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आज दिल उनका होने वाला है
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बहरे खफीफ मुसद्दस मखबून
फ़ायलातुन मुफाएलुन फालुन
2122 1212 22
होश लगता है खोने वाला है,
आज दिल उनका होने वाला है.
हर ख़ुशी जागने लगी दिल की,
ग़म थका है तो सोने वाला है.
कल जो जारो कतार था मंज़र,
हँस रहा देखो रोने वाला है.
रूह ये धूल से भरी मेरी,
आज आकर वो धोने वाला है.
दिल की बंज़र पड़ी ज़मीनों पर,…
Added by इमरान खान on February 24, 2014 at 9:00pm — 5 Comments
"राह के कांटें हुए बलवान भी"
आप की खातिर है हाजिर जान भी।
हाथ का पंजा हुआ हैरान भी।।
कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,
आज कल भौंरे करें पहचान भी।
अब चुनावी दौर का मंजर यहां,
बढ़ रही है रैलियों की शान भी।
भुखमरी-बेकारी सिर चढ़ बोलती,
हर किसी रैली में जन वरदान भी।
खो गर्इ है शान-शौकत-आबरू,
बो रहे हैं लोभ-साजिश-धान भी।
अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर,
गिरगिटों के रंग में…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 9:00pm — 13 Comments
दान की लिखता कथा
धर्म रेखा
खींच कर
जाति बंधन से बॅधें,
प्रेम सा
उपकार करते
साधना
सत्कार से।
उपहास होता कर्म का
अति…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 7:59pm — 6 Comments
1-)
छू जाता है तन को मेरे।
कह जाता है मन को मेरे ।
उसको हरदम है कुछ कहना,
क्या सखि साजन ?
ना सखि नैना !
2-)
छूते है तन मन को मेरे ।
बिन बोले ही मेरे तेरे ।
मिल जाते हम सब के संग,
क्या सखि साजन ?
ना सखि रंग !
3-)
दिल को मेरे छू जाती है ।
भावनाओं को सहलातीं है ।
इन की नहीं है कोई म्यादे ,
क्या फरियादें ?
ना सखि यादें !
4-)
टिकट…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 24, 2014 at 7:30pm — 7 Comments
प्रथम प्रयास
(1)
रखती उसको हिये लगाये
सबके मन पर वो छा जाये
उसकी सूरत दिल मे उतरी
क्या सखि साजन ? न सखि मुंदरी
(2)
उसके नाम से ही डरूँ मै
होती शाम छिपती फिरूँ मै
आए जब चैन न पाऊँ क्षन भर
क्या सखि साजन ? ना सखि मच्छर
(3)
बालक बूढ़े सबको भाये
बिना उसके चैन नहि पाये
सुंदर सूरत सुनहरी चाम
क्या सखि साजन ? ना सखी…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 24, 2014 at 2:30pm — 16 Comments
मिजाज मेरे शहर का रंगीन बडा है ।
हर मौसम यहाँ का बेहतरीन बडा है ।।
आंखो मे सुरमा मुहँ मे पान रचा है ।
हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है ।1।
शोखिया अदाये वो इठलाती जबानी ।
यहाँ हुस्नो शबाब नाजनीन बडा है ।2।
है झील का किनारा वो लहरो की मस्ती ।
हर नजारा यहाँ दिल नशीन बडा है ।3।
हरसू है बस प्यार मोहब्बत की बाते ।
नफरत यहाँ जुर्म संगीन बडा है ।4।
हो इक शहर ऐसा भी इस जहाँ मे कही…
ContinueAdded by बसंत नेमा on February 24, 2014 at 12:30pm — 6 Comments
11.
दोस्ती मेरी सदा निभाए
न्यारी न्यारी बात बताए
बताए हरदम सही जवाब
क्या सखि साजन ? ना सखि किताब
12.
तुझ बिन जगत यह कड़की धूप
तेरे संग खिलता है रूप
कैसा तूने किया करिश्मा
क्या सखि साजन ? ना सखि चश्मा
13.
ज्यों चलूँ वो साथ ही हो ले
अंग संग खाए हिचकोले
मधुर सुरों से ह्रदय छले छलिया
क्या सखि साजन ? ना पायलिया
14.
