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March 2016 Blog Posts (166)

गजल(व्यंग्य),मनन

2212 12 12
मछली बड़ी तो' जाल क्या?
निकली अगर मलाल क्या?
चारा बड़ा भला लगा
टोनाा गया बवाल क्या?
बंसी मगर रही कहूँ-
बेधार की,निहाल क्या?
पिटता रहा दफा दफा
पीटता अभी कपाल क्या?
घोंपे गये छुरे बहुत
बतला नमकहलाल क्या?
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on March 10, 2016 at 7:56pm — No Comments

कितना टूटा कितना हारा

कितना टूटा कितना हारा

ज़िन्दगी ने कितना मारा



हर घङी मातम है

मायूसी का आलम है

चारों ओर निराशा है

अश्रुमिश्रित भाषा है

कलम भी मेरी सब है जाने

दु:ख के मेरे क्या हैं माने

कि झूठे उद्गारों की ज़द में गर में

खुशी कभी जो लिखना भी चाहूँ

झूठ नहीं यह सहती है

'गम ही गम हैं' कहती है।

नादां है यह ये न जाने जग में

सच ही सदा न चलता है

सफेदपोशी का नक़ाब ओढे

सफेद झूठ मचलता है

ऐसे झूठे मोती पिरो के

माला बनाना चाहूँ… Continue

Added by Ashish Painuly on March 10, 2016 at 6:36pm — No Comments

अनचाहा (लघु कथा )

मानसिक रूप से तैयार न होने के बावजूद उसने बीज डाल दिया और अंकुर भी फूट गया ।नौ माह कैसे सिंचित हुआ,चूसता रहा रस परजीवी बन कर ।
"लो ये आ गया आपका कुल दीपक ।"
बच्चे को सास के सुपुर्द करते हुए।"अब सम्हालो इसे।"

छुट्टी खराब कर दी छः महीने की और छः स्ट्रेच निल की बोतल ।

.

पवन जैन,जबलपुर।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by Pawan Jain on March 10, 2016 at 5:00pm — 3 Comments

"छप्पय छंद"

करे वंदना आज, नाज हिय तुम पर करके।
रहो वीर सरताज, आज दो आँसूं छलके।।
तुम वीरों की शान, आन पर मिटने वाले।
देश करे अभिमान, जान-तन देने वाले।।
श्रद्धा-सुमन स्वीकार करो, राष्ट्र-क्रांति-प्रतिमान हे!
चंद्रशेखर! सत्य वीर्यवर! पूज्यमूर्ति-बलिदान हे!

--रामबली गुप्ता
क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद को शत-शत नमन
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 4:37pm — 1 Comment

अनाम रिश्ते......

अनाम रिश्ते......

 

मैंने कभी

उसके बारे में सोचा न था

न कभी

उसे ख्वाब में देखा था

उसके नाम से

मैं कभी आशना न थी

न कभी अपने दिलोदिमाग में

उसे पाने की तमन्ना का

कोई बीज बोया था

फिर भी न जाने क्यूँ 

सदा मुझे किसी साये के

करीब होने का अहसास होता था

शब की तारीकियों हों

या मेरी तन्हाईयाँ हों

मेरे हर लम्हे को

वो अपनी मौजूदगी के अहसास से

लबरेज़ करता था

उसके अहसास ने…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:39pm — 7 Comments

कसक – ( लघुकथा ) –

 कसक – ( लघुकथा ) –

रोहित बिहार के पटना ज़िले के एक छोटे से गॉव के एक गरीब  किसान परिवार का इकलौता मगर होनहार पुत्र था!वह  हैदराबाद विश्वविद्यालय में "भारतीय राजनीति का गिरता स्तर" विषय पर शोध कार्य कर रहा था!उसकी कार्य शैली और थीसिस के संस्करण देख उसके गाइड चकित थे!

राजनीतिज्ञों को जैसे ही इन बातों की हवा लगी, वे रोहित को साम, दाम, दंड, भेद खरीदने में लग गये!वे नहीं चाहते थे कि उसका शोध कार्य छपे!सबके चेहरे बेनक़ाब हो जायेंगे!जब कोई युक्ति कारगर साबित नहीं हुई तो रोहित को खत्म…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on March 10, 2016 at 11:52am — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
उसे ज़िन्दगी की वो ताल दे (ग़ज़ल)...//डॉ.प्राची

11212 ,11212 ,11212 ,11212



हो भले कठिन मेरी हर डगर, मुझे चाहे कोई भी हाल दे।

मेरा हर कदम यूँ सधा पड़े, कि जहान जिसकी मिसाल दे।



न किसी किताब के प्रश्न हों, न जवाब उनकेे कहीं मिलें

मेरी नज़्र ही हो जवाब हर, तू उसे ज़रा वो सवाल दे।



वो घुला है मुझमे कुछ इस कदर, कि न हो सके कोई वापसी

मेरा चीर दिल, मेरे होश ले, मेरी जान चाहे निकाल दे।



मैं चलूँ चले, मैं थमूँ थमे, जो हँसू हँसे, मेरे साथ ही

मेरा प्यार छू ले हर इक ज़हन, मेरी शख्सियत में कमाल… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 10, 2016 at 7:46am — 6 Comments

परिंदा क़ैद का आदी नहीं था, घर चला आया (ग़ज़ल)

1222   1222   1222   1222

निगाहों  में  किसी की  चंद-पल  रुक कर चला आया

परिंदा   क़ैद  का  आदी   नहीं  था,   घर  चला  आया

सितमगर  की  ख़िलाफ़त  में  उछाला था  जिसे हमने

हमारे   आशियाने   तक   वही   पत्थर   चला   आया

सभी  क़समों,  उसूलों,  बंदिशों  को  तोड़कर,आखिर

मैं  अरसे  बाद आज उसकी  गली होकर  चला आया

दनादन   लीलता   ही   जा   रहा   है   कैसे  हरियाली

कि चलकर शह्र से अब गाँव तक अजगर चला…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on March 9, 2016 at 9:59pm — 10 Comments

दोहे(विविधा-20)

वो अपने घर बो रहा,फिर से नया बबूल।

इसीलिए नाराज़ है,उसके घर के फूल।।



उन्हें देख फिर से हुआ,ऐसा मेरा हाल।

ठिठुरे तन को घूप ज्यों, शुक को मिले रसाल।



उन्हें देख फिर से जगी,ऐसी नई उमंग।

गगन बीच मन उड़ रहा,जैसे उड़े पतंग



फटे वस्त्र औ भूख का,मचा हुआ है शोर।

जाकर कुछ तो दीजिये,नेता जी उस ओर।



मुझे देख उनको लगा,हुआ मुझे उन्माद।।

नयनों से वाचन किया,अधरों से अनुवाद।।



उन्हें देख फिर खिल उठा,मन का पावन फूल।

प्रकृति सुंदरी ने… Continue

Added by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 5:40pm — 4 Comments

सोच असुरों सी करो मत दोस्तो - ग़ज़ल

2122    2122    212

**********************  

कब   यहाँ   पर्दा  उठाया  जाएगा

कब  हमें  सूरज दिखाया  जाएगा /1



थक गए हैं झूठ  की उँगली पकड़

सच का दामन कब थमाया जाएगा /2



सब   परेशाँ   तीरगी   से   दोस्तो

कब  दिया  कोई  जलाया जाएगा /3



है  सुरक्षा  खाद्य  की   कानून में

पर अनाजों  को  सड़ाया  जाएगा /4



दूर महलों से खड़ी कुटिया में फिर

इक  निवाला  बाँट  खाया जाएगा /5



यह समय है झूठ का कहते है सब

राम  को  रावण  बताया  जाएगा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 12:09pm — 16 Comments

