Added by Manan Kumar singh on March 10, 2016 at 7:56pm — No Comments
Added by Ashish Painuly on March 10, 2016 at 6:36pm — No Comments
मानसिक रूप से तैयार न होने के बावजूद उसने बीज डाल दिया और अंकुर भी फूट गया ।नौ माह कैसे सिंचित हुआ,चूसता रहा रस परजीवी बन कर ।
"लो ये आ गया आपका कुल दीपक ।"
बच्चे को सास के सुपुर्द करते हुए।"अब सम्हालो इसे।"
छुट्टी खराब कर दी छः महीने की और छः स्ट्रेच निल की बोतल ।
.
पवन जैन,जबलपुर।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Pawan Jain on March 10, 2016 at 5:00pm — 3 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 4:37pm — 1 Comment
अनाम रिश्ते......
मैंने कभी
उसके बारे में सोचा न था
न कभी
उसे ख्वाब में देखा था
उसके नाम से
मैं कभी आशना न थी
न कभी अपने दिलोदिमाग में
उसे पाने की तमन्ना का
कोई बीज बोया था
फिर भी न जाने क्यूँ
सदा मुझे किसी साये के
करीब होने का अहसास होता था
शब की तारीकियों हों
या मेरी तन्हाईयाँ हों
मेरे हर लम्हे को
वो अपनी मौजूदगी के अहसास से
लबरेज़ करता था
उसके अहसास ने…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:39pm — 7 Comments
कसक – ( लघुकथा ) –
रोहित बिहार के पटना ज़िले के एक छोटे से गॉव के एक गरीब किसान परिवार का इकलौता मगर होनहार पुत्र था!वह हैदराबाद विश्वविद्यालय में "भारतीय राजनीति का गिरता स्तर" विषय पर शोध कार्य कर रहा था!उसकी कार्य शैली और थीसिस के संस्करण देख उसके गाइड चकित थे!
राजनीतिज्ञों को जैसे ही इन बातों की हवा लगी, वे रोहित को साम, दाम, दंड, भेद खरीदने में लग गये!वे नहीं चाहते थे कि उसका शोध कार्य छपे!सबके चेहरे बेनक़ाब हो जायेंगे!जब कोई युक्ति कारगर साबित नहीं हुई तो रोहित को खत्म…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 10, 2016 at 11:52am — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 10, 2016 at 7:46am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
निगाहों में किसी की चंद-पल रुक कर चला आया
परिंदा क़ैद का आदी नहीं था, घर चला आया
सितमगर की ख़िलाफ़त में उछाला था जिसे हमने
हमारे आशियाने तक वही पत्थर चला आया
सभी क़समों, उसूलों, बंदिशों को तोड़कर,आखिर
मैं अरसे बाद आज उसकी गली होकर चला आया
दनादन लीलता ही जा रहा है कैसे हरियाली
कि चलकर शह्र से अब गाँव तक अजगर चला…
Added by जयनित कुमार मेहता on March 9, 2016 at 9:59pm — 10 Comments
Added by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 5:40pm — 4 Comments
2122 2122 212
**********************
कब यहाँ पर्दा उठाया जाएगा
कब हमें सूरज दिखाया जाएगा /1
थक गए हैं झूठ की उँगली पकड़
सच का दामन कब थमाया जाएगा /2
सब परेशाँ तीरगी से दोस्तो
कब दिया कोई जलाया जाएगा /3
है सुरक्षा खाद्य की कानून में
पर अनाजों को सड़ाया जाएगा /4
दूर महलों से खड़ी कुटिया में फिर
इक निवाला बाँट खाया जाएगा /5
यह समय है झूठ का कहते है सब
राम को रावण बताया जाएगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 12:09pm — 16 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 9, 2016 at 11:30am — 3 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 9, 2016 at 6:00am — 10 Comments
नवगीत........सेंभल के फूल
खिले जो फूल सेंभल के
रहे वह मात्र दस दिन के
वो दुनियां देख न पाये
अहं के झूठ के साये
लड़े हर वक्त मौसम से
हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के
रुई की नर्म फाहें उड़
गगन को भेदना चाहें
हवा रुख को बदल देती
उगाती रक्त की बांहें.
पकड़ कर ठूंसते-पीटें
लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के
हवाओं से भरे फूले
निशक्तों…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2016 at 10:30pm — 6 Comments
मैंने सोचा न था ......
मुझे गीत का नाम देकर
तुम बार बार
मुझे गुनगुनाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे रक्ताभ अधरों पर
अपनी अनुभूति का
अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे अंतरंग पलों में
प्रेम घनों की
नन्ही बूंदों सा बरसता
तुम कोई राग छोड़ जाओगे
सच ! ऐसे तो कभी
मैंने सोचा न था//
कभी मेरी मूक व्यथा
शून्यता से मिल
उसके अंक में…
Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 9:34pm — 14 Comments
“हे भोले भंडारी, कुछ कर बहुत परेशान कर रक्खा है मेरी सास ने जीना दूभर हो गया है हर वक़्त कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर टें टें करती रहती है मैं क्या करूँ?”
“बहुत बार समझा चुका हूँ तुम दोनों को वो माँ जैसी और तुम बेटी जैसी हो एक दूसरे की अहमियत समझो और सम्मान करो महिला होकर महिला का सम्मान नहीं करोगी तो किसी और से क्या उम्मीद करोगी किन्तु मुझे तुम्हारा कोई समाधान नजर नहीं आता हर बार अपना वादा तोड़ देती हो अच्छा बताओ क्या चाहती हो”?
“हे प्रभु कुछ ऐसा करो कि मेरी सास बोल न सके उसे गूंगी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:13pm — 12 Comments
इक उम्र जी जाती हूँ ....
उसके जाने के बाद मैं
कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ
नींदें सुहाती नहीं
यादें सुलाती नहीं
आईना बेगाना सा लगता है
अक्स भी अंजाना सा लगता है
लिबास बदलूं
तो किस के लिए
शाम-ओ-सहर उदासियों के
मंज़र कहर ढाते हैं
ज़िस्म पर लम्स के अहसास
कतरनों से सजे नज़र आते हैं
चलती हूँ तो न जाने
कितने लम्हे साथ चलते हैं
एक आहट के इंतज़ार में
काफिले अश्कों के पिघलते हैं
शब् तो अब भी होती है मगर
अब हर…
Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 2:06pm — 14 Comments
Added by Rahila on March 8, 2016 at 12:22pm — 22 Comments
1222 1222 1222 1222
************************************
उसे तो मुक्त होना बस उसी की काहिली से है
कमी जो जिंदगी में यार वो उसकी कमी से है /1
जरा ये तो बताओ क्यों बुरा कहते हो किस्मत को
अगर है दूर मंजिल तो समझ लो बुुजदिली से है /2
मनुज सब एक से ही हैं नहीं छोटा बड़ा कोई
सभी का वास्ता केवल उसी इक रोशनी से है /3
जहाँ गुजरा था इक बचपन सुहाना यार उसका भी
उसी को छोड़ आया वो बहुत ही बेदिली से है /4
हकीकत आप समझो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2016 at 10:55am — 8 Comments
ट्रेन की बोगी में पाँच मुरझाये चेहरे बाक़ी सवारियों के वार्तालाप को सुनते हुए बातें समझने की कोशिश कर रहे थे। किसान की जवान बेटी बुरी नज़रों से बचने के लिए अपने शरीर को किसी तरह ढांकने की कोशिश कर रही थी। बाक़ी दोनों बच्चे सवारियों की खाने-पीने की वस्तुओं को टकटकी लगाये देख रहे थे। उनकी मां उन्हें सुलाने की कोशिश में नाकाम हो रही थी।
"जब से यह ठेका मिला है, पैसा ही पैसा बरस रहा है, वरना पिछले धंधे में तो बरबाद हो गया था!" एक सवारी ने संतोष की सांस लेते हुए अपने साथी से कहा।
"मेरे बाप…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 7, 2016 at 11:30pm — 7 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2016 at 9:53pm — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |