हिम्मत साथ नहीं देती है
किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात
सुनने वाले व्याकुल हैं अब अपना राग सुनाने को
हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके
सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को
कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है
द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को
दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने को पानी न मिलता
भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को
जिसे देखिये मिलता है अब चेहरे पर मुस्कान लिए…
Added by Madan Mohan saxena on January 22, 2015 at 5:00pm — 5 Comments
सांस है मुसाफिर.......(एक रचना )
सांस है मुसाफिर इसको राह में ठहर जाना है
जिस्म के पैराहन को जल के बिखर जाना है
दुनिया को मयखाना समझ नशे में ज़िंदा रहे
होश आया तो समझे कि ख़ुदा के घर जाना है
याद किसकी सो गयी बन के अश्क आँख में
धड़कनें समझी न ये जिस्म को मर जाना है
ज़िंदगी समझे जिसे दरहक़ीक़त वो ख़्वाब थी
सहर होते ही जिसे बस रेत सा बिखर जाना है
कतरा-कतरा प्यार में जिस के हम मरते रहे …
Added by Sushil Sarna on January 22, 2015 at 3:30pm — 18 Comments
22 22 22 22 22 2
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दर-दर फिरते लोगों को दर दे मौला :
बंजारों को भी अपना घर दे मौला :
जोऔरों की खुशियों में खुश होते हैं :
उनका भी घर खुशियों से भर दे मौला :
दूर गगन में उड़ना चाहूँ चिड़ियों सा :
मुझ को भी वो ताक़त वो पर दे मौला :
ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी :
अम्नो अमां की यूं बारिश कर दे मौला :
भूके प्यासे मुफ़लिस और यतीम हैं जो :
नज़्र-ए-इनायत उनपर भी कर दे मौला :
जो करते हैं खून…
Added by SALIM RAZA REWA on January 22, 2015 at 2:00pm — 10 Comments
फिर आधी रात को उनकी आँख खुल गयी , पसीने से तरबतर वो बिस्तर से उठे और गटागट एक लोटा पानी हलक में उड़ेल दिया | ये सपना उन्हें पिछले कई सालों से परेशान कर रहा था | अक्सर वो देखते कि एक हाँथ उनकी ओर बढ़ रहा है और जैसे ही वह उनके गर्दन के पास पहुँचता , घबराहट में उनकी नींद खुल जाती |
अब वो जिंदगी के आखिरी पड़ाव में थे और अब खाली समय था उनके पास | रिटायरमेंट के बाद वो और पत्नी ही रहते थे घर में , बच्चे अपने अपने जगह व्यस्त थे | पत्नी भी परेशान रहती थी उनकी इस हालत से और कई बार पूछती थी कि क्यों…
Added by विनय कुमार on January 22, 2015 at 12:12pm — 14 Comments
चुनावी जिन्न(कविता )
जांचे परखें और चुनें
चलों नया देश बुनें
रूढ़ परिपाटी हों छिन्न
सच्च हों ,अच्छे दिन |
ये भाषण का व्यवहार
और सतरंगी इश्तिहार
कायाकल्प हो सर्वांगीण
ना केवल चाय नमकीन |
बंद तोड़फोड़ और धरने
सियासी नफ़ा आमजन मरने
पहुंच जाएँगे बुलंदी पर
चटाकर हमें जमीन |
झाड़ू हाथी कमल हाथ
क्रांति जाति धर्म सब-साथ
एक थैली के ही चट्टे-बट्टे
देखों ना इन्हें भिन्न |
अज़ीब-अज़ीब…
ContinueAdded by somesh kumar on January 22, 2015 at 10:30am — 8 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ २
कभी फुर्सत मिले तो सोच हारा कैसे
बिना तैरे मिले किसको किनारा कैसे
जहाँ लगती दिलों की भी बराबर कीमत
वहाँ पैसों बिना भी हो गुज़ारा कैसे
जिसे भाने लगे कबसे रकीबों के घर
भला दिल से कहें उसको हमारा कैसे
मुहब्बत की जहाँ रिमझिम फुहारें गिरती
सुलग उट्ठा वहाँ अदना शरारा कैसे
जहाँ मासूम लाशें हर तरफ फैली थी
डरी आँखों ने देखा वो नज़ारा कैसे
नहीं मिलती…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 22, 2015 at 10:25am — 17 Comments
Added by विनोद खनगवाल on January 22, 2015 at 10:00am — 12 Comments
मै कभी नहीं मरता
******************
आप बच नहीं सकते
उलझने से
ऐसा इंतिज़ाम है मेरा
फैला दिया है मैने मेरा अहंकार हर दिशाओं मे
हर दिशाओं के हर कोणों में
बस मैं हूँ , मैं
कहीं भी जायें, उलझेंगे ज़रूर
जब भी कोई उलझता है , मेरे मैं से
चोटिल करता उसे
तत्काल मुझे ख़बर लग जाती है , और तब
मुझे खड़ा पाओगे तुम उसी क्षण
अपने विरुद्ध
तमाम हथियारों से सुसज्जित
ये भी तय है ,
हरा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 9:30am — 18 Comments
हर जगह चुनावी माहौल, पार्षद के चुनाव में जाने कहाँ-कहाँ से कुकुरमुत्ते की तरह नई नई पार्टियां दिखाई देने लगी । जिन्होंने कभी घर से बाहर कदम नहीं निकाले वे स्त्रियां भी गले में माला डाले गली गली घूम रही है । जाने कौन कौन से कोटे के तहत चुनाव लड रही है । बात करने गई तो मालूम हुआ बात करने में नेताईन को पसीना भी आता है ।
"जीत जायेंगी तो कैसे संभालेंगी इतनी जिम्मेदारी ।"
पूछने पर हँसते हुए कहती है ,
"अरे, मै कहाँ यह सब तो हमारे "वो" ही संभालेंगे । बस मुझे आप लोग जीतवा देना ।…
Added by kanta roy on January 22, 2015 at 8:00am — 21 Comments
बच्ची को मोटरसाइकिल पर बैठा छोड़ कस्टमर दुकान के अंदर आया और बोला,
"भाई साहब जरा बिटिया के लिए टॉफी और बिस्किट देना"
अभी मैं बिस्किट निकालने के लिए मुड़ा ही था कि बाहर धड़ाम की आवाज के साथ मोटरसाइकिल गिर गयी और बच्ची भी। कुछ लोगो ने बच्ची को उठाया और उसके हाथ व पैर में लगी चोटों को देखने लगे । इधर कस्टमर भी दौड़ कर बाहर भागा और जल्दी से मोटरसाईकिल उठाया तथा टूटी हुई हेड लाइट को देखते ही चटाक की आवाज ।
बच्ची के गाल पर उँगलियों की छाप व आँखों में…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 21, 2015 at 5:56pm — 38 Comments
घुप अँधेरे में
रात के सन्नाटे में
मै अकेला बढ़ गया
गंगा के तीर
नदी की कल-कल से
बाते करता
पूरब से आता समीर
न धूल न गर्द
वात का आघात बर्फ सा सर्द
मैंने मन से पूछा –
किस प्रेरणा से तू यहाँ आया ?
