२१२२/१२१२/२२ (११२)
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उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!
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मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,
उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!
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मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!
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जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,
हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!!
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सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,
मेरी हर बात में ख़राबी, हय!!
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भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,
“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!
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मौलिक /…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
एक चंचल
दूजा शांत
करे युद्ध
दो मन |
उड़ान भरता
ख्वाब बुनता
चंचल चितवन
एक मन |
सोचता रहता
कार्य करता
शांत बैठा
दूजा मन |
कैसा युद्ध
कौन जाने
कई माने
कई अनजाने |
कभी सावन
कभी ग्रीष्म
कभी बसंत
कभी शरद |
बदलता रहता
आक्रोश करता
खामोश बैठता
कैसा मन !
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 7:23pm — 2 Comments
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
जिन्दगी में कुछ लम्हे बेमिसाल तो आये
ख्वाब में खयालों में कुछ सवाल तो आये
बेखुदी में हैं अब भी, काश होश आ जाता
माँ को अपने बच्चे का कुछ खयाल तो आये
रूप में उधर चांदी , इश्क में इधर सोना
रोशनी बहुत होगी कुछ उछाल तो आये
फूल खूबसूरत है, है नहीं मगर खुशबू
हुस्न तो नुमायाँ है बोल-चाल तो आये
यूँ तो खून बहता है आदमी की धमनी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2016 at 4:00pm — 13 Comments
सौम्या की खास सहेली काफ़ी जतन के बाद भी लन्दन से शादी के एक दो दिन पहले ना पहुँच, ठीक उसी दिन पहुँच पायी।अपनी प्रिय सखी की पसंद को लेकर उसके मन में काफ़ी सवाल थे,जो मौका पाते ही निकल पड़े।
"तू बस एक वजह बता दे इस कोयले की खान से शादी करने की?"उसने एक नज़र स्टेज पर खड़े उसके दूल्हे डाल कर कहा।
"तमीज से बोल रमा!इतना तो याद रख ,तू मेरे पति के बारे में बात कर रही है।"
"अच्छा!!खूब ,जरा देख..,अपने पूरे कुटुंब को एक नज़र।इतनी हेठी शख्सियत तो तेरे ड्राइवर की भी नहीं।"
"शक्ल…
ContinueAdded by Rahila on July 1, 2016 at 3:00pm — 18 Comments
“अरे..अरे रे रे .... ये क्या कर रहे हो दिमाग तो खराब नहीं हो गया आप लोगों का... किराए दार होकर बिना बताये मेरे ही घर में ये तोड़ फोड़ क्यूँ?” घर के मुख्य द्वार जिसपर उसके स्वर्गीय पति का नाम लिखा था मजदूरों द्वारा हथौड़े से तोड़ते हुए देखकर आपा खो बैठी सावित्री|
“अरे कोई कुछ बोलता क्यूँ नहीं बंद करो ये सब वरना अभी पुलिस को बुलाती हूँ”
“हाँ बुला लीजिये आंटी जी ताकि आज आपको भी पता लगे किरायेदार कौन है वो तो मेरे सास ससुर ने अब तक मेरा व् मेरे पति का मुँह बंद कर रखा था आज कल…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 1, 2016 at 10:00am — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 1, 2016 at 6:30am — 8 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
फ़र्क करना है ज़रूरी इक नज़र में
बदतमीज़ों में तथा सुलझे मुखर में
शांति की वो बात करते घूमते हैं
किन्तु कुछ कहते नहीं अपने नगर में
शाम होते ही सदा वो सोचता है-
क्यों बदल जाता है सूरज दोपहर में
भूल जा संवेदना के बोल प्यारे
दौर अपना है तरक्की की लहर में
हो गया बाज़ार का ज्वर अब मियादी
और देहाती दवा है गाँव-घर में
आदमी तो हाशिये पर हाँफता है
वेलफेयर-योजनाएँ हैं…
Added by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 12:30am — 30 Comments
ज़िंदगी को छलने लगी .....
गज़ब हुआ
एक चराग़ सहर से
शब की चुगली कर बैठा
एक लिबास
अपने ग़म की
तारीकियों से दरयाफ़्त कर बैठा
कोई करीबियों से
फासलों की बात कर बैठा
मैंने तो
तमाम रातों के चांद
उस पर कुर्बान कर दिए थे
अपने ग़मग़ीन पैरहन पर
हंसी के पैबंद सिल दिए थे
अपनी आंखों के हमबिस्तर को
मैं चश्मे साहिल पे ढूंढती रहा
नसीमे सहर से
उसका पता पूछती रही
उम्मीदों की दहलीज़
नाउम्मीदी की…
Added by Sushil Sarna on June 30, 2016 at 8:35pm — 4 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 30, 2016 at 6:42pm — 13 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 30, 2016 at 3:36pm — 4 Comments
Added by Dr. Arpita.c.raj on June 30, 2016 at 2:51pm — 1 Comment
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
कब हुआ है पर मेरा सोचा हुआ
ले रहा हूँ साँस तो मैं हर घड़ी
सच तो ये मुझको मरे अरसा हुआ
कौन सुलझाता ये मेरी मुश्किलें
हर कोई अपने में जब उलझा हुआ
मैंने सबको अपना ही माना मग़र
दिल से कोई कब मेरा अपना हुआ
कोशिशें नाकाम ही होंगी सभी
वक़्त कब लौटा भला बीता…
ContinueAdded by deepak kumar shukla on June 30, 2016 at 1:00pm — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 30, 2016 at 7:10am — 2 Comments
फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ा
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इक तरफा यारी यार निभाऊँ क्यूँ कर ।।
फोकट में डेली चाय पिलाऊँ क्यूँ कर ।।(1)
रोज सुबह तू दूध जलेबी ठसक रहा,
ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर ।।(2)
बन हीरो भटक रहा खुर्राट निठल्ला,
तेरा खरचा अब और चलाऊँ क्यूँ कर ।।(3)
बनिया भी अपना पैसा माँग रहा है,
तेरी खातिर मैं नाक छुपाऊँ क्यूँ कर ।।(4)
सारे लफड़े-झगड़े तू देख सलट खुद,
तेरे लफड़ों में टाँग अड़ाऊँ क्यूँ कर ।।(5)
उस लड़की के…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 30, 2016 at 2:30am — 8 Comments
122 – 122 – 122 - 122
न मुश्किल बढ़ा आजमाने से पहले
नजर को मिला दिल लगाने से पहले
सफ़र ज़िन्दगी का रहा फिर अधूरा
खुदा याद आया न जाने से पहले
वो दिन रात हलकान पैसे में देखो
करे मोल बाज़ार आने से पहले
तुम्हे भी तो आखिर यही सब मिलेगा
जरा सोच लो तुम सताने से पहले
मुहब्बत में शर्तें तो होती नहीं हैं
सही पाठ पढ़ लो ज़माने से पहले
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गयी…
ContinueAdded by munish tanha on June 29, 2016 at 5:30pm — 4 Comments
क्या हुआ जो मौनी बाबा को आज क्रोध आ गया ? यह चर्चा चारों तरफ हो रही थी। सुबह से गली और चबूतरों पर बैठे लोग आश्चर्य प्रकट कर रहे थे। कि उनके जैसा संत क्यों क्रोधित हो गया। यह चर्चा करते हुए श्री बेनी बाबू ने कहा कि आखिर कोई तो बात ह ोगी िकवे इतने तैश में दिख रहे थे। जनार्दन जी का कहना था कि अरे भाई हो सकता है कि उन्हें या उनको समझाने वाले को कोई गलतफहमी हो गयी हो। इस रविन्द्र नाथ ने अपने जबड़े कसते हुए कहा कि क्या कहा जाय इस तरह से होना गांव की बदनामी का ही सबब हो सकता है । यदि बाबा गांव से जा…
ContinueAdded by indravidyavachaspatitiwari on June 29, 2016 at 2:00pm — No Comments
.............. कल से आगे
‘‘उठो वत्स रावण !
‘‘तुम दोनो भी उठो कुंभकर्ण और विभीषण !’’
आवाज सुन कर तीनों अचंभित हुये, यह किसकी आवाज थी। यह तो पहले कभी नहीं सुनी थी। कितनी गंभीर फिर भी कितनी मृदु।
‘‘आँखें खोलो वत्स ! अपने प्रतितामह से साक्षात नहीं करोगे ?’’
तीनों ने आँखें खोल दीं। सामने सच में ब्रह्मा खड़े हुये उन्हें आवाज दे रहे थे। ठीक वही छवि जैसी मातामह ने बताई थी। कमर में गेरुआ अधोवस्त, कंधे पर यज्ञोवपीत अत्यंत गौरवर्ण, लंबा कद, लंबी सी धवल दाढ़ी और सुदीर्घ…
Added by Sulabh Agnihotri on June 29, 2016 at 9:39am — 1 Comment
22 22 22 22 22 2 ( बहरे मीर )
है फर्क बहुत मेरे तेरे गुलज़ारों में
महज़ साम्य है विज्ञापित दीवारों में
तुम अच्छाई खोजो इन हत्यारों में
हम भी खुशियाँ खोजेंगे इन हारों में
कहीं खून से होली खेली जाती है
कहीं दूध है प्रतिबंधित त्यौहारों में
पत्थर होगा वो तुमने जो घर लाया
मोम कहाँ मिलते हैं इन बाज़ारों में
फुट पाथों को तुम भी रौंदोगे इक दिन
हो जाती है यही तेवरी कारों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 29, 2016 at 8:30am — 6 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 28, 2016 at 6:41pm — No Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 28, 2016 at 4:02pm — 22 Comments
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