2122 1212 112/22
जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 3:32pm — 26 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
रूह को सब चाहते हैं जिस्म दफ़नाने के बाद
दास्तान-ए-इश्क़ बिकती खूब दीवाने के बाद
शर्बत-ए-आतिश पिला दे कोई जल जाने के बाद
यूँ कयामत ढा रहे वो गर्मियाँ आने के बाद
कुछ दिनों से है बड़ा नाराज़ मेरा हमसफ़र
अब कोई गुलशन यकीनन होगा वीराने के बाद
जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर
फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद
एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई
और क्या कहने को रहता है…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 18, 2015 at 2:30pm — 32 Comments
212 212 212 212
कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी
दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी
ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी
नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी
फूल बन के खिली गुलबदन ये कली
आरजू फिर महक की जवां हो गयी
प्यार की बात हमने छुपाई बहुत
लोग सुनते रहे दासतां हो गयी
होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए
कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी
दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”
आज मन की…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:30pm — 32 Comments
आवरण कितने गाढ़े ,कितने गहरे
कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे
नकाब ही नकाब बिखरे हुए
दुहरे अस्तित्व हर तरफ छितरे हुए
कहीं हँसी दुख की रेखायें छिपाए है
तो कभी अट्टहास करुण क्रन्दन दबाए है
विनय की आड़ लिये धूर्तता
क्षमा का आभास देती भीरुता
कुछ पर्दे वक़्त की हवा ने उड़ा दिये
और न देखने लायक चेहरे दिखा दिये
आडम्बर को नकेल कस पाने का हुनर
मुश्किल बहुत है मगर
कुछ चेहरों में फिर…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on March 18, 2015 at 1:30pm — 2 Comments
मन के कमरे में कैद हमारे भाव विचार
बने वाणी के मोती ,कलम की बहती धार
सुवासित हो फ़िज़ा ,पढ़े सुने संसार
बुने सतरंगी सपने,बरसे प्यार की फुहार
डूबे खुश्बुओं में ,सुगन्धित हो बहार
खुशिओं के फूटे झरने ,भीगें बार -बार
मिले जीने की उमंग,सपना हो साकार
भूल सारे गम ,नव अंकुर का आधार
चाहतों की संतुष्टि ,आशीष से सरोबार
खुले परिचय के द्वार ,जुड़ा नया परिवार
धन्य हो गए हम ,दिलों के जुड़े तार
भूल जोड़ बाकी का गणित ,मिला जीने का…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:50am — 12 Comments
1 धन बल का मद
धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन
दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |
हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया
सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया
सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के
थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के |
(2) दुर्लभ मानव जीवन
मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,
तन मन धन हमको…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 11:30am — 11 Comments
दीवारों में दरारें-3
मीना की अध्यापिका पद पर नियुक्ति के बाद
"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है | “आशा ये सन्देशा देकर चली जाती है |
रूम में पहुँचने पर |
“आ गई बेटा |” सुनीता दलाल की नानी पुष्पा ने मीना गौतम को देखकर कहा |
सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी और लंच में गर्मागर्म खाना उसके लिए लेकर आ गईं थी |
“इसकी क्या ज़रूरत थी,नानीजी ,मैं तो इसके लिए भी रोटियाँ लाई हूँ |”मीना ने…
ContinueAdded by somesh kumar on March 18, 2015 at 10:30am — 10 Comments
1222---1222---1222---1222
हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा
यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।
कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन
बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा।
हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब
कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।
किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन
सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।
लड़ाई कौम की खातिर, करो…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 4:30am — 31 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on March 17, 2015 at 11:38pm — 13 Comments
रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण ओ बी ओ नियमों के आलोक में प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है.