क्या किसी अज्ञात संकेत ने बुलाया
अँधेरा इतना कि नाव तक न दिखती
कोई करुणा उस वात में विलखती
मैं लौटने को था
वहां क्या करता
पवन निर्द्वंद
एक उच्छ्वास सा भरता
तभी मै…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2015 at 4:00pm — 14 Comments
कर नहीं सकता मैं करतब क्या करूँ
हो गई ताज़ा ग़ज़ल अब क्या करुँ
कोई ना पूछे तो लब ख़ामोश हैं
और जो कोई पूछ ले तब क्या करुँ
तेरी ना अहली पे जब उठठे सवाल
मेरे कहने का है मतलब क्या करुँ
फिर जिहालत का अँधेरा छा गया
तू ही बतलादे मेंरे रब क्या करुँ
अपनी मर्ज़ी से तो जी सकता नहीं
मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करुँ
आख़िरत में सुर्ख़रू करना मुझे
लेके इस दुनिया का मनसब क्या…
ContinueAdded by Samar kabeer on January 21, 2015 at 2:00pm — 23 Comments
"उतारो कपड़े इसके , देखो किस तरफ का है " , भीड़ चिल्ला रही थी और वो थर थर काँप रहा था | शहर में अचानक दंगा भड़क उठा था और वो भाग रहा था कि किसी तरह अपने घर पहुँच जाए | लेकिन जैसे ही एक मोहल्ले में घुसा , सामने से आ रही भीड़ ने उसे घेर लिया |
अभी वो कपड़ा उतारने ही जा रहा था कि पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज आई और भीड़ भाग खड़ी हुई | अब वो पुलिस की जीप में बैठा सोच रहा था कि आज वो तो नंगा होने से बच गया , लेकिन इंसानियत नंगी हो गयी |
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मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on January 21, 2015 at 2:00am — 23 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 9:10pm — 20 Comments
सुख-दुःख तो आते जाते हैं...................................
सुख-दुःख तो आते जाते हैं, राही मत घबरा जाना रे !
जीवन की गहरी नदियाँ में, हँसकर पतवार चलाना रे !
हमने कुछ देखी रीत यहाँ,..................................
हमने कुछ देखी रीत यहाँ, श्रम से ही सब कुछ मिलता है !
ईमान –धरम के काँटों में, तब फूल मुकद्दर खिलता है !
दौलत तो आनी जानी है.................................
दौलत तो आनी जानी है, ना मन इसमें उलझाना रे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 20, 2015 at 6:00pm — 21 Comments
मर्ज़ अपने हैं सभी कोई न बेगाना
मेरे घर का एक कोना है दवाखाना
इक नशा सा है मगर साकी न पैमाना
ज़ख़्म अपने पास हैं और दूर मैखाना
किस बीमारी का पता क्या है, वतन क्या है
पूछना कुछ हो तो मेरे घर पे आ जाना
आह भी है, ऊह भी है, शाम है ग़मगीन
शम्अ जलती दर्द की, मैं मस्त परवाना
कोई काँटा, कोई पत्थर, कोई ख़ंजर है
दर्ददाताओं से ही अपना है याराना
इक ग़ज़ल आयी ठिठुरती, कह गयी मुझसे
जम न जाना, जनवरी में ठंड है, माना ।…
Added by Krishnasingh Pela on January 20, 2015 at 10:30am — 19 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2015 at 9:07am — 23 Comments
121 - 22 / 121 - 22 / 121 - 22 / 121 – 22 |
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बड़े ही जोरो से इस ज़हन में अज़ब धमाका हुआ फरिश्तो |
फिज़ा में हलचल, हवा में दिल का गुबार छाया हुआ फरिश्तो |
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किसे पड़ी है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2015 at 2:19am — 36 Comments
२१२ २१२ २२
गम तुम्हारा नहीं होता
तो गुजारा नहीं होता
लूटते प्यासे ये सागर
गर ये खारा नहीं होता
मौत तेरे बुलावे से
अब किनारा नहीं होता
तेरी सौगात है वरना
जख्म प्यारा नहीं होता
है खुदा साथ जिसके वो
बेसहारा नहीं होता
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on January 19, 2015 at 8:30pm — 17 Comments
कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें
बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे
कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं
बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |
(2)
सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात |
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी
रेन…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 6:30pm — 14 Comments
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