For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

ग़ज़ल- मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया

2122 2122 2122 212

मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया ।

याद आया फिर मुझे गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।



ढल गई चेहरे की रौनक ढल गया वह चाँद भी ।।

हुस्न का अब होश में आकर बुलाना शुक्रिया ।।



कुछ अना के साथ में नज़रों की वो तीखी क़सिस।

बाद मुद्दत के तेरा यह दिल जलाना ,शुक्रिया ।।



मुस्तहक़ थी आरजू पर हो सकी कब मुतमइन ।

वक्त पर आवाज देकर यूँ बुलाना शुक्रिया ।।



जिक्र कर लेना मुनासिब है नहीं इस दौर में ।

फिर गमे उल्फ़त का देखो लौट आना,… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2016 at 11:59pm — 10 Comments

कैसे-कैसे मरहम ?

 अँधेरा हो गया था

मेले से लौटने में 

जब बैलगाड़ी के पहिये में

फंस गया था

मेरी बेटी का दुपट्टा

जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ

कसता गया

मेरी बेटी के गले में

और तब गया सबका ध्यान 

जब घुटी -घुटी सी चीख

निकली उसके मुख से

हठात बैलों की लगाम

खींची गाडीवान ने

और बैल पैर उठाकर 

पीछे की और धसके

 

पहिये में फंसे दुपट्टे को

आहिस्ता से निकाल कर 

छुड़ाया गया उसका गला

उस काल-फंद…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments

कह्र....

कह्र ...

थक गयी है
लबों पे हंसी
शायद लब
आडम्बर का ये बोझ
और न सहन कर पाएंगे
संग अंधेरों के
ये भी चुप हो जाएंगे
कफ़स में कहकहों के
दर्द बेवफाई का
ये छुपा न पाएंगे
बावज़ूद
लाख कोशिशों के
ये
गुज़रे हुए
लम्हों की आतिश से
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे


सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 28, 2016 at 5:45pm — 14 Comments

मैं भुला देना चाहता हूँ

मैं भुला देना चाहता हूँ

झिलमिल सितारों को

झूमती बहारों को

सावन के झूलों को

महकते हुए फूलों को

मौसमी वादों को

पक्के इरादों को

नर्म एहसासों को

बहके जज़्बातों को

सोंधी सी ख़ुशबू को

कोयल की कू को

नाचते हुए मोर को

नदियों के शोर को

चाँदनी रातों को

मीठी-मीठी…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

2122 2122 212

बह रहे हो नद-से दम भर देखिये

चलते रहना पर ठहरकर देखिए।



राज दिल के मुँह पे लाकर देखिए

आज अपनों को बताकर देखिए।



जा रहे हो दूर हमसे रूठकर

थोड़ा-सा नजदीक आकर देखिये।



नफरतों से क्या किसी को कुछ मिला?

चाह दिल में भी जगाकर देखिये।



कुछ न हासिल हो सका चलके अलग

*दो कदम तो साथ चलकर देखिए।*



मुश्किलों में भी ख़ुशी को पा लिया

मिटता उनके दिल का हर डर देखिये



मुश्किलें होती हैं सच की राह… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2016 at 11:45am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जल रहें हैं गीत देखो (गीत) - मिथिलेश वामनकर

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,

इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।

इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?

छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।

कुछ कहो, कुछ तो कहो,

मत चुप रहो यूँ मीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।

उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें,  सब भगा…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments

सपने -- डॉo विजय शंकर

सपने देखने में
कुछ नहीं जाता है ,
टूट जाएँ तो कुछ
रह भी नहीं जाता है।
इसलिए सपने देखें नहीं ,
हमेशा दूसरों को दिखाएं ,
सुन्दर , लुभावने , बड़े-बड़े ,
पूरे हों तो वाह , .. न हों ,
आपका कुछ नहीं जाता है ,
लेकिन इलेक्शन अकसर
इसी फार्मूले पे जीता जाता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 28, 2016 at 10:55am — 10 Comments

बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22



लाख कोशिश करो ज़माने से

राज छिपता नही छिपाने से।।



सिर्फ कहने से कुछ नही होता

रिश्ता होता है बस निभाने से।।



हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर

पीठ मैदान में दिखाने से।।



हाथ माँ का अगर तेरे सर हो

तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।



मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में

हौसला यार टूट जाने से।।



जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी

क्या मिले आइना दिखाने से।।



तेरा घर भी इन्ही में है आबाद

बाज आ बस्तियां जलाने… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments

गीत – सवेरा तू है लाती....

आहिस्ता – आहिस्ता, पास तू आने लगी,

बाहों मे आकर, दिल मे समाने लगी,

छूकर मुझको, सपना दिखाने लगी,

नींदों मे आकर, तू अब सताने लगी.

सवेरा तू है लाती, तू ही लाती रात है,

मेरे दिल को जो धड़कादे , तुझमे वही बात है....(2)



1} देदूं मैं…

Continue

Added by M Vijish kumar on December 28, 2016 at 8:30am — 8 Comments

जज़्बात (नज़्म)

मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं

और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।



ना जाने नम सी आँखें रहती हैं

और दर्द की पीर आँखें सहती हैं

देखकर बेवफाई यह रोती है

तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।



रात की अँधियारी में कभी रोती हैं

कभी काँधे पे सर रख सोती हैं

अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं

सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।



दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं

आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं

सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की

हर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 8:30pm — 6 Comments


प्रधान संपादक
अधूरी कथा के पात्र (लघुकथा) .

अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI

“रुक जा ओये!” एक…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on December 27, 2016 at 10:00am — 10 Comments

आँधियाँ ( लघु-कविता ) - डॉo विजय शंकर

ये कुदरत है ,
रुख , दाब हवा का संतुलन
बिगाड़िये मत , बना रहने दीजिये।
आँधियाँ किसी के बुलाये ,
लाये से , नहीं आतीं ,
और आ जाएँ तो
किसी के भगाये से नहीं जातीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 27, 2016 at 6:06am — 12 Comments

ग़ज़ल- ख़त मेरा दिल से लगाकर देखिये

2122 2122 212



चाँद को महफ़िल में आकर देखिये ।

इक ग़ज़ल मेरी सुनाकर देखिये ।।



गर मिटानी हैं जिगर की ख्वाहिशें ।

इस तरह मत छुप छुपाकर देखिये ।।



ये रक़ीबों का नगर है मान लें ।

इक रपट मेरी लिखाकर देखिये ।।



हुस्न पर पर्दा मुनासिब है नहीं ।

बज़्म में चिलमन उठाकर देखिये ।।



क्यों फ़िदा हैं लोग शायद कुछ तो है ।

आइने में हुस्न जाकर देखिये ।।



हैं हवाएँ गर्म कुछ् बेचैन मन ।

तिश्नगी थोड़ी बुझा कर देखिये ।।



आप… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:16am — 4 Comments

नया साल

आएगा नया साल

खिलेंगे नये फूल

उगेगा नया सूरज

फैलेगी नयी रौशनी

छंटेगा अँधेरा

सजेगी महफ़िल

गायेंगी वादियाँ

बजेंगी चूड़ियाँ

झूमेगा आसमाँ

नाचेगी धरती

उड़ेगा आँचल

हँसेगा बादल

सच होंगे सपने

मिलेंगी ख़ुशियाँ

मुड़ेंगी राहें

आएगी मंज़िल

मगर...

सिर्फ औरों के लिए

मेरे लिए

तो अब भी वही साल है

कई सालों बाद भी

सड़न और सीलन से युक्त

दुर्गन्ध से भरा हुआ

तड़पता

उदास

बीमार

और बोझिल…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कोई प्रेम-कथा उतरी है (ग़ज़ल) - मिथिलेश वामनकर

2122 – 1122 – 1122  - 22

 

केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है  

या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है

 

इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में

जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है

 

ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम

जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है

 

मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे   

तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है

 

पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा

तब कहीं जाके हृदय में भी…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments

तरही ग़ज़ल

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा



दौर-ए-जवानी के हमको रंगीन ज़माने याद आये

महफ़िल में यारों से वो साग़र टकराने याद आये



तन्हाई में भूले बिसरे सब अफ़साने याद आये

जिनमें ग़म की रातें गुज़रीं, वो मैख़ाने याद आये



दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था

ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये



इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी

दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये



सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब… Continue

Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments

ग़ज़ल ;उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

प्यार की धुन को बजाता जायगा

राज़  जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  

दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा

दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर

खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में

मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा

प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 25, 2016 at 8:00pm — 14 Comments

एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना

सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू

फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा

खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ



जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा

सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा

फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम

मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा



हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है

भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा

रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे

तब बहुत झूठ सी लगती है… Continue

Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments

नंगे लोग (लघुकथा)

फ़रीद भाई स्वयं अपने व अपने घर के छोटे-छोटे ज़रूरी काम ख़ुद कर लेते हैं लेकिन पता नहीं ऊपर वाले ने उनमें कौन सी दिमाग़ी कमी या बीमारी पैदा कर दी कि विक्षिप्त व्यक्ति जैसा जीवन जी रहे हैं। थोड़ी देर पहले ही किशन ने देखा था कि फ़रीद भाई ख़ुशी से झूमते हुए अपने व्यवसायी भाई के घर की ओर जा रहे थे। किसी भले नाई ने इस बार भी उनकी हेअर कटिंग और सेविंग मुफ़्त में कर दी थी। बड़े ही साफ़-सुथरे लग रहे थे। लेकिन अब यह क्या ! ये क्यूँ यहाँ अपनी हाफ़-पैंट की बेल्ट पकड़े हुए आधे नंगे से दौड़ रहे हैं? किशन… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 25, 2016 at 8:54am — No Comments

आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये

आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये

जलियाँ वाला याद आया तोपों के निशाने याद आये

हर और तबाही बरपा थी जुल्म ढहाया जाता था

हुस्न के हाथों आशिक के ख़्वाब मिटाने याद आये

अपने  पीछे दौड़ रहे उस बालक को जब देखा तो 

तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये

फूटी कौड़ी भी ना दूँगा जब भी कोई कहता है

कौरव-पांडव वाले तब ही सब अफ़साने याद आये…

Continue

Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on December 25, 2016 at 12:00am — 3 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service