आम्र मंजरी झूमती ,मादक महके बाग
-हर्षित कोयल कूकती,बौराया सा काग ।
बाबा देवर बन गए, फागुन में वो बात
ललचाये हर बाल मन,…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 24, 2015 at 10:30am — 17 Comments
22 22 22 22 22 2
ये कैसी महफिल में मुझको ले लाया
हर कोई लगता है गुमसुम, थर्राया
सब रस्ते इन शहरों के बातूनी हैं
गाँवों की गलियों को सब ने फुसलाया
साहिल साहिल बात चली है लहरों में
तूफ़ाँ ने जब तोड़ी कश्ती, इतराया
क्या जज़्बा हाथों से बहते रहता है ?
धोते ही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 10:07am — 22 Comments
एक सत्यान्वेषी ,
मुक्ति का अभिलाषी
था उर्ध्वारोही।
कर रहा था आरोहण
पर्वत की दुर्लंघ्य ऊचाईयां का।
पर्वत से उतरती नदी ने कहा :
मैदानों में तो जीवन कितना सरल , सुगम है,
यहाँ जीवन है कितना दुष्कर।
अविचलित रहकर इसपर
दिया उसने उत्तर
मैंने भीतर जाकर देखा है,
वाह्य सौंदर्य तो धोखा है।
मैदानों में जीवन सरल है,
पर राह लक्ष्य की वक्र है।
जीवन रथ मे लगे
कर्म फल के दुष्चक्र हैं।
मैं राह सीधी लेना चाहता हूँ।
इसलिए नीचे…
Added by Neeraj Neer on February 24, 2015 at 8:48am — 12 Comments
तुम्हारा मुझसे मिलना
मिलते ही धूप का ठण्डा हो जाना
ये बडा ही अनौखा विज्ञान था मेरे लिये
जिसे मैं आज तक नहीं समझा हूँ
.
काँटों से भरे रास्तों पर
तुम्हारे साथ साथ दूर तक चले जाना
तलवों में बने काँटों के निशान
एक असीम आनन्द देते थे
ये कैसा विज्ञान था पता नहीं
.
क्या तुम्हें याद है
जब साथ साथ की थी हमने नदी की सैर
छेद हुयी टूटी नौका में बैठकर
और लिया था डूबने का आनन्द
ये कैसे सम्भव हुआ था
इस विज्ञान से भी…
Added by umesh katara on February 24, 2015 at 6:00am — 10 Comments
मैं रोज़ ढलता हूँ पर , निकलता हूँ , क्या करूँ
सूरज हूँ , मगर रोज़ जलता हूँ , क्या करूँ //
मैं मिट्टी नहीं , न हि पानी न कोई खुश्बू
मैं हवा का इक झोंखा हूँ , आँख मल्ता हूँ , क्या करूँ //
मैं बचपन भी कहाँ अब , जवानी भी नहीं हूँ मैं
बुढ़ापा हूँ मैं , इसीलिए खलता हूँ , क्या करूँ//
न कोई सफ़र हूँ मैं , न कोई पड़ाव न सराय कोई
मील का पत्थर हूँ मैं , बस टलता हूँ , क्या करूँ //
कहाँ खुद्दार हूँ मैं , अना वाला भी नहीं हूँ…
ContinueAdded by ajay sharma on February 24, 2015 at 12:29am — 8 Comments
क्यों
घबराते हो
परिवर्तन से ?
परिवर्तन तो होगा
होता रहा है, होगा बार- बार
किसी के लिए अच्छा भी हो सकता है
किसी के लिए अवांछनीय भी हो सकता है
पर सृष्टी का नियम है, बदल सकते हो क्या ?
पर एक बात जान लो, परिवर्तन से ही इंसान लड़ता है
आगे बढता है ,परिवर्तन से ही इंसान सड़ जाने से बचता है !!
क्यों
घबराते हो
समस्याओं से ?
समस्यायें तो आयेंगी
आती रही है, आयेंगी बार – बार
जीवन ऐसे ही चलता है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 10:30pm — 15 Comments
सुना सहसा उसने
और दिल बैठ गया
तड़प रहे अंतस में
नया डर पैठ गया
तकिये पर सिर छिपा
विवश वह लेट गया
आंसुओं की परतें अनगिन
दर्द में समेट गया
अगले रविवार फिर
वही मंजर आयेगा
मौन-प्रेम सिसकेगा
तडपकर मर जाएगा
एक कन्या बेमन से अनचाहा वर वरेगी
प्यार के शव पर ही मांग वह भरेगी
अभी उसके व्याह का…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 7:38pm — 24 Comments
प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....
