२२१२ २२१२
किसने किया तुझसे मना
कर प्रेम की आराधना
चारों तरफ ही प्रेम की
मौजूद है सम्भावना
हों झुर्रियाँ जिस हाथ में
मौका मिले तो थामना
करना किसी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 23, 2018 at 9:30am — 24 Comments
क्या फरक पड़ता है ,
कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने
आपको और आपकी
किसी भी बात को नहीं समझा।
आपको , आप जैसे लोगों ने तो
समझा और खूब समझा।
आपकी नैय्या उनसे और
उनकी नैय्या आपसे
पार लग ही रही है ,
आगे भी लग जाएगी ।
- मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2018 at 5:41am — 7 Comments
बह्र:-221-2121-2221-212
आधा है तेरा साथ ओर आधी जुदाई है।।
कुछ इस तरह चिरागे दिल की रौशनाई है ।।
चहरे में मुस्कुराहटें आई हैं लौट कर ।
जब जब भी मैंने याद की ओढ़ी रजाई है।।
विस्मित नहीं हुई अभी,अपनी हो आज भी।
रिश्ता जरूर बदला है अब तू पराई है।।
कितना भी पढ़ लो जिंदगी की इस किताब को ।
मासूस हो यही अभी,आधी पढाई है।।
नजरों से हूबहू अभी वो ही गुजर गया।
जिसकी है जुस्तजू मुझे, तन पे सिलाई है…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2018 at 7:10pm — 12 Comments
122 122 122 122
वफ़ा की क्यों उम्मीद मैनें लगाई
लिखी मेरी किस्मत में थी बेवफाई
जमीं पर मिटे वो जो चाहे जमीं को
जमीं में ही माँ जिसको देती दिखाई
दिखाई नहीं वार देता जुबाँ का
सलीके से उसने अदावत निभाई
अटकता नहीं है कोई काम उसका
रही मन में जिसके सभी की भलाई
जो हारे वही जीत जाता हो जिसमें
बता कौन-सी ऐसी होती लड़ाई
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 22, 2018 at 6:52pm — 6 Comments
अजर-अमर कविता ....
मैं
कविता हूँ
सृष्टि की साथ ही
मेरा भी उद्भव हो गया
मैं अजर हूँ
अमर हूँ
क्योँकि मैं
कविता हूँ
मेरे अथाह सागर में
न जाने
कितनी आकांक्षाओं और भावों ने
पनाह ली है
कभी प्रीत तो कभी प्रतिकार
कभी शृंगार तो कभी अंगार
कभी मिलन तो कभी विरह
न जाने कितनी ही
पल-पल हृदय में उपजती
अनुभूतियों से
मेरी देह को सजाया गया
फिर में किसी किताब में
मुझे बिठाया गया…
Added by Sushil Sarna on March 22, 2018 at 4:43pm — 4 Comments
पेंसिल या पेन
किस तरह का स्याही
आप फैल रहे हैं?
आग पर कीबोर्ड
सपने और इच्छाएं
कुछ हास्य
कुछ आँसू
गंभीरता एक खुराक
जीतने वाले शब्द
शब्दों को विभाजित करना
शब्द जो हमें एक साथ लाते हैं
शब्द जो जीवन बोलते हैं
कोई बात नहीं कविता या टुकड़ा
कविता है
और हमेशा जीवित रहेगी
मौलिक व अप्रकाशित.
Added by narendrasinh chauhan on March 22, 2018 at 1:13pm — 4 Comments
निशुंभ शुम्भ मर्दिनी , जया त्रिकूट वासिनी |
शिवा प्रिया महातपा , सुधीर माँ सुहासिनी ||
विराट भाल दिव्य शक्ति मुंडमाल धारिणी |
कृपालु दृष्टि भाविनी नमामि लोक तारिणी ||
विशाल भाल चंद्रिका सुदीर्घ नेत्र शान हैं |
कृपालु मातु शीश केश यामिनी समान हैं ||
कपोल हैं भरे -भरे व होंठ लाल –लाल हैं |
विराट रूप देख मातु भक्त भी निहाल हैं ||
विशाल रक्तबीज अंत मातु तेग से किया |
विनाश चंड मुंड का प्रचंड वेग से किया…
ContinueAdded by Anamika singh Ana on March 21, 2018 at 11:00pm — 14 Comments
कविता ....
कविता !
