ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू'अ
2122 / 1212 / 22
ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं
जान आफ़त में डाल बैठे हैं [1]
दिल से हम को निकाल बैठे हैं
देखिए पुर-मलाल बैठे हैं [2]
कह चुके हैं हमें वो जाने को
फिर भी देखो मजाल बैठे हैं [3]
बढ़ गए आगे सब हुनर वाले
हम यहीं बे-कमाल बैठे हैं [4]
अब ज़रूरत नहीं सलाहों की
हम तो सिक्का उछाल बैठे हैं [5]
मेरे और उनके दरमियाँ जाने
कितने ही माह-ओ-साल बैठे हैं…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on June 8, 2020 at 12:30pm — 13 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मारा करे हैं लोग जो गम को शराब से
लाते खुशी को देखिए कितने हिसाब से।१।
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खुशबू है भारी भूख पे सुनते जहान में
गेहूँ रहा अलीक न यूँ ही गुलाब से।२।
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लाता नहीं है होश भी अपने ही साथ क्यों
शिकवा है हमको एक ही यारो शबाब से।३।
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साधी है हमने यूँ नहीं हर एक तिश्नगी
गुजरा है अपना दौर भी यारो सराब से।४।
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उनको तो कुर्सी चाहिए पापों की नींव पर
मतलब न रखते आज भी सेवक सवाब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2020 at 11:11am — 2 Comments
ग़म के आंसू पी लेते हैं जताते भी नही
सताना सह लेते हैं वो सताते भी नहीं
रूठना आदत है उनकी कोई उनसे सीखे
गर हम रूठ जाएं तो कभी मनाते भी नहीं
इश्क़ में अश्क़ का नशा बहुत गहरा होता है
ज़ाम अश्क़ का हो तो अर्क मिलाते भी नहीं
मेरे दिल की बात तो अक्सर कह देता हूँ मैं
उनके भीतर का ज़लज़ला वो बताते भी नहीं
उनके नूर केे दीदार का इंतज़ार कब से है
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 8, 2020 at 10:19am — 4 Comments
(2122 1212 22)
दूर की रौशनी से क्या कहते
था अंधेरा किसी से क्या कहते
जगमगाती सियाह रातों में
दर्द की चांदनी से क्या कहते
सारा पानी किसी ने रोका था
बेवजह हम नदी से क्या कहते
सामने उसके गिड़गिड़ाए थे
उसके खाता-बही से क्या कहते
अब वो हैवान बन गया तो फ़िर
हम उसी आदमी से क्या कहते
पी गए ख़ूं भी लोग सहरा में
आलमे-तिश्नगी से क्या कहते
तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हो …
Added by सालिक गणवीर on June 7, 2020 at 4:30pm — 7 Comments
कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम
कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम
हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम
अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम
हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम
वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम
डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dimple Sharma on June 7, 2020 at 2:36pm — 10 Comments
2122 1122 1122 22
दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया ज़ख़्म कहीं था भी नहीं ।।
काश वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख़्स किसी का भी नहीं ।।
क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।
मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साक़ी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।
सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगा ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2020 at 10:00am — 10 Comments
2122 2122 212
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जो तुम्हारा है हमारा क्यों नहीं
ये किसी ने भी बताया क्यों नहीं
शह्र से मज़दूर आए गांव क्यों
वक़्त पर उनको सँम्हाला क्यों नहीं
लाख तारे आसमाँ पर थे मगर
इक भी मेरी छत पे आया क्यों नहीं
ख़्वाहिशों की भीड़ से ही पूछ लो
मुझको इक पल का सहारा क्यों नहीं
ज़िन्दगी भी दे रही ता'ना हमें
लफ़्ज़ खु़शियों का लिखाया क्यों नहीं
हारते हैं ग़म से "निर्मल" रोज़ ही
जीतना हमको सिखाया क्यों नहीं…
Added by Rachna Bhatia on June 6, 2020 at 9:00pm — 3 Comments
जानकर औक़ात अपनी वो हदों में क़ैद है
हर परिंदा आज अपने घोंंसलों में क़ैद है।।
जीत लेगा मौत को भी आदमी यूँ एक दिन
इस तरह की सोच सबकी हसरतों में क़ैद है।।
क्रोध लालच दम्भ नफ़रत ज़ात मजहब को लिए
हर कोई अनजान सी परछाइयों में क़ैद है।।
कब कहाँ किस को दग़ा दें रहनुमा इस देश के
झूठ मक्कारी तो उनकी आदतों में क़ैद है।।
जिस शजर की छाँव में बारात सजती थी कभी
आज वो वीरान बनके रतजगों में क़ैद है।।
टूट कर ख़ामोश जो…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 5, 2020 at 3:00pm — 15 Comments
वहाँ एक आशिक खड़ा है ।
जो दिल तोड़ कर हँस रहा है ।।
मुहब्बत करें तो करें क्या ..?
मुहब्बत में धोका बड़ा है ।।
हमें आग का डर नहीं था ।
कि सैलाब अन्दर भरा है ।।
भले जिस्म थक हार जाए ।
अभी जोश दिल में बड़ा है ।।
ख़ुदा ख़ैर हमको मिले वो ।
ज़माना बहुत ही बुरा है ।।
कहांँ है जहाँ में मुहब्बत ।
सभी तो सभी से ख़फ़ा है ।।
हमें रात लड़ना पड़ा था ।
उजाला बहुत ग़मज़दा है ।।
यकीं कौन हम पे करेगा ।
ये ढांचा हमीं पे…
Added by Dimple Sharma on June 5, 2020 at 2:00pm — 9 Comments
अपराध बोध - लघुकथा -
"सपना, यह क्या कर करने जा रही थी?"
रश्मि ने सपना के कमरे का जो द्दृश्य देखा तो चकित हो गयी। सपना पंखे में फंदा डाल कर स्टूल पर चढ़ी हुई थी।रश्मि अगर चंद पल देर से पहुंचती तो अनर्थ हो जाता। रश्मि ने झपट कर सपना को सहारा देकर नीचे उतारा।सपना रोये जा रही थी।
"सपना मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि तुम जैसी शिक्षित, सुशील और शांत लड़की ऐसा अविवेक पूर्ण कदम भी उठा सकती है।"
रश्मि ने उसे पानी दिया और उसे गले लगा कर ढांढस बधाने की चेष्टा की।सपना के…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 5, 2020 at 12:29pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
छलकी बहुत शराब क्यों राजन तुम्हें पता
उसका नहीं हिसाब क्यों राजन तुम्हें पता।१।
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हालत वतन के पेट की कब से खराब है
देते नहीं जुलाब क्यों राजन तुम्हें पता।२।
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हम ही हुए हैं गलमोहर इस गम की आँच से
बाँकी हुए गुलाब क्यों राजन तुम्हें पता।३।
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हर झूठ सागरों सा है इस काल में मगर
सच ही हुआ हुबाब क्यों राजन तुम्हें पता।४।
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सुनते थे इन का ठौर तो बस रेगज़ार में
सहरा में भी सराब क्यों राजन तुम्हें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2020 at 10:30am — 13 Comments
बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
कोई बतलाये कहाँ गायब हुआ है इन्किलाब
एक वो भी वक्त था तनकर चला करता था वो
एक ये भी वक्त आया है छुपा है इन्किलाब
खूबसूरत आज दुनिया बन गई है कत्लगाह
जालिमों से मिल गया है अब सुना है इन्किलाब
है अगर जिन्दा तो आता क्यों नहीं वो सामने
ऐसा लगता है कि शायद मर चुका है इन्किलाब
लोग कहते हैं गलतफहमी है ऐसा है…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on June 5, 2020 at 7:46am — 18 Comments
उल्फ़त पर दोहे :
सब लिखते हैं जीत को, मैं लिखता हूँ हार।
हार न हो तो जीत का, कैसे हो शृंगार।।१
अद्भुत है ये वेदना, अद्भुत है ये प्यार।
दृगजल जैसे प्रीत का, कोई मंत्रोच्चार।।२
क्यों मिलता है प्यार को, दर्द भरा अंजाम।
हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम।।३
हर लकीर ज़ख्मी हुई, रूठ गए सब ख़्वाब।
आँखों की दहलीज पर,करते रक़्स अज़ाब ।।४
दस्तक देते रात भर, पलकों पर कुछ ख़्वाब।
तारीकी में ज़िंदगी, लगती हसीं…
Added by Sushil Sarna on June 4, 2020 at 10:37pm — 6 Comments
221 1222 221 1222
उसकी ये अदा आदत इन्कार पुराना है
बेचैन नहीं करता ये प्यार पुराना है ।
ये हुस्न नया पाया उसने है सताने को
ये जिस्म तमन्नाएं इसरार पुराना है ।…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on June 4, 2020 at 10:30pm — 11 Comments
( 1222 1222 1222 1222 )