ग़ज़ल-आरजू तुमसे मिलने की करने लगी

वह्र-212 212 212 212





आरजू तुमसे मिलने की करने लगी।

हसरतें मेरे दिल की सँवरने लगीं।।



कौन हो तुम अभी जानती भी नही।

जाने तुम पर ही क्यूँ ऐसे मरने लगी।।



हो गया है मुझे क्या ऐ मेरे सनम।

आहटों पर भी मैं गौर करने लगी।।



हुश्न की हूँ परी सब मुझे बोलते।

तुमसे मिलके मैं इतना निखरने लगी।।



झूठ कुछ भी किसी से न कहती थी मैं।

तुमसे मिल के बहाने भी करने लगी।।



देख लूँ जो सनम तुम चले आ रहे।

बन के राहों में कलियाँ… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 9, 2016 at 11:30am — 3 Comments

ग़ज़ल -- दुनिया का ढब दुनिया जैसा होता है। -- दिनेश कुमार

22--22--22--22-22--2





दुनिया का ढब दुनिया जैसा होता है

जो भी होता है वो अच्छा होता है



शाम ढले जब चिड़िया अपने घर लौटे

चोंच में उसके यारों दाना होता है



बाद में तो समझौते होते हैं दिल के

प्यार तो केवल पहला पहला होता है



अपने दम पर अब तक़दीर सँवारो तुम

मेहनतकश हाथों में सोना होता है



सोच रहा है आँगन का बूढ़ा बरगद

घर का आखिर क्यों बँटवारा होता है



चूड़ी कंगन पायल सब बेमानी हैं

लज्जा ही औरत का गहना होता… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 9, 2016 at 6:00am — 10 Comments

खिले जो फूल सेंभल के ...

नवगीत........सेंभल के फूल

खिले जो फूल सेंभल के

रहे वह मात्र दस दिन के

वो दुनियां देख न पाये

अहं के झूठ के साये

लड़े हर वक्त मौसम से

हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के 

रुई की नर्म फाहें उड़

गगन को भेदना चाहें

हवा रुख को बदल देती

उगाती रक्त की बांहें.

पकड़ कर ठूंसते-पीटें

लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के 

हवाओं से भरे फूले

निशक्तों…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2016 at 10:30pm — 6 Comments

मैंने सोचा न था ......

मैंने सोचा न था ......

मुझे गीत का नाम देकर

तुम बार बार

मुझे गुनगुनाओगे

सच ! ऐसा तो कभी

मैंने सोचा न था//

मेरे रक्ताभ अधरों पर

अपनी अनुभूति का

अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे

सच ! ऐसा तो कभी

मैंने सोचा न था//

मेरे अंतरंग पलों में

प्रेम घनों की

नन्ही बूंदों सा बरसता

तुम कोई राग छोड़ जाओगे

सच ! ऐसे तो कभी

मैंने सोचा न था//

कभी मेरी मूक व्यथा

शून्यता से मिल

उसके अंक में…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 9:34pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक ही चिप (महिला दिवस के उपलक्ष में एक हास्य व्यंग लघु कथा )

 “हे भोले भंडारी, कुछ कर बहुत परेशान कर रक्खा है मेरी सास ने जीना दूभर हो गया है हर वक़्त कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर टें टें करती रहती है मैं क्या करूँ?”

“बहुत बार समझा चुका हूँ तुम दोनों को वो माँ जैसी और तुम बेटी जैसी हो एक दूसरे की अहमियत समझो और सम्मान करो महिला होकर महिला का सम्मान नहीं करोगी तो किसी और से क्या उम्मीद करोगी किन्तु मुझे तुम्हारा कोई समाधान नजर नहीं आता हर बार अपना वादा तोड़ देती हो अच्छा बताओ क्या चाहती हो”?

“हे प्रभु कुछ ऐसा करो कि मेरी सास बोल न सके उसे गूंगी…

Continue

Added by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:13pm — 12 Comments

इक उम्र जी जाती हूँ ....

इक उम्र जी जाती हूँ ....

