बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात
जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात /
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //
.........................................................
..................मौलिक व अप्रकाशित .............
Added by Sarita Bhatia on March 18, 2014 at 10:03am — 9 Comments
आया लो फागुन का मौसम
आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !
वासंती बयार ने तेरे -
कोमल कुंतल को बिखराए,
गजब ढा रही तेरी बिंदिया-
गालों पर फागुन छा जाये ।
तेरा बदन गुलाल हुआ , अपनी ज़ुल्फों मे खो जाने दो
आया लो फागुन का मौसम, मुझको पागल हो जाने दो !
फागुन के मौसम मे तुम पर
फूलों की बरसात हुयी है,
अंग अंग फागुनी हुआ ,और –
कामदेव की दुआ हुयी है।
कैसे संयम करूँ प्रिये…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on March 17, 2014 at 10:30pm — 4 Comments
होली का तौहार ये, रंगों का तौहार,
प्रेम भाव बढ़ता रहे, माने सब आभार
माने सब आभार, प्रकृति की छटा निराली
मिटा कर भेद भाव, चखे प्रेम भरी प्याली
मित्रो से अनुरोध, बना रसियों की टोली
टेसू का हो रंग, प्रेम से खेले होली |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 17, 2014 at 12:30pm — 4 Comments
2122- 2122- 212
जब से तेरी जुस्तजू होने लगी (जुस्तजू=तलाश)
अजनबी सी मुझसे तू होने लगी
वक्त का होने लगा है वो असर
अब महक फूलों की बू होने लगी
भागता था जिस बला से दूर मैं
हर तरफ वो रू-ब-रू होने लगी
मुस्तकिल ये ज़िन्दगी होती नहीं (मुस्तकिल= स्थाई)
क्यूँ इसी की आरज़ू होने लगी
उम्र के फटने लगे हैं अब लिबास
सो दवाओं से रफ़ू होने लगी
नफरतें ही…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2014 at 7:58am — 16 Comments
किरणों को अभिशाप पड़ेंगी वे जिन जिन पर
कर देंगी परछाईं काली किसी पटल पर ।
हर जीवन के संग जनमती मृत्यु, अजय है
हर आशा में छुपा निराशा का भी भय है ॥
धन औ ऋण का योग बनाता सदा शून्य है
गोल शून्य सा भाल किन्तु रत धन औ ऋण में ।
हासिल जिसका शून्य पराजय वह कहलाती
किन्तु शून्य को छू पाऊँ तो अजय विजय है ॥
हर आशा में छुपा निराशा का भी भय है ॥
जन्मदिवस कि ख़ुशी प्रसव के पीर से उपजी
राम नाम का ज्ञान मरा में छुपा मिला था…
ContinueAdded by Pradeep Kumar Shukla on March 17, 2014 at 12:41am — 4 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया ,छंदो का क्या कहना
एक है हीरा दूजा मोती, बने कलम का गहना
छन्न पकैया छन्न पकैया ,राग हुआ है कैसा
प्रेम रंग की होली खेलो ,दोन टके का पैसा
छन्न पकैया छन्न पकैया ,रंग भरी पिचकारी
बुरा न मानो होली है ,कह ,खेले दुनिया सारी
छन्न पकैया छन्न पकैया , होली खूब मनाये
बीती बाते बिसरा दे ,तो , प्रेम नीति अपनाये
छन्न पकैया छन्न पकैया ,दुनिया है सतरंगी
क्या झूठा है क्या…
Added by shashi purwar on March 16, 2014 at 10:30pm — 3 Comments
होली है .............
तुम रचाओं रास, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
राधा बुलाओ खास, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
हम होली मनाये आज, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
भक्त गाये फाग, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
उड़े हे रंग गुलाल, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
ब्रज लगे हमारे गांव, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
तुम रचाओं रास, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
---------------------
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on March 16, 2014 at 5:53pm — 1 Comment
३६)
प्यारा लगता उसका साथ।
रोज़ मिलाता मुझसे हाथ।
बने हमकदम अपना मान,
क्या सखि साजन?
ना सखि लॉन!
37)
जब से वो जीवन में आया।
रोम-रोम में प्यार समाया।
खिले फूल सा महका तन-मन,
क्या सखि साजन?
ना सखि, यौवन!
38)
सखी! रात खिड़की से आया।
फूँक मारकर दिया बुझाया।
चैन लूट ले गया ठगोरा,
क्या सखि साजन?
नहीं, झकोरा!
39)
उससे जुड़े हृदय के तार।
मुझे बुलाता…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 16, 2014 at 3:30pm — 9 Comments
आ रे कारे बादर
रँग बरसाने आ रे
श्याम खेलें होरी
तू बरसाने आ रे
रँग अलग अलग भर ला
लाल, बैंगनी, पीला
कोई बच ना जाए
सबको कर दे गीला
खुशियों की बारिश में
तू भिंगाने आ रे
इन्द्रधनुष से रँग ला
त्याग उदासी काली
उल्लसित जीवन, डाल
मुख पे उमंग लाली ..
