कलम की नॊंक सॆ
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फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम,गर्दन का दान दिया करतॆ हैं,
गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी,जीवन-दान दिया करतॆ हैं,
क्षमाशीलता का जब कॊई, अपमान किया करता है,
अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है,
भारत की पावन धरती नॆं, ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं,
मातृ-भूमि कॆ चरणॊं मॆं, जिननॆ निजशीश चढ़ायॆ हैं,
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2013 at 8:30pm — 16 Comments
अफ़सोस है दुनिया में दीवाने कहाँ जायें.
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.
यातना वंचना असह्य हो,
सहचरी वेदना बनी सदा.
निर्जन पथ निर्मम मीत मिला,
व्याकुल करती मदहोश अदा.
उलझन में पड़ा जीवन सुलझाने कहाँ जायें.
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.
पल में विचलित कर देती हैं,
ये प्यार मुहब्बत की बातें.
नयनों मे कोष अश्रुओं का,
क्यूँ काटे नहीं कटती रातें.
राँझा की तरह बोलो मिट जाने कहाँ जायें..
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 10, 2013 at 8:00pm — 10 Comments
हाइकु मुक्तिका:संजीव 'सलिल'
*
जग माटी का
एक खिलौना, फेंका
बिखरा-खोया.
फल सबने
चाहे पापों को नहीं
किसी ने ढोया.
*
गठरी लादे
संबंधों-अनुबंधों
की, थक-हारा.
मैं ढोता, चुप
रहा- किसी ने नहीं
मुझे क्यों ढोया?
*
करें भरोसा
किस पर कितना,…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 7:30pm — 10 Comments
राहबर जब हवा हो गई
नाव ही नाखुदा हो गई
प्रेम का रोग मुझको लगा
और दारू दवा हो गई
जा गिरी गेसुओं में तेरे
बूँद फिर से घटा हो गई
चाय क्या मिल गई रात में
नींद हमसे खफ़ा हो गई
लड़ते लड़ते ये बुज़दिल नज़र
एक दिन सूरमा हो गई
जब सड़क पर बनी अल्पना
तो महज टोटका हो गई
माँ ने जादू का टीका जड़ा
बद्दुआ भी दुआ हो गई
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 10, 2013 at 4:30pm — 20 Comments
जाने कौन कहां से आकर
मुझको कुछ कर जाता है
मेरी गहरी रात चुराकर
तारों से भर जाता है
जाने कौन.........
देख नहीं मैं पाउं उसको
दबे पांव वह आता है
और न जाने कितने सपने
आंखों में बो जाता है
जाने कौन.......
एक दिन उसको चांद ने देखा
झरी लाज से उसकी रेखा
मारा-मारा फिरता है अब
दूर खड़ा घबराता है
जाने कौन....
चैताली वो रात थी भोली
नीम नजर भर नीम थी डोली
वही तराने सावन-भादो
उमड़-घुमड़ कर गाता है …
Added by राजेश 'मृदु' on January 10, 2013 at 3:00pm — 6 Comments
नोंच डालो ,
अस्मिता को ,बेच डालो ,
हम यही कहते रहेंगे
मौन का ...
इम्तिहान न लो ..!!
सूरज से युद्ध
करने का दुस्साहस
करता जुगनू प्रतिदिन
आकाश बँधाता ढाढस
ज़ुल्म हम सहते रहेंगे ,
हम यही कहते रहेंगे
शौर्य का
अनुमान न लो ..!!
चीखती रह जाएँगीं
विधवा घाटियाँ
जर्जर सी छत की
छूट गईं लाठियाँ
प्रतीक्षारत ,आक्रमण का
अनुचित परिणाम न हो
हम यही कहते रहेंगे ,
हौसले का ,
अनुमान न लो ..!!
मौन का,इम्तिहान न…
Added by भावना तिवारी on January 10, 2013 at 2:30pm — 5 Comments
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये,
प्यार की रस्म को आगे बढ़ाते रहिये |
अंधेरों मे ही ना गुजर जाय जीवन का सफ़र,
प्यार की शमा को दिल मे जलाते रहिये |
रहता यूँ चमन मे बिजलियों के गिरने का डर,
चाहत के फूलों को दिल मे खिलाते रहिये |
रोने गाने मे हो ना जाएँ सारी उमर तमाम,
उलफत के जाम को खुद पीकर पिलाते रहिये |
चले है जब तो मिल ही जाएगी मंज़िल हमको
अलबिदा कहते हुए हाथ हिलाते रहिये |
Added by Dr.Ajay Khare on January 10, 2013 at 2:30pm — 3 Comments
दहक उठे अंगारे धरती हुई रक्त से फिर पग पग लाल
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 2:01pm — 6 Comments
मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
*
क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.
बिन कहे भी रहा नहीं जाता..
काट गर्दन कभी सियासत की
मौन हो अब दहा नहीं जाता..
ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,
ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.
सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..
हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.
सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..
देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.
कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??
सर न हद से अधिक उठाना तुम…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:30am — 5 Comments
मुक्तिका :
नया आज इतिहास लिखें हम
संजीव 'सलिल'
*
नया आज इतिहास लिखें हम.
गम में लब पर हास लिखें हम..
दुराचार के कारक हैं जो
उनकी किस्मत त्रास लिखें हम..
अनुशासन को मालिक मानें
मनमानी को दास लिखें हम..
