रोपे जो थे फूल सब, लगते पेड़ बबूल !
काँटों बदले बीज सब, जो मन राखा शूल !!
जो मन राखा शूल, ध्यान में धारण कीजे !
मिलता वही प्रतिफल, ध्यान में जो धर लीजे !!
कहे हेम कविराय, बुरा क्यों मन में सोचे !
रोपे भले बबूल, मन से फूल ही रोपे !!
.
मौसम के यह ढंग भी, लगते बड़े विचित्र !
शरद ऋतु मेँ दिखते हैं, गर्मी के परिदृश्य !!
गर्मी के परिदृश्य, कि मौसम बहुत चिढ़ाता !
कभी वर्षा ऋतु में, सुखार है अति सताता !!
कहे हेम कविराय, घटाओ अभी…
Added by Hem Chandra Jha on January 28, 2016 at 11:00am — 3 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on January 27, 2016 at 11:03pm — 9 Comments
Added by Ashwani Kumar on January 27, 2016 at 2:30pm — 5 Comments
Added by Dr T R Sukul on January 27, 2016 at 10:19am — 12 Comments
शाखें गुल ख्वाब में खिली है अभी
इश्क में चोट ये नई है अभी
दिल है नादान कोई समझाये
आबरू -ए-वफ़ा बची है अभी
इस लुटे घर में कैसी आबादी
गैरों के सदके में बसी है अभी
बंध गए हैं हवा के पर सारे
क्यों दुआ बे असर हुई है अभी
राज नजरों नें आज जान लिया
गिरह ये कौन सी कसी है…
ContinueAdded by kanta roy on January 27, 2016 at 12:00am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
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भला तू देखता क्यों है महज इस आदमी का रंग
दिखाई क्यों न देता है धवल जो दोस्ती का रंग /1
सुना है खूब भाता है तुझे तो रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है छटा सुन सादगी का रंग/2
किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग/3
महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/4
अगर बँटना ही है तुझको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2016 at 10:41am — 16 Comments
बेहद दुःखद ख़बर थी, रहमान नहीं रहा, फोन रखने के बाद भी वो बहुत देर तक सकते में रहा। अभी दो घंटे पहले ही तो लौटा था वो हॉस्पिटल से, ऐसी कोई बात लग तो नहीं रही थी, लेकिन अचानक एक अटैक आया और सब कुछ ख़त्म। मौत भी कितनी ख़ामोशी से दबे पाँव आती है, जिन्दगी को खबर ही नहीं होती और उसे शरीर से दूर कर देती है। तुरन्त कपड़े बदल कर कुछ रुपये, ए टी एम और बाइक की चाभी लेकर घर से निकल पड़ा। रास्ते भर पिछले कई साल उसके दिमाग में सड़क की तरह चलते रहे। चार साल पहले ही उसने ज्वाइन किया था इस ऑफिस में और धीरे धीरे…
ContinueAdded by विनय कुमार on January 26, 2016 at 2:13am — 8 Comments
‘धुंध’ : हरि प्रकाश दुबे
“अरे आइये – आइये अवस्थी जी, आज इतनी सर्द शाम को आप मेरे घर, वाह! अरे रुकिए पहले पीने के लिए कुछ लेकर आता हूँ, ये लीजिये ब्रांडी है, ठीक रहेगी । पर यह क्या, इतना पसीना क्यों आ रहा है आपको?”
“अरे कुछ ख़ास नहीं, बस थोडा सा घबरा गया था।“
ओह !..“ अवस्थी जी अब पहेलियाँ मत बुझाइये, ठीक –ठीक बताइये की हुआ क्या ?”
“क्या बताऊं चौधरी साहब ! आज अभी कुछ देर पहले, कुछ बाइक सवार लोगों ने मुझे रास्ते में घेर लिया, जबरन गाड़ी का शीशा खुलवाया और…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 26, 2016 at 12:15am — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 25, 2016 at 9:31pm — 9 Comments
मैं राजपथ हूँ
भारी बूटों की ठक ठक
बच्चों की टोली की लक दक
अपने सीने पर महसूसने को
हूँ फिर से आतुरI
सर्द सुबह को जब
जोश का सैलाब
उमड़ता है मेरे आस पास
सुर ताल में चलती टोलियाँ
रोंद्ती हैं मेरे सीने को
कितना आराम पाता हूँ
सच कहूं ,तभी आती है साँस में साँस
इतराता हूँ अपने आप पर I
पर आज कुछ डरा हुआ हूँ
भविष्य को लेकर चिंतित भी
शायद बूढा हो रहा हूँ…
ContinueAdded by pratibha pande on January 25, 2016 at 4:52pm — 8 Comments
सड़क किनारे पसरी घोर निराशा और उस निराशा में डूबी हुयी जिंदगियां, चिथड़ों में लिपटे हुए बच्चे, टूटी फूटी झोपड़ियों में सुलगते चूल्हे और उसी सड़क पर सरकार के नुमाइंदों की सरपट दौड़ती चमकती कारों में चर्चा गरम हो रही होती है डिजिटल इंडिया की, पर उन नेताओं को सड़क की जिंदगी बसर करती इस कौम की बदहाल तस्वीर नज़र नहीं आती. जो कि इनके छदम दावों को धूल धूसरित करती है माना कि जीवन अनवरत संघर्ष का नाम है, जिसका कर्म है सदैव चलते रहना, आगे बढ़ते रहना. किन्तु…
ContinueAdded by DR. HIRDESH CHAUDHARY on January 25, 2016 at 12:30pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 2
हाथों को पत्थर , आँखों को लाली दो
मुँह खोलो, चीखो चिल्लाओ , गाली दो
ऊँचे सुर में आल्हा गाओ , सरहद पर
वीरों को मंचों से मत कव्वाली दो
जिस बस्ती मे रहा हमेशा अँधियारा
उस बस्ती को दिन में भी दीवाली दो
तुम पगड़ी पहनो ले जाओ केसरिया
लाओ सर पर मेरे टोपी जालीदो
छद्म वेश में राहू केतू आये फिर
अमृत नहीं उन्हे ज़हर की प्याली दो
कहीं मूर्खता की सीमा तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 25, 2016 at 9:40am — 14 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 25, 2016 at 8:18am — 6 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2016 at 10:30pm — 14 Comments
विद्या दान – ( लघुकथा ) –
सारे शहर में इश्तिहार लगे थे कि शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात गायिका पदमश्री सुमित्रा देवी गंधर्व की सोलह वर्षीय सुपुत्री एवम शिष्या संगीतिका गंधर्व के जीवन का प्रथम गायकी कार्य क्रम शाम को सात बजे टैगोर भवन में होगा!
इस क्षेत्र के जाने माने एवम मशहूर लोग स्तब्ध थे क्योंकि सुमित्रा देवी ने संगीत के प्रति अपनी अटूट आस्था के चलते शपथ ली थी कि ना तो वह कभी विवाह करेंगी और ना कभी किसी को शिष्य बनायेंगी!
नियत समय पर कार्य क्रम शुरु हुआ!सर्व प्रथम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 24, 2016 at 8:02pm — 12 Comments
बेवजह बात जिरह करके बढाता क्यूँ है एक मासूम पे इल्जाम लगाता क्यूँ है
खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है
…
Added by rajesh kumari on January 24, 2016 at 6:03pm — 7 Comments
मिन्दो बस्ती की अकेली लडकी, जिस ने सिलाई कड़ाई के काम में सिखलाई प्राप्त कर घर में काम शुरू किया, मगर उतना काम न मिलता कि गुजरा हो सके, तभी उसने रविन्द्र की फैक्टरी में काम पर रखने के लिए विनती की, तो रविन्द्र ने उस से कुछ बातें की और उसे सिलाई के काम पर रख लिया I बाप तो बचपन में ही उन्हें छोड़ कर कहीं चला गया था I शुरू में तो उसे उनके मुताबिक काम करने व् समझने में समस्या आई, मगर जल्दी ही उसने खुद को बाकी लोगों के साथ अडजस्ट कर लिया और धीरे धीरे उसकी काम में दिलचस्पी बढने लगी तो उस ने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on January 24, 2016 at 2:00pm — 4 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on January 24, 2016 at 10:14am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 23, 2016 at 12:29pm — 7 Comments
Added by kanta roy on January 23, 2016 at 10:34am — 7 Comments
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