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January 2017 Blog Posts (139)

ग़ज़ल क्या गिला है रुक्मिणी से

2122 2122

तुम मिली थी सादगी से ।

याद है चेहरा तभी से ।।



जिक्र आया फिर उसी का ।

जब गया उसकी गली से ।।



बादलों का यूं घुमड़ना ।

है जमीं की तिश्नगी से ।।



यूं मुकद्दर आजमाइश ।

कर गई फ़ितरत ख़ुशी से ।।



गीत भंवरा गुनगुनाया ।

आ गई खुशबू कली से ।।



मैकशों का क्या भरोसा ।

वास्ता बस मैकशी से ।।



सिर्फ राधा ढ़ूढ़ते हो ।

क्या गिला है रुक्मिणी से ।।



जोड़ता है रोज मकसद ।

आदमी को आदमी से… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 31, 2017 at 10:30pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
इस तरह हमने दिन गुज़ारा है- ग़ज़ल

2122 1212 22/112



इस तरह हमने दिन गुज़ारा है

बारहा खुद को ही पुकारा है



संग से क्या डरेगा वो जिसने

कू ए क़ातिल में दिन ग़ुज़ारा है



ज़र्द पत्ता हूँ मैं खिजाँ ने मुझे

पेड़ की शाख से उतारा है



कम है सोचो तो काइनात भी और

जीना हो तो जहान सारा है



जज़्ब कर दर्द मुस्कुराहट में

हमने चेहरा बहुत सँवारा है



हमपे कुछ इख़्तियार तो रखते

जो हमारा है वो तुम्हारा है



बाँट सकते हो तुम भी अपने ग़म

“जो… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:11pm — 12 Comments

कुछ हाइकू

सिमटी रही

दो रोटियों के बीच
पूरी जिंदगी

ढूँढते रहे
जिंदगी भर सार
पर निस्सार

किसका बस
आज है कल नहीं
जिंदगी का क्या

आदि से अंत
बने अनंत, दूर
क्षितिज पर
 
 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 31, 2017 at 4:00pm — 6 Comments

बसंत पंचमी

माघ शुक्ल की पंचमी, कामदेव के लाल।

दोनों मिलकर आ गए, कण-कण हुआ निहाल ।।



कोयल काली कूकती, खुश हो नाचे मोर ।

माया जिसकी मोहनी,वही मदन चितचोर ।

गेंदा गुलाब ज्यों खिले,खिले गुलाबी गाल।

दोनों मिलकर-------------------।



आई बसंत पंचमी, खुशियों का आगाज ।

वाणी में रस घोलकर, गले मिलें सब आज।

सर्द रैन अब जा चुकी, हटा धुंध का जाल।

दोनों मिलकर --------------------।



ताजा-ताजा लग रहे,गिरा पुराने पात।

डाल डाल को चूमती, भूल अहं औकात… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 31, 2017 at 11:30am — 6 Comments

ग़ज़ल -- "दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है" ( दिनेश )

2122--1212--22



ग़ज़ल .....



ज़िन्दगी क्या है औ'र क़ज़ा क्या है

कौन जाने ये माजरा क्या है



एक जलता हुआ चराग़ हूँ मैं

मुझको मालूम है... हवा क्या है



हक़-परस्ती गुनाह था मेरा

मैं हूँ हाज़िर..बता सज़ा क्या है



दर्दे-जाँ ने भी आज पूछ लिया

ज़ब्त की तेरे इंतेहा क्या है



नाव साहिल प आके डूब गई

इसमें तूफ़ान की ख़ता क्या है



झूट लालच फ़रेब चालाकी

देख इन्सान में बचा क्या है



तेरी मरज़ी से कुछ… Continue

Added by दिनेश कुमार on January 30, 2017 at 9:00pm — 10 Comments

बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' - सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा

212 2112 2112 222

सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा|

आज तन्हा है तो कल साथ ज़माना होगा|

मैं तो दुश्मन हूँ भला पीठ पे कैसे मारूं

इस लिए दोस्त तुझे दोस्त बनाना होगा |

जाग उठते है मेरे मन में सवालात कई

हर किसी दर पे न अब सर को झुकाना होगा |

एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर

शर्त है ज़ख्म सब अपनों को दिखाना होगा|

फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखे हैं,

हर किसी को न यहाँ दोस्त बनाना…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on January 30, 2017 at 8:00pm — 9 Comments

लो फिर चुनाव आ गये.

लो फिर चुनाव आ गये.

हम हर दल के नेता को भा गए.

‘दल-दल’ से निकल कर सब नेता,

शहर-गाँव में आ गये.

कोई मोबाइल, लैपटॉप दे रहा.

कोई दे रहा दाल घी,

खुले आम दरबार लगा है,

चाहे जितना खा और पी.