एडमिन
२०१५०३१९०७
Added by Naveen Mani Tripathi on March 17, 2015 at 9:00pm — 16 Comments
अमीर खुसरो की रचना
जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।
कि ताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।
किसे पड़ी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 17, 2015 at 4:00pm — 23 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम |
छोड़ कर आतंक का दर नेक कोई काम करते | |
जान लेने के सिवा सारे जहाँ में नाम करते | |
लोग जो आये जहाँ में चाँदनी सब के लिए है ,… |
Added by Shyam Narain Verma on March 17, 2015 at 3:03pm — 14 Comments
तुझसे मिलन के इंतज़ार में
बसाया था बलम
तेरी छवि को यादों में
तेरी प्रीत को ख्वाबो में
करवटों को बाँहों में
और
सिलवटों को रातों में
तुझको पाने की प्यास में
सीखा था सनम
गीतों को गाना
नृत्य को जीना
शराब को पीना
और
ज़ख्मों को सीना
तुझसे मिलन की आस पिया
और सजाया था
कजरा आँखों में
गजरा बालों में
नखरा गालों पे
और
मदिरा होठों…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 11:42am — 11 Comments
212 1222 212 1222
क्या हुआ यहाँ पर कल , क्यूँ उदास मौसम है
तितलियाँ परीशाँ हैं , क्यूँ गुलों में भी ग़म है
कितनी प्यारी लगतीं हैं , ये गुलाब की कलियाँ
और बर्गे गुल में वो , सो रहा जो शबनम है
अपनी क़िस्मतों मे तो , सिर्फ ये सराब आये
क़िस्मतों में कुछ के ही, सिर्फ़ आबे जम जम है
जगमगाती खुशियों की , नीव कह रही है ये
कुछ घरों में तारीक़ी , कुछ घरों में मातम है
आइने के गावों में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 10:42am — 39 Comments
जिद्द की दीवार
पड़ोस के जोशीजी की छोटी बेटी माला फिर मायके लौट आयी थी, बड़ी बेटी कामना पहले ही पति से संबंध विच्छेद के बाद घर में विराजमान थी। जोशीजी बेटियो की जिद्दी स्भाव के चलते चिन्तित रहते थे तो उनकी पत्नी बेटियो के ससुराल वालो को भला-बुरा कहकर अपना मन शान्त कर लेती थी। दिन गुजरने के साथ बूढे माँ बाप की उम्र का ग्राफ बढ़ रहा था और बेटियो की जवानी ढल रही थी।
लेकिन एक शाम छोटा दामाद रवि, अचानक अपनी पत्नि को लिवाने आ पहुँचा तो घर में सभी के चेहरे खिल गये। माला भी…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 17, 2015 at 8:30am — 17 Comments
भँवरा हूँ ......
फूल दर फूल घूमना आदत मेरी
हर फूल को चूमना चाहत मेरी
फूल कहाँ पहचानते हैं मुझे
मेरे जैसे कई आते हैं हर रोज़
बिन बुलाये यहाँ !
मेरी तो फ़ितरत है
नये मन्ज़र ढूँढ़ना
रुक तो तभी पाऊंगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ा जाऊंगा
वर्ना उड़ता उड़ता
बहुत दूर निकल जाऊंगा.........
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:30am — 10 Comments
1222---1222---1222---1222 |
|
ग़ज़ल से पा रहा हूँ मैं, ग़ज़ल ही गा रहा हूँ मैं |
ग़ज़ल के सर नहीं बैठा, ग़ज़ल के पा रहा हूँ मैं |
|
किसी की नीमकश आँखों का तारा हूँ जमानों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 16, 2015 at 11:00pm — 35 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 9:10pm — 28 Comments
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
बिस्तर पर लेटी राज दुलारी ,
पर उसको चोट लगी है भारी ,
लौटा दो फिर से उसकी हँसी,
उसे धीरे से गुदगुदाया करो !
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
तरह - तरह के मर्ज पड़े है,
जाने कितने दुःख-दर्द पड़ें हैं,
पीड़ा कम हो जाए उनकी,
ऐसा मरहम लगाया करो !
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
कुछ…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 8:33pm — 28 Comments
२१२२ २१२२ २१२
दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी
आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी
मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी
ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी
बोझ ढोता ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली सँवारी ज़िन्दगी
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on March 16, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |