सोचता हूँ मैं ,तुम कौन हो ?
सखी हो ,ईश्वर हो,
तुम मेरा प्यार हो,
तुम मेरा संसार हो !
करुणा हो, दुलार हो,
प्रेम की पुकार हो ,
तुम जीवन-आधार हो !
जीवन हो, स्पन्दन हो,
साँसों का गुंजन हो ,
तुम मेरा चिंतन हो !
हिम्मत हो जोश हो,
शक्ति का श्रोत हो,
प्रेम से ओत-प्रोत हो !
गगन हो , सर्जन हो,
सृष्टी का वरदान हो,
तुम मेरा अभिमान हो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 6:27pm — 16 Comments
प्यार का समन्दर हो .....
किसको लिखता
और क्या लिखता
भीड़ थी अपनों की
पर कहीं अपनापन न था
एक दूसरे को देखकर
बस मुस्कुरा भर देना
हाथों से हाथ मिला लेना ही
शायद अपनेपन की सीमा थी
खोखले रिश्ते
बस पल भर के लिए खिल जाते हैं
इन रिश्तों की दिल में
तड़प नहीं होती
यादों का बवण्डर नहीं होता
बस एक खालीपन होता है
न मिलने की चाह होती है
न बिछुड़ने का ग़म होता है
इसलिए ट्रेन छूटने के बाद
मैंने उसे देने के लिए
हाथ में…
Added by Sushil Sarna on January 19, 2015 at 3:55pm — 17 Comments
"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |
"देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर
"सब ले गए साहब "- कर्मचारी
"कहता हूँ ,सालों से किसी की चीज मत खाया करो ,छोड़ ये सब चल एक कप चाय पिला "- अफसर कहते हुए बाहर निकल आते हैं |
"मौलिक व् अप्रकाशित "
Added by maharshi tripathi on January 19, 2015 at 3:00pm — 16 Comments
212 1222 212 1222
क्या हुआ है रातों में, झुरमुटों से पूछो तुम
रो रहीं हवायें क्यूँ , डालियों से पूछो तुम
ग़ायबाना भौंरों के , फूल क्यूँ अधूरे हैं -- ग़ायबाना - अनुपस्थिति में
सच तुम्हें बतायेंगीं , तितलियों से पूछो तुम
क्या हुआ है चंदा को, क्यूँ नज़र नहीं आता
ये चकोर क्या जाने, बदलियों से पूछो तुम
कोई ये कहे कैसे , मैं ही था गलत यारों
गोलियाँ चलीं कैसे , घाटियों से पूछो तुम
बे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 19, 2015 at 2:30pm — 23 Comments
२१२२ २१२२२ २१२
*********************
हो गया है सत्य भी मुँहचौर क्या
या दिया हमने ही उसको कौर क्या
****
कालिखें पगपग बिछी हैं निर्धनी
तब बताओ भाग्य होगा गौर क्या
****
मार डालेगा मनुजता को अभी
जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या
****
हैं परेशाँ आप भी मेरी तरह
धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या
****
फूँक दे यूँ शूल जिनके घाव को
मायने रखता है उनको धौर क्या
****
प्यार माथे का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 11:46am — 20 Comments
रोज की तरह ऑफिस में घुसने से पहले उसने झुक कर उस भिखारी को कुछ पैसे दिए बहुत जल्दी में था पर्स पाकेट में रखने की बजाय वहीँ गिर गया जो उस भिखारी ने तुरंत लपक लिया| भिखारी ने देखा कुछ पैसों के साथ पर्स में दो तीन तरह के कार्ड थे|
कुछ देर बाद बाहर के ऑफिस से ऊँची आवाज आवाज आई अरे अरे ये भिखारी अन्दर कैसे आ गया?’ “साब बड़े साहब का ये पर्स गिर गया था सो उसे ही देने आया था”| “अच्छा अच्छा लाओ मैं दे दूँगा लेते हुए बाबू का चेहरा चमक उठा|
“साहब इस गमले से एक…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 19, 2015 at 11:08am — 30 Comments
खामोशी ने ऐसी खता की
बात न की पर उसने जता दी
दिए हैं उसने ज़ख़्म अगर तो
दवा भी उसने हमें लगा दी
न जाने क्या-क्या था सोच रखा
मिला जो उसने , शरत लगा दी
मेरी अना थी , गुरूर उसका
मगर ये रिश्ते में इक वफ़ा थी
खत इक लिखा , फिर ज़वाब उसका
था काम इतना , उमर लगा दी
बग़ैर उसके , सफ़र कहाँ था
कभी था चेहरा , कभी सदा थी
अजय कुमार शर्मा
मौलिक प्रकाशित
Added by ajay sharma on January 18, 2015 at 11:08pm — 7 Comments
" देखो तो , आज माँ के लिए मैं क्या लाया हूँ "|
" क्या जरुरत थी माताजी को इतनी बढ़िया साड़ी लाने की !" , पत्नी की आवाज में आश्चर्य झलक रहा था |
" माँ की आँखें नहीं हैं लेकिन मेरी तो हैं ना "|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on January 18, 2015 at 11:05pm — 20 Comments
ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे राजेश और सुरेश अच्छे दोस्त थेI राजेश बहुत ही गरीब घर से थाI और सुरेश रहीस खानदान से थाI लेकिन दोनों के विचार मिलते थेI इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थीI राजेश के घर में तीन बहिने, बूढी माँ और बीमार पिता थेI उन के घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थीI लेकिन सुरेश कभी कभी राजेश की सहायता कर देता थाI सुरेश के घरवालों को ये कतई मंजूर नहीं था की उनका बेटा किसी गरीब के घर जायेI इसी कारण दोनों में दूरिया बढ़ती गयीI उन्हीं दिनों में राजनैतिक दांव पेंच के बीच आरक्षण प्राप्त समुदायों…
ContinueAdded by harikishan ojha on January 18, 2015 at 11:00pm — 13 Comments
माँझी मंजिल से पृथक डालो नहीं पड़ाव
भँवर भरे मझधार में क्यों उलझाते नाव?
क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे
उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,
एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?
क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Dr.Prachi Singh on January 18, 2015 at 10:24pm — 18 Comments
दुपट्टा
भारत के वक्ष पर
सलीके से पड़ा
सफ़ेद दुपट्टा
वायुयान से दिखी –
धवल गंगा !
गंगा अब यहाँ नहीं बहती
साधु ने बालक से कहा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 2:00pm — 14 Comments
अच्छे दिन
दिखे हैं अभी इश्तिहारो में अच्छे दिन|
या सुनता हूँ बस नारों में अच्छे दिन|
सड़क पर बेचता है खिलौना अभी भी बच्चा
तेल सस्ता हुआ तो कारों के अच्छे दिन|
दिहाड़ी- मजदूर चौराहे पर खड़ा बेरोजगार
सजी दूकानें हैं तो बाजारों के अच्छे दिन|
घोटालेबाज बरी , अफसर की तब्दीली
खूब समझते हैं इशारों के अच्छे दिन|
किसान करे खुदखुशी, हाथ बस मायूसी
हैं खेत हड़पते सिसियाते अच्छे दिन|
पी. के. पर विवाद, ऍम.एस.जी पर सेंसर…
ContinueAdded by somesh kumar on January 18, 2015 at 1:31pm — 8 Comments
आई भोर कोयलिया बोले मीठे गान में
पारिजात बागान में।
उषा ने अपना आँचल बाँधा
अरुण ने अपना वेग सम्हाला
चला दिवाकर बिहंसी किरणें
जग में सुंदर जादू है डाला ।
दिन सुस्ताता तुम्हें देख पहले पहल विहान में
पारिजात बागान में।
देख मुझे वो देहरी ठिठ्की
केशर हार वो हाथ में लाई
अभी-अभी बचपन बीता है
लेकिन गई नहीं तरुणाई।
पाला नहीं पड़ा है जब तक रूप और अभिमान में
पारिजात बागान…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on January 18, 2015 at 1:30pm — 10 Comments
दुआओं में याद कीजियेगा ,
जब याद कीजियेगा ,
दुआ कीजियेगा।
मिलते हैं तो कहते हैं ,
आपकी सुबह अच्छी हो ,
शाम अच्छी हो ,
रात अच्छी हो,
जितनी बार मिलते हैं , हर बार कहते हैं ।
दिन रहते , विदा होते हैं , तो
आपका दिन अच्छा हो , कहते हैं ।
दुआओं में असर होता है ,
लोग यूँ भी दुआ करते हैं ,
हाथ मिला कर कहते हैं,
सिर को थोड़ा झुका कर कहते हैं ,
मुस्कुरा कर कहते हैं ,
जिसे जानते हैं , उस से कहते हैं ,
नहीं जानते , उस से भी…
Added by Dr. Vijai Shanker on January 18, 2015 at 11:30am — 14 Comments
“अरे क्या हुआ ये भीड़ कैसी है, कोई मर गया है क्या ?”
