आते हुये लोग ,
जाते हुये लोग !
जीवन का सुख दुःख ,
आनंद और भोग !!
असली आनंद विदेशों में ,
विदेश यात्रा का सुख ,
खुश और कृत कृत हो जाऊ ,
भूलूं जीवन भर का दुःख !!
वहां का…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 1:28pm — 7 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल ।
फरी-फरी फ़रियाँय फिर, घरी-घरी घंटाल ।
घरी-घरी घंटाल, मीडिया माथा-पच्ची ।
सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।
परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।
करें शुद्ध व्यवसाय, आपदा क्यूँकर अखरी ??
Added by रविकर on February 4, 2013 at 1:25pm — 9 Comments
तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो शृंगार रस में डुबोकर तूलिका,
मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग-अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत ! व्यथित है चित्रकारी
**********************
Added by rajesh kumari on February 4, 2013 at 1:00pm — 13 Comments
उन्होंने अवकाश हेतु आवेदन पहुँचाया
अधिकारी का सर चकराया
लिखा था प्रार्थी की मां का स्वास्थ वेहद नाजुक है
स्थिति अत्यंत गंभीर है
कोई रिस्पांस नहीं दे रही है
बस अंतिम सांसे ले रही है
त्याग दिया हे जल अन्न
बिलकुल हे मरणासन्न
चिकित्सकों के सारे प्रयास व्यर्थ है
अतः हम आगामी पांच दिवस कार्यालय आने में असमर्थ है
अधिकारी ने उनके अवकाश का रिकॉर्ड खुलवाया
व बिगत दो बर्षों में उनकी दो माताओं को मृत…
Added by Dr.Ajay Khare on February 4, 2013 at 1:00pm — 3 Comments
Added by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 12:59pm — 6 Comments
ग़ज़ल
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on February 4, 2013 at 11:00am — 8 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2013 at 10:00am — 9 Comments
आत्म-खोज
( यह उन सभी को सादर समर्पित है जिन्होंने दर्द को
भले एक क्षण के लिए भी पास से छुआ है, पीया है,
यह उनको आस और प्रोत्साहन देने के लिए है )
कहाँ ले जाएगा यह प्रकंपित…
ContinueAdded by vijay nikore on February 4, 2013 at 6:30am — 16 Comments
मन निर्मल निर्झर, शीतल जलधर, लहर लहर बन, झूमे रे..
मन बनकर रसधर, पंख प्रखर धर, विस्तृत अम्बर, चूमे रे..
ये मन सतरंगी, रंग बिरंगी, तितली जैसे, इठलाये..
जब प्रियतम आकर, हृदय द्वार पर, दस्तक देता, मुस्काये..
मौलिक ,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 3, 2013 at 11:30pm — 26 Comments
22 22 22 22 -
जिस दम सूरज ढल जाएगा
रात का जादू चल जाएगा
-
सँभल के चलना सीख लें वर्ना
कोई तुझको छल जाएगा
-
दुनिया का दस्तूर यही है…
Added by SALIM RAZA REWA on February 3, 2013 at 10:30pm — 9 Comments
हुई गया प्रभु से मिलनवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
लख चुरासी तूने नरक बिताया
प्रभु नाम तूने कभी नही ध्याया
अब लिया देह में जन्मवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
आठों पहर किनी चुगली निंन्दवा
कानों में घोला विष का प्याल्वा
अब पाया प्रभु का चिन्तनवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
जन्म डुबोई तूने भोग में रसनवा
कड़वी वाणी बोली कड़वा वचनवा
अब पाया राम नाम का प्रसादवा
सुन रे अनाड़ी…
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 3, 2013 at 7:16pm — 15 Comments
आईने में एक प्रतिबिम्ब
खड़ा है मौन !
आँखों के पीछे से
आवाज आई - कौन ?
है कौन यह अपरिचित?
क्या है यह अपना मीत ?
यह कैसी है संवेदना?
यह किसकी है सदा ?…
Added by Anwesha Anjushree on February 3, 2013 at 7:00pm — 11 Comments
हल्की- सी पवन क्या चली..
पीपल के बातुनी पत्तों की बातें ही चल पड़ी !
नीम के पत्ते थोड़े से अनुशासन में रहकर हिले ,
और सखुए के पत्तों ने..
पवन के पुकार की कर दी अनसुनी !
चिड़ियों की शुरू हुई चहल पहल..
