Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2016 at 5:32pm — 5 Comments
कल से आगे .............
‘‘आप यह कृपाण सदैव अपने साथ ही रखते हैं, कभी अलग नहीं करते ?’’ वेदवती ने ठिठोली करते हुये रावण से प्रश्न किया।
‘‘यह कोई साधारण कृपाण नहीं है। यह चन्द्रहास है, स्वयं भगवान शिव ने मुझे प्रदान की है। इसके साथ ठिठोली रावण को सह्य नहीं है।’’
‘‘ऐसा क्या ? तो इसे कुटिया में पूजा में सजा कर क्यों नहीं रख देते ?’’
‘‘चन्द्रहास रावण का आभूषण है। रावण आर्यों की तरह मूर्ति पूजक नहीं है। उसके शिव मूर्तियों में नहीं, उसके हृदय में निवास करते हैं और उनका…
Added by Sulabh Agnihotri on July 30, 2016 at 9:23am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 29, 2016 at 10:41pm — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 29, 2016 at 10:33pm — 8 Comments
यादें....
यादें भी
कितनी बेदर्द
हुआ करती हैं
दर्द देने वाले से ही
मिलने की दुआ करती हैं
अश्कों की झड़ी में
हिज्र की वजह
धुंधली हो जाती है
चाहतों के फर्श पर
आडंबर की काई
बिछ जाती है
दर्दीले सावन बरसते रहते हैं
फिसलन भरी काई पर
अश्क भी फिसल जाते हैं
अब सहर भी कुछ नहीं कहती
अब दामन में नमी नहीं रहती
ज़माने के साथ
प्यार के मायने भी
बदल गए हैं
अब प्यार के मायने
नाईट क्लब के अंधेरों में…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2016 at 2:53pm — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
जफा कर यूँ मुहब्बत में कभी ऊपर नहीं होते
वफा के खेत दुनियाँ में कभी बंजर नहीं होते।1।
खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती
जहाँ राहों में मंजिल की पड़े पत्थर नहीं होते।2।
परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो
किसी की सादगी से बढ़ कोई जेवर नहीं होते।3।
नहीं चाहे बुलाता हो उसे फिर तीज पर नैहर
न छोड़े गर नदी नैहर कहीं सागर नहीं होते।4।
यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी
पहाड़ी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:25am — 11 Comments
कल से आगे .................
अयोध्या में धोबियों के मुखिया धर्मदास के पिता का श्राद्ध था। श्राद्ध कर्म तो पुरोहित को करवाना था किंतु भोज के लिये वह नाक रगड़ कर जाबालि से भी निवेदन कर गया था। जाबालि ने स्वीकार भी कर लिया था। शूद्रों की बस्ती में उत्तर की ओर धोबियों के घर थे। अच्छी खासी बस्ती थी - करीब ढाई सौ घरों की। घर की औरतें प्रतिदिन सायंकाल द्विजों के घरों में जाकर वस्त्र ले आती थीं और दूसरे दिन पुरुष उन्हें सरयू तट पर बने धोबी घाट पर धो लाते थे। बदले में उन्हें जीवन यापन के…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on July 29, 2016 at 9:04am — 1 Comment
212 212 212 2
जिन्दगी अब सरल हो रही है
बात हर इक गजल हो रही है
दलदली हो चुकी है जमीं पर,
हर कली अब कमल हो रही है
तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें
नीति बेशक सफल हो रही है
आ रहा है कहीं से उजाला
रौशनी आजकल हो रही है
मखमली हो रही हैं हवाएं
मेंढकी भी विकल हो रही है
है दरोगा बड़ा लालची वो
धारणा अब अटल हो रही है
मौलिक/अप्रकाशित.
Added by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2016 at 11:00pm — 15 Comments
क्या हूँ मैं, कौन हूँ मैं,
कहाँ जा रहा हूँ,
खुद को टटोला तो पाया,
अनजान मंजिल है, अँधेरी राह है ।
और मैं एक अनजान राही हूँ ।।
भटकने का खौफ़ है ।
तो मंजिल की उम्मीद भी ।।
उम्मीद कम है-खौफ़ ज़्यादा ।
फिर भी उम्मीद की चादर में खौफ़ को बाँधे चले जा रहा हूँ ।।
ढांढस बंधाते हिम्मत जुटाते चला जा रहा हूँ ।
मंज़िल मिलेगी यही सोच कर बढे जा रहा हूँ ।।
चले जा रहा हूँ , बस चले जा रहा हूँ ।
बदन कहता है रुक जा,…
Added by Ashutosh Kumar Gupta on July 28, 2016 at 11:00pm — 8 Comments
दिल के निहाँ ख़ाने में ....
लगता है शायद
उसके घर की कोई खिड़की
खुली रह गयी
आज बादे सबा अपने साथ
एक नमी का अहसास लेकर आयी है
इसमें शब् का मिलन और
सहर की जुदाई है
इक तड़प है, इक तन्हाई है
ऐ खुदा
तूने मुहब्बत भी क्या शै बनाई है
मिलते हैं तो
जहां की खबर नहीं रहती
और होते हैं ज़ुदा
तो खुद की खबर नहीं रहती
छुपाते हैं सबसे
पर कुछ छुप नहीं पाता
लाख कोशिशों के बावज़ूद
आँख में एक कतरा रुक…
Added by Sushil Sarna on July 28, 2016 at 2:00pm — 15 Comments
कल से आगे ..................