तुम न होती
तो प्रेम कभी
प्रस्फुटित ही न होता
शब्द गूंगे हो गए होते
भाव
शून्य हो
व्योम में खो गए होते
तुम ही बताओ
हृदय व्यथा के बंधन
कौन खोलता
दृग की भाषा को
कौन स्वर देता
लोचन
शृंगारहीन रह गए होते
आधरतृषा
अनुत्तरित रह गयी होती
एकाकी पलों में
अभिलाषाओं की गागर
रिक्त ही रह जाती
प्रेम सुधा
एक सुधि बन जाती
हर श्वास
एक सदी सी बन…
Added by Sushil Sarna on March 21, 2018 at 7:14pm — 12 Comments
केदारनाथ सिंह के लिए
वैसे तो आजकल किसी को क्या फर्क पड़ता है -
एक कवि के न होने से !
लेकिन जैसे ख़त्म हो गया है धरती का सारा नमक
और अलोने हो गए हैं
सारे शब्द...
मौलिक/अप्रकाशित
Added by Ajay Tiwari on March 21, 2018 at 4:40pm — 16 Comments
विश्व कविता दिवस पर महाभारत युद्धकाल में भगवान के वचनों को अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश
रे रे पार्थ ये क्या करते हो?
धनु धरा पर क्यों धरते हो?
ओ शूरवीर मत हो अधीर
नैनों में क्यों भरते हो नीर
जीवन तो आना जाना है
चिरकाल किसे रह जाना है
मन में यूँ न मोह धरो
गांडीव उठाओ कर्म करो
मृत्यु बंन्धन से मुक्ति है
किस बात की आसक्ति है
धर्म विमुख हो पाप न कर
रक्षा कर संताप न कर
हे धनंजय हे महारथी
मत भूलो 'मैं' तेरा…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 4:30pm — 12 Comments
कविता कोरी कल्पना, कविता मन का रूप
कविता को कवि ले गया, जहाँ न पहुँचे धूप।१।
किसी फूल की पंखुड़ी, किसी कली का गाल
कविता रंगत प्यार की, नहीं शब्द का जाल।२।
आँचल में रचती रही, सुख दुख कविता रोज
पड़ी जरूरत जब कभी, भरती सब में ओज।२।
भूखों की ले भूख जब, दुखियों की ले पीर
कविता सबकी तब भरे, आँखों में बस नीर।४।
युगयुग से भाये नहीं, कविता को अनुबंध
हवा सरीखी ये बहे, लिए अनौखी गंध।५।
कविता सुख की थाल तो, है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2018 at 3:30pm — 12 Comments
एक राजनेता से पूछा -" आप तीखी बयानबाज़ी या शोला बयानी क्यों करते हैं ? इससे दूसरे वर्गों की भावनाएँ आहत है । देश का माहौल ख़राब होता है । अपनी ज़बान पर थोड़ा ताला क्यों नहीं लगाते ?"
राजनेता -" ज़बान पर ताला या नियंत्रण नहीं लगा सकता । मेरे हाथों में नहीं है ।"
मैंने पलटवार करते हुए पूछा -" फिर किसके हाथों में है ?"
" पार्टी आला कमान के ।" कुतिलता से मुस्कुराते हुए चल दिए ।
मौलिक एवं अप्रकाशित। ।
Added by Mohammed Arif on March 21, 2018 at 10:30am — 14 Comments
22 22 22 22 22 2
पहले जैसी चेहरों पर मुस्कान कहाँ ।
बदला जब परिवेश वही इंसान कहाँ ।।
लोकतन्त्र में जात पात का विष पीकर।
जीना भारत मे है अब आसान कहाँ ।।
लूट गया है फिर कोई उसकी इज्जत ।
नेताओं का जनता पर है ध्यान कहाँ ।।
भूंख मौत तक ले आती जब इंसा को ।
बच पाता है उसमें तब ईमान कहाँ ।।
भा जाता है जिसको पिजरे का जीवन ।
उस तोते के हिस्से में सम्मान कहाँ ।।
दिल की खबरें अक्सर उसको…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 9:16pm — 7 Comments
तीसरे माले पर वो करवट बदलते हैं तो खटिया चर्र-चर्र बोलती है |अंगोछा उठाकर पहले पसीना पोंछते है फिर उस से हवा करने लगते हैं |
“साsला पंखा भी ---“ बड़बड़ा कर बैठ जाते हैं और एक साँस में बोतल का शेष पानी गटक जाते हैं
“अब क्या ? अभी तो पूरी रात है |”
भिनभिनाते मच्छर को तड़ाक से मसल देते हैं |
दूसरे माले का टी.वी. सुनाई देता है – “तू मेरा मैं तेरी जाने सारा हिंदुस्तान |”
“बुढ़िया को क्या पड़ी थी पहले जाने की ---“
गला फिर सूखने लगा तो जोर–जोर से खाँसना…
ContinueAdded by somesh kumar on March 20, 2018 at 8:00pm — 9 Comments
212 212 212 212
क्या बताऊँ कि वह हम से क्या ले गई ।
इक नज़र प्यार की बेवफ़ा ले गई ।।
इस तरह से अदाएं मचलने लगीं ।
तिश्नगी रूह तक वह जगा ले गई ।।
जब भी निकले हैं अल्फाज दिल से कभी ।
वह मुहब्बत ग़ज़ल में निभा ले गई ।।
एक दीवानगी सी हुई उनको तब ।
जब भी खुशबू तुम्हारी सबा ले गई ।।
बेकरारी में गुजरेंगी रातें वहां ।
तू मेरे इश्क़ का तजरिबा ले गयी ।।
एक दीवानगी सी हुई उनको तब ।
जब भी खुशबू तुम्हारी सबा ले…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 7:52pm — 5 Comments
रब से ....
