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February 2018 Blog Posts (133)

ग़ज़ल नूर की -खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

२१२२/२१२२/२१२

.

खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

सब को जाना है ये मेला छोड़ कर. 

.

एक क़िस्सा-गो अचानक मर गया

अपने कुछ क़िरदार ज़िंदा छोड़ कर.

.

था बहुत जिन को समुन्दर पर यकीं

अब वो पछताते हैं दरिया छोड़ कर.

.

मोड़ कोई इक ग़लत मुडने के बाद

याँ तलक पहुँचे हैं रस्ता छोड कर.

.

उस ख़ुदा का मत दिया कर वास्ता  

जा चुका जो कब से दुनिया छोड़ कर.

.

बात मेरी मान कर तो देखिये

आप अपना ये रवैया छोड़ कर.

.

चाँद…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2018 at 8:02pm — 12 Comments

सरसी छंद-२

कोई चाभे खूब मलाई,कोई रोटी-नून।
सभी बराबर भारत में हैं,फिर क्यों चूसें खून।
कोई ऋण ले चंपत होता,कोई देता जान।
कलम बताने वाली मेरी, कैसा हिंदुस्तान।।

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

Added by पीयूष कुमार द्विवेदी on February 21, 2018 at 6:00pm — 5 Comments

अंगुलिमाल(लघुकथा)

शिकार की तलाश में घूमते-घूमते अंगुलिमाल को एक साधु दिखा| उनको देखकर उसने कहा," तैयार हो जाओ तुम्हारी मृत्यु आयी है|"

साधु ने निडर होकर कहा," मेरी मौत! या तुम्हारी...?"

साधु का ऐसा उत्तर सुन कर अंगुलिमाल थोड़ा विचलित हुआ,उसने साधु से पूछा," तुमको मुझसे डर नहीं लगता? मेरे हाथ में हथ्यार देखकर भी नहीं?"

"न .... मैं क्यों डरूँ तुमसे, पर तुम हो कौन और यह माला कैसे पहनी है, इतनी सारी उँगलियाँ .......?"

"हाहाहाहाहा! हाँ यह उँगलियाँ ही हैं और मैं अंगुलिमाल…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 21, 2018 at 5:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ ( मसौदा भी ज़रूरी है...)

1222,1222,1222,1222

ज़रूरी है अगर उपवास, रोज़ा भी ज़रूरी है।

रवाज़ों का ज़रा होना अलहदा भी ज़रूरी है।।

हमें ये फ़ख़्र होता है कि हम हिंदौस्तानी हैं,

हमारे बीच हमदर्दी का सौदा भी ज़रूरी है।

मनाने रूठ जाने के लिखे हों क़ाइदे जिसमें,

मुहब्बत के लिए ऐसा मसौदा भी ज़रूरी है।

किसानों के लिए बिजली ओ पानी ही नहीं काफ़ी,

उन्हें ख़सरा,…

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Added by Balram Dhakar on February 21, 2018 at 12:23pm — 12 Comments

सब सही पर कुछ भी सही नहीं है - डॉo विजय शंकर

आप सही हैं,
वह भी सही है ,
हर एक सही है ,
फिर भी कुछ भी
सही नहीं है।
कुछ गिने चुने
लोग बहुत खुश हैं ,
यह भी सही नहीं है।
सच जो भी है ,
सब जानते हैं ,
बस मानते नहीं ,
यह भी सही नहीं है।
ऊँट सामने है ,
देखते नहीं,
हड़िया में ढूँढ़ते है ,
यह भी सही है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on February 21, 2018 at 8:40am — 13 Comments

मिज़ाज (लघुकथा)

रंगों से सराबोर गीली साड़ियों से लिपटी कुछ ग्रामीण मज़दूर महिलायें टोली में गली से गुजरीं।


"उधर देखो और बताओ कि उनके अंग-अंग रंगीन हैं या वस्त्र?" एक रंगीन मिज़ाज पुरुष ने अपने साथी से कहा।


"वस्त्र गीले और रंगीन हैं और अंग सूखे और रंगहीन! समझ में नहीं आता तुम्हें?" साथी ने उसकी आंखों के सामने चुटकी बजाते हुए कहा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 20, 2018 at 11:30pm — 14 Comments

सरसी छंद

कब तक ताकोगी पर मुख को, बनो सिंहनी आज।

श्याम नहीं अब आने वाले, स्वयं बचाओ लाज।

खड़े दुःशासन गली-गली पर, और सभा है मौन।

सहन हमेशा नारी करती,पीर समझता कौन।।

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

Added by पीयूष कुमार द्विवेदी on February 20, 2018 at 7:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल- समझा हूँ तेरे हुस्न के ज़ेरे ज़बर को में