रावण की दुनियाँ जैसे वेदवती के ही चारों ओर केन्द्रित होकर रह गयी थी। अपनी सारी संकल्पशक्ति समेट कर वह अपने चिंतन को दूसरी ओर मोड़ने का प्रयास करता पर चिंतन था कि घूम-फिर कर वहीं आकर अटक जाता। वेदवती की छवि उसकी आँखों में रह-रह कर कौंध जाती थी। मन छटपटाने लगता था। बड़े प्रयास से वह कई दिन तक अपने को रोके रहा पर फिर एक दिन वह दिमाग को भटकाने की नीयत से जंगल में निकल गया। पता नहीं कब तक घूमता रहा।
‘‘अरे वैश्रवण ! इतने दिन तक दर्शन ही नहीं…
Added by Sulabh Agnihotri on July 28, 2016 at 8:48am — No Comments
पहले के जमाने में कुटनी औरते आती थीं और आपका सारा भेद लेकर चली जाती थी। आज भी यह परम्परा बरकरार है। कुछ औरतों का काम है कि अन्य घरों का समाचार लेकर अपने इच्छित स्थानों पर पहुंचाती हैं।और उसके द्वारा संबंधित व्यक्ति का मनमाना नुकसान करती हैं। क्या आज के समाज में ऐसे लोगों का बहिष्कार संभव नहीं है? यदि आप ऐसों से बच जाते हैं तो आगे आप का भला ही भला है।ी
एक ऐसी ही कहानी है कुटनी की जो हमारे गांव की है और आये दिन किसी न किसी के घर में हंगामा बरपा कर ही चैन लेती है। नाम है उसका रेशमी काकी।…
Added by indravidyavachaspatitiwari on July 27, 2016 at 6:30pm — No Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on July 27, 2016 at 5:38pm — 10 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/ ११२
ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है
पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है
गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है
वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है
काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा ज़िंदगी का…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 27, 2016 at 2:30pm — 14 Comments
२१२ २१२ २१२ २
आदमी आदमी का सहारा
एक साथी बिना क्या गुजारा
गीत को साज भी है जरूरी
नाव भी ढूँढती है किनारा
धूप है तो यहाँ छाँव भी है
राह के बीच में ठाँव भी है
सोचता क्या चला आ बटेऊ
खेत है पास में गाँव भी है
शान्ति के मार्ग जाऊँ कहाँ से
ज्ञान का दीप लाऊँ कहाँ से
लोभ ने मोह ने राह रोकी
मोक्ष मैं आज पाऊँ कहाँ से
देश में बीज क्या बो रहे हैं
क्यूँ बुरे हादसे हो रहे…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:38am — 8 Comments
कल से आगे .................
कैकेयी के प्रासाद में तीनों महारानियाँ उपस्थित थीं। दासियों को बाहर भेज दिया गया था अतः पूर्ण एकान्त था।
‘‘जीजी ! नारद मुनि ने तो पलट कर दर्शन ही नहीं दिये।’’ कैकेयी बोली।
‘‘हाँ बहन ! उत्कंठा तो मुझे भी हो रही है। आगे की क्या योजना है जाने !’’
‘‘अरे आप लोग व्यर्थ चिंतित हैं। कुमारों को बड़ा तो होने दीजिये। अभी चार बरस की वय में ही क्या रावण से युद्ध करने भेज देना चाहती हैं ?’’ यह सुमित्रा थी, सबसे छोटी महारानी।
सुमित्रा को…
Added by Sulabh Agnihotri on July 27, 2016 at 8:40am — No Comments
नव गीत
बहुत दिनों के बाद
मैंने यह डायरी खोली है।
आज नहीं है तू ओ! सजनी
मैं हूं सागर के बिन तरणी
पंछी बन कैदी हूं घर में
खड़ी हुई ज्यों रेल सफर में
बहुत दिनों के बाद
तेरी यह डायरी खोली है।
पढ़ लेता मैं डायरी पहले
कह देता जो चाहे कहले
घुट घुट के न रोने देता
कहा हुआ सब तेरा करता
बहुत दिनों के बाद
मर्म यह डायरी खोली है|
पता चला है आज ही मुझको
कितनी बेचैनी थी तुझको
तभी तो तूने कदम…
Added by Abha saxena Doonwi on July 27, 2016 at 7:30am — 3 Comments
अन्तर कितना हो गया, कौमें नहीं करीब
पहला छोर अमीर तो, अन्तिम छोर गरीब |६|
शुद्ध भाव से सीखते, कपटीपन का पाठ
बिना भ्रष्ट आचार के.नहीं राजसी ठाठ |७|
जनता हित के नाम से, नेता करते काम
पेटी भरते स्वयं की, ले भारत का नाम |८|
काला धन सोने नहीं, देता सुख की नींद
कर भरकर ईमान से, हँसो मनाओ ईद |९|
रख कर 'काली' सम्पदा, किया भ्रष्ट ईमान
सब जनता मानते उन्हें,,कलियुग का भगवान्…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 27, 2016 at 6:00am — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 26, 2016 at 11:29pm — 11 Comments
अधूरे सपने धोती रहीं .....
मैं तो जागी सारी रात
तूने मानी न मेरी बात
कैसी दी है ये सौगात
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं
झूमा सावन में ये मन
हिया में प्यासी रही अग्न
जलता विरह में मधुवन
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं.....
नैना कर बैठे इकरार
कैसे अधर करें इंकार
बैरी कर बैठा तकरार
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं
मन के उड़ते रहे विहग…
Added by Sushil Sarna on July 26, 2016 at 9:30pm — 5 Comments
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