ना देवी, ना भोग्या मानें
नर-नारी सम, लास लिखें हम..
कल की कल को आज धरोहर
कल न बनें, कल आस लिखें हम..
(कल = गत / आगत / यंत्र / शांति)
नेता-अफसर सेवक…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:00am — 4 Comments
कट गई है लहर
जाने क्यूँ कुछ ऐसा-ऐसा लगता है
कि जैसे कट गई लहर नदी से,
वापस न लौट सकी है,
और ज़िन्दगी इस कटी लहर में धीरे-धीरे
तनहा तिनके की तरह …
ContinueAdded by vijay nikore on January 9, 2013 at 6:00pm — 7 Comments
==========ग़ज़ल===========
कभी तो पास में आकर सदा सुनो दिल की
ज़रा सी चाह और ये इल्तजा सुनो दिल की
कहीं भी आप रहो हो न कोई दर्दो गम
जुबाँ से मेरे निकलती दुआ सुनो दिल की
छलक गए है जो प्याले निगाह मिलते ही
यूँ ले रही है नज़र क्या रजा सुनो दिल की
ग़ज़ब हुनर जो लिए खेलते हो तुम दिल से
कभी कभी ही सही बेबफा सुनो दिल की
अगर मगर तो हमेशा बजूद में होगा
कभी तो "दीप" यूँ ही बेवजा सुनो दिल की
संदीप पटेल"दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 4:27pm — 7 Comments
आदिकाल से नारी स्वयं में है पहचान,
क्यों कर अबला बनी है सर्वशक्तिमान,
दुर्गा अहिल्या शबरी सावित्री रूप भाता,
दुष्ट दलन श्रृष्टि कर्ता दुःख भंजन माता,
बहना बेटी भार्या बन परिवार में आती,
उड़ेल स्नेह कई रूपों में संस्कार जगाती,
धरती सा सीना इसका वात्सल्य की मूर्ति,
त्याग समर्पण स्नेह से करती इच्छा पूर्ति,
नाहक पुरूष पुरुषार्थ दिखाते लज्जा न आती,
न कोई और रिश्ता हो ये माता तो कहलाती|
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
९-१-२०१३
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 9, 2013 at 4:00pm — 10 Comments
सुन ले कायर पाकिस्तान
नहीं झुकेगा हिन्दुस्तान
बात से पहले समझायेंगे
तुम क्या हो ये बतलायेंगे
भारत के वीरों का गहना
संयम शांति जतलायेंगे
अगर समझ फिर भी न पाया
मारें थप्पड़ खींचें कान .......................
गीदड़ की न चाल चलो तुम
छुप छुप कर न वार करो तुम
शेरों से लड़ने के खातिर
कुछ हाथी तैयार करो तुम
बच्चा बच्चा वीर यहाँ का
हमको है खुद पर अभिमान .................................
घुसपैठी को आज तजो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 3:54pm — 7 Comments
हँस-हँस कर करते हैं आँसू ,सुख दुःख का व्यापार ,
बाहर वाली चौखट दुखती , चुभते वन्दनवार !!
मुरझाकर भी हर पल सुरभित ,पात-पात साँसों का,
मन को मजबूती देता है ,संबल कुछ यादों का !
क्षण भर हँसता,बहुत रुलाता,कुछ अपनों का प्यार ,
सारी उमर बिता कर पाया,यह अद्भुत उपहार ..!!
सिहरन नस-नस में दौड़े जब,हाँथ हवा गह जाती,
गुजरी एक जवानी छोटी, बड़ी कहानी गाती !
यूँ तो गँवा चुके हैं अपनी,सज धज सब श्रृंगार ,
है अभिमान अभी तक करता,नभ झुककर सत्कार…
Added by भावना तिवारी on January 9, 2013 at 2:00pm — 8 Comments
दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
मनहर ने मन हर लिया, दिलवर दिल वर मौन.
पूछ रहा चितचोर! चित, चोर कहाँ है कौन??
*
देख रही थी मछलियाँ, मगर मगर था दूर.
रखा कलेजा पेड़ पर, कह भागा लंगूर..
*
कर वट को सादर नमन, वट सावित्री पर्व.
करवट ले फिर सो रहे, थामे हाथ सगर्व..
*
शतदल के शत दल खुले, भ्रमर करे रस-पान.
बंद हुए शतदल भ्रमर, मग्न करे गुण-गान..
*
सर हद के भीतर रखें, सरहद करें न पार.
नत सर गम की गाइये,…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 9, 2013 at 11:30am — 6 Comments
इन दिनों
Added by rajluxmi sharma on January 9, 2013 at 8:15am — 10 Comments
Added by seema agrawal on January 9, 2013 at 7:32am — 12 Comments
जिस तरह दिनकर चमकता
व्योम में,
अलविदा कहता निशा को,
बादलों के झुण्ड को
पीछे धकेले ।
काश होता एक सूरज
ख़ुशी का भी ।
कोई तापता धूप सुबह की,
कोई बिस्तर डाल देता दोपहर के घाम में ।
खुशनुमा गरमी भी होती
कम व ज्यादा,
पूष से ज्येष्ठ तक ।
और पसीना भी निकलता,
इत्र सा ।
काश कल्पा हो उठे साकार,
एक 'खुशकर' हो भी जाये
दिवाकर सा ।।
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 8, 2013 at 7:30pm — 6 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:30am — 4 Comments
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