सबसे छोटी चिड़िया ने की पहल ,
काम कम पर शोर ज्यादा ,
सारे भुवन में उसने मचाई हलचल !
तिमिर ने अपना आँचल समेटा ,
रवि ने ली जम्हाई,
तारे भी थके से थे,
उन्होंने अपनी बाती बुझाई !
शशि को तो मही से है प्रेम ..
वह तो है अलबेला…
Added by Anwesha Anjushree on February 3, 2013 at 7:00pm — 10 Comments
इंजिनियर रामबाबू अपनी बेटी दिव्या को एयरपोर्ट छोड़कर अभी-अभी घर लौटे थे। दिव्या ने IIM से एमबीए किया था। एक प्रतिष्ठित कंपनी में बतौर मैनेजर लाखों कमा रही थी। रामबाबू को अपनी बेटी पर खासा गर्व था। नातेदारों से लेकर जान-पहचानवाले सभी लोगों से बात-बातपर वो दिव्या का ही जिक्र छेड़ते थे। अन्य के मुकाबले आर्थिक स्थिति काफी अच्छी होने के कारण रिश्तेदारी में भी उनकी विशेष इज्जत थी। आज छुट्टी थी और कोई खास काम भी नहीं था सो रामबाबू आराम से पलंगपर पसर गये। लेटे-लेटे ही उन्होंने अपनी पत्नी शर्मिला से…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on February 3, 2013 at 4:30pm — 6 Comments
आदत हो गयी है,
आंख बंद करने की!
अच्छा बुरा कुछ भी हो ,
आदत हो गयी सहने की !!
आश्रित बनकर जीते है,
फेकी हुयी रोटी खाते है ,
हत्या कर देते है स्वाभिमान की ,
शायद! इसलिए झुककर जीते है !!
हम एक झूठी दुनियां में ,
अधखुली नींद सोते है!
वाह्य कठोरता दिखाते है !
अन्दर से फिर क्यूँ रोते है !!
आडम्बरों से भरा जीवन ,
बन चुकी कमजोरी है ,
वास्तविकता से सम्बन्ध नहीं ,
क्या ऐसा करना ज़रूरी है !!
आखिर कब तक यूँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 4:09pm — 1 Comment
अभिनव प्रयोग-
उल्लाला मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*
झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*
दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 3, 2013 at 2:30pm — 6 Comments
ज्ञानियों से ज्ञान लेना चाहिये
गल्तियों को मान लेना चाहिये |
स्वस्थ रहने का सरल सिद्धांत है
पेय - जल को छान लेना चाहिये |
रास्ते सब खुद ब खुद मिल जायेंगे
लक्ष्य मन में ठान लेना चाहिये |
इस जहां में दोस्तों की शक्ल को
दूर से पहचान लेना चाहिये |
धन न वैभव सुख कभी दे पाएंगे
प्रेम का वरदान लेना चाहिये |
दिल कहे कि पात्रता रखता है तू
तब कोई सम्मान लेना चाहिये |
ज़िंदगी का अर्थ क्या है ऐ अरुण
अनुभवों से जान लेना चाहिये…
Added by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:00am — 9 Comments
१३-१४ साल के आसपास की उम्र होगी उसकी ! शायद कुछ अंडे चुराए थे उसने ! बस इसीलिए लोग उसे बेतहाशा पीट रहे थे ! कहीं से पुलिस को इत्तला हुई ! पुलिस पहुंची ! बहुत मशक्कत हुई, पर लोग उसे बख्शने को तैयार न थे ! आखिर पुलिस को लाठीचार्ज और हवाई फायर करना पड़ा ! दो-चार लोग घायल हुवे, पर उसे बचा लिया गया ! अगले दिन खबर थी, “जनता के रक्षक हुवे भक्षक” ये खबर खूब चली ! पुलिस ने इस खबर को देखा और अगले मामले में शांत रही ! कोई लाठीचार्ज, कोई हवाई फायर नही ! अगले दिन खबर थी, “पब्लिक की सरेआम गुण्डागर्दी,…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on February 3, 2013 at 7:15am — 7 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 10:22pm — 5 Comments
यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी
उदासी जहन में जमी तो रहेगी
हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर
वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी
नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी
करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में
हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी
भले मौन हो जाए तेरा नसीबा
कहीं ना कहीं सरग़मी तो रहेगी
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 2, 2013 at 8:16pm — 28 Comments
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