For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,117)

कविता- हिन्दी है मेरी धड़कन



देश की धड़कन

वाणी का यौवन

संवाद का आँगन

हिंदी है मेरा तन-मन

अपनों से रखती है लगाव

भरती दिलों के घाव

मिटाती है अलगाव

हिंदी में है मेरा झुकाव

सबकी ज़रूरत

दिलों की हसरत

मिटाती नफ़रत

हिंदी है मेरी वकालत

शब्दों का हल

खुशियों का हर पल

सरस कलकल छलछल

हिंदी है मेरा आत्मबल

भारत की है शान

संपर्क की पहचान

सरगम की तान

हिंदी है मेरा स्वाभिमान

भेदभाव भी सहती है

मगर सच को सच कहती है

दिलों में…

Continue

Added by Mohammed Arif on September 14, 2018 at 8:00am — 5 Comments

"हिन्दी दिवस पर विशेष" हिन्दी ग़ज़ल

कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है

भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है

जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ

मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है

रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना

इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है

भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन

सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है

पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था

अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है

मुझको तो लगती है ये भाषा…

Continue

Added by Samar kabeer on September 13, 2018 at 11:39pm — 33 Comments

है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है

बहर

 1212-1122-1212-22

मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।

तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।

कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।

है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।

की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।

सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।

मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।

अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।

गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।

जो…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 13, 2018 at 9:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल - ज़माने के लिए

आप आये अब हमें दिल से लगाने के लिए

जब न आँखों में बचे आँसू बहाने के लिए

 

छाँव जब से कम हुई पीपल अकेला हो गया  

अब न जाता पास कोई सिर छुपाने के लिए

 

तितलियाँ उड़ती रहीं करते रहे गुंजन भ्रमर

पुष्प में मकरंद था जब तक…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on September 13, 2018 at 4:20pm — 12 Comments

मुंबई मेरी जान

सबके लिए है कुछ न कुछ, मुंबई मे ज़रूर ।

एक बार सही मुंबई में बस आइए ज़रूर॥

 

निर्विघ्न हो जब हाथ है सर पे विघ्नहर्ता का।

श्रद्धा तू रख ये होंगे सिद्ध एक दिन ज़रूर।।

 

खाली नहीं लौटा है बशर, हाजी-अली…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 13, 2018 at 12:00pm — 2 Comments

बरबादियाँ ही सब तरफ आती हैं इससे बस - गजल

221 2121 222 1212



हाकिम ही  देश लूट के जब यूँ  फरार हो

ऐसे में किस पे किस तरह तब ऐतबार हो।१।



रूहों का दर्द बढ़ के जब जिस्मों को आ लगे

बातों  से  सिर्फ  बोलिए  किसको  करार हो।२।



इनकी तो रोज ऐश  में  कटती है खूब अब

क्या फर्क इनको रोज ही जनता शिकार हो।३।



हर शख्श जब तलाश में अवसर की लूट के

हालत में देश की  भला  फिर क्या सुधार हो ।४।



मुट्ठी में सबको चाहिए पलभर में चाँद भी

मंजिल के  बास्ते  किसे  तब  इन्तजार हो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2018 at 4:56am — 13 Comments

दो धारी तलवार(लघुकथा)

"अरे सुखिया! सुन तो मन्ने एक बात सूझी हैं, तू कहे तो बताऊँ।"

"का बात सूझी है दद्दा! बताय ही द्यो। मैं तो परेसान हो गया हूँ, एक तो उ बैंक का मनजेर बाबू आज सुबह ही कह रहे थे कि जो करजवा हम लिये रही उ का ब्याज भरने को पड़ी...।"

"ह्म्म्म हम सुन लिए थे उ वा की बात, तभी तो हम आये हैं, तू एक काम कर, तू कल सरपंच से कछु उधार मांग ले, वो इंकार न करेगा, और उ पैसा से अपन का ब्याज की किश्त चुकाई दिए।"

"होउ , इ हे बात तो हमरी ख़ोपड़िया में आयी ही नही। हम कल ही सरपंच जी से बात करेंगे। पर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 12, 2018 at 10:30am — 7 Comments

ओस कण ...

ओस कण ....