जो उदास है जग में
उन्हें हँसाने आ रे
हाथों में पिचकारी
गाल पे रंग गुलाल
सब मिल खेलें होरी
अंचल धरा का लाल
जीवन में खुशियाँ भर…
Added by Neeraj Neer on March 16, 2014 at 2:04pm — 6 Comments
मेरे पन्ने
-----------
जीवन पृष्ठ मेरे
हाथों में तेरे
खुली किताब की तरह
कुछ
चिपके पन्ने
कह रहे
दास्तान पढ़ने को
है अभी बाक़ी
लौट आया हूँ फिर
चाहता हूँ
रुकूँ अभी
हवा के तेज झोंके
जीवन पृष्ठों को
तेजी से बदलते हुए
चिपका हूँ
दीवार के साथ
बूझेगा अब कौन
न है मधुशाला
न उसमे साकी
मौलिक और अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१५ मार्च २०१४
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2014 at 8:00pm — 6 Comments
Added by Anurag Anubhav on March 14, 2014 at 10:59pm — 25 Comments
Added by Pragya Srivastava on March 14, 2014 at 10:56pm — 2 Comments
ज्यों जवां ये चांदनी होने लगी
त्यों सुबह की सुगबुगी होने लगी
जब समंदर सी नदी होने लगी
साहिलों सी ज़िन्दगी होने लगी
आदमी में हो न हो रूहानियत
आदमीयत लाज़मी होने लगी
तितलियों को मिल गयी जब से भनक
बाग़ में कुछ सनसनी होने लगी
यार ने आदी बनाया इस क़दर
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी
आँधियों से रूह कांपी रेत की
पर्वतों में दिल्लगी होने लगी
फिर मुसाफ़िर रासता मंजिल…
Added by भुवन निस्तेज on March 14, 2014 at 9:30pm — 8 Comments
इन ख़यालों के रंगों को ख्वाबों के इतर देखता कौन है
जब मिल रही है मुफ्त में खुराक तो फेरता कौन है
तितली के रंग हों या हो किसी दीवार पर चिलमन
बिना फायदे के इनसे अपनी आँखों को सेंकता कौन है
जब चढ़ रहा था रंग फूलों की फुलवारी पर
इठला रही थी माँ अपने बच्चे की किलकारी पर
ठीक उसी समय बरसनें लगती हैं सावन की बूदें
वरना पानी का इतना सरल सुंदर रूप देखता कौन है
ये नदियाँ जब गाती हैं कल-कल की धुन
पत्तों की सरसराहट से बढ़ जाती है कई गुन
प्रकृति ही…
Added by राणा रुद्र प्रताप सिंह on March 14, 2014 at 8:10pm — No Comments
मेरी खुशी के संग खुल के खिलखिला जाना तेरा
ज़िंदगी मेरी नक्काशी तेरी और नज़राना तेरा
हो गई जो गलतियाँ या की कभी बदमाशियाँ
धीरे से चपत संग प्यार से समझाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर
चाँदनी के रंग सी याद है फितरत तेरी
देखते ही मुस्कुराना शायद थी आदत तेरी
शख्शियत सीने में रख कर याद फरमाता हूँ तुझे
प्लेट टूटी मुझसे थी पर भरना हरजाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर
हाजिरी तेरी सलामत अब भी है दराज़ में…
Added by राणा रुद्र प्रताप सिंह on March 14, 2014 at 8:06pm — 6 Comments
वादे नेता कर रहे , चुनावी है पुलाव
बीते पाँचों साल के कौन भरेगा घाव
कौन भरेगा घाव समझना चालें इनकी
रोटी कपड़ा वास नहीं है बस में जिनकी
सरिता कहती भाँप नहीं हैं नेक इरादे
निर्वाचन कर सोच झूठ हैं इनके वादे
...........मौलिक व अप्रकाशित...........
Added by Sarita Bhatia on March 14, 2014 at 3:29pm — 4 Comments
१११ १११२ ११ १११, १११२ ११११ ११
9-) मान बड़ाई सब चहे, कितनी इसकी हद।
दूजे को देते नहीं, पोषत खुद का मद॥
10-) मात-पिता व गुरु से, हर दम बोलत झूठ।
आपा भीतर झांक लो, हरि जाएगा रूठ॥
11-) ज्ञान क्षुदा उर में लिए, ढूंढत फिरत सुसंग।
उर की आंखे खोल लो, जग में भरो कुसंग॥
12-) धन दौलत कुछ न बचे, तब तक मन में चैन।
चरित्रिक बल सबल है, ना हो तुम बेचैन॥
13-) जनम-मरण के…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 14, 2014 at 2:30pm — 3 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on March 13, 2014 at 11:30pm — 15 Comments
दो परिंदे थे | दोनों में बड़ा प्रेम था | दोनों साथ ही रहा करते थे | जहां भी जाते एक साथ | जो भी खाते मिल बाँट कर खाते | दोनों ने एक ही वृक्ष की एक ही डाली पर एक ही प्रकार के तिनकों से एक साथ घरौंदा बनाया | एक दिन एक परिंदा बीमार पड़ गया | दूसरे ने भी खाना पीना छोड़ दिया किन्तु ऐसा कब तक चल सकता था ? स्वस्य्घ परिंदे ने सोचा मेरा भाई कमजोर हो गया है | कुछ दाने अपने चोंच में भरकर लेता आऊँ, हो सकता है मेरा भाई ठीक हो जाय? वह दाना इकठ्ठा करने चला गया | थोड़ी देर में एक और परिंदा उस पेड़ पर आया | उसने…
ContinueAdded by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 13, 2014 at 11:02pm — 6 Comments
सारी दुनिया कर रही अब तेरी पहचान
तू दुर्गा तू शक्ति है तेरा कर्म महान /
तेरा कर्म महान नहीं बनना तू अबला
खुद की कर पहचान हुई तू सक्षम सबला
पहचानो अधिकार करो शिक्षित हर नारी
होना कभी न मौन झुकेगी दुनिया सारी //
.........मौलिक व अप्रकाशित...........
Added by Sarita Bhatia on March 13, 2014 at 10:13am — 13 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |