कभी ज़िंदगी से भी मिलो --
ज़िंदगी ...... किसी क़ीमत पर हारती ही नही --…
Added by Prabha Khanna on June 22, 2011 at 10:00pm — 4 Comments
आओ साथी बात करें हम
अहसासों की रंगोली से रिश्तों में जज़्बात भरें हम..
रिश्तों की क्यों हो परिभाषा
रिश्तों के उन्वान बने क्यों
हम मतवाला जीवनवाले
सम्बन्धों के नाम चुने क्यों
तुम हो, मैं हूँ, मिलजुल हम हैं, इतने से बारात करें हम..
आओ साथी बात करें हम.........
शोर भरी ख्वाहिश की बस्ती--
--की चीखों से क्या घबराना
कहाँ बदलती दुनिया कोई
उठना, गिरना, फिर जुट जाना
स्वर-संगम से अपने श्रम के, मन…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 22, 2011 at 6:30pm — 18 Comments
Added by Shanno Aggarwal on June 22, 2011 at 3:30am — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on June 21, 2011 at 10:43am — 13 Comments
Added by Prabha Khanna on June 21, 2011 at 9:54am — 9 Comments
Added by satish mapatpuri on June 21, 2011 at 2:00am — 1 Comment
साथियों ! नये सदस्यों के सहयोग हेतु ब्लॉग में रचना कैसे पोस्ट करे चित्र के माध्यम से समझाया गया है | यदि पुनः कोई प्रश्न इस सम्बन्ध में हो तो नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स मे लिखकर पूछा जा सकता है |…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 20, 2011 at 7:00pm — 4 Comments
Added by l.r.gandhi on June 20, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:14pm — 1 Comment
टूटने का दर्द होता एक समान ...........रिश्ता नामवर हो या के अनाम
चुभन तो मिट जाती है हर शूल की....शालती राहती उम्र तमाम....
घाव तो भर जाते है हर चोट के.... रह जाते है मगर निशान....
बेवफ़ाई तो भूल चुके उनकी मगर....भूल ना सके उनके अहसान
कद्र वो क्या समझते हमारी वफा का...जफ़ाओ का जो रखते सामान
क़ातिल तो फकत क़ातिल होता है...उसका न कोई धर्म न ईमान
##### प्रदीप सिंह चौहान "अनाम"
Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:11pm — 1 Comment
Added by manu manju shukla on June 20, 2011 at 11:03am — No Comments
Added by Prabha Khanna on June 20, 2011 at 9:00am — 9 Comments
Added by Veerendra Jain on June 19, 2011 at 11:46pm — 7 Comments
Added by dr a kirtivardhan on June 19, 2011 at 4:30pm — 1 Comment
Added by dr a kirtivardhan on June 19, 2011 at 4:30pm — 1 Comment
ऐ खुदा इस जहाँ में तेरे ,
कोई हँसता ,कोई रोता क्यों ,,
इन्सान -इन्सान सब एक समान हैं तो फिर
उंच -नीच जाति-भेद क्यों
इन्सान तो सब तेरी ही सन्तान हैं फिर ,
कोई वारिस कोई लावारिस क्यों ,,
तुने ये पेट तो सबको दिया हैं फिर ,
किसी को खाना कोई भूखा क्यों ,,
दुनिया में कुछ तेरा -मेरा नही फिर
कोई धनी कोई गरीब क्यों…
Added by Ajay Singh on June 19, 2011 at 11:44am — No Comments
Added by Ajay Singh on June 19, 2011 at 11:40am — No Comments
(१) यमुना साहित्य… |
Added by Admin on June 19, 2011 at 10:00am — 53 Comments
= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.
काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.
दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.
ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 19, 2011 at 8:30am — 5 Comments
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