उलझे मेरे लट सुलझाता
न बोलूँ तो खीझ है जाता
रूप दिखाता रंग बिरंगा
क्या सखि…
Added by Sarita Bhatia on February 24, 2014 at 9:56am — 6 Comments
सुनी थी वीरों कि कहानियाँ
मुश्किलों से भरी बीती जिनकी जवानियाँ
संस्कारों कि दीवारों से घिरता रहा
लड़ता रहा और उलझता रहा
जय पराजय में पिसता रहा
कष्टो के तीरों से छलनी हुआ तन
हालातों के कांटो से घायल हुआ मन
पर मन ने चुनी हर चुभन
बस इन सबने मेरा साहस बढ़ाया
जब खुली आँख,मै दूर था निकल आया
साथ था तो बस केवल अपना साया
मन ने फिर वही सवाल दोहराया
माँ तूने मुझे अभिमन्यु क्यूँ बनाया
अब मानता हूँ कि तुम्हारा…
ContinueAdded by pawan amba on February 23, 2014 at 3:00pm — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बारहा सजदा करेंगे खुश खुदाया हो न हो
इस अकीदत का कभी एजाज़ पाया हो न हो
जान रख दें उस ख़ुदा के सामने तेरे लिए
सर किसी के सामने हमने झुकाया हो न हो
सींचते उसकी जड़ों को आज भी हम प्यार से
वक़्त हमने छाँव में उसकी बिताया हो न हो
याद में उसकी हमेशा हम लिखेंगे हर ग़ज़ल
हम भुला सकते नहीं उसने भुलाया हो न हो
काश जलकर हम उजाला कर सकें उसके लिए
दीप उसने आज घर अपने…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 22, 2014 at 7:30pm — 16 Comments
17)
जी करता है उड़कर जाऊँ।
कुछ पल उसके संग बिताऊँ।
दूर बहुत ही है उसका घर,
क्या सखि, साजन?
ना सखि, अम्बर!
18)
रातों को जब नींद न आए।
खिड़की खोल, सखी वो आए।
बाग बाग हो जाता मनवा,
क्या सखि प्रियतम?
ना री, पुरवा!
19)
उसको प्यार बहुत करती हूँ।
मगर पास जाते डरती हूँ।
दूर खड़ी देखूँ जी भरकर,
क्या सखि, प्रियतम?
ना सखि सागर!
20)
जब भी मेरा मन भर आए।
आँसू पोंछे…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on February 22, 2014 at 7:00pm — 19 Comments
पढ़े लिखे कुछ लोग भी, दे हैरत में डाल।
बेटी भी औलाद है, फिर क्यूँ करे बवाल।।
इतनी छोटी बात भी, समझे ना इंसान।
बेटी जन्में पुत्र को, रखते कुछ तो मान।।
बेटी मेरा खून है, बेटी मेरी जान।
बेटी से ये सृष्टि है, बेटी से इंसान।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2014 at 5:30pm — 14 Comments
जो मुस्का दो खिल जाये मन
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खिला खिला सा चेहरा तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब
बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 22, 2014 at 4:30pm — 6 Comments
एनजीओ खूब बने, करे न सेवा ख़ास
टैक्स बचे इज्जत बढे,धन की करते आस
धन की करते आस,नहीं कुछ सेवा करते
फैशन बना विशेष, ओट में पीया करते
करके बन्दर बाट, खूब लूटकर जीओ
धन अर्जन की प्यास लिए बने एनजीओ |
(२)
लोहा मनवाते रहे, करते वे अभिमान
गर्व रहा नहीं स्थाई,रखे न इसका भान
रखे न इसका भान,ज्ञान न चक्षु के खोले
जीवन का है मोल,सोच समझ के न बोले
कहते है कविराय, शिल्प में सोहे दोहा
करते जो सम्मान, मान उसका ही लोहा…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 11:00am — 4 Comments
मै पागल मेरा मनवा पागल
मै पागल मेरा मनवा पागल, ढूँढे इंसाँ गली - गली ।
आज फरिश्ता भी गर कोई
इस धरती पर आ जाए
इंसाँ को इंसाँ से लड़ते-
देख देख वह शरमाए ।
बेटी को बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली
मै पागल मेरा मनवा पागल, ढूँढे इंसाँ गली - गली ।
दूध दही की नदियां थी तब-
उनमें गंदा पानी बहता
द्वारे – द्वारे, नगरी – नगरी,
विषधर यहाँ पला करता ।
कान्हा आकर…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 22, 2014 at 10:30am — 12 Comments
आज बता दे दीप -शिखा प्रिय
मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?