उसके जाने के बाद मैं

कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ

नींदें सुहाती नहीं

यादें सुलाती नहीं

आईना बेगाना सा लगता है

अक्स भी अंजाना सा लगता है

लिबास बदलूं

तो किस के लिए

शाम-ओ-सहर उदासियों के

मंज़र कहर ढाते हैं

ज़िस्म पर लम्स के अहसास

कतरनों से सजे नज़र आते हैं

चलती हूँ तो न जाने

कितने लम्हे साथ चलते हैं

एक आहट के इंतज़ार में

काफिले अश्कों के पिघलते हैं

शब् तो अब भी होती है मगर

अब हर…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 2:06pm — 14 Comments

गोली (लघुकथा)राहिला

उसके अब्बा को खानदान में ही बेटी ब्याहनें की जाने कैसी सनक सवार हुई,कि अपने भतीजे से शादी के फरमान की गोली मेरे सीने में दागकर, मेरी और शब्बो की मुहब्बत का जनाज़ा निकाल दिया ।इसके बाद मैंने शहर ही छोड़ दिया और पूरे तीन साल बाद आज जब बस अड्डे पर उतरा तो उसे पूरे साजो सामान और एक छोटे से बच्चे के साथ सामने खड़ा पाकर यूं लगा जैसे किसी ने फिर दिल पर गोली दाग दी हो।मैं लड़खड़ा सा गया और जाने कब, कैसे उसके पास पहुँच गया पता नहीं ।शायद वो मेरी कैफियत समझ गई थी । तभी उसका शौहर रिक्शा लेकर आ पहुंचा ।… Continue

Added by Rahila on March 8, 2016 at 12:22pm — 22 Comments

भले ही रंग कुछ भरते - ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222

************************************

उसे तो मुक्त होना  बस उसी की काहिली से है

कमी जो जिंदगी में यार  वो उसकी कमी  से है /1



जरा ये तो बताओ क्यों बुरा कहते हो किस्मत को

अगर है दूर मंजिल तो  समझ लो बुुजदिली से है /2



मनुज सब  एक से  ही हैं नहीं  छोटा बड़ा कोई

सभी का वास्ता  केवल उसी  इक  रोशनी से है /3



जहाँ गुजरा था इक बचपन सुहाना यार उसका भी

उसी  को  छोड़  आया  वो  बहुत  ही  बेदिली से है /4



हकीकत आप समझो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2016 at 10:55am — 8 Comments

इज़्ज़त (लघुकथा)

ट्रेन की बोगी में पाँच मुरझाये चेहरे बाक़ी सवारियों के वार्तालाप को सुनते हुए बातें समझने की कोशिश कर रहे थे। किसान की जवान बेटी बुरी नज़रों से बचने के लिए अपने शरीर को किसी तरह ढांकने की कोशिश कर रही थी। बाक़ी दोनों बच्चे सवारियों की खाने-पीने की वस्तुओं को टकटकी लगाये देख रहे थे। उनकी मां उन्हें सुलाने की कोशिश में नाकाम हो रही थी।

"जब से यह ठेका मिला है, पैसा ही पैसा बरस रहा है, वरना पिछले धंधे में तो बरबाद हो गया था!" एक सवारी ने संतोष की सांस लेते हुए अपने साथी से कहा।

"मेरे बाप…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 7, 2016 at 11:30pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
खुला आकाश तेरा है ..... (विश्व महिला दिवस पर) //डॉ. प्राची

ये माना रात गहरी है, सुनहरा पर सवेरा है।

सलाखें तोड़ दे बुलबुल, खुला आकाश तेरा है।



तुझे जो रोकती है वो

हर इक ज़ंज़ीर झूठी है,

ज़रा झंझोड़ हर बंधन,

कहाँ तकदीर रूठी है ?

उड़ानों पर तेरा हक़ है, ये पिंजर कब बसेरा है?

सलाखें तोड़.....



ज़माने के तराजू पर

न अपने पंख अब तू तोल,

'खुले अम्बर' की परिभाषा

जो सच समझे, वही तू बोल।

ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है।

सलाखें तोड़.....



तुझे छूना है चन्दा को

तुझे… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2016 at 9:53pm — 11 Comments

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