ओ भानु !
कितने अनभिज्ञ हो तुम
उन कलियों के रुदन से
जो रोती रही
तुम्हारे वियोग में
रात भर
सन्नाटे की चादर ओढ़े
और बैरी जग ने
दे दिया
उन आँसूओं को
ओस कणों का नाम

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on September 11, 2018 at 7:56pm — 6 Comments

है दूर मंज़िल घना तिमिर है------ग़ज़ल, इस्लाह की गुजारिश के साथ

12122 12122 12122 12122

है दूर मन्ज़िल तिमिर घनेरा, अगर कलम की डगर कठिन है

नहीं थकेंगे कदम हमारे हमारा व्रत भी मगर कठिन है

चलो उठाओ तमाम बातें जवाब सारा कलम ही देगी

चले भले ही कदम अभी कम पता है हमको सफर कठिन है

मना ले जश्नां उड़ा मज़ाकाँ ज़माने दूँगा सलाम लाखों

सलाम वापस इधर ही होंगे हालाँकि तुमसे समर कठिन है

न पूछ काहें मैं अक्षरों की ये धार सब पर बिखेरुँ पल पल

है इक हिमालय यहाँ भी ग़म का सो आँसुओं की लहर कठिन…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 11, 2018 at 7:30pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मॉरिशस में हिंदी साहित्यिक समारोह (राजेश कुमारी राज )

मॉरिशस में हिंदी साहित्यिक समारोह

एक एतिहासिक दिन

7 सितम्बर 2018 हिंदी प्रचारिणी सभा मॉरिशस,परिकल्पना संस्था भारत तथा उच्चायोग मॉरिशस के संयुक्त तत्वाधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिंदी भवन लॉन्गमाउन्टेन पोर्ट लुई मॉरिशस में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ|

जिसमे भारत के सहभागी ३२ साहित्यकारों को भिन्न भिन्न विधाओं के मद्देनज़र सम्मानित किया गया| मुझे मेरे लघुकथा संग्रह ‘गुल्लक’ हेतु ये सम्मान प्राप्त  हुआ| 

परिकल्पना संस्था से मेरा जुड़ाव कई वर्षों से है| २०१२ में…

Continue

Added by rajesh kumari on September 11, 2018 at 6:09pm — 9 Comments

किस कि सुनता है (ग़ज़ल)

किसकी सुनता है मन की करता है,

मुँह में रखता ज़बान-ए-गोया है..

हक़ बयानी ही उसका शेवा है,
कब उसे ज़िन्दगी की परवा है..

मौत पर ये जवाब उसका है,
क्या अजब है कि इक तमाशा है..

वो जो हर ग़म में इक मसीहा है,
कौन जाने कहाँ वो रहता है..

क्यूँ ख़्यालों में है अबस मेरे
किस ने ज़ोहेब उसको देखा है..??

मौलिक एवं अप्रकाशित।

Added by Zohaib Ambar on September 11, 2018 at 10:30am — 1 Comment

मालिक वतन के  भूख  से - गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/ २१२१ /२२२/१२१२

हर शख्स जो भी दूर से भोंदू दिखाई दे

देखूँ करीब से  तो  वो  चालू  दिखाई दे।१।



अब तो हवा भी कत्ल का सामान हो रही

लाज़िम नहीं कि  हाथ  में चाकू दिखाई दे।२।



मालिक वतन के  भूख  से  मरते रहे यहाँ

सेवक की तस्तरी में नित काजू दिखाई दे।३।



सच तो यही कि जग में है मन से फकीर जो

सोना  भी  उसको  दोस्तो  बालू  दिखाई दे।४।…



Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2018 at 9:01pm — 6 Comments

रिश्तों का सच

आज उसे अपने वादे के मुताबिक अपनी पत्नी के साथ पास के एक माॅल में ही फिल्म देखने जाना था। कुछ ज्यादा उत्साहित तो नहीं था, लेकिन फिर भी अपनी पत्नी के लिए कुछ 'खास' करने की खुशी उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। आॅफिस की नोंक झोंक और रास्ते में ट्रैफिक की रोक टोक जैसी बाधाओं को पार कर, जब वो घर पहुंचा तो अत्याधिक शांति पाकर थोड़ा ठिठक सा गया। हाॅल में घुसते ही, एक जाना पहचाना चेहरा जो शायद…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on September 10, 2018 at 3:00pm — 6 Comments

पुष्प श्रद्धा के ना चढ़ें तो अर्चना ही व्यर्थ है।

पुष्प श्रद्धा के ना चढ़ें तो अर्चना ही व्यर्थ है।

भाव जिसमें शुचित ना हो, सर्जना ही व्यर्थ है।।

तुम न कोलाहल सुनो,

ना ही करतल ध्वनि बिको।

सत्य के आधार पर

सुंदरम बन कर टिको।।

दृष्टिहीनों के समक्ष, अति नर्तना ही व्यर्थ है।

पुष्प श्रद्धा के ना चढ़ें तो अर्चना ही व्यर्थ है।।

भाव जिसमें शुचित ना हो, सर्जना ही व्यर्थ है।।

मेनका की कामना

और उसीकी उपासना।

व्यर्थ शालिग्रामों में है

फिर सत्य को…

Continue

Added by SudhenduOjha on September 10, 2018 at 11:00am — No Comments

गजल - है तो है

पतझड़ों के बीच भी यदि ऋतु सुहानी है तो है

घर हमारे महमहाती रात रानी है तो है

 

