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आंसू ...........ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं

ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं

बिना बोले कभी आंसू बहुत कुछ बोल जाते हैं

समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है

......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||

सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की

पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे

ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है

कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||

कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर

बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं

करे जब याद माँ का घर बहू जो बन…

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Added by Manoj Nautiyal on February 1, 2013 at 4:30pm — 8 Comments

फासला

मेरे आने और तुम्हारे जाने के बीच

बस चंद कदमों का फासला रहा

न मै जल्दी आया कभी

न कभी तुमने इंतज़ार किया

ये फासला ही तो था

जिसे हमने

संजीदगी और ईमानदारी के साथ निभाया

फासले को…

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Added by नादिर ख़ान on February 1, 2013 at 11:30am — 15 Comments

फिर भी क्‍योंकर

मन में अक्षय स्‍नेह सभी के

समरस भाव प्रवणता है

फिर भी जाने क्‍योंकर सबने

बांटी कलुष,कृपणता है

छूत-पाक का लावा-लश्‍कर

हुलस चूम कब यम आया

कसक धकेले, सदा अकेले

बूंद-बूंद कब ग़म आया

फंसा जुए में गला सभी का

पगतल अतल विकलता है

जाने फिर भी हर लिलार पर

किसने मली खरलता है

तपिश उड़ेले स्‍वाद कषैले

लिए जागते दीप कहां

रूचिर अधर पर लुटे प्राण को

मिला दूसरा सीप…

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Added by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:19am — 10 Comments

ग़ज़ल : बुना कैसे जाये फ़साना न आया

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)

(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२

बुना कैसे जाये फ़साना न आया,

दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,

पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,

चला कारवां चार कंधों पे सजकर,

हुनर था बहुत…

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Added by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 10:59am — 21 Comments

उल्लाला गीत: जीवन सुख का धाम है -संजीव 'सलिल

अभिनव प्रयोग-

उल्लाला गीत:

जीवन सुख का धाम है

संजीव 'सलिल'

*

जीवन सुख का धाम है,

ऊषा-साँझ ललाम है.

कभी छाँह शीतल रहा-

कभी धूप अविराम है...*

दर्पण निर्मल नीर सा,

वारिद, गगन, समीर सा,

प्रेमी युवा अधीर सा-

हर्ष, उदासी, पीर सा.

हरी का नाम अनाम है

जीवन सुख का धाम है...

*

बाँका राँझा-हीर सा,

बुद्ध-सुजाता-खीर सा,

हर उर-वेधी तीर सा-

बृज के चपल अहीर सा.

अनुरागी निष्काम है

जीवन सुख का धाम…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2013 at 10:30am — 6 Comments

विवशता ..!!

रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!
उठती भाप,
बढ़ता ताप,
खौलता धमनियों में खून
मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को
चिमटा,बेलन घर के अपने थे
आग पर चढ़ा दिया
जला दिया
इच्छाओं को ..
मैं चुपके से देखती हूँ
इन रोटियों में अक्स अपना !!
आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
~भावना

Added by भावना तिवारी on February 1, 2013 at 8:46am — 9 Comments

"एक प्रयास"

एक प्रयास-;

सभी गुरुजनों व् मित्रों का सहयोग और अमूल्य सुझाव चाहूँगा!!

जान दे देते है प्यार में ,

ऐसे भी लोग है इस संसार में !

इतनी अथाह श्रद्धा कैसे ,

"दीपक" क्या वे बीमार थे प्यार में!!

इश्क का छूरा लेकर टहलती है ,

जहाँ मिले वहीँ हलाल देती है !

बड़ी पारखी नज़र है इनकी,

मोहब्बत के मारों को पहचान लेती है!

मनाने चले थे इद,

हो गयी बकरीद !

प्यार किया था जुर्म नहीं,

"दीपक" ऐसी ना थी उम्मीद!

निस्वार्थ प्रेम से जो जाता ,

सारी…

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Added by ram shiromani pathak on January 31, 2013 at 9:36pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता-सह-आयोजन : एक विशद रिपोर्ट

ई-पत्रिका ओपेन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम (प्रचलित संज्ञा ओबीओ) अपने शैशवाकाल से ही जिस तरह से भाषायी चौधराहट तथा साहित्य के क्षेत्र में अति व्यापक दुर्गुण ’एकांगी मठाधीशी’ के विरुद्ध खड़ी हुई है, इस कारण संयत और संवेदनशील वरिष्ठ साहित्यकारों-साहित्यप्रेमियों, सजग व सतत रचनाकर्मियों तथा समुचित विस्तार के शुभाकांक्षी नव-हस्ताक्षरों को सहज ही आकर्षित करती रही है.



प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकरजी की निगरानी तथा…

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Added by Saurabh Pandey on January 31, 2013 at 8:30pm — 12 Comments

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब 

तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता 

मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को 

तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||



तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में 

वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था 

तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी 

तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||



नज़र किसकी लगी…

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Added by Manoj Nautiyal on January 31, 2013 at 7:30pm — 9 Comments

"समीकरण"

"समीकरण"

कागज़ पर

दिल के समीकरणों से उलझा

सिद्ध क्या करना है ???

मुहब्बत

नफरत

आज़ादी

या बंदिशें

क्या हल होगा ??

कर्म करो फल बाद में देखेंगे

किन्तु आगाज कहाँ से करूँ

दिल से

या दिमाग से ???

लीजिये बन गया न

समीकरण

एक वाक्य

हमारे बड़े बड़े शाश्त्र कहते हैं

प्रेम अनंत है

अर्थात

प्रेम बराबर अनंत

अनंत अर्थात

अर्थात

हाँ गगन

तो प्रेम बराबर गगन

अर्थात प्रेम

गगन के समतुल्य है…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 4:23pm — 5 Comments


मुख्य प्रबंधक
हास्य घनाक्षरी - 1 / गणेश जी बागी

(1)

कुत्ते संग सोते हुए, फोटो एक खिचवा के,

फेस बुक पे झट से, चेंप दी मैडम जी |

लाइक और कमेंट बीच एक श्रीमान ने,

लिख दिया काश होता, कुत्ता मैं मैडम जी |

उल्टा पुल्टा सोचो नहीं, कुछ भी यूँ लिखो नहीं,

ये तो…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 31, 2013 at 2:00pm — 24 Comments

झूठ का सच (व्‍यंग्‍य)

झूठ सुहाना होता प्रियवर

सबके ही मन भाता है

ऐसी है यह लिपि अनोखी

हर भाषा में चल जाता है

झूठ धर्म इतना समरस है

हर देश में रच-बस जाता है

समता का संदेश सुहावन

जन-जन में फैलाता है

झूठ जानती केवल अपनाना

नहीं किसी को ठगती है

सातों जन्‍म निभाती सुख से

वफा हमेशा करती है

झूठ तो एक भोली कन्‍या है

जो चाहे मन बहलाता है

जब चाहे जी अपनाता इसको

जब चाहे जी ठुकराता…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

दोहे - एक प्रयास

शब्दों के भण्डार से, भरके मीठे बोल,

बेंचो घर-घर प्रेम से, दिल का ताला खोल,

नैनो से नैना मिले, बसे नयन में आप,

मधुर-मधुर एहसास का, छोड़ गए हो छाप,

मुख में ऐसे घुल गया, जैसे मीठा पान,

भाता सबको खूब है, दोहों का मिष्ठान,

मन में लागी है लगन,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 12:13pm — 15 Comments

कलयुग

मान है,सम्मान है.

पर ईमान नही.

धन है दौलत है,

पर नियत नही.

चाह आसमान में उड़ने की,

पर मेहनत नही.

मंजिले है राहे है,

पर मुसाफ़िर नही.

मंदिर है भगवान है,

पर भक्त नही.

माँ है बाप है ,

पर सेवा नही.

भाई है बहन है,

पर प्यार नही.

नेता है भ्रष्टाचार है,

पर विकास नही.

संत है सत्संग है,

पर सत्संगति नही.

जन्म है मृत्यु है,

पर भय नही.

Added by Aarti Sharma on January 30, 2013 at 11:30pm — 24 Comments

बधू चाहिए,

बधू चाहिए, बधू चाहिए

अपने लल्ला के लिए एक बधू चाहिए

सुंदर सुशील पढ़ी लिखी गृह कार्य में दक्ष

सीता गीता रीता या मधु चाहिए

दहेज़ चाहिए न दान चाहिए

आपका प्यार व सम्मान चाहिए

लल्ला हमारा है गुणों की खान

देखने में लगता है सलमान खान

बी ई की पढ़ाई करी है 

हमने लाखों में फीस भरी है 

अच्छे पैकेज का वो कर रहा वेट

शादी में…

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Added by Dr.Ajay Khare on January 30, 2013 at 11:00pm — 8 Comments

बहुत अच्छी है या रिश्वत बुरी है

वो जो कहते थे के चाहत बुरी है

दिवाने हो गए हालत बुरी है

बना अंधा फखत मगरूर कर दे

बढे गर इस कदर ताकत बुरी है

पचा पाए नहीं खैरात की जो

वही कहते हैं के दावत बुरी है

गँवा चैनो सकूँ ईमान अपना

पता पड़ता है के दौलत बुरी है

कहो मत बेबफा हमको हमनवा  

क़ज़ा दे दो न ये जिल्लत बुरी है

उसे लगता है दिल्लगी हँसना

मेरे हँसने की यूँ आदत बुरी है  

कतारों में खड़े रहना है…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 10:06pm — 6 Comments

प्रेम की बात करते हो

प्रेम की बात करते हो बड़े ही गर्व में रह कर 

प्रेम जब हो गया तुमको पहन ली शर्म की चादर ||



जहाँ पर प्यार होता है वहां इनकार होता है 

वहीँ इकरार की खातिर तड़पते हैं कई रहबर ||



गुरूर-ए -इश्क में रहना रिवाज -ए -हुस्न की फितरत

अदाओं की पनाहों में मिटे आशिक कई बनकर ||



तुम्हे मालूम है जब भी हमारा दिल धड़कता है 

मुझे मालूम होता है तुम्हारी याद है दिलबर…

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Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 9:45pm — 1 Comment

व्यर्थ न निकले साँस

नवधा भक्ति पर आधारित दोहे
*लक्ष्मण लडीवाला
मन प्रपंच में नहि लगे, व्याकुलता बढ…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

देश हमारा

देश हमारा

देश हमारा कितना प्यारा , बोलें सब मीठी बोली ।

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई  , सब  मिलकर खेलें होली ।

बहती रहतीं पावन  नदियाँ , सबकी भरतीं हैं झोली ।

हरे भरे फसल उगाकर ही , लोग मानते रंगोली ।

मुकुट  जिसका हिमालय जैसा , ऐसा देश हमारा है ।

जिसका पांव पाखरे निसदिन , हिन्द सागर की धारा है ।

वेष  भूषा अलग अलग है , अलग अलग ही है बोली ।

सभी लोग आदर करते हैं , एक रहे  चाहे टोली  ।

देश की शान पर  मरते हैं , ऐसा देश हमारा है ।

विश्व विजयी तिरंगा झंडा  , हम…

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Added by Shyam Narain Verma on January 30, 2013 at 2:40pm — 4 Comments

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती…

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Added by Ashok Kumar Raktale on January 30, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

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