Added by Naveen Mani Tripathi on January 31, 2017 at 10:30pm — 12 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:11pm — 12 Comments
सिमटी रही
दो रोटियों के बीच
पूरी जिंदगी
ढूँढते रहे
जिंदगी भर सार
पर निस्सार
किसका बस
आज है कल नहीं
जिंदगी का क्या
आदि से अंत
बने अनंत, दूर
क्षितिज पर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on January 31, 2017 at 4:00pm — 6 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 31, 2017 at 11:30am — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 30, 2017 at 9:00pm — 10 Comments
212 2112 2112 222
सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा|
आज तन्हा है तो कल साथ ज़माना होगा|
मैं तो दुश्मन हूँ भला पीठ पे कैसे मारूं
इस लिए दोस्त तुझे दोस्त बनाना होगा |
जाग उठते है मेरे मन में सवालात कई
हर किसी दर पे न अब सर को झुकाना होगा |
एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर
शर्त है ज़ख्म सब अपनों को दिखाना होगा|
फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखे हैं,
हर किसी को न यहाँ दोस्त बनाना…
Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on January 30, 2017 at 8:00pm — 9 Comments
लो फिर चुनाव आ गये.
हम हर दल के नेता को भा गए.
‘दल-दल’ से निकल कर सब नेता,
शहर-गाँव में आ गये.
कोई मोबाइल, लैपटॉप दे रहा.
कोई दे रहा दाल घी,
खुले आम दरबार लगा है,
चाहे जितना खा और पी.
पांच साल हमने भोगा है,
कुछ दिन तुम भी लो भोग.
चुनावी वादें है, वादों का क्या,
समय के साथ भूल जाते है लोग.
गरीबों का हक हम खा गये,
लो फिर चुनाव आ गये.
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Naval Kishor Soni on January 30, 2017 at 5:48pm — 6 Comments
चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.
चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.
चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.
इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.
है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.
गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.
हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.
जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.
ना सराहत की उसे कोई कसर होने को…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on January 30, 2017 at 2:30pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 30, 2017 at 10:41am — 10 Comments
ये ,कैसा घर है ....
ये
कैसा घर है
जहां
सब
बेघर रहते हैं
दो वक्त की रोटी
उजालों की आस
हर दिन एक सा
और एक सी प्यास
चेहरे की लकीरों में
सदियों की थकन
ये बाशिंदे
अपनी आँखों में सदा
इक उदास
शहर लिए रहते हैं
ये
कैसा घर है
जहां सब
बेघर रहते हैं
उजालों की आस में
ज़िन्दगी
बीत जाती है
रेंगते रेंगते
फुटपाथ पे
साँसों से
मौत जीत जाती है
बेरहम सड़क है…
Added by Sushil Sarna on January 29, 2017 at 7:30pm — 13 Comments
2122 2122 2122
आज तुम यह क्या किये बैठे हुए हो
बेवजह का गम लिये बैठे हुए हो।1
कौन सुनता है यहाँ कुछ बात ढब की
दिल नसीहत को दिये बैठे हुए हो।2
और होता मौन का मतलब यहाँ पर
क्या पता क्यूँ मुँह सिये बैठे हुए हो।3
बदगुमानों की यहाँ बल्ले हुई बस
आशिकी का भ्रम जिये बैठे हुए हो।4
एक से बढ़ एक नगमे बुन रहे…
Added by Manan Kumar singh on January 29, 2017 at 12:26pm — 16 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 29, 2017 at 11:00am — 16 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 28, 2017 at 9:22pm — 2 Comments
जब भी गाया तुमको गाया , तुम बिन मेरे गीत अधूरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
तुमको ही अपने जीवन के नस नस में बहता ज्वार कहा,
मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा,
एकाकी मन के आँगन में, बरसो बन कर मेघ घनेरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
तुम इन्हीं पुरानी राहों के राही हो कैसे भूल गये,
आँखों से आँखों में गढ़ना सपन सुहाने भूल गये,
तुमको ही मन गुनता रहता हर दिन, हर पल, शाम सवेरे,…
Added by Anita Maurya on January 28, 2017 at 3:23pm — 5 Comments
आओ प्रिय बैठो पास ,
क्यों रहती हो तुम उदास ,
दिल में तुम हो मेरे खास,
देखो हरी-हरी ये घास,
जगा रही है मन में प्यास,
चितवन देख तुम्हारी आज,
लगती मुझको तुमसे आस,
पर तुमको क्यों आती लाज,
प्रेम को समझो तुम भी…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on January 27, 2017 at 5:00pm — 2 Comments
देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"
नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"
"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।
सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 27, 2017 at 9:11am — 4 Comments
1222-1222-1222-1222
जहां में आप सा हमको कोई कामिल नहीं मिलता
मिले हमको कई अच्छे मगर आकिल नहीं मिलता
जिन्हें तूफ़ान से लड़ना उन्हें फिर कौन रोकेगा
वही पाते हैं मंजिल को जिन्हें साहिल नहीं मिलता
तुम्हें मालूम है लेकिन बता सकते नहीं किस्सा
अजब घटना घटी देखो हमें फाजिल नहीं मिलता
खुदा मालिक है दुनिया का उसे सबसे मुहब्बत है
सहारा वो नहीं देता कभी साहिल नहीं मिलता
गगन मिट्टी हवा पानी हमें जीने को देता है
बसा…
Added by munish tanha on January 26, 2017 at 10:00pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2017 at 9:30pm — 3 Comments
Added by Ravi Prakash on January 26, 2017 at 7:43pm — 2 Comments
छंद--तांटक
-.-
शान बड़ी गणतंत्र दिवस की , दुनियां को दिखलायें क्यों
.
ख़ौफ़ ज़दा सड़को पर चलती, डर के साये में जीती
देश की बेटी न बोलेगी , क्या क्या उस पर है बीती
नन्ही नन्ही कलियाँ खिलने, से पहले ही तोडा है
जननी को जो जन्मा तो फिर, नारी के सर कोड़ा है
क्या पहने पोशाक यहाँ हम , मुनिया को समझायें क्यों
शान बड़ी गणतंत्र दिवस की......
.
वादों का सैलाब लिए वो, पाँच साल में आते है
अपनी जेबें भरते है पर जन सेवक कहलाते…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:00pm — 7 Comments
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