Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 10, 2017 at 9:30pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2017 at 9:59pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2017 at 8:30pm — 4 Comments
महिला दिवस पर रचित दोहे -
मही रूप देवी धरे, धैर्य गुणों की खान
साहस की प्रतिमूर्ति भी, नारी को ही मान |
सृष्टि सृजनकर्ता यही,यही मही का अर्थ,
रणचण्डी भी बन सके, नारी सभी समर्थ ।
महिला से महके सदा,घर आँगन में फूल
वही सजाती घर सदा, मौसम के अनुकूल ।
जीवन के हर रूप में, नारी मन उपहार,
आलोकित जीवन करे, खुशियों के…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 9, 2017 at 4:30pm — 4 Comments
Added by Arpana Sharma on March 9, 2017 at 3:04pm — 2 Comments
विश्व महिला दिवस - लघुकथा –
सुक्कू बाई आज फिर लेट हो गयी थी इसलिये डरते डरते मिसेज सिन्हा के घर में घुसी। सारा घर साफ़ सुथरा दिख रहा था। रसोईघर में सब वर्तन धुले हुए करीने से लगे थे। बाथरूम में देखा मैले कपड़ों का ढेर भी गायब था। लॉन में गयी तो देखा बाहर धुले कपड़े सूख रहे थे । उसने सोचा कि उसके रोज रोज लेट आने और नागा करने से परेशान होकर मैम साब ने दूसरी बाई रख ली।
मैम साब पूजा घर में थी। मैम साब बाहर निकली और सीधे रसोईघर में चली गयीं। थोड़ी देर बाद ट्रे में चाय और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 9, 2017 at 1:02pm — 8 Comments
आशिक़ तू आशिक़ी से पहले, करना ज़रूर गौर,
इश्क़ की राह मे आया है नया दौर,
हाथो मे हाथ लिए निकले तो थे,
हमराह बनकर भी तू, चला गया कहीं और.
क्यूँ किया तूने, ये तू क्या कर गई,
बिना कुछ किए ही मेरी जान ले गई....
लफ़्ज़ों की एहमियत को, तू ना समझ पाया,
जाने के बाद मेरे, मैं तुझे याद आया,
की थी क्या ख़ाता मैने, जो तूने था मुंह मोड़ा,
काँच से भी बदतर, तूने दिल मेरा है तोड़ा.
क्यूँ किया तूने, ये तू क्या कर गई,
बिना कुछ किए ही मेरी जान ले…
Added by M Vijish kumar on March 9, 2017 at 10:00am — 2 Comments
Added by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:30pm — 14 Comments
122 122 122 122
है हर सू फ़क़त धूप,साया कहाँ है?
ये आख़िर मुझे इश्क़ लाया कहाँ है!
अमीरी को अपनी दिखाया कहाँ है?
तुम्हें शह्र-ए-दिल ये घुमाया कहाँ है?
अभी सहरा में एक दरिया बहेगा
अभी क़ह्र अश्क़ों ने ढाया कहाँ है?
