Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 23, 2016 at 7:48am — 4 Comments
बहुत कर्ज़ है पापा मुझ पर
कैसे अदा करूं|
बचपन में मैं जब छोटी थी
कैरम की जैसे गोटी थी
घूमा करती छत के ऊपर
कभी न टिकती एक जगह पर
उन सपनों को उन लम्हों को
कैसे जुदा करूँ ।
सुबह सुबह उठ कर तुम पापा
सरदी में ना करते कांपा
मुझे उठा कर मुंह धुलवाते
शिशु कवितायें भी तुम सिखलाते
कहाँ छिप गये तुम तो जा कर
कैसे निदा करूं|
मेरे विवाह के थे वह फेरे
आँखों पर रूमाल के डेरे
थकी कमर थी, थकी थी…
Added by Abha saxena Doonwi on July 22, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
इस बार सावन कुछ और होगा
सखियों की छेड़ छाड़
और
और पिया का संग होगा |
झूलों पर गुनगुनाते गीत होंगे
फूलों के खुशबू
और
और पिया से मिलन होगा |
गुन गुनाएंगे पत्ते भी
हरी हरी डालियों पर
बिजली जब भी चमकेगी
पिया के आग़ोश में
यौवन पिघलेगा|
अधरों पर अधर
गीतों की फुहार होगी
सावन में लहेरिया पहने
सजन से मिलने की ख्वाहिश
सजन होंगे प्रीत होगी
अब के सावन कुछ और होगा |
नाचेंगे मोर बागों…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 6:30pm — 3 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२2
जाने किस ऊंचाई पर सब लोग जाना चाहते है
हो जमी पे ही खड़े सब क्या दिखाना चाहते हैं
जो समंदर पार के ले आदमी वो ही बड़ा अब
आप ऐसी सोच रखकर क्या जताना चाहते है
आदि से कंगूरों की सूरत टिकी जिस नीव पर थी
आप क्यूँ उस नीव को ही अब भुलाना चाहते हैं
बंगले नौकर गाडी मोटर की तमन्ना तो नयी अब
पर अभी भी प्यार दिल में हम पुराना चाहते हैं
पढ़ लिया इतिहास सबने जानते अंजाम भी सब
फिर भी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 22, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
कल से आगे ...
सभाकक्ष में सुमाली के साथ एक अपरिचित व्यक्ति भी प्रतीक्षारत था। वज्रमुष्टि, प्रहस्त और अकंपन भी उपस्थित थे। रावण के प्रवेश करते ही सब उठ कर खड़े हो गये। रावण अपने सिंहासन पर आसीन हुआ। अभिवादन की औपचारिकताओं के बाद उसने सुमाली से पूछा -
‘‘यह अपरिचित सज्जन कौन हैं मातामह ?’’
‘‘लंकेश्वर ! ये तुम्हारे भ्राता कुबेर के दूत हैं। उनका संदेश लेकर आये हैं।’’
‘‘महाराज ! मैं श्वेतांक हूँ, लोकपाल, धनपति कुबेर का दूत !’’
‘‘कहिये भ्राता कुशल से तो हैं ? और…
Added by Sulabh Agnihotri on July 22, 2016 at 9:15am — 2 Comments
रणवीर सिंह और अशोक कालकर दोनो ने गुड़गाँव मे एक साथ एक मल्टीनेशनल कंपनी ने ज्वाइन किया था । दो भिन्न संस्कृति, मातृभाषा के वे तीसरी तरह की संस्कृति मे रचने-बसने का प्रयत्न करने लगे थे। धीरे-धीरे आपसी मित्रता गहरा गई. ऑफ़िस के …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 21, 2016 at 9:28pm — 4 Comments
नव गीत.....
बेला महका.......
बेला महका चम्पा महकी
महकी है कचनार
झूम रहीं सब काकी बहनें
नृृत्य करें हर बार।
गाँव में शादी है होली
फूलों से सजती है डोली
संबन्धी ने भेजा न्योता
गाँव मेरे अब क्यों ना आता
बातों की भर मार।
रात रात भर बेला जागा
खिल न सका वह कहीं अभागा
कहीं गुंथ गया गजरे अन्दर
समझ रहा वह तुझे सिकन्दर
नहीं पा सकी पार।
बचपन बीता यौवन आया
शैतानी ने कदम बढ़ाया
तंत्र मंत्र…
Added by Abha saxena Doonwi on July 21, 2016 at 7:21pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 21, 2016 at 4:30pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 21, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
Added by Rahila on July 21, 2016 at 3:12pm — 14 Comments
मेरे घर की आग में,,सेंक रहा है हाथ
दूत बने शैतान के , देता उनका साथ
देता उनका साथ ,लगा मति पर है ताला
ड्रेगन धुन पर नाच ,करे होकर बेताला
जग पर जाहिर आज ,सभी मंसूबे तेरे
छोड़ लगाना आग ,बाज आ भाई मेरे
छोड़ें ढुलमुल रीत को ,अब उँगली लें मोड़
रोग पुराना हो रहा ,खोजें दूजा तोड़
खोजें दूजा तोड़ ,नहीं अब मीठी गोली
बातें जफ्फी खूब ,खूब समझाइश हो ली
हमको सकता बाँट ,ख़्वाब उसका ये तोड़ें
सच में हों गंभीर ,महज…
ContinueAdded by pratibha pande on July 21, 2016 at 12:30pm — 22 Comments
पूर्व से आगे ...........