पांच साल हमने भोगा है,

कुछ दिन तुम भी लो भोग.

चुनावी वादें है, वादों का क्या,

समय के साथ भूल जाते है लोग.

गरीबों का हक हम खा गये,

लो फिर चुनाव आ गये.

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Naval Kishor Soni on January 30, 2017 at 5:48pm — 6 Comments

चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.

चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.

चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.

चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.

इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.

है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.

ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.

गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.

हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.

जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.

ना सराहत की उसे कोई कसर होने को…

Continue

Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on January 30, 2017 at 2:30pm — 9 Comments

निराशा को आशा बनाता रहेगा(गजल)/सतविन्द्र कुमार राणा

122 122 122 122

बिना बात बातें बनाता रहेगा

शरारत से सब को छकाता रहेगा।



निराशा को आशा बनाता रहेगा

तेरा दिल ये तुझको सिखाता रहेगा।



हमेशा ही मन काला जिसका रहा है

वो नजरें सभी से चुराता रहेगा।



मजा जिसको आता चिढ़ाने में सबको

चढ़ाता रहेगा गिराता रहेगा।



नहीं भूल ये,नूर तुझमें बसा है

तू तारों सा ही टिमटिमाता रहेगा।



फरेबों में जिसकी चली जिंदगानी

वो हरदम किसी को सताता रहेगा।



रहे जुल्म होते जो जनता पे… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 30, 2017 at 10:41am — 10 Comments

ये ,कैसा घर है ....

ये ,कैसा घर है ....

ये

कैसा घर है

जहां

सब

बेघर रहते हैं



दो वक्त की रोटी

उजालों की आस

हर दिन एक सा

और एक सी प्यास

चेहरे की लकीरों में

सदियों की थकन

ये बाशिंदे

अपनी आँखों में सदा

इक उदास

शहर लिए रहते हैं

ये

कैसा घर है

जहां सब

बेघर रहते हैं

उजालों की आस में

ज़िन्दगी

बीत जाती है

रेंगते रेंगते

फुटपाथ पे

साँसों से

मौत जीत जाती है

बेरहम सड़क है…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 29, 2017 at 7:30pm — 13 Comments

गजल( आज तुम यह क्या किये बैठे हुए हो)

 2122  2122  2122 

आज तुम यह क्या किये बैठे हुए हो

बेवजह का गम लिये बैठे हुए हो।1



कौन सुनता है यहाँ कुछ बात ढब की

दिल नसीहत को दिये बैठे हुए हो।2



और होता मौन का मतलब यहाँ पर

क्या पता क्यूँ मुँह सिये बैठे हुए हो।3



बदगुमानों की यहाँ बल्ले हुई बस

आशिकी का भ्रम जिये बैठे हुए हो।4



एक से बढ़ एक नगमे बुन रहे…

Continue

Added by Manan Kumar singh on January 29, 2017 at 12:26pm — 16 Comments

कब्र जान-ए- आदमी है लिखो पंकज यह घर है- ग़ज़ल

2122 2122 2122 2122

ये भला कैसा प्रहर है, दूर मुझ से हमसफर है

नाम उसका ही जपे मन, खुद से लेकिन बेखबर है



मन्द सी मुस्कान ले कर, नूर बिखराया है किसने

आईने में खुद नहीं मैं, इश्क़ का कैसा असर है



इक दफ़ा ही तो मिलीं थीं, पर खुमारी अब भी बाकी

उम्र भर मदहोश रहना, यूँ नशीली वो नज़र है



सर्द अहसासों का मौसम, तो है पतझड़ बाग़ में

उफ़्फ़, ख्वाबों के झरे पत्ते घिरा बेबस शजर है



कंकरीटों की दीवारों बीच रहता ख़ुश्क कोई

कब्र जाने आदमी है, मत… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 29, 2017 at 11:00am — 16 Comments

जन-मन भावना (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"अरे, हामिद, हेमंत, हरिया और हरवीर .. तुम सब ये तिरंगे लेकर यूँ कहाँ जा रहे हो यहाँ से?" खेत की मेड़ पर दौड़ रहे बच्चों से रामदीन ने चिल्लाकर पूछा।



बच्चे दौड़ते हुए ही क्रमशः बोले-



"नेताजी का स्वागत करने!"

"सुना है वे बच्चों की सुनते हैं!"

"आज हम अपने मन की बातें कह कर रहेंगे उनसे!"



यह सुनकर मुस्कराते हुए रामदीन ने कहा- "लेकिन सड़क से जाओ न! मंच के पास पहुंचो!"



"चाचा, वहां पुलिस लगी है ,भगा देंगे हमें!" हामिद ने तिरंगा संभालते हुए… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 28, 2017 at 9:22pm — 2 Comments

गीत

जब भी गाया तुमको गाया , तुम बिन मेरे गीत अधूरे,

तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,

तुमको ही अपने जीवन के नस नस में बहता ज्वार कहा,

मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा,

एकाकी मन के आँगन में, बरसो बन कर मेघ घनेरे,

तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,

तुम इन्हीं पुरानी राहों के राही हो कैसे भूल गये,

आँखों से आँखों में गढ़ना सपन सुहाने भूल गये,

तुमको ही मन गुनता रहता हर दिन, हर पल, शाम सवेरे,…

Continue

Added by Anita Maurya on January 28, 2017 at 3:23pm — 5 Comments

आओ प्रिय

आओ प्रिय बैठो पास ,

क्यों रहती हो तुम उदास ,

दिल में तुम हो मेरे खास,

देखो हरी-हरी ये घास,

जगा रही है मन में प्यास,

चितवन देख तुम्हारी आज,

लगती मुझको तुमसे आस,

पर तुमको क्यों आती लाज,

प्रेम को समझो तुम भी…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on January 27, 2017 at 5:00pm — 2 Comments

लहराता खिलौना (लघुकथा)

देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"

 

नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"

 

"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।

 

सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 27, 2017 at 9:11am — 4 Comments

जनाब का हुक्म मानकर.... ग़ज़ल

1222-1222-1222-1222



जहां में आप सा हमको कोई कामिल नहीं मिलता

मिले हमको कई अच्छे मगर आकिल नहीं मिलता 



जिन्हें तूफ़ान से लड़ना उन्हें फिर कौन रोकेगा

वही पाते हैं मंजिल को जिन्हें साहिल नहीं मिलता



तुम्हें मालूम है लेकिन बता सकते नहीं किस्सा

अजब घटना घटी देखो हमें फाजिल नहीं मिलता



खुदा मालिक है दुनिया का उसे सबसे मुहब्बत है

सहारा वो नहीं देता कभी साहिल नहीं मिलता



गगन मिट्टी हवा पानी हमें जीने को देता है

बसा…

Continue

Added by munish tanha on January 26, 2017 at 10:00pm — 5 Comments

अच्छे और बुरे पर्दे (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

स्मार्ट कक्षा में पटल पर अब तीन कानों का सांकेतिक चित्र प्रदर्शित किया गया जिसमें एक खुले हुए कान के दोनों तरफ के कान उँगलियों से ढके हुए थे। अब्राहम लिंकन के 'उनके ही बेटे के हेडमास्टर के नाम पत्र' के अगले पैराग्राफ का हिन्दी अनुवाद समझाते हुए शिक्षक ने छात्रों से कहा- "हेडमास्टर जी, मेरे बेटे को यह भी सिखाइयेगा कि सुने सबकी और जो कुछ भी वह सुने, उसे सत्य की छलनी से छान कर जो अच्छी बात निकले, केवल उसे ही ग्रहण करे!" इतना कहकर शिक्षक ने पटल के चित्र के खुले वाले कान के अंदर की तरफ उँगली से… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2017 at 9:30pm — 3 Comments

आओ सजनी // रवि प्रकाश

आओ इक दूजे से कह लें

दिन का हाल रात की बातें

सौगातें हर बीते पल की

याद करें फिर से सजनी

रजनी ये फिर क्यों लौटेगी

जो बीत गई तो बीत गई

कल रीत नई चल निकलेगी

जब आएगा सूरज नूतन

उपवन-उपवन क्या बात चले

गलियों में कैसी हलचल हो

कलकल हो कैसी सरिता में

अम्बर का विस्तार न जाने

अनजाने रंगों में ढल कर

सारे जग पर छा जायेगा

गा पाएगा फिर भी क्या मन

वही प्रीत का गीत पुराना

वही सुहाना मौसम फिर से

लौटेगा क्या मन के… Continue

Added by Ravi Prakash on January 26, 2017 at 7:43pm — 2 Comments

शान बड़ी गणतंत्र दिवस की , दुनियां को दिखलायें क्यों (गीत) //अलका ललित

छंद--तांटक

-.-

शान बड़ी गणतंत्र दिवस की , दुनियां को दिखलायें क्यों

.

ख़ौफ़ ज़दा सड़को पर चलती, डर के साये में जीती

देश की बेटी न बोलेगी , क्या क्या उस पर है बीती

नन्ही नन्ही कलियाँ खिलने, से पहले ही तोडा है

जननी को जो जन्मा तो फिर, नारी के सर कोड़ा है

क्या पहने पोशाक यहाँ हम , मुनिया को समझायें क्यों 

शान बड़ी गणतंत्र दिवस की......

.

वादों का सैलाब लिए वो, पाँच साल में आते है

अपनी जेबें भरते है पर जन सेवक कहलाते…

Continue

Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:00pm — 7 Comments

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