221 2121 1221 212

ढूढा हूँ मुश्किलों से सलामत गुहर को मैं।

समझा हूँ तेरे हुस्न के जेरो जबर को मैं ।।

यूँ ही नहीं हूं आपके मैं दरमियाँ खड़ा ।

नापा हूँ अपने पाँव से पूरे सफर को मैं ।।

मारा वही गया जो भला रात दिन किया ।।

देखा हूँ तेरे गाँव में कटते शजर को मैं ।।

मत पूछिए कि आप मेरे क्या नहीं हुए ।।

पाला हूँ बड़े नाज़ से अहले जिगर को मैं ।।

शायद…

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Added by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2018 at 7:28pm — 2 Comments

तरही ग़ज़ल

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

ख़ुशियों का इस जहाँ में फ़ुक़दान हो न जाये

ग़म अपनी ज़िन्दगी का उन्वान हो न जाये

नफ़रत का आज कंकर जो तेरी आँख में है

इक रोज़ बढ़ते बढ़ते चट्टान हो न जाये

मज़लूम की कहानी सुनकर तू हँस रहा है

तेरा भी हाल ऐसा नादान हो न जाये

सारे अदू लगे हैं,यारो इसी जतन में

पूरा हमारे दिल का अरमान हो न जाये

दोनों तरफ़ की फ़ौजें होने लगीं…

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Added by Samar kabeer on February 20, 2018 at 5:55pm — 17 Comments

कुलीन(लघुकथा)

कहा गया है कि,

साईं इतना दीजिए जा मै कुटुम समाय।

मै भी भूखा न रहूं , साधु न भूखा जाय।।

उनका भी यही हाल था न संपन्न थे न विपन्न , मगर कुलीन थे, तो कुल की पगड़ी के बोझ से उनका सर इस अर्थयुग में हमेशा झुका ही रहता था ।

कुलीन लोगों की तरह उनकी नाक भी बहुत सख्त थी । इतनी सख्त की एकदिन उन्होंने नाक मारकर दिनेश ताँती की बेटी का सर फोड़ दिया था । जिसका उनके भाई को आज भी गम है।

फिर एकदिन उनकी नाक पर बेटी आ बैठी । सख्त नाक बेटी के बोझ से झुकने लगी , इतना कि कभी भी टूटकर गिर सकता… Continue

Added by Kumar Gourav on February 20, 2018 at 3:35pm — 8 Comments

हेडलाइन(लघुकथा)

-हेलो सर।

-हाँ, बोलो रवि',समाचार-संपादक ने खबर की बावत तफ्तीश की।

-जोरदार खबर है सर।

-बताओ भी जल्दी।जान मत खाओ।

-सर,शहर-कोतवाल की बीबी भाग गई।पहले बेटी,अब....।

-धत्त ससुरे!ये भी कोई खबर है?

-तहलका मच जायेगा सर,इस खबर से।

-नहीं रे,कुछ नहीं होगा।अभी घोटालों की खबर चाहिए, ....बस घोटालों की।

-वो भी है साहिब।

-तो बोल ना रे....।

-आज कलम वाली कंपनी के यहाँ छापे पड़ रहे हैं।

-कहाँ?

-यू पी में।हजारों करोड़ की बात…

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Added by Manan Kumar singh on February 20, 2018 at 8:30am — 6 Comments

कविता--फागुन

फागुन
अलसाई हुई भोर को
फागुनी दस्तक की
गंध ने महका दिया
मेरे अंदर भी
बीज अंकुरित होने लगे
तुम्हारे अहसासों के
शायद तुम भी
गुनगुना रही होगी
होली का गीत
प्रेम की मादल पर
कुछ पुरानी यादें भी
थाप दे रही होंगी
हृदय के आँगन में
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on February 20, 2018 at 12:30am — 10 Comments

एक और रत्नाकर(लघुकथा)

रत्नाकर जंगलों में भटकता, और आने-जाने वालों को लूटता | यही तो उसका पेशा था| नारद-मुनी भेस बदलकर उसके सामने खड़े थे, बहुत दिनों बाद एक बड़ा आसामी हाथ लगा है: सोचकर रत्नाकर ने धमकाया ,"तुम्हारे पास जो कुछ भी हो ,सब मेरे हवाले कर दो वरना जान से हाथ धोना पड़ेगा|"

"ठीक है, सब तुमको दे दूंगा,पर यह पाप है,तुम जो भी कुछ कर रहे हो पाप है|"

"यह मेरा पेशा है,पाप और पुण्य को मैं नहीं जानता! तुम मुझे अपना सब कुछ देते हो कि नहीं? वरना यह लो....|"

नारद जी ने निडर होकर कहा," मुझे मारने के…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 19, 2018 at 10:43pm — 17 Comments

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं- गजल



१२२ १२२ १२२ १२२

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं

सियासत में सब तिलमिलाने लगे हैं।१।



घोटाले वो सबके गिनाने लगे हैं

मगर दोष अपना छिपाने लगे हैं।२।



वतन डूबता है तो अब डूब जाये

सभी खाल अपनी बचाने लगे हैं।३।



रहे कोयले की दलाली में खुद जो

गजब  वो भी उँगलीउठाने लगे हैं।४।



दिया था भरोसा कि लुटने न देंगे

वही बेबसी  अब …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 4:00pm — 20 Comments

'मधुर' जी की मधुर स्मृति .......