हो रहीं मशहूर परियों की कथाएँ आजकल

और उनमें एक अपनी भी कहानी है तो है  

 

बेवफा वो हो गया पर हम न भूले हैं उसे

यदि हमारे पास उसकी कुछ निशानी…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on September 10, 2018 at 9:43am — 4 Comments

ज्वार उठाना होगा , मस्तक कटाना होगा

महासमर की बेला है

वीरों अब संधान करो,

शत्रु को मर्दन करने को,

त्वरित अनुसंधान करो |

मातृभू की खातिर फिर

लहू बहाना होगा;

ज्वार उठाना होगा,

मस्तक कटाना होगा|

सिंहासन की कायरता से ,

संयम अब डोल रहा

चिरस्थायी संस्कृति हित ,

कडक संघर्षों को खोल रहा|

अखिल विश्व की दिव्य मनोरथ,

अधरों में अब डोल रहा,

लुट रही मानवता नित-क्षण

लंपट सदा कायरों की भाषा

बोल रहा|

वीरों को आगे आना होगा,

संघर्ष शिवाजी सा –

सतत्…

Continue

Added by आलोक पाण्डेय on September 9, 2018 at 12:00pm — 1 Comment

"फ़ितरतें और गुफ़्तगू, बस!" - (लघुकथा)

दाढ़ी-मूंछधारी दोनों दोस्त, मौलवी अब्दुर्रहमान साहिब और पंडित रामनारायण जी रोज़ाना की तरह अलसुबह की चहलक़दमी कर हंसी-मज़ाक सा करते हुए अपने घरों की ओर वापस लौट रहे थे। तभी विपरीत दिशा से दिखाई दिये दिलचस्प नज़ारे पर परंपरागत संबोधन के साथ टिप्पणी करते हुए पंडित जी ने कहा - "मुल्ला जी! वो देखो तुम्हारी पड़ोसन बुरका पहन कर अपने बच्चे को श्रीकृष्ण जी की फ़ैन्सी पोशाक में स्कूल छोड़ने अकेले जा रही है पैदल!"



"उसका नहीं, उसकी पड़ोसन शर्मा मैडम का बेटा होगा पंडित जी!"



"नहीं, उसी का…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 7, 2018 at 11:41pm — 5 Comments

बस है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर ले

बह्र - 2122-1221-22

इतना उलझा है आदम बसर में।।
खुद से पूछे वो है किस सफर में ।।

क्या समझ पाएगे रात भर में।।
फर्क है इस नजर उस नजर में।।

ना बदल पाऊं बिलकुल न बदले।
पर है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर में।।

अपनी मंजिल से है लापता जो ।
चीखता फिर रहा, रह-गुजर में।।

हर मुसाफिर की कोशिस यही बस।
सब सलामत रहे मेरे घर में।।

आमोद बिन्दौरी /मौलिक- अप्रकाशित

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2018 at 8:30pm — 3 Comments

औक़ात - लघुकथा –

औक़ात - लघुकथा –

"सलमा, यह किसके बच्चे को लेकर जा रही हो"।

"चचाजान, आप पहचान नहीं पाये इन्हें, अपने अर्जुन हैं"।

"अरे वाह, बहुत बड़े हो गये। पर इनको यह क्या पोशाक डाल रखी है"।

"इनको एक सीरियल में कान्हा का किरदार करना है। उसी के लिये लेकर जा रही हूँ"।

"बहुत खूब, संभल कर जाना"।

अभी सलमा चार क़दम ही चली थी कि एक कट्टरपंथी ग्रुप ने उसे घेर लिया। उसे बच्चा चोर बताकर पुलिस थाने ले गये।

 "दरोगा जी,बड़ा तगड़ा केस लाये  हैं,आज तो आपके दोनों हाथों में लड्डू…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on September 7, 2018 at 7:01pm — 14 Comments

कोई और नहीं-- लघुकथा

उसकी उम्मीद अब छूटने लगी थी, लगभग आधा घंटा होने को आया था. कोई अपनी गाड़ी रोकने को तैयार नहीं था और पिताजी लगभग बेहोश सड़क के किनारे पड़े हुए थे. एकदम से सामने एक जानवर आया और उसको बचाने के चक्कर में बाइक असंतुलित होकर उलट गयी.

सड़क काफी खाली थी और शाम हो चली थी. तभी एक गाड़ी दूर से आती दिखी और वह उसे रोकने का प्रयास करने लगा. उस कार वाले ने गाड़ी रोकी, उतर कर उसके पास आया और तुरंत पिताजी को हाथ लगाकर अपने कार में डाला.

नजदीक के हस्पताल में पहुंचकर गाड़ी वाले ने इमरजेंसी तक पिताजी को…

Continue

Added by विनय कुमार on September 7, 2018 at 4:21pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
10 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service