“हाँ यार वो साहब का नौकर, अरे वही यार जो साहब के घर के सारे काम करता था, झाड़ू - पोछा, चूल्हा-चौका ,बर्तन माँजने से लेकर सब्जी-भाजी लाने तक....जिसे साहब गाँव से लेकर आये थे, कहते थे चपरासी रखवा दूंगा डिपार्टमेंट में !”
“ओह वो गूंगा, वो तो बड़ा ही भला था और ठीक-ठाक भी, कैसे मरा ?”
“दोस्त, सब कह रहें हैं आत्महत्या कर ली, पर यार तू बताना मत किसी को, मेमसाहब की चेन चोरी हो गयी थी, कल रात पुलिस भी आई थी, बहुत मारा उसे, पर वह…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 1:57am — 20 Comments
२१२२ २१२२
घिर गया है मर्द यारा !
कौन है हमदर्द यारा !!
लोग आते बात करते !
दे गये सरदर्द यारा !!
आज गुस्से में है बीवी !
दे दिया है दर्द यारा !!
यार अब तो बात करना !
मत दिखाना फर्द यारा !! (फर्द -सूची )
वो परेशां है बहुत अब !
उसको देना कर्द यारा !!
मत खड़े हो सब यहाँ पर !
लो गिरी है गर्द यारा !!
लो रजाई साथ में भी !
रात होती सर्द यारा…
ContinueAdded by Alok Mittal on January 17, 2015 at 2:00pm — 7 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 16, 2015 at 10:26pm — 26 Comments
ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
याद करे दुनिया तुझे ऐसी निशानी छोड़ जा,
जोश भर दे जो सभी में वो जवानी छोड़ जा।
नाम पर तेरे कभी कोई उदासी हो नहीं,
प्यार से भरपूर कुछ यादें सुहानी छोड़ जा।
देश की खातिर लुटाओ जान अपनी शान से,
हर किसी की आँख में दो बूँद पानी छोड़ जा।
हो भरोसा हर किसी को तेरी बातों पर सदा,
देश हित की प्रेरणा दे वो बयानी छोड़ जा।
मौत आतीे है सभी को देख ‘‘मेठानी’’ यहां,
गर्व हो अपनाें को कुछ ऐसी…
Added by Dayaram Methani on January 16, 2015 at 9:55am — 16 Comments
" मिल गया चैन तुमको , हो गयी तसल्ली " , उसके पिता खुद को संभाल नहीं पा रहे थे | " कितनी बार मना किया था कि उसे वहां मत भेजो , अब खो दिया न उसको "| बेटी की असमय मौत ने उनको तोड़ दिया था |
टूट तो मैं भी गयी थी लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि बेटी को उसकी मर्ज़ी की जगह नौकरी करने की वकालत करके मैंने कौन सा गुनाह कर दिया था | उसकी कही बात जेहन में घूम रही थी " जाना तो एक दिन सब को है माँ , तो क्यों न निडर होके अपने तरीके से जिया जाए | अपना आसमाँ खुद ढूंढा जाए "| बेहद मुश्किल था अब लेकिन…
Added by विनय कुमार on January 16, 2015 at 1:00am — 12 Comments
अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !
सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !
सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !
परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!
निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !
परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 16, 2015 at 12:30am — 20 Comments
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