चारों कुमार धीरे-धीरे बड़े होने लगे।
अयोध्या में राज-परिवार ही नहीं प्रजा के भी चहेते थे चारों बाल-कुमार।
विधाता ने उन्हें छवि भी तो अद्भुत प्रदान की थी। उनमें भी श्यामल होते हुये भी राम के सौन्दर्य की तो कोई उपमा ही नहीं थी। पुष्ट-गुदगुदा शरीर, अपनी वय के अनुसार श्रेष्ठ लम्बाई, सदैव आसपास की प्रत्येक वस्तु को पूरी तरह समझने को तत्पर्य आँखें। उसकी चंचलता में भी अद्भुत सौम्यता थी जो किसी ने और कहीं देखी ही नहीं थी। राम की सौम्यता के…
Added by Sulabh Agnihotri on July 21, 2016 at 10:57am — 2 Comments
कल से आगे ...........
27
मंगला के वेद भइया आ गये थे।
उनके आते ही मंगला जुगत में लग गई कि कैसे अपना सवाल उनके सामने रखा जाये। उन्हें तो भीतर अंतःपुर में आने का अवकाश ही नहीं मिलता था। भाइयों से करने को अनेक बातें थीं, मित्रों से मिलना था, उनके साथ कभी न समाप्त होने वाले असंख्य संस्मरण साझा करने थे और भी जाने क्या-क्या था करने को। बस इसी सब में लगे रहते थे। उन्हें…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on July 21, 2016 at 10:30am — 2 Comments
ईमान पर न टंगती, आज देश की नीति
बे-ईमानी हो गई, हर पार्टी की रीति |1|
भूल हुई है आम से, जनता अब पछताय
बाहर पहुंच दाल है, भात नमक से खाय |२|
टूट गये सब वायदे, समय हुआ प्रतिकूल
अब चुनाव ही हारकर, वो समझेगा भूल |३|
शुभदिन अब कब आयगा, हुए भले दिन दूर
महँगाई को झेलने, जनता है मजबूर |४|
देखा समतावाद को, है स्वांग अर्थ हीन
धनियों की यह मंडली, दूर है दीन हीन |५|
मौलिक…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 21, 2016 at 9:30am — 5 Comments
आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए
अधरों पर छायी मस्ती ये क्यूँ अपनापन ले जाए
भिगो रहा है बरस-बरस कर मेघ नशीला ये काला
कहीं न ये यौवन की खुश्बू मन का चन्दन ले जाए
कड़क-गरज डरपाती बिजली पल-पल नभ में दौड़ रही
कहीं न ये चितवन के सपने संचित कुंदन ले जाए
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए
पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 1:00pm — 28 Comments
कल से आगे ........
सुमाली और वज्रमुष्टि आज दक्षिण की ओर भ्रमण पर निकल पड़े थे। सुमाली अपने विशेष अभियानों में अधिकांशतः वज्रमुष्टि को ही अपने साथ लेकर निकलता था। वह उसके पुत्रों और भ्रातृजों में सबसे बड़ा भी था और उसकी सोच भी सुमाली से मिलती थी।
तीव्र अश्वों पर भी दक्षिण समुद्र तट तक पहुँचने में पूरा दिन लग गया था। इन लोगों ने मुँह अँधेरे यात्रा आरंभ की थी और अब दिन ढलने के करीब था। रावण प्रहस्त से सर्वाधिक संतुष्ट था इसलिये वह सदैव उसी के साथ रहता था। अक्सर…
Added by Sulabh Agnihotri on July 20, 2016 at 9:47am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
कोई किसी की अज़्मत पीछे छिपा हुआ है
कोई ले कर नाम किसी का बड़ा हुआ है
यातायात नियम से वो जो चलना चाहा
बीच सड़क में पड़ा दिखा, वो पिटा हुआ है
किसने लूटा कैसे लूटा कुछ समझाओ
हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है
दूर खड़े तासीर न पूछो, छू के देखो
आग है कैसी ,इतना क्यूँ वो जला हुआ है
चौखट अलग अलग होती हैं, लेकिन यारो
सबका माथा किसी द्वार पर झुका हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 14 Comments
22 22 22 22 22 2
गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है
धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है
वो बयान से खुद साबित कर देते हैं
जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है
बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?
समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है
बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं
अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है
सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में
हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?
कभी फटा था…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 12 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 19, 2016 at 9:58pm — 7 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 19, 2016 at 9:30pm — 10 Comments
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