प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं
प्रेम धरा है प्रेम गगन है
प्रेम मिलन है प्रेम विरह है
श्वास श्वास का प्रेम बंधन है
प्रेम ईश है प्रेम है पूजा
स्मृति घाट का प्रेम मधुबन है
पावन गंगा सा प्रेम समेटे
लिप्त बूंदों में प्रेम नयन है
मौन अधरों में गुन गुन करता
प्रेम में डूबा प्रेम कम्पन है
आत्मसात का भाव समेटे
प्रेम हकीकत प्रेम स्वप्न है
प्रेम अलौकिक अपरिभाषित
हृदय नयन का प्रेम अंजन…
Added by Sushil Sarna on February 23, 2015 at 7:30pm — 16 Comments
Added by Neeraj Nishchal on February 23, 2015 at 12:36pm — 10 Comments
2122 2122
***************
पाप का अवसान मागूँ
पुण्य का उत्थान मागूँ
**
सत्य की लम्बी उमर हो
झूठ को विषपान मागूँ
**
व्यर्थ है आकाश होना
सिर्फ लधु पहचान मागूँ
**
राजपथ की राह नीरस
पथ सदा अनजान मागूँ
**
स्वर्ण देने की न सोचो
मैं तो बस खलिहान मागूँ
**
कोयलों का वंश फूले
आज यह वरदान मागूँ
**
साथ ही पर काक के हित
इक मधुर सा गान मागूँ
**
मिल गए नवरात …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2015 at 11:31am — 26 Comments
ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब
कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब
बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है
जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब
ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू
जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब
चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी
गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब
बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने
मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब
गरज़ ढुलते ही रस्ता हो गया चिकना
मेरे घर वो फिसल कर आ रहा है…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:23am — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 10:08am — 14 Comments
Added by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 6:30am — 17 Comments
“हर बार, वह उस आखिरी ‘समोसे’ की तरह मन मसोस कर रह जाता, जिसे कोई नहीं खाता था, आखिर वह अपने डिग्री कॉलेज की क्रिकेट टीम का ‘१२ वाँ खिलाड़ी जो था’ पर आज उसने हिम्मत जुटाकर ‘कप्तान’ से कहा ‘सर’ एक बार मुझे भी खेलने का मौका चाहिए!”
“अरे यार, तुम तो टीम के अभिन्न अंग हो, तुम तो बस मैच का आनन्द लो, हां बस बीच –बीच में चाय, पानी, समोसा, कोल्डड्रिंक, जूस –वूस ले आया करो !”
“समय बदला और फाइनल मैच से ठीक एक दिन पहले कप्तान और उसका प्रिय खिलाड़ी कार दुर्घटना में जख्मीं हो गए, और उस दिन…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 2:48am — 18 Comments
212 / 1222 / 212 / 1222 |
|
वाकिया हुआ कैसे बाद ये जमानों के |
मस्ज़िदी भजन गाये मंदिरी अजानों के |
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हौसला चराग़ों का यूं चला तबीयत… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 11:30pm — 31 Comments
2122 2122 212
पढ़ चुके जब से किताबें चार हम
भूल बैठे आपसी सब प्यार हम
बादलों ने ढक लिया सूरज अगर
मान लें सूरज की कैसे हार हम
उम्र भर कागज़ किये काले मगर
कह न पाए शेर भी दो चार हम
है भरोसा तेरे झूठे वादे पे
यार दिल के हाथ हैं लाचार हम
जीतना तो चाहते हैं दिल मगर
फिर जमा क्यों कर रहे हथियार हम
बस डकैती लूट हत्या अपहरण
देखते डरने लगे अखबार हम
मौलिक व…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on February 22, 2015 at 5:53pm — 5 Comments
Added by दिनेश कुमार on February 22, 2015 at 12:30pm — 11 Comments
212 212 212 212
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जिन्दगी थी बहुत ही सुहानी मेरी
मौज मस्ती कभी थी निशानी मेरी
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एक ज़लसा हुआ था मेरे गाँव में
मिल गयी उसमें परियों की रानी मेरी
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सिलसिला चल पडा फिर मुलाकात का
मुझको लगने लगी जिन्दगानी मेरी
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बात अबकी नहीं है मेरे दोस्तो
ये कहानी बहुत ही पुरानी मेरी
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एक साज़िश रची थी रक़ीबों ने फिर
और साज़िश में शामिल दिवानी मेरी
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मैं तो मरने लगा…
Added by umesh katara on February 22, 2015 at 10:30am — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 9:52am — 17 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 22, 2015 at 9:35am — 9 Comments
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