोई शे’र निकाला जाए
अब तो ये बात भी संसद ही बताएगी हमें
कौन मस्जिद को चले कौन शिवाला जाए
आजकल हाल बुजुर्गों का हुआ है ऐसा
दिल ये करता है के अब साँप ही पाला जाए
दिल दिवाना है दिवाने की हर इक बात का फिर
क्यूँ जरूरी है कोई अर्थ निकाला जाए
दाल पॉलिश की मिली है तो पकाने के लिए
यही लाजिम है इसे और उबाला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 21, 2016 at 9:17pm — 2 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 21, 2016 at 7:33pm — 7 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 21, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
बदले-बदले लोग
============
बहुत दिन हो गए,
हमने नहीं की फिल्म की बातें।
न गपशप की मसालेदार,
कुछ हीरो-हिरोइन की।
न चर्चा,
किस सिनेमा में लगी है कौन सी पिक्चर?
पड़ोसी ने नया क्या-क्या खरीदा?
ये खबर भी चुप।
सुनाई अब न देती साड़ियों के शेड की चर्चा।
कहाँ है सेल, कितनी छूट?
ये बातें नहीं होती।
क्रिकेटी भूत वाले यार ना स्कोर पूछे हैं।
न कोई जश्न जीते का,
न कोई…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 3:00pm — 18 Comments
Added by रोहिताश्व मिश्रा on December 21, 2016 at 11:21am — 14 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 21, 2016 at 10:30am — 10 Comments
"हे परवरदिगार! ये तूने मुझे आज कैसे इम्तिहां में डाल दिया ?" उसने पीछे लेटे लगभग बेहोश, युवक को एक नजर देखते हुए हाथ इबादत के लिए उठा दिए।
...... रात का दूसरा पहर ही हुआ था जब वह सोने की कोशिश में था कि 'कोठरी' के बाहर किसी के गिरने की आवाज सुनकर उसने बाहर देखा, घुप्प अँधेरे में दीवार के सहारे बेसुध पड़ा था वह अजनबी। देखने में उसकी हालत निस्संदेह ऐसी थी कि यदि उसे कुछ क्षणों में कोई सहायता नहीं मिलती तो उसका बचना मुश्किल था। युवक की हालत देख वह उसके कपडे ढीले कर उसे कुछ आराम की स्थिति…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 20, 2016 at 10:30pm — 23 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on December 20, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
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