अभी देखिएगा अँधेरों की हालत
उफ़ुक़ पर अभी शम्स आया कहाँ…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on March 8, 2017 at 3:30pm — 6 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 8, 2017 at 10:30am — 10 Comments
स्नेह की धारा है वह, है वात्सल्य की मूर्ति
वीरुध वही,वन वही, कालिका की वो पूर्ति
राष्ट्र , समाज और परिवार को वो समर्पित
स्व - पर, हित को करती प्राण भी अर्पित
वाणी वही, गिरिजा वही, है दामिनी भी वह
कल्पना वो, प्रतिभा वही है कामिनी भी वह
किरन है वह, है सुभद्रा , है महादेवी भी वह
सृजक है वो समाज की समाजसेवी भी वह
है मदर टेरेसा, ऐनी बेसेन्ट, यशोदा भी वह
है अनैतिक समर में संघर्षरत,योद्धा भी वह
बोझ नहीं है , अबला नहीं, न द्वितीय है वह
वह धरा पर…
Added by Naveen kumar jain on March 8, 2017 at 8:30am — 12 Comments
नारी तुम! सुकुमार कुमुदुनी
सौम्य स्नेह औ प्रेम प्रदाता ||
धरती पर हो शक्ति स्वरूपा
तुम रण चंडी भाग्य विधाता ||
संस्कारों की शाला तुम हो
तुम लक्ष्मी सावित्री सीता |
निर्वाहिनी सत्कर्म की तुम
तुम्ही वेद कुरान औ गीता ||
सह कर असह्य प्रसव वेदना
तुम लाल धरा पर लाती हो |
तुम हो धात्री अखिल जगत की
तुम्ही सृष्टि सृजन बढाती हो ||
हे रूपवती हे कमनीया
ईश्वर की तुम अद्भुत रचना ||
तलवार धरो जब कर में तो
मुश्किल…
Added by नाथ सोनांचली on March 8, 2017 at 8:30am — 12 Comments
2122 1212 22
कैसे कह दूँ मैं अलविदा तुझसे ।
चैन आया है हर दफ़ा तुझसे ।।
इक सुलगती हुई सी खामोसी ।
इक फ़साना लिखा मिला तुझसे ।।
वो इशारा था आँख का तेरे ।
दिल था पागल छला गया तुझसे ।।
भूल जाती मेरा तसव्वुर भी ।
क्यूँ हुई रात भर दुआ तुझसे ।।
बेखुदी में जो इश्क कर बैठा ।
उम्र भर बस वही जला तुझसे ।।
कर लूँ कैसे यकीन वादों पर ।
कोई वादा कहाँ निभा तुझसे ।।
कुछ रक़ीबों से गुफ्तगूं करके ।
तीर वाज़िब…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 7, 2017 at 11:00pm — 6 Comments
पावन हो …….
सुना था
मतलब के लिए
जमीनों और घरों के
बंटवारे हो जाते हैं
इस धन लोलुप दुनिया में
जीते जी
जिन्दा रिश्तों के
बंटवारे हो जाते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
इंसान के जहाँ में
इंसानों के बंटवारे हो जाते हैं
मगर ये क्या
आज अखबार के
एक कालम ने
दिल को द्रवित कर दिया
अपने को श्रवण कुमार
साबित करने के लिए
अपने मृत जन्म दाता को
श्रद्धान्जली देने के लिए
अखबार में अलग अलग विज्ञापन दे दिये…
Added by Sushil Sarna on March 7, 2017 at 9:08pm — 10 Comments
212 212 212 212
लोग सब पूछते, हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे।2
कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।2
कुल जमा देखिये बादलों की कला
हर बरस बूँद में खार बरसा रहे।3
रात के हाथ से बुझ गयीं बत्तियाँ
बोलते भी जरा कौन दिन ला रहे।4
जोर से पीटते ढ़ोर सब ढ़ोल हैं
कोकिला चुप हुई काग बस गा रहे।5
मौलिक व अप्रकाशित@
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2017 at 8:00pm — 20 Comments
221 2121 1221 212
मंज़र न जाने कौन उसे क्या दिखा गया
या आइना था, जो उसे पत्थर बना गया
तू भी तवाफ ए दश्त में चलता, ऐ शह’र ! तो
कहता यही, सुकून मेरे दिल को आ गया
हँसने की कोशिशों से निकल आये अश्क़ क्यूँ
ये किसका दर्द रूह में मेरी समा गया
गिनते रहे वो रोटियाँ थाली में डाल कर
भूखा उसी समय ही जाँ अपनी लुटा गया
लाठी नुमा रहा था जो अंधे के साथ साथ
पत्थर समझ के राह का, कोई हटा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:54pm — 20 Comments
थोड़ा आगे आने दो ,
मौक़ा उनको पाने दो ।
देखो, भटके फिरते हैं ,
उनको भी समझाने दो ।
कब तक सहना पाबंदी ,
दौर नया दिखलाने दो ।
सबको राहत मिल जाये ,
मौसम ऐसा आने दो ।
फिक्र करो मत दुनिया की ,
छोड़ो यारो जाने दो ।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 11:30am — 22 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 9:00am — 12 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 7, 2017 at 8:00am — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on March 6, 2017 at 10:30pm — 8 Comments
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