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नदी इंकार मत करना कभी तू अपनी क़ुर्बत से
समुन्दर बेसहारा हो न जाये तेरी हरकत से
हमेशा वक़्त हो महफ़िल सजाने लुत्फ़ लेने का
ख़ुदाया दूर रखना ज़िंदगी भर शाम-ए-फ़ुर्क़त से
जहाँ में हर बशर को नैमत-ए-उल्फ़त अता करना
कहीं भी रब न रह पाए कोई महरूम चाहत से
ज़रा सी गुफ़्तगू शीरीं भी करना सीख लो मीरों
हमेशा मसअले हल हो नहीं सकते हैं ताक़त…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 4, 2020 at 4:00pm — 11 Comments
दिवस के अवसान का,भ्रम नहीं पाले कोई,
चाॅद की आमद के पीछे,
आएगी ऊषा नई ,
ऊध्व॔मुख सूरजमुखी से होड़ लेना चाहती हूँ ..एक
गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
अश्रुओं में बह गई है,
विगत की अंतिम निशानी,
पलकों पर सजने लगी है,
प्रीत की नूतन कहानी,जिंदगी की जीत पर ,
मन को ड़ुबोना चाहती हूँ ।
एक गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
मैं सृजन के शब्द होकर,
दिग् दिगंत में उड़ सकूँ,
धूप का सा आचरण ले,
कालिमा से लड़ सकूँ,
राख से जन्मे विहग के,पंख होना…
Added by Anvita on June 4, 2020 at 12:00pm — 5 Comments
कहीं नायाब पत्थर है , कहीं मन्दिर मदीना है
तेरा घर संगेमरमर का , मेरा तो नीला ज़ीना है
कोई मन्दिर पे सर टेके, कोई काबा को माने है
मैं हर पत्थर पे सर टेकूं जहाँ नेकी क़रीना है
कहीं पर धूप है तपती, कहीं सागर की लहरें हैं
अजब है रंग दरिया का, जहाँ तेरा सफ़ीना है
कोई ऐ सी में बैठा है , कोई छतरी को भी तरसे
मगर ख़ूँ एक सा बहता, बहे इक सा पसीना है
कभी मिट्टी से भी पूछो, कि जलना है या दफना दूं
कहे मिट्टी दे आज़ादी…
Added by Dimple Sharma on June 3, 2020 at 6:30pm — 7 Comments
जीवन पर कुछ दोहे :
जीवन नदिया आस की, बहती जिसमें प्यास।
टूटे सपनों का सहे, जीव सदा संत्रास।१ ।
जीवन का हर मोड़ है, सपनों का भंडार।
अभिलाषा में जीत की, छिपी हुई है हार।२ ।
जीवन पथ निर्मम बड़ा, अनदेखा है ठौर।
करने तुझको हैं पथिक,सफ़र सैंकड़ों और।३।
जीवन उपवन में खिलें, सुख -दुख रूपी फूल।
अपना -अपना भाग्य है फूल मिलें या शूल।४ ।
मिथ्या जग में जीत है, मिथ्या जग में हार ।
जीवन का हर मोड़ है, सपनों…
Added by Sushil Sarna on June 2, 2020 at 9:00pm — 8 Comments
अधूरे अफ़साने :
जाने कितने उजाले ज़िंदा हैं
मर जाने के बाद भी
भरे थे तुम ने जो
मेरी आरज़ूओं के दामन में
मेरे ख़्वाबों की दहलीज़ पर
वो आज भी रक़्स करते हैं
मेरी पलकों के किनारों पर
तारीकी में डूबी हुई
वो अलसाई सी सहर
वो अब्र के बिस्तर पर
माहताब की
अंगड़ाइयों का कह्र
वो लम्स की गुफ़्तगू
महक रही है आज भी
दूर तलक
मेरे जिस्मो-जां की वादियों में
तुम थे
तो…
Added by Sushil Sarna on June 1, 2020 at 8:00pm — 8 Comments
चन्द्रलोक की सारी सुषमा, आज लुप्त हो जाती है।
लोल लहर की सुरम्य आभा, कचरों में खो जाती है
चाँदी जैसी चंचल लहरें, अब कब पुलकित होती हैं
देख दुर्दशा माँ गंगा की, हरपल आँखे रोती हैं।
बस कागज पर निर्मल होती, मीठी-मीठी बातों से।
कल्पनीय चपला जस शोभित, होती हैं सौगातों से।
व्यथित सदा ही गंगा होती, मानव के संतापों से।
फिर कैसे वह मुक्त करेगी, उसे भयंकर पापों से।
एक समय था गंगा लहरें, उज्ज्वल रूप दिखाती थी।
धवल मनोहर रात चाँदनी, गंगा…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on June 1, 2020 at 5:45pm — 5 Comments
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