२१२२ २१२२ २१२२ २१२
आकलन सरकार का तो खूब करते आप हैं
पर न सोचा आपने कितने किये खुद पाप हैं
हुक्मरानों को किया पैदा भी खुद है आपने
इस तरह रिश्ते से उनके आप माई बाप हैं
इक मसीहा तो सफाई के लिए चिल्ला रहा
रोज क्या ये भी कहे बीमारियाँ अभिशाप हैं
गंगा तू पावन करेगी पापी को वरदान ये
खुद सड़ेगी कोढियों सी कब मिले ये शाप हैं
बाँध सडकें पुल हुए कमजोर महलों वास्ते
लूट के ही माल से करते लुटेरे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 28, 2016 at 2:30pm — 4 Comments
*महाभुजंगप्रयात सवैया*
करूं अर्चना-वंदना मैं तुम्हारी, महावीर हे ! शूर रुद्रावतारी!
कृपा-दृष्टि डालो दया दान दे दो, बढ़े बुद्धि-विद्या बनूं सद्विचारी।।
हरो दीनता-दुःख-दुर्भाग्य सारे, तुम्हीं नाथ हे! लाल-सिंदूरधारी!
सदा हाथ आशीष का शीश पे हो, यही प्रार्थना हे! महाब्रह्मचारी।।
*कुण्डलिया छंद*
मृग-से सुंदर नैन हैं, ओष्ठ-अरुण-अंगार।
यौवन के हर पोर से, फूटे मधु की धार।
फूटे मधु की धार, तार उर के झंकृत कर।
काले-कुंचित केश, झूमते अहि से कटि…
Added by रामबली गुप्ता on June 28, 2016 at 1:00pm — 4 Comments
.............................. कल से आगे
‘‘महाराज थोड़ा सा राजभोग और लीजिये, मैंने अपने हाथों से बनाया है।’’ कैकेयी ने अनुरोध किया।
दशरथ और कौशल्या भोजन पीठिकाओं पर बैठे थे। कैकेयी परोस रही थी। दासियाँ पीछे हाथ बाँधे खड़ी थीं।
‘‘नहीं महारानी बहुत हो गया। अब नहीं खा पाऊँगा।’’
‘‘बहुत कैसे हो गया। थोड़ा सा तो लेना ही पड़ेगा।’’ कैकेयी ने जबरदस्ती राजभोग की एक कटोरी और रखते हुये कहा।
‘‘ले भी लीजिये न महाराज। आप तो राजभोग का ढाई सेर का पतीला एक साँस में खाली कर डालते…
Added by Sulabh Agnihotri on June 28, 2016 at 9:37am — 2 Comments
1- नाम वरों में छुप रहे
नामवरों में छुप रहे , सारे गलती बाज
सच के आगे किस तरह , मची हुई है खाज
मची हुई है खाज , खून उभरा है तन में
लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में
सत्य गिनेगा नाम , कभी तो जानवरों में
आज छिपालो झूठ, किसी का नामवरों में
****************
2- गिरगिट मानव देख
धोती में अपनी कभी , नही देखते दाग
और लगाते हैं सदा , अन्य वसन में आग
अन्य वसन में आग , लगाते हैं वो सारे
जिनको डर है सत्य, कहीं ना उनको…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 7:00am — 16 Comments
महफिल सजा हम आज तक बैठे हुए
महबूब तो हैं बेवजह उखड़े हुए।1
अपनी वफा पे ढ़ा गये जुल्मो सितम
मुड़कर जरा देखा नहीं चलते हुए।2
आसान उनकी राह हमसे हो गयी
मुश्किल हुई अपनी चले गाते हुए।3
मौसम गया है लोढकर सारा शुकूं
बेकस हुए पादप तने बिखरे हुए।4
कसमस कथाएँ झेलती कलिका रही
बनठन चले हैं आज वे निखरे हुए।5
बहतीं कहाँ खुलकर हवाएँ अब यहाँ
हँसते हुए तारे अभी सहमे हुए।6
रूकता कहाँ बेखौफ कातिल मनचला
अंदाज…
Added by Manan Kumar singh on June 27, 2016 at 11:00pm — 6 Comments
पलों को बीतने में लग रहीं सदियां
बेक़रारी हो औ सुकूं आये कब हुआ है ये
हसीन पल भी ज़िन्दगी के नहीं कटते काटे
और वो हैं क़ि रुक गए दहलीज़ पे आते आते
छा गए हैं वो ख़्वाब में क़हर बन के
कि पलकें भी अब झुकाने में बहुत डर लगता
उनके जाने की तारीख तो मुकम्मल लेकिन
वो आंएगे कब इसका कहाँ पता चलता...
आँख के आंसू सब बयां करते है
भरे गले से शब्द कहाँ झरा करते हैं
ये वफा थी न थी अब परवा कहाँ किसको
टूट कर दिल तो बस आहे…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 27, 2016 at 5:30pm — 3 Comments
जीने का अंदाज़ .....
अचानक क्या हुआ
हम बेआवाज़ हो गए
हमारे ही लम्हे
हमसे नाराज़ हो गए
कुछ भी तो न था
हमारे दरमियाँ
फिर भी सीने में
हज़ारों राज़ हो गए
हसरतें
लबों की दहलीज़ पर
दम तोड़ती रही
गर्म सांसें
लावे की तरह
राहे उल्फ़त में
एक जुगनू सी उम्मीद लिए
दौड़ती रहीं
हम दोनों के बीच में
क्या है शेष
जो हमको बांधे है
क्यों हम दोनों की आंखें
सागर में नहाई हैं
देखो ! उन…
Added by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 4:27pm — 6 Comments
पीड़ा तू आ
आ तेरा श्रृंगार करूँ
शब्दों के फूलों से
टूटे अंतरंगों को सजा लूँ
पीड़ा तू आ
तुझे हृदय में बसा लूँ
बौने मन की कद- काठी पर
प्रीत की लम्बी बेल चढ़ाई
लतर - चतर कर उलझ गई
ये कैसी मैने खेल रचाई
पीड़ा तू आ
तुझे पलकों पर बिठा लूँ
गर्द -गर्द धूमिल- सी चाँदनी
चाँद का रूप कितना मैला
रौंद कर सपनों को
टिड्डों का देखो दल निकला
पीड़ा तू आ
तुझे अधरों का सुख दूँ
सागर की उन्मुक्त लहरें…
Added by kanta roy on June 27, 2016 at 3:30pm — 20 Comments
Added by Mahendra Kumar on June 27, 2016 at 12:42pm — 6 Comments
“अम्मा हो सकता है कि पुलिस आपसे भी पूछताछ करे I आपको बस इतना कहना है कि मै तो हफ्ते भर पहले ही आई हूँ यहाँ , कुछ ज्यादा नहीं जानती और .." बेटा बोले जा रहा था पर सुमित्रा जी का दिमाग़ सुन्न था I
बेटे के यहाँ काम करने वाली बाई सीता ने कल रात पति से झगडे के बाद फाँसी लगा ली थीI
सुमित्रा जी दस दिन पहले ही बेटे के पास मुंबई आई थीं I बेटे बहू के काम पर जाने के बाद सीता के साथ सुख दुःख की बातें चलती रहती थीं उनकीI परसों बहू ने समझाया कि बाई से काम के अलावा ज्यादा बात चीत नहीं किया…
ContinueAdded by pratibha pande on June 27, 2016 at 10:30am — 16 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२ नया दर्द कोई जगा भी नहीं है |
न करना अभी बंद अपनी ये पलकें |
मुसलसल धड़कता कहीं जिस्म में दिल … |
Added by rajesh kumari on June 27, 2016 at 10:30am — 17 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
था हरा औ’ भरा साँवला कोयला
हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला
वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन
इसलिए हो गया साँवला, कोयला
चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये
जिन्दगी भर जला साँवला कोयला
खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये
जल के विद्युत बना साँवला कोयला
हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर
और जलता रहा साँवला कोयला
चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है
ऐसे लूटा गया…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 27, 2016 at 10:16am — 16 Comments
................... कल से आगे
‘‘हाँ ऐसे ! बहुत सुन्दर कुंभकर्ण !’’ सुमाली रावण और कुंभकर्ण को योग का अभ्यास करवा रहा था। कुंभकर्ण को अभी यहाँ आये तीन साल ही हुये थे। इस समय वह 8 साल का हो गया था। वह अभी से शारीरिक रूप से चमत्कारिक रूप से वृहदाकार था। केवल वृहदाकार ही नहीं था, अविश्वसनीय बल का स्वामी भी था। अभी से वह अच्छे-भले मनुष्य को परास्त कर देने की सामथ्र्य रखता था। उसकी माता के लिये उसे गोदी में उठाना क्या हिलाना तक संभव नहीं था। स्पष्ट दिख रहा था कि आने वाले समय में उसके समान…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on June 27, 2016 at 10:04am — 3 Comments
एक बहुत गरीब आदमी था। गाँव के लोगों के छोटे-मोटे काम करता रहता था , लोग जो दे देते उसी से अपने परिवार की गुजर बसर कर लेता था। गरीबी से परेशान फिर भी शांत। जीवन भी अनुभव के अलावा उसे कुछ दे नहीं रहा था। एक बार उसने सारा दिन गाँव के कुम्हार के घर काम किया। शाम को खुश होकर कुम्हार ने उससे कहा , जाओ एक बर्तन उठा लो , जो अच्छा लगे , जो तुम चाहो , बड़े से बड़ा।" पर उससे कुछ सोचते हुए एक छोटी सी गुल्लक उठाई। कुम्हार यह देख कर मुस्कुराया पर कुछ बोला नहीं। उसने कुम्हार को धन्यवाद दिया और अपने घर चला…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2016 at 9:30am — 17 Comments
" अरे साहब , क्या हो गया है तुमको , ऐसे जमीन पर ..... ! "
" कौन विमला ? इतने दिन कैसे छुट्टी कर ली तुमने .....आह ! मुझ बुढ़े का तो ख्याल करती "
" उठो ,चलो बिस्तर पर , ज्यादा बोलने का नही रे ! .... मेरा घर-संसार है । यहाँ काम करने से ज्यादा जरूरी है वो । "
" हाँ ,सही कहा , तुम्हारा अपना घर !"
" साहब ,एक बात कहूँ , अब तुम अकेले नहीं रह सकते हो , तुम्हारी बेटी को बुला लो "
" क्या कहा तुमने…
ContinueAdded by kanta roy on June 27, 2016 at 8:07am — 11 Comments
1- टूटता भ्रम
धराशायी हो जायेंगी आपकी धारणायें ,
छिन्न- भिन्न- सा होता प्रतीत होगा आपको
आपके रिश्तों का सच
एक बार , बस एक बार
उस झूठ के खिलाफ खड़े हो जाइये
डट कर चट्टान की तरह
जिसे बहुमत ने सच माना है
टूट जायेगा आपका भ्रम
आपके चारों तरफ भी भीड़ होने का
अपने पीछे अचानक प्रकट हुये शून्य को देख कर
ये बात और कि लड़ाइयाँ केवल इसीलिये नहीं लड़ी जातीं
कि , हम…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 27, 2016 at 6:30am — 17 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 26, 2016 at 6:00pm — 15 Comments
1212 212 122 1212 212 122
कभी हुयी थी निसार आंखे कभी बहारे हयात आई
नहीं दिखा फिर मुझे सवेरा सदैव हिस्से में रात आई
बहुत बटोरे थे स्वप्न आतुर बहुत सजाये थे ख़्वाब मैंने
मेरी मुहब्बत मेरी जिदगी विदा हुयी तब बरात आयी
घना तिमिर था न रश्मि कोई न सूझ पड़ता था पंथ मुझको
बिना रुके ही मैं अग्रसर था निदान मंजिल हठात आई
मुझे स्वयं पर रहा भरोसा नहीं जुटाये अनेक साधन
मुझे बनाने मुझे सजाने कभी-कभी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2016 at 5:00pm — 12 Comments
जबतक तलाश थी सहारे की ऐ नादां !
तन्हा हमें यूँ छोड़, कारवां गुज़र गये...
अब हम सहारा खुद के जब से बना किए
हम एक हैं, पर देखो कन्धे अनेक हैं
कागज़ की नाव की क्या थी बिसात, तैरे
जबतक न हवाएं-लहरें हो साथ मेरे
तिनके भी आंधियों मे वृक्षों से ऊपर लहरें
नामुमकिन होता मुमकिन, जब वक्त लेता फेरे
रुक न पाया सफर ये चलता रहा है राही
पर साथ साथ बढ़ती राहों की भी लम्बाई
किससे करे वो शिकवे होनी कहाँ सुनवाई
मंज़िल की…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 26, 2016 at 1:00pm — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
तुम्हारी जान ले लेगी किसी भी रोज ये चुप्पी
चलो माना ये चुप रहने से हल होंगे कई मुददे
कि सारे राज खोलेगी किसी भी रोज ये चुप्पी
जो रखते हैं लगा के होंठ पे ताले रिवाजों के
जुबां से उनके बोलेगी किसी भी रोज ये चुप्पी
तमस की आँधियों ने बाग को बर्बाद कर डाला
नयन अपने भिंगोयेगी किसी भी रोज ये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2016 at 10:00am — 9 Comments
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