चरित्र - लघुकथा –
"वर्मा साहब, अपना सामान समेट लीजिये। आज और अभी आपको वृद्धाश्रम में जाना है”।
इतना कह कर वह युवक गुस्से में तेजी से निकल गया।
वर्मा जी का मस्तिष्क संज्ञा शून्य हो गया। वह सोचने पर विवश होगये कि आज उनका इकलौता पुत्र किस तरह व्यवहार कर रहा है।
कमिशनर जैसे बड़े पद से सेवा निवृत हुये करीब बारह साल हो गये। इस बीच पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया।
"आपने अभी तक पैकिंग नहीं की"? वही युवक पुनः बड़बड़ाते हुये आया|
"अचानक यह फ़ैसला, वह भी बिना मेरी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 5, 2018 at 10:05am — 12 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on May 5, 2018 at 7:44am — 8 Comments
छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.
दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.
आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 7:30am — 18 Comments
पिघलती हुई मोम
(अतुकांत)
हम दोनों .... दो छायाएँ
अन्धकारमय एकान्त में
फूटे हुए बुलबुलों-सी
सुन्न हो रही भावनाएँ
कितनी नदियों का संगम…
ContinueAdded by vijay nikore on May 5, 2018 at 6:00am — 9 Comments
122----122----122----122
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जो आँखों से दिखती नहीं है सभी को
मैं क्यों ढूँढ़ता हूँ उसी रौशनी को
.
जो समझे मेरे दिल की सब अन-कही को
मैं क्या नाम दूँ ऐसे इक अजनबी को
.
सुधारेगा कौन आपके बिन मुझे अब
मुझे डाँटने का था हक़ आप ही को
.
भले रोज़मर्रा में हों मुश्किलें ख़ूब
बहुत प्यार करता हूँ मैं ज़िंदगी को
.
कसौटी पे परखे जो किरदार अपना
भला इतनी फ़ुर्सत कहाँ है किसी को
.
तुम्हें नूरे-जाँ भी दिखेगा इसी में
कभी…
Added by दिनेश कुमार on May 5, 2018 at 4:46am — 11 Comments
वार्ड के बिस्तर पर वह निढ़ाल पड़ा है, डॉक्टर कह रहे हैं कि ये नीला पड़ गया है, उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया है |
“नीला तो पैदा होते समय ही था, अब क्या होगा ?”, किसी पास खड़े ने कहा |
बात निकलती हुई इस पर आ कर रुक गई, सुबह तो नए कपड़े पहन और चौर बाज़ार से खरीदी काली एनक लगा कि गया था
काले चश्में का एक फायदा तो ये था कि आंख का टीर भी नजर नही आता था |
अभी कुछ दिन हुए घर वाली रब को प्यारी हो गई थी |
कुछ…
Added by मोहन बेगोवाल on May 4, 2018 at 10:30pm — 5 Comments
122 122 122 122
मैं जब भी चला छोड़ने मैकशी को ।
अदाएं जगाने लगीं तिश्नगी को ।।1
लिए साथ मैं जी रहा बेखुदी को ।
सजाता रहा होंठ पर बाँसुरी को ।।2
अमीरों की महफ़िल में सज धज के जाना ।
वो देते नहीं अहमियत सादगी को ।।3
है मिलता उसे ही जो रो करके माँगे ।
बिना रोये कब हक़ मिला आदमी को ।।4
पकड़ कर उँगलियों को चलना था सीखा।
दिखाते हैं जो रास्ता अब हमी को ।।5
मुहब्बत हुई इस तरह आप से क्यूँ ।
अभी…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 4, 2018 at 9:58pm — 3 Comments
11212 11212 11212 11212
यहाँ जिंदा की है खबर नहीं यहाँ फोटो पे ही वबाल है
जो टंगी कहीं थी जमाने से खड़ा अब उसी पे सवाल है
कई जानवर रहे घूमते बिना फिक्र के बिना खौफ के
हुए क़त्ल जब कोई समझा था बड़े काम वाली ये खाल है
कई हुक्मरान हुए यहाँ सभी आँखे बंद किये रहे
कोई खोल बैठा जो आँख है सभी कह उठे ये तो चाल है
ये सियासतों का समुद्र है यहाँ मछलियों सी हैं कुर्सियां
सभी हुक्मरान सधी नजर सभी ने बिछाया जाल…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2018 at 6:00pm — 10 Comments
मजदूर ...
अनमोल है वो
जिसे दुनिया
मजदूर कहती है
इसी के बल से
धरातल पर
ऊंचाई रहती है
कहने को
मेरुदंड है वो
धरा के विकास का
आसमानों को छूती
अट्टालिकाएं बनाने वाला
जो
तिनकों की झोपड़ी में रहता है
वो
सृजनकर्ता
मजदूर कहलाता है
हर आज के बाद
जो
कल की चिंता में डूबा रहता है
कल का चूल्हा
जिसकी आँखों में
सदा धधकता रहता है
कम होती…
Added by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 3:49pm — 6 Comments
पड़ गयी जब से आपकी आदत,
फिर लगी कब मुझे नई आदत.
.
ज़ाया कर दी गयीं कई क़समें
ज्यूँ की त्यूं ही मगर रही आदत.
.
मुझ को तन्हा जो छोड़ जाती है
शाम की है बहुत बुरी आदत.
.
पैरहन और कितने बदलेगी?
रूह को जिस्म की पड़ी आदत.
.
चन्द साथी जो बेवफ़ा न हुए,
अश्क, ग़म, याद, बेबसी, आदत.
.
ज़िन्दगी यूँ न तू लिपट मुझ से
पड़ न जाए तुझे मेरी आदत.
.
आदतन याद जब तेरी आई
रात भर आँखों से बही आदत.
.
ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 3:19pm — 16 Comments
एक एक कर काटे डाली , ठूंठ खड़ा मन करे विचार | |
बीत गए दिन हरियाली के , निर्जन बना पेड़ फलदार | |
दिन भर चहल पहल रहती थी , जब होता था छायादार | |
पास नहीं अब आये कोई , सूखा तब से है लाचार | |
भरा रहा जब फल फूलों से , लोग आते तब सुबह शाम | |
कोई खाये मीठे फल को , कोई पौध लगा ले दाम | |
रंग… |
Added by Shyam Narain Verma on May 4, 2018 at 2:30pm — 8 Comments
कच्ची उम्र थी,कच्चा रास्ता,
पर पक्की दोस्ती थी,पक्के हम,
उम्मीदों का,सपनों का कारवां साथ लेकर चलते,
स्वयं पर भरोसा कर,कदम आगे बढाते,
कर्म भूमि हो या जन्म भूमि,हमारी पाठशाला होती,
काल,क्या??किसी व्यतीत क्षणों का पुलिंदा मात्र…
ContinueAdded by babitagupta on May 4, 2018 at 1:02pm — 9 Comments
पन्द्रह दिन पूर्व
निधि का फोन था |मैंने फोन उठाकर कहा की अभी कुछ व्यस्त हूँ |बाद में बात करते हैं |
“दो मिनट में मैं घर पहुँच जाऊँगी |” उसने कुछ बुझी आवाज़ में कहा
“सब ठीक-ठाक है ?” मैंने चिंता जताते हुए कहा |
“बहुत से भूचाल हैं |”
“ससुराल में फिर कुछ हुआ ?”
“वो तो लगा ही रहना है |मुझे लगता है मैं इन लोगों के साथ तालमेल नहीं बिठा सकती |पर कुछ और बताना है पिंकी के बारे में --” निधि का गला भर्राया हुआ था
“क्या हुआ !”
“मुझे लगता है…
ContinueAdded by somesh kumar on May 4, 2018 at 11:00am — 1 Comment
(122 122 122 122)
करोगे कहां तक सबब की वज़ाहत
अंधेरों की कब तक करोगे इबादत
यक़ीं रख के सर को झुकाते रहे हो
दिखाते रहे हो ये कैसी शराफ़त
नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की ही करते रहे हो वकालत
नई प्रेम नदियां बहा दो जहां में
यहां पर दिखाओ ज़रा सी सख़ावत
भले ख्वाब हों पर हक़ीक़त बनेंगे
मिटेगी यहां नफरतों की रिवायत
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- नंद कुमार सनमुखानी
- मौलिक और अप्रकाशित
Added by Nand Kumar Sanmukhani on May 3, 2018 at 9:00pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
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कहूँगा बात हो जैसी,अरे मैं तो सलीके से
समझ लो बासमझ,झगड़ो नहीं ,आओ सलीके से।1
लगे हैं दाग ये कितने तुम्हारे आस्तीनों पर
अभी भी वक्त है पगले जरा धो लो सलीके से।2
बहाया खूं पता कितना शरीफों का, गरीबों का?
अगर सच में जिगर धड़के जरा रो लो सलीके से।3
बहुत इमदाद मुँह से बाँटते हो तुम गरीबों में
फ़टी झोली अभी भी है विलखते वो सलीके से।4
पटकने सर लगे कितने कहा…
Added by Manan Kumar singh on May 3, 2018 at 8:09pm — 12 Comments
2122 1212 22
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हर कली को अजब शिकायत है,
इश्क़ करना भ्रमर की आदत है ।
इश्क़ दरिया है उर समंदर भी,
जब तलक़ मुझमें तू सलामत है ।
गम से उभरा तो मैंने जाना ये,
गर है साया तेरा तो ज़न्नत है ।
किसको किसके लिए है हमदर्दी,
हर तरफ फैली बस अदावत है ।
जब धुआँ अपने घर से उट्ठे तो,
कर यकीं रिश्तों में सियासत है
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मौलिक एवं अप्रकाशित
हर्ष महाजन
Added by Harash Mahajan on May 3, 2018 at 2:30pm — 12 Comments
सतवंत पहले से ही मेरे साथ इस के बारे में बात कर चूका था। लेकिन जिस दिन से उसने मुझसे बात की थी, कोई भी पुराना साथी उसके पास नहीं आया और न ही वह किसी को मिलने गया था। मगर उस दिन से घर के लोगों ने उस से बात करना बंद कर दी थी ।
हद तो उस रोज़ हो गई जब इक दिन बाप हाथ में जूती ले कर सतवंत के पीछे दौड़ पड़ा और ये ध्यान भी नहीं किया के लोग क्या कहेंगे, तब सतवंत को लगा था कि इस जिंदगी का क्या फायदा जब बीस को पार कर चुके बच्चे पे माँ बाप को यकीन न रहे , तब कोई और क्या करे ? बड़े भाई से सतवंत ने फोन…
Added by मोहन बेगोवाल on May 2, 2018 at 7:30pm — 7 Comments
कल, आज और कल ....
वर्तमान का अंश था
जो बीत गया है कल
अंश होगा वर्तमान का
आने वाला कल
वर्तमान के कर्म ही
बन जाते हैं दंश
वर्तमान से निर्मित होते
सृजन और विध्वंस
वर्तमान की कोख़ में
सुवासित
हर पल के वंश
वर्तमान से युग बनते
युग में कृष्ण और कंस
कागा धुन निष्फल होती
मोती चुगता हंस
चक्र सुदर्शन कर्म का
करे निर्धारित फल
कर्म बनाएं वर्तमान को
कल, आज और कल
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2018 at 4:21pm — 8 Comments
नश्वरता ....
तुम
कहाँ पहचान पाए
उस बुनकर की
आदि और अंत की
अनंत बुनती को
तुम
बुनकर बन
असफल प्रयास करते रहे
विधि के बनाये
आदि और अंत के
नग्न शरीर की
कृति पर
सच-झूठ ,अच्छा-बुरा ,
तेरा-मेरा ,पाप-पुण्य की सजावट से
दुनियावी वस्त्रों को
अलंकृत करने का
मैं
धागा था
तुम्हारे दर्द का
तुम
बुनकर हो कर भी
मुझे न पहचान पाए
जानते हो
उसकी
और…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2018 at 3:32pm — 12 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
हम तो बस आपकी राह चलते रहे
ये ख़बर ही न थी आप छलते रहे
बादलों से निकल चाँद ने ये कहा
भीड़ में तारों की हम तो जलते रहे
हिम पिघलती हिमालय पे ज्यों धूप में
यूँ हसीं प्यार पाकर पिघलते रहे
चांदनी भाती , आशिक हूँ मैं चाँद का
सच कहूं तो दिए मुझको खलते रहे
जुल्फ की छांव में उनके जानो पे सर
याद करके वो मंजर मचलते रहे
एक दूजे को हम ऐसे देखा किये
अश्क आँखों से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2018 at 2:30pm — 14 Comments
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