दीप तले है नित अँधियारा
फिर भी तू अँधियारा हरता
पल -पल तू, धुआँ रूप में
हर पल, खुद की व्यथा उगलता
देख रही हूँ ज्योति तेरी,में
तेरा व्याकुल ह्रदय मचलता
पर कालिमा हरने में ही
दीप तेरा यह जीवन जलता
मानवता को रोशन कर के भी
मैं उजयारा कर पाऊँ कैसे ?
उढ़कर आता जब परवाना
आलिंगन करने तुझको
आखिर वह,जल ही…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 21, 2014 at 10:00pm — 3 Comments
( 1 )
दो पुष्प खिले
हर्षित हृदय
लीं बलैयां
( 2 )
धीरे धीरे
बढ़ चले राह
पकड़ी बचपन डगर
( 3 )
मार्ग दुर्गम
वे थामे अंगुली
आशित जीवन
( 4 )
हुये बड़े
बीता बचपन
डाले गलबहियाँ
( 5 )
संस्कार भरे
करते मान सम्मान
न कभी अपमान
( 6 )
जीवन बदला
खुशियाँ…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 21, 2014 at 9:15pm — 5 Comments
आज सुबह से ही ठहरा हुआ है,
कुहरा भरा वक्त.
न जाने क्यों,
बीते पल को
याद करता.
डायरी के पलटते पन्ने सा,
कुछ अपूर्ण पंक्तियाँ,
कुछ अधूरे ख्वाब,
गवाक्ष से झांकता पीपल,
कुछ ज्यादा ही सघन लग रहा है.
नहीं उड़े है विहग कुल
भोजन की तलाश में.
कर रहे वहीँ कलरव,
मानो देखना चाहते हैं,
सिद्धार्थ को बुद्ध बनते हुए.
बुने हुए स्वेटर से
पकड़कर ऊन का एक छोर
खींच रहा हूँ,
बना रहा हूँ स्वेटर को
वापस ऊन का गोला.
बादल उतर आया…
Added by Neeraj Neer on February 21, 2014 at 8:16pm — 12 Comments
सामने से गुज़र रही है
भीड़
हाथों में हैं झंडे
केसरिया
हरे
शोर बढ़ता जा रहा है
झंडे
हथियार बन गए हैं
जमीन लाल हो रही है
यह अजीब बात है
झंडे चाहे जिस रंग के हों
जमीन लाल ही होती है
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on February 21, 2014 at 8:00pm — 12 Comments
6.
जीवन मेरा रोशन करता
सूरज जैसे तम को हरता
उस बिन धड़के मेरा जिया
क्या सखि साजन ? ना सखि दीया
7.
चले संग वो धड़कन जैसे
उस बिन कटे बताऊँ कैसे
रखे हिसाब हर पल हर कड़ी
क्या सखि साजन ? नहीं सखि घड़ी
8.
पलकें मीचूं सपने लाता
कोमलता से फिर सहलाता
छोड़े ना वो पूरी रतिया
क्या सखि साजन? ना सखि तकिया
9..
नया रूप ले रात को आता
दिन चढ़ते वैरी छुप जाता
छिपता जाने कौनसी मांद
क्या सखि साजन ? ना सखि चाँद…
Added by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 7:35pm — 15 Comments
आज मजलूम को सताओगे
बददुआ सात जन्म पाओगे
बह्र ग़ालिब की खूब लिख डालो
दिले-ग़ालिब कहाँ से लाओगे
खुद को भगवान मान बैठेगा
हद से ज्यादा जो सिर झुकाओगे
आज साहब बने हो रैली…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on February 21, 2014 at 7:02pm — 15 Comments
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