वो लम्हा
कितना हसीं था
जब तुमने
हाथ उठा कर
मुझे
रब से माँगा था
मेरा
हर ख़्वाब
महक गया था
जब मैंने
अपनी आरज़ू को
तुम्हारी दुआओं में
महफ़ूज़ देखा था
मेरी बयाज़ें
जिनमें
हर लफ़्ज़
मेरी
तन्हाईयों से
सरगोशियों की दास्तान था
उन्हीं सरगोशियों की आग़ोश में
बेसुध सोया
मेरी उल्फ़त का
इक
अनदेखा अरमान था
सच
उस लम्हा
तुम मुझे…
Added by Sushil Sarna on March 20, 2018 at 7:00pm — 7 Comments
बह्र 2122-2122-2122-212
.
दे रहा है ज़िस्म को जो दर कदम पर इक सिला।।
इक तेरी तस्वीर और अंतिम तिरा वो फैसला।।
खंडरों की शानों शौक़त दिन ब दिन बेहतर हुई।
जैसे पतझड़ कह रहा हो लौट मुझको मय पिला।।
बढ़ रहा हूँ कुछ कदम, हूँ कुछ कदम ठहरा हुआ।
बाद तेरे टूटने जुड़ने लगा है हौसला।।
ना कभी ओझल हुआ था,ना ही ओझल हो कभी।
इसमें है अहसासे उलफत ,इश्क का जो भी मिला।।
चल चलें कुछ दूर पैदल, दो कदम मंजिल बची ।
दो कदम…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 20, 2018 at 6:30pm — 8 Comments
212 212 212 212
शाख़ से टूट कर उड़ते पत्ते रहे ।
कुछ शजर जुल्म तूफाँ का सहते रहे ।।
घर हमारा रकीबों ने लूटा बहुत ।
और वह आईने में सँवरते रहे ।।
था तबस्सुम का अंदाज ही इस तरह ।
लोग कूंचे से उनके निकलते रहे ।।
देखकर जुल्फ को होश क्यों खो दिया ।
आपके तो इरादे बहकते रहे ।।
दिल लगाने से पहले तेरे हुस्न को ।
जागकर रात भर हम भी पढ़ते रहे ।।
यह मुहब्बत नहीं और क्या थी सनम ।
लफ्ज़ खामोश थे बात करते रहे ।।
कैसे कह दूं कि मुझसे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 3:30pm — 2 Comments
2212 2212 2212 2212
ऐ चाँद अपनी बज़्म में तू रातभर छुपता रहा ।।
आखिर ख़ता क्या थी मेरी जो हुस्न पर पर्दा रहा ।।
कुछ आरजूएं थीं मेरी कुछ थी नफ़ासत हुस्न में ।
वो आशिकी का दौर था चेहरा कोई जँचता रहा ।।
मासूमियत पर दिल लुटा बैठा जो अपना फ़ख्र से ।
उस आदमी को देखिए अक्सर यहाँ तन्हा रहा ।।
रुकता नहीं है ये ज़माना लोग आगे बढ़ गए ।
मैं कुछ खयालातों को लेकर अब तलक ठहरा रहा ।।
था मुन्तजिर मैं आपके वादे को…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 3:00pm — 5 Comments
पुराने ज़माने की बात है ।
दो पङोसी देशों मे आपस सहयोग बढने लगा था । कहते हैं कि जब सहयोग बढता है तो परस्पर विश्वास जनम लेता है और विश्वास से प्रेम । प्रेम से मेल जोल बढता है और मेलजोल से खुशहाली आती है । लेकिन खुशहाल प्रजा भलीभांति शासित नही होती । क्योंकि खुशहाल व्यक्ति सम्पन्न होता है और समपन्न ही शक्तिशाली । फिर शक्तिशाली तो शासन ही करता है , उसे शासित नही किया जा सकता । गडरिया तो भेड़ों के झुंड को ही चराता है , कभी शेरों के झुंड को चराते किसी को देखा गया है क्या ?…
Added by Mirza Hafiz Baig on March 20, 2018 at 1:00pm — 6 Comments
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