11-02-2018 "मधुर" जी के स्मृति में भावभीनी श्रद्धाञ्जलि

छन्द विधा : शक्ति छंद

*********************

कहां प्यार ऐसा मिलेगा कहीं,

हमारे सखा सा जहां में नहीं।

दिया प्यार इतना कि कर्जित हुए,

हुई आंख नम जो थे गर्वित हुए।

 

हमारा सभी का बड़ा भाग था,

अकल्पित उन्हीं पे झुका राग था।

"मधुर" जी में किंचित नहीं द्वेष था,

 अकिंचन हुआ आज जो शेष था।

 

कहीं राग बिखरे कहीं…

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Added by SHARAD SINGH "VINOD" on February 19, 2018 at 3:30pm — 5 Comments

स्टेटस--लघुकथा

"सबको इस रिक्शे पर बैठना है और मन किया तो घूमना भी है", एक तरफ से आती आवाज सुनकर रवि ने उधर देखा. शादी के उस मंडप में वह विशिष्ट दर्जा प्राप्त व्यकि था, आखिर दामाद जो ठहरा. सामने कुछ दूर पर खड़ा रिक्शा दिख गया, वही सामान्य रिक्शा था, बस उसको खूब सजा दिया गया था. साफा बांधे एक आदमी भी वहां खड़ा था जिसे लोगों को घुमाने की जिम्मेदारी दी गयी थी. रवि ने वहां से जाने की कोशिश की लेकिन पत्नी ने हाथ पकड़ लिया "अरे सब बैठ रहे हैं तो हमको भी बैठना पड़ेगा".

बारी बारी से लोग रिक्शे पर बैठते, कोई थोड़ा…

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Added by विनय कुमार on February 19, 2018 at 3:14pm — 10 Comments

ग़ज़ल...न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222

अभी ये आँखें बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है

न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है

सितारो क्यों परेशां हो अगर है चाँद पोशीदा

तुम्हारी जाँ-फ़िशानी से उदासी हर सू तारी है

चरागों सा जले फिर भी अँधेरा कम नहीं होता

धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है

ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम

कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है 

गुजारी ज़िन्दगी कैसे बताएं किस तरह अय…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2018 at 11:30pm — 12 Comments

गीत - ऐतबार

गीत - ऐतबार

ना करना तू ऐतबार प्यार मे,

बस धोखे ही धोखे हैं इस प्यार मे,

मैने दिया था तुमको ये दिल, करना चाहूँ तुम्हे हासिल,

बदला तूने जो अपना इरादा, तोड़ा तूने क्यूँ अपना ये वादा.

1} जबसे रूठ के मुझसे तुम…

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Added by M Vijish kumar on February 18, 2018 at 2:00pm — No Comments

तुम्हारे इश्क ने मुझको क्या क्या बना दिया ...

तुम्हारे इश्क ने मुझको,

क्या क्या बना दिया...

कभी आशिक,कभी पागल-

कभी शायर बना दिया।।

अब इतने नाम हैं मेरे,

कि मैं खुद भूल जाता हूँ...

कोई कुछ भी पुकारे मुझको-

मैं बस मुस्कुराता हूँ।।

मेरी माँ कहती है मुझसे,

दिवाना हो गया है तू....

मगर इक तू ही न समझे-

कि मैं तेरा दिवाना हूँ।।

अगर तुझको भी है चाहत,

तो क्यों इनकार करती है?

तेरी आँखों से लगता है-

कि तू भी प्यार करती है।।

खुदा…

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Added by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 12:00pm — 8 Comments

कविता --पारदर्शिता



कितनी पारदर्शिता है

इस सदी में

किसानों की बर्बाद फसल का

तगड़ा मुआवज़ा देने की

सरकार खुलेआम घोषणा कर रही है

मगर मुआवज़ा

आत्महत्या में बदल रहा है

मीडिया सुबह की पहली किरण के साथ

दिखला रहा है

भूख-ग़रीबी , बेरोज़गारी , आँसू , सिसकी

मगर सरकार कहती है

हमने करोड़ों का बजट में

प्रावधान बढ़ा दिया है

आँकड़ों में

मृत्यु दर लगातार घट रही है

सरकारी अस्पतालों में

मौत सस्ती बिक रही है

हीरा और हवाला कारोबारी

करोड़ों की चपत लगा रहे…

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Added by Mohammed Arif on February 18, 2018 at 